Tuesday, September 18, 2012

डिप्रेशन का इलाज है ईश्वर पर विश्वास Depression Treatment


डिप्रेशन या अवसाद नए ज़माने की महामारी है। जब आदमी ज़िंदगी के बारे में ग़ैर हक़ीक़ी नज़रिया अख्तियार करता है और ऐसी अपेक्षाएं पालता है जो हक़ीक़त में पूरी नहीं हो सकतीं। जब ये अपेक्षाएं टूटती हैं तो इंसान को गहराई तक तोड़ कर रख देती हैं। ऐसे में खान पान और उपचार के साथ मन के उपचार की ज़रूरत भी है। मन को ग़ैर हक़ीक़ी नज़रिए के बजाय हक़ीक़त से वाक़िफ़ कराया जाए लेकिन हक़ीक़त का चेहरा भी बहुत भयानक होता है, जिसे देखकर इंसान की चीख़ निकल जाती है। ऐसे में उसे ईश्वर पर विश्वास बहुत बल देता है कि वह ईश्वर मेरा रक्षक और सहायक है, वह अवश्य मेरा कल्याण करेगा, वह अवश्य मेरे दुख दूर करेगा। जिसके पास यह संबल होता है, उसे अवसाद कभी नहीं होता और अगर कभी हो भी जाय तो वह जल्दी ही अवसाद से निकल आता है।


यह कमेंट कुमार राधारमण जी की पोस्ट पर दिया गया है। देखें-

अवसाद और मस्तिष्क


अवसाद या लंबे समय तक बना रहने वाला तनाव मस्तिष्क को सिकोड़ देता है। अमेरिका के येल युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध अध्ययन में पाया है कि भावनात्मक परिवर्तनों से शरीर पर स्थाई एवं अस्थाई परिवर्तन होते हैं। मस्तिष्क का आकार भी इसी कारण घटता है। 

अवसाद से शरीर में कई रासायनिक परिवर्तन होते हैं। कुछ स्थाई होते हैं तथा कुछ अस्थाई। हाल ही में हुए शोधों से साबित हुआ है कि प्राचीन काल से सकारात्मक सोच रखने की सीख अच्छे स्वास्थ के लिए कितनी जरूरी है। मरीज खुद को तनाव, अवसाद और व्याकुलता से जितना नुकसान पहुँचा सकता है उतना कोई दूसरा नहीं। सकारात्मक विचारों से शरीर की कई ग्रंथियाँ अधिक सक्रिय होकर काम करने लगती हैं। हारमोन्स का यह प्रवाह शरीर को तरोताजा रखता है। नींद भरपूर आती है और जीवन के प्रति रुचि जाग्रत होती है। व्याकुलता, अवसाद और अनिद्रा किसी भी इंसान को ध्वस्त करने की हद तक पहुँचा देने वाले मानसिक रोगों की अवस्थाएँ हैं। इनमें यदि वातावरणजन्य रोग और शामिल हो जाएँ तो जिंदगी ही व्यर्थ लगने लगती है। हमारी सोच पर वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। 

यदि आपको अपने ऑफिस बिल्डिंग की कलर स्कीम अच्छी नहीं लग रही है तो आप बेहद थकान महसूस करेंगे, आपके शरीर में फ्लू जैसे क्षण उभरने लगेंगे। मस्तिष्क पर धुंधलका छा जाएगा। आमतौर पर वातावरणजन्य रोगों में व्याकुलता, अवसाद और अनिद्रा प्रमुखता से उभरते हैं। अवसादग्रस्त होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह जीवनसाथी के विछोह से लेकर प्रिय कुत्ते के मर जाने तक किसी भी कारण से हो सकता है। यह अवस्था कुछ समय तक ही रहती है बाद में आप सामान्य हो जाते हैं। 

देर तक अवसादग्रस्त रहने पर शरीर में बेहद थकान, जीवन के प्रति अरुचि जैसे लक्षण उभरने लगते हैं। कई लोग अवसादग्रस्त या तनावग्रस्त होने पर अधिक खाने लगते हैं। उनकी मानसिक एकाग्रता नष्ट हो जाती है। वे भूलने लगते हैं। वे अनिर्णय की स्थिति में पहुँच जाते हैं। विचारों की स्पष्टता खत्म हो जाती है। सबसे पहले साँस पर ध्यान दें। अक्सर देखा गया है कि अवसादग्रस्त व्यक्ति भरपूर साँस नहीं लेता। उसके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम रहता है। इससे मरीज को सिरदर्द और पेटदर्द की भी शिकायत होती है। कभी-कभी मरीज को चक्कर भी आ जाते हैं। चिंता, तनाव और अवसाद जब रोजमर्रा के जीवन में हस्तक्षेप करने लगें तब चिकित्सक की मदद लेना जरूरी होता है।

क्या है इलाज 
तनाव और अवसाद के इलाज के तौर पर वर्षों से प्राकृतिक तरीकों से दी जा रही चिकित्सा पर ही भरोसा किया जा सकता है। मरीज के व्यवहार और जीवनशैली से संबंधित कुछ तनाव बिंदुओं पर इलाज केंद्रित किया जाता है। व्यवहार में पूर्ण बदलाव के लिए इस तरह के १५ से २० सेशन की जरूरत होती है। मरीज के तनाव और अवसाद कारक बिंदुओं को चिन्हित कर उसकी नकारात्मक विचारधारा प्रक्रिया को रोकने की दिशा में काम किया जाता है। इसी के साथ मरीज में एक सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगता है। मरीज को अवसाद मुक्त करने वाली दवाओं के साथ मूड एलिवेटर्स दी जाती हैं। 

सिर्फ दवा काफी नहीं 
मरीज़ अकेले औषधियों से ठीक नहीं होते। उन्हें दवाओं के साथ बिहेवियरल थैरेपी भी दी जाती है। इसके अलावा,योग और मानसिक तनाव शैथिल्य की क्रियाएं भी कराई जाती हैं। 

अवसाद से निपटें इस तरह 
-अवसाद से निपटने का सबसे सरल और कारगर तरीका यह है कि एक गिलास उबलते पानी में गुलाब के फूल की पत्तियाँ मिलाएं। ठंडा करें और शक्कर मिलाकर पी जाएं।

-एक चुटकी जायफल का पावडर ताजे आंवले के रस में मिलाकर दिन में तीन बार पी लें।

-ग्रीन टी भी अवसाद दूर भगाने में मदद करती है। दिन कम से कम तीन कप ग्रीन टी पिएं। अवसाद से छुटकारा पाने का एक और उपाय यह है कि एक कप दूध के साथ एक सेबफल और शहद का सेवन करें। 

-गुनगुने पानी के टब में लगभग आधे घंटे के लिए शरीर को ढीला छोड़ दें। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हों तो नदी अथवा तालाब के पानी में तैरें। इससे अवसाद कम होगा। 

-सामान्य चाय के प्याले में एक-चौथाई चम्मच तुलसी की पत्तियां मिलाएं और दिन में दो कप लें। 

-एक कप उबलते पानी में दो हरी इलायची के दाने पीसकर मिला दें। शक्कर मिलाकर पी लें। 

-सूखे मेवे,पनीर,सेबफल का सिरका एक गिलास पानी के साथ लें। 

-कद्दू के बीज,गाजर का रस,सेबफल का रस,5-6 सूखी खुबानी को राई के दानों के साथ मिलाकर पीस लें और इसे पी लें(सेहत,नई दुनिया,सितम्बर प्रथमांक 2012)।

Friday, September 14, 2012

हिफ़ाज़त की दुआ जो इंसान को गोलियों की बौछार में भी हादसों से महफ़ूज़ रखती है Dua for safety

