Thursday, April 28, 2011

खुशामद के रूप


@ शन्नो जी ! गोपालकृष्ण गांधी जी एक प्रशासनिक अधिकारी रह चुके हैं और भारत सरकार के लिए वह ऊंचे पदों पर काम कर चुके हैं। उन्हें अक्सर खुशामदी लोगों से वास्ता पड़ता रहा है और इसीलिए उन्हें खुशामद करने वाले मतलबी लोगों से नफ़रत हो गई है। इस लेख उन्होंने अपने अनुभव को ही बयान किया है। लेकिन खुशामद के कुछ रूप और भी हैं जो कि उनकी नज़र से या तो चूक गए हैं या फिर इस लेख में नहीं आ पाए होंगे।
कोई बच्चा जब दूध पीने से इंकार कर देता है तो मां-बाप उसकी खुशामद करते हैं कि वह दूध पी ले। ज़ाहिर है कि यह ख़ालिस खुशामद होती है लेकिन इसमें अपने बच्चे से नफ़रत करना नहीं पाया जाता। कोई लड़की जब किसी के झूठे प्यार में गिरफ़्तार हो जाती है तो भी उसके मां-बाप उसकी खुशामद करते हैं कि वह उसे अपने दिल से निकाल दे। रूठकर मायके गई बीवी को वापस लाने के लिए उसकी कितनी खुशामद करनी पड़ती है, इसका मुझे तो पता नहीं है और हो सकता है कि डा. श्याम गुप्ता जी को भी इसका पता न हो। बैंक में अनपढ़ लोगों को अपने फ़ॉर्म भरवाने के लिए पढ़े-लिखे लोगों की खुशामद करते हरेक देख सकता है। शादी-विवाह में लंबे-लंबे मंत्र पढ़ने वाले पंडित जी को जल्दी से निपटाने के लिए खुशामद करते हुए भी देखा जा सकता है। ग़र्ज़ यह कि ऐसे बहुत से मौक़े होते हैं जहां खुशामद ज़रूरी होती है और वह कभी एक जायज़ अमल होती है और कभी पसंदीदा भी। खुशामद का मात्र वही रूप घृणित है जहां उसके पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ नाजायज़ लालच पोशीदा हो और खुशामद करने वाले का दिल ख़ैरख्वाही से ख़ाली हो।
आपकी टिप्पणी के लिए आपका शुक्रिया। 
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/04/praise.html