आप एक मर्द हैं इसीलिए आप औरत की अपेक्षा ख़ुद को ज़्यादा ख़ूबसूरत समझते हैं लेकिन मैं समझता हूँ कि ख़ूबसूरती में दोनों ही बराबर होते हैं । औरत शारीरिक रुप से मर्द से कमज़ोर होती है। इसीलिए अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित रहती है जो कि उसे एक मर्द से ही मिल सकती है । वह सजती है पहले मर्द को पाने के लिए और फिर उसे अपने साथ बनाए रखने के लिए । अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए ही वह सजती-संवरती है। उसका सजना-संवरना उसकी अक़्लमंदी का सुबूत है । यही वजह है कि इस्लामी शरीअत मर्दों के लिए सोना और रेशम पहनना हराम ठहराती है लेकिन औरतों को इनके इस्तेमाल की इजाज़त देती है । अति बहरहाल हर चीज़ की बुरी होती है । आपने भी जिन बुराईयों की निशानदेही की है , वह एक भयानक असंतुलन के लक्षण हैं , जो कि ख़ुदा के हुक्म को और आख़िरत को भुलाने का अंजाम हैं और इनका निराकरण भी यही है कि लोग आख़िरत को सामने रखें और ख़ुदा के हुक्म पर चलें ।
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