इंसान से ग़लतियां होती ही हैं। इंसान ग़लतियों से सीखता है। मानव जाति के पास आज जो भी ज्ञान है। वह इसी तरह अर्जित हुआ है। ग़लतियों से मन में ग्लानि और पश्चात्ताप भी पैदा होता है। मन ग्लानि के बोझ से मुक्त हो जाए इसके लिए ही प्रायश्चित का विधान रखा गया है। किसी भी चीज़ में मन ऐसा उलझकर न रह जाए कि इंसान की तरक्क़ी रूक जाए। इसका ध्यान सदा रखना चाहिए।
माल के लालच ने इंसान की सही ग़लत की तमीज़ विकृत कर दी है और वह पश्चात्ताप और आत्मसुधार को भी भुला बैठा है। इंसान अपनी मौत को याद रखे तो वह अपने जीवन की क़ीमत को समझ सकता है वर्ना उसकी मौत तो क्या उसका जीना भी एक हादसा बनकर रह गया है। जो लोग हादसों में मर गए, वे मर तो गए। अब तो जीना भी दुश्वार हो रहा है। सड़कों पर चलना तो क्या घरों में रहना भी सुरक्षा की गारंटी नहीं बचा। घरों तक में ऐसे हादसे वुजूद में आ रहे हैं कि उन्हें न तो भुलाए बनता है और न ही कोई प्रायश्चित उन बुरी यादों को मन से निकाल पाता है।
हम तो अपने बच्चों को जब घर से बाहर स्कूल वग़ैरह भेजते हैं तो पहले अल्लाह के दो नाम ‘या हफ़ीज़ू या सलाम‘ चंद बार पढ़कर उनकी हिफ़ाज़त और सलामती की दुआ करते हैं फिर उन पर दम करते हैं। जहां इंसान की तदबीर काम नहीं देती दुआ वहां भी काम आती है।


पोस्ट अच्छी लगी।
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यह कमेंट पल्लवी सक्सेना जी की निम्न पोस्ट पर दिया गया है-

हादसे और ग्लानि

मैं तो यह सोचती हूँ जब नए-नए डॉक्टर के हाथों किसी मरीज की मौत हो जाती है तब उन्हें कैसा लगता होगा। क्या वह डॉक्टर उसे होनी या अनुभव का नाम देकर आसानी से जी लिया करते है। हालांकी कोई भी डॉक्टर किसी भी मरीज की जान जानबूझकर नहीं लेता। मगर हर डॉक्टर की ज़िंदगी में कभी न कभी ऐसा मौका ज़रूर आता है खासकर सर्जन की ज़िंदगी में, जब जाने अंजाने या परिस्थितियों के कारण उनके किसी मरीज की मौत हो जाती है। तब उन्हें कैसा लगता है और वो क्या सोचते हैं। वैसे तो आज डॉक्टरी पेशे में भी लोग बहुत ही ज्यादा संवेदनहीन हो गए हैं जिन्हें सिर्फ पैसों से मतलब है मरीज की जान से नहीं, खैर वो एक अलग मसला है और उस पर बात फिर कभी होगी या फिर यदि उन लोगों की बात की जाये जो बदले की आग में किसी पर तेज़ाब फेंक दिया करते है। क्या ऐसा घिनौना काम करने के बाद भी वो उस व्यक्ति के प्रति ग्लानि महसूस करते होंगे ? शायद नहीं क्यूंकि यदि ऐसा होता तो शायद वो इतना घिनौना काम करते ही नहीं मगर क्या ऐसे लोग उस हादसे को महज़ एक होनी समझ कर भूल जाते है ? या ज़िंदगी भर कहीं न कहीं दिल के किसी कौने में उन्हें इस बात की ग्लानि रहा करती है कि उनकी वजह से किसी की ज़िंदगी बरबाद हो गयी या जान चली गयी क्या इस बात का अफसोस उन्हें रहा करता है ? क्या ऐसे पेशे में यह बात इतनी साधारण और आम होती है जिस पर बात करते वक्त उस हादसे से जुड़े लोगों के चहरे पर किसी तरह का कोई अफसोस या एक शिकन तक नज़र नहीं आती।

Saturday, September 8, 2012

धन वर्षा अब आपके अपने हाथ में है How To Make Amla Hair Oil At Home .

पल्लवी सक्सेना जी ! आपने अपने अनुभव शेयर किए हैं। अब हम अपने अनुभव बताने की इजाज़त चाहेंगे।
(1) शिक्षा हरेक उम्र में हासिल की जा सकती है
हम एक रिक्शा में बैठे। एक नौजवान भी साथ में आ बैठा। हमारे पूछने पर उसने बताया कि वह हाई स्कूल भी नहीं कर पाया क्योंकि उसके मां बाप के हालात उसे पढ़ाने लायक़ नहीं थे। हमने उसे कहा कि अब आप कमाते हो, ख़ुद पढ़ लो। एनओएस के माध्यम से आप बिना स्कूल जाए ही हाई स्कूल और इंटर कर सकते हो और उसके बाद आप इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई कर सकते हो।
इंसान के अंदर पढ़ने की चाहत जगाना असली काम है। यह चाहत न हो तो आदमी पढ़ नहीं सकता चाहे उसके पास कितना ही पैसा क्यों न हो।
मुसलमानों में सबसे ज़्यादा पैसा क़साई बिरादरी के पास है और शिक्षा में सबसे कम भी यही हैं क्योंकि उनमें पढ़ाई के लिए इच्छा कम है। उनसे कम पैसे वाली दूसरी बिरादरियां शिक्षा में उनसे आगे हैं।

(2) आज हरेक नर-नारी पैसे वाला बन सकता है
आज पैसा अहमियत रखता है। हरेक आदमी आज पैसे वाला बन सकता है। पैसे के लिए आदमी को व्यापार से जुड़ना चाहिए। चाहे वह कोई नौकरी ही क्यों न कर रहा हो।
हरेक आदमी को बहुत सी चीज़ों की ज़रूरत पड़ती है। उनमें से आप कुछ भी उन्हें बेच दीजिए। हरेक सिर पर बाल हैं। बाल टूटना, उनका सफ़ेद होना और लंबा न होना हरेक मर्द-औरत की समस्या है। इसके सौ से ज़्यादा नुस्ख़े इंटरनेट पर ही उपलब्ध हैं।
5 रूपये का तेल आप 50 रूपये में बेचेंगे। जितने कन्ज़्यूमर होंगे, उतने ही आपके प्रचारक होंगे। समय के साथ आपके प्रोडक्ट की सेल बढ़ती चली जाएगी और दौलत आपके समेटने में नहीं आएगी। शहनाज़ हुसैन ने अपने काम की शुरूआत अपने घर के बरामदे से की थी। आपके पास शुरूआत करने के लिए उससे अच्छी जगह हो सकती है।
आप मार्कीट में आंवले के तेल के नाम पर बहुत से हरे रंग के तेल बिकते हुए देखेंगे। उनमें आंवला नहीं होता। बस हरा रंग और आंवले की ख़ुश्बू होती है। वह भी तिल के तेल में नहीं बल्कि किसी सस्ते से रिफ़ाइन्ड ऑयल में जिसे केमिकल से प्रॉसिस किया जाता है और एक मशहूर ब्रांड के तेल में मिटटी का तेल भी डाला जाता है। जिसके असर से बाल समय से पहले सफ़ेद हो जाते हैं। अक्सर मशहूर ब्रांड का यही हाल है।
आपको आंवले का तेल चाहिए तो हमदर्द का लीजिए या फिर बैद्यनाथ का महाभृंगराज तेल लीजिए। भृंगराज एक औषधि है जो क़स्बों और देहात में नालियों के किनारे उगती है। इस पर सफ़ेद फूल आता है। हमें इसकी पहचान है। हमें यह मुफ़्त मिल जाता है वर्ना बाज़ार में सूखा हुआ बहुत महंगा मिलता है।
गूगल की मदद से आप इसका चित्र पहचान लीजिए तो आपको यह अपने घर के आस पास ही मिल जाएगा। आप अपने लिए महाभृंगराज का तेल ख़ुद बनाइये। आंवले का तेल भी आप ख़ुद बना सकते हैं। तरीक़ा बहुत आसान है।
मिसाल के तौर पर आप 10 ग्राम आंवले लीजिए और उसे सोलह गुने पानी में भिगो दीजिए। रात भर भीगने के बाद आप सुबह उसे मंद आंच पर पका लें। जब पानी आधा रह जाए तो यानि कि 80 ग्राम तो उसे छान लीजिए और उसमें 80 ग्राम तिल का तेल मिलाकर फिर आग पर पकाएं। जब पानी भाप बनकर उड़ जाए तो सिर्फ़ तेल बचेगा। यही वास्तव में आंवले का तेल है। इसमें आप बाज़ार से ख़ुश्बू और रंग अपनी पसंद का लेकर मिलाएं और बेचें।
भृंगराज
आप भृंगराज का तेल भी इसी विधि से बना सकती हैं। ये नुस्ख़े बनाने मुश्किल लगें तो एक सस्ता और तेज़ असर करने वाला नुस्ख़ा हरेक बना सकता है। आप तिल के तेल में बरगद के पत्ते और उसकी दाढ़ी पकाकर भी बेचने लगें तो लोगों के बाल टूटना बंद हो जाएंगे। तेल का रिज़ल्ट आपके तेल की सेल बढ़ा देगा। कुछ दूसरे तरीक़ों से भी आप तेल तैयार कर सकते हैं। इन्हें आप यूट्यूब में उपलब्ध वीडियो में देख सकते हैं।
इसी तरह आप 2 रूपये के बेसन में एक चुटकी हल्दी और दो चुटकी चंदन चूरा मिलाकर फ़ेस पैक तैयार कर सकती हैं। इसे नींबू के रस और पानी में मिलाकर चेहरे पर लगाएं। ज़िददी कील-मुहांसे ग़ायब हो जाएंगे और चेहरा दिन ब दिन निखरता चला जाएगा। 6 महीने में लड़की का रंग इतना बदल जाएगा कि देखने वालों को यक़ीन ही नहीं आएगा। सांवले रंग की लड़कियां इसे आज़माएं और सुंदर सलोना रूप पाएं। आप यह फ़ेस पैक 10-20 रूपये में आसानी बेच सकते हैं।

