Monday, April 4, 2011

अख्तर खान अकेला का देखिये निराला कमाल , २४०० पोस्टें करके मचा दिया धमाल Great Job

आप अकेले हैं औ आपकी बात भी अकेली है. अकेली बात निराली हुआ करती है .
आपने खुद इतनी टिप्पणियाँ न की होंगी जितनी पोस्टें ब्लॉगजगत के गले में हार की तरह डालदी हैं .
हिन्दू भाई मुझसे कहते हैं कि आप हमारे अन्दर कमियाँ निकालते हो इसलिए हम आपको अपने कमेन्ट नहीं देते लेकिन आप तो उनमें कमियाँ भी नहीं निकलते , फिर आपको वे कमेन्ट क्यों नहीं देते ?
आपके लेखन ने इस ब्लॉगजगत में व्याप्त गुटबाज़ी और सांप्रदायिक मानसिकता को सबके सामने ला खड़ा किया है ,
एक मुसलमान चाहे कितना ही साफ सुथरा और रचनात्मक क्यों न लिखे , उसे ये सांप्रदायिक हिन्दू ब्लॉगर्स उसका वाजिब सम्मान नहीं देंगे .
ये लोग केवल उसी मुसलमान ब्लौगर को सम्मान देते हैं जो इस्लाम में कमियाँ निकालता है.
फिरदौस जी इसकी जीती जागती मिसाल हैं.
वे जब इस्लाम के खिलाफ लिखती थीं तो सारे सांप्रदायिक आस्तिक नास्तिक वाह वाह करने पहुँच जाते थे जिनमें आपको कोटा वाले एक काले कोट वाले बूढ़े वकील भी नज़र आयेंगे और जब उन्होंने भारत के सपेरों की या किसी और फनकार की समस्या पर लिखा तो २० टिप्पणिