Monday, April 25, 2011

रावण को निंदनीय ही मानना चाहिए Ramayana


गगन शर्मा जी ! आपने मेरे कथन पर मनन किया, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। आप जानते हैं कि आरूषि हत्याकांड हमारे समय की ही घटना है और हज़ारों लोगों ने इसे लिखा भी है। इसके बावजूद हम नहीं जानते कि वास्तव में उस बच्ची के साथ क्या मामला पेश आया था ?
श्री रामचन्द्र जी का काल लगभग 8-9 करोड़ साल पुराना है। कथाकार बाल्मीकि भी उनके समकालीन ही थे। अलग अलग लोगों ने उनके काल की अलग अलग गणना की है। पं. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ जी ने आज से 12 लाख 96 हज़ार साल पहले उनका काल माना है। बहरहाल जो भी काल माना जाए लेकिन न तो संस्कृत भाषा इतनी पुरानी है और न ही यह रामायण।
इस संबंध में भाषा वैज्ञानिकों की आधुनिक खोज पर भी आप एक नज़र डाल लीजिए।

आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इसी बाल्मीकि रामायण में बौद्धों की निंदा भी भरी हुई है, जिससे पता चलता है कि यह गौतम बुद्ध के बाद की रचना है। देखिए :
यथा हि चोरः स तथा हि बुद्धः तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि,
तस्माद् हि सः शक्यतमः प्रजानां स नास्तिके नाभिमुखो बुधः स्यात्
                  -अयोध्या कांड, 109, 34
अर्थात जैसे चोर दंडनीय होता है, इसी प्रकार (वेदविरोधी) बुद्ध (बौद्ध मतावलंबी) भी दंडनीय है। तथागत (नास्तिक विशेष) और नास्तिक (चार्वाक) को भी इसी कोटि में समझना चाहिए। इसीलिए प्रजा पर अनुग्रह करने के लिए राजा द्वारा जिस नास्तिक को दंड दिलाया जा सके, उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाए, परंतु जो वश के बाहर हो, उस नास्तिक के प्रति विद्वान ब्राह्ममण कभी उन्मुख न हों, उस से वार्तालाप तक न करें। (देखें श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण, हिंदी अनुवाद, पृ. 303, गीता प्रेस गोरखपुर, सं 2033)
इस संबंध में आप सुरेन्द्र कुमार शर्मा जी का एक शोधपरक लेख ‘रामायण की ऐतिहासिकता‘ भी अवश्य देखें, जो कि उनकी पुस्तक ‘क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म ?‘ में संकलित है। उपरोक्त अंश उनकी इसी पुस्तक के पृ. सं. 424 से लिया गया है। यह पुस्तक आप ‘विश्वबुक्स दिल्ली‘ से हासिल कर सकते हैं।
मेरा मानना है कि रावण निंदनीय था तभी तो उसे श्री रामचनद्र जी ने मारा। उसके निंदनीय होने में जो बात भी शक पैदा करे उसे ग़लत समझा जाए। श्री रामचन्द्र जी समता, न्याय और वीरता के गुणों से युक्त थे। जो बात भी उनके इन गुणों के विपरीत जाए, उसे तुरंत ही त्याज्य मान लेना चाहिए। इस प्रकार हम चाहे श्री रामचन्द्र जी की वास्तविक कथा से भले ही परिचित न हो पाएं लेकिन इस प्रकार हम उनका आदर तो ढंग से कर पाएंगे और रामायण के केन्द्रीय पात्रों पर उठने वाली आपत्तियों का निराकरण भी हो जाएगा।
ऐसा मेरा मत है। इससे बेहतर कोई और बात संभव हो तो उसे आप बताएं ताकि मैं उसे मान लूं।
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