(3) आपका इरादा आपको आगे ले जाएगा
कहने का मतलब यह है कि अपने मिलने जुलने वालों के नेटवर्क में किसी दूसरी कंपनी के उत्पाद इंट्रोड्यूस कराने से बेहतर है अपने ख़ुद के प्रोडक्ट्स बेचना। कंपनी आपको अपने मुनाफ़े का एक छोटा सा हिस्सा देती है जबकि अपने प्रोडक्ट्स बेचकर सारा मुनाफ़ा आप ख़ुद रखते हैं और अपनी कंपनी के सीईओ कहलाने का सुख आपको अलग से मिलता है।
भारत में जितने लोग बेरोज़गार हैं, अपनी नासमझी की वजह से बेरोज़गार हैं। हर तरफ़ चीज़ें बिक रही हैं लेकिन न तो वे चीज़ें हमारी बिक रही हैं और न ही उन्हें हम बेच रहे हैं। वे चीज़े मल्टीनेशनल कंपनियों की बिक रही हैं और हम उन्हें ख़रीद रहे हैं। हमारा पैसा विदेश जा रहा है।
एमएलएम कंपनियों ने हमें बेचना सिखा दिया है।
उनका शुक्रिया ।
अब इस स्किल का भरपूर फ़ायदा उठाने की ज़रूरत है।
आपकी पोस्ट अच्छी है और प्रेरक भी, कि इतना कुछ लिखने की प्रेरणा मिली। कमेंट में संबोधित आप हैं लेकिन संदेश सबके लिए है। कम्प्यूटर वालों के लिए आपने लिखा और बाक़ी सबके लिए हमने लिख दिया है। जो कम्प्यूटर कोर्स न करना चाहें, वे भी बहुत कुछ कर सकते हैं।
यह कमेंट आपकी पोस्ट के अंश समेत यहां सहेजा जा चुका है-



और अब पल्लवी सक्सेना जी की पोस्ट, जिस पर हमने यह कमेंट दिया है-

 परिवर्तन

परिवर्तन जीवन का दूसरा नाम है क्यूंकि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है, कहते हैं समय के साथ बदल जाना ही समझदारी की निशानी है क्यूंकि समय कभी एक सा नहीं रहता। इन्हीं कहावतों के चलते आइये आज बात करें शिक्षा के क्षेत्र में आये कुछ परिवर्तनों पर, युग बदला, बदला हिंदुस्तान जिसके चलते इंसानी जीवन में न जाने कितने अनगिनत बदलाव आये जो आज हमारे सामने है। जिन्होंने इंसानी जीवन के हर एक पहलू को छुआ फिर क्या समाज और क्या ज़िंदगी, इस ही बात को मद्देनज़र रखते हुए हम बात करते है अपनी शिक्षा प्रणाली की, क्यूंकि शिक्षा ही सच्चे जीवन का आधार है ऐसा मेरा मानना है। क्यूंकि ज्ञान ही सभी भेद भाव मिटाकर आपको आपका सच्चा हक़ दिला सकता है। :-)

Wednesday, September 5, 2012

तालिबान को हथियार और ट्रेनिंग देने वाले ज़ालिम बदनाम क्यों न हुए ? Who was godfather of Taliban ?

" तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया"

जबकि उन्होंने इतने लोग नहीं मारे जितने कि उन्होंने मारे जोकि तालिबान नहीं हैं बल्कि विश्व शांति का झंडा भी उनके ही हाथ में है. तालिबान को हथियार और ट्रेनिंग देने वाले भी यही हैं.
ऐसा क्यों हुआ .
ऐसा केवल इसलिए हुआ कि "मीडिया" भी उनके ही हाथ में है.
जैसे मिथ्या जगत का व्यापार सत्य ब्रह्म के अधीन है, ऐसे ही हरेक मिथ्या आज उसके अधीन है  जिसके पास "शब्द" है.  शब्द को भारतीय दर्शन में ब्रह्म भी कहा गया है .
आध्यात्मिक सत्य को भौतिक धरातल पर भी घटित होते हुए देखा जा सकता है.
मन में जमे दुराग्रह और प्रचार के तिलिस्म को तोडा जाए तभी जाना जा सकता है कि आज ज़ालिम कौन है ?
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हमने यह कमेन्ट अजित वडनेरकर जी की पोस्ट पर दिया है. देखिये-

शब्दों का सफर: तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया
सेमिटिक मूल का मतलब अरबी से बरास्ता फ़ारसी, भारतीय भाषाओं में दाखिल हुआ । सेमिटिक धातु त-ल-ब / ṭā lām bā यानी ( ب ل ط ) से जन्मा है । अल सईद एम बदावी की कुरानिक डिक्शनरी के मुताबिक इसमें तलाश, खोज, चाह, मांग, परीक्षा, अभ्यर्थना, विनय और प्रार्थना जैसे भाव हैं । इससे ही जन्मा है 'तलब' शब्द जो हिन्दी का खूब जाना पहचाना है । तलब यानी खोज या तलाश । तलब के मूल मे 'तलाबा' है जिसमें रेगिस्तान के साथ जुड़ी सनातन प्यास का अभिप्राय है । आदिम मानव का जीवन ही न खत्म होने वाली तलाश रहा है । दुनिया के सबसे विशाल मरुक्षेत्र में जहाँ निशानदेही की कोई गुंजाइश नहीं थी । चारों और सिर्फ़ रेत ही रेत और सिर पर तपता सूरज । ऐसे में सबसे पहले पानी की तलाश, आसरे की तलाश, भटके हुए पशुओं की तलाश...अंतहीन तलाशों का सिलसिला थी प्राचीन काल में बेदुइनों की ज़िंदगी । तलब शब्द का रिश्ता आज भी प्यास से जुड़ता है । ये अलग बात है कि अब पीने-पिलाने या नशे की चाह के संदर्भ में तलब शब्द का ज्यादा प्रयोग होता है ।
...लब से ही 'तालिब' बनता है जिसका अर्थ है ढूंढनेवाला, खोजी, अन्वेषक, जिज्ञासु । तालिब-इल्म का अर्थ हुआ ज्ञान की चाह रखनेवाला अर्थात शिष्य, चेला, विद्यार्थी, छात्र आदि । इस तालिब का पश्तो में बहुवचन है तालिबान। तालिब यानी जिज्ञासु का बहुवचन पश्तो में आन प्रत्यय लगा कर बहुवचन तालिबान बना । उर्दू में अंग्रेजी के मेंबर में आन लगाकर बहुवचन मेंबरान बना लिया गया है । आज तालिबान दुनियाभर में दहशतगर्दी का पर्याय है ।तालिबान का मूल अर्थ है अध्यात्मविद्या सीखनेवाला । हम इस विवरण में नहीं जाएंगे कि किस तरह अफ़गानिस्तान की उथल-पुथल भरी सियासत में कट्टरपंथियों का एक अतिवादी विचारधारा वाला संगठन करीब ढाई दशक पहले उठ खड़ा हुआ । खास बात यह कि उथल-पुथल के दौर में नियम-कायदों की स्थापना के नाम पर मुल्ला उमर ने अपने शागिर्दों की जो फौज तालिबान के नाम से खड़ी की, उसने तालिब नाम की पवित्रता पर इतना गहरा दाग़ लगाया है कि तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया ।

Saturday, September 1, 2012

ब्लॉगिंग का ब्लैक डे क्यों है सम्मान समारोह ? Award Fixing

आदरणीय महेन्द्र श्रीवास्तव जी ! एक नेक राह दिखाती हुई पोस्ट का स्वागत है. रवीन्द्र प्रभात जी से या उनके सहयोगियों और सरपरस्तों से हमें कोई निजी बैर नहीं है. हम उन सबका सम्मान करते हैं लेकिन अच्छा काम सही तरीक़े से किया जाना चाहिए. यह बात उनके लिए भी सही है, आपके लिए भी और हमारे लिए भी.

आपकी पोस्ट और सभी टिप्पणियाँ पढ़ीं.
आपने यह बिलकुल सही कहा है -
"हम जो सही समझते हैं अगर वो भी हम ना कह पाएं तो मैं समझता हूं कि मुझे नहीं आप सबको ब्लागिंग करने का अधिकार नहीं है। हमारे अंदर इतनी हिम्मत होनी ही चाहिए कि हम चोर को चोर और ईमानदार को ईमानदार डंके की चोट पर कह सकें..."

हमारा नज़रिया भी यही है. यह पोस्ट लिख कर जो काम आपने किया है, आप से पहले यही काम हम करते थे. सच कहने का साहस रखने वाला एक और आया, यह ख़ुशी की बात है.
सच कहने वाले का कोई गुट या निजी हित नहीं होता लेकिन फिर भी उसका अपमान करके, उसका मज़ाक़ उड़ा कर उसका हौसला पस्त करने की कोशिशें की जाती हैं. हमारे साथ यही हुआ है और अब आपके साथ होते देख रहे हैं. हम अपनी राह से आज तक न डिगे और मालिक से दुआ है कि आप भी हमेशा सच पर क़ायम रहें. सब कुछ सामने है. इसीलये हम इस सम्मान समारोह पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. इस बार हम कुछ भी नहीं कह रहे हैं कि किसका सम्मान या अपमान क्यों ग़लत हुआ ?
ज़्यादातर लोग अभी तक ब्लॉगिंग को समझ नहीं पाए हैं. वे बार बार इसकी तुलना अख़बार या प्रकाशित साहित्य से करते हैं और फिर 'उम्दा या घटिया' तय करने लगते हैं. हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्यधारा  यही है.
मुख्यधारा में कुछ बातें और भी है जो एक सच्चे ब्लॉगर की चिंता का विषय हैं.
जानिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा
आपकी यह पोस्ट अपने कमेन्ट के साथ यहाँ भी सहेज दी गयी है.
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आदरणीय महेन्द्र श्रीवास्तव जी की पोस्ट का एक अंश, जिस पर यह कमेन्ट दिया गया -

सम्मान समारोह : ब्लागिंग का ब्लैक डे !

जी हैं आप मेरी बात से भले सहमत ना हों, लेकिन मेरे लिए 27 अगस्त " ब्लागिंग के ब्लैक डे " से कम नहीं है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं कि इसके पर्याप्त कारण हैं। इस दिन ब्लागिंग में ईमानदारी की हत्या हुई, इस दिन ब्लागिंग में बडों के सम्मान की हत्या हुई, इस दिन हमारी सांस्कृतिक विरासत "अतिथि देवो भव" की हत्या हुई। सच कहूं तो कल को अगर इस दिन को कुछ लोग याद रखेंगे तो सिर्फ इसलिए कि इस दिन ब्लागिंग में लंपटई की बुनियाद रखी गई, जिसे अब सहेज कर रखने की जिम्मेदारी कुछ लोगों के कंधे पर है। हालाकि ये कंधे बहुत मजबूत हैं, इसलिए  वो  सबकुछ संभाल लेंगे, वैसे भी ये सब ऐसे ही धंधे में सने हुए हैं।
...पहले तो इसमें दशक के ब्लागर का ही सम्मान होना था, लेकिन जब उसके तौर तरीके  पर सवाल उठने लगे, आयोजकों की भी किरकिरी होने लगी। तो लोगों को लगा कि कहीं ऐसे में ब्लागरों ने इस आयोजन से कन्नी काट ली तो क्या होगा ? आनन फानन में एक साजिश के तहत 40 और सम्मान जोड़ दिए गए। बस फिर क्या था, पूरी हो गई "अलीबाबा 40 चोर" की टीम। ब्लागर की आवाज को बंद करने का इससे नायाब तरीका हो ही नहीं सकता। इन्होंने पहले तो 40 लोगों को सम्मानित करने का ऐलान कर दिया। फिर हर वर्ग में तीन तीन ब्लागर का नाम शामिल कर दिया गया। अब 120 लोग सम्मान की कतार में आ गए। इतनी बड़ी संख्या में जब सम्मानियों की कतार लग गई तो सब के मुंह बंद हो गए।
...बहरहाल मैं अपने विचार आप पर थोप नहीं सकता,  आपको जैसा लगा वो आपने व्यक्त किया। खैर.. एक शेर याद आ रहा है कि ..

जी चाहता है तोड़ दूं शीशा फ़ रेब का,
अफ़सोस मगर अभी तो ख़ामोश रहना है।

मित्रों मैं इस बात को नहीं समझ पाता हूं कि हम सही को सही कहने की हिम्मत रखते हैं, लेकिन गलत को गलत कहने में हमारी हिम्मत कहां चली जाती है ? पिछले दिनों मैने जब इस समारोह के बारे में लिखा तो बहुत सारे लोगों ने मुझे फोन कर शुक्रिया कहा और ये भी कहा कि आपने सच कहने की हिम्मत की। एक ब्लागर की बात तो मैं आज भी नहीं भूल पाया हू, जिन्होंने मुझे बताया कि उन्हें "वटवृक्ष" का सह संपादक बनाने के लिए पैसे लिए गए। जब हिंदी की सेवा करने का दावा करने वालों का चेहरा ऐसा हो तो आसानी से समझा जा सकता है कि इन सबकी आड़ में असल में क्या खेल चल रहा है। फिर मुझे तो इसलिए भी हंसी आई कि इस अंतर्राष्ट्रीय समारोह में इन्हें मुख्य अतिथि कोयला मंत्री ही मिले, जिस मंत्रालय की कारगुजारी की वजह से देश की संसद कई दिनों से ठप है। खैर अच्छा हुआ वो नहीं आए। चलिए आयोजन के जरिए यहां भी खेल करने के लिए एक और जुगाड़ की बुनियाद रख दी गई है,  स्व. राम मनोहर लोहिया के नाम पर अब ब्लागरों का कल्याण किया जाएगा। हाहाहहाहा..

माई आन्हर, बाऊ आन्हर,
हम्मैं छोड़ सब भाई आन्हर,
केके केके दिया देखाई
बिजुरी अस भौजाई आन्हर।

(स्व. कैलाश गौतम)
Link-
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/09/blog-post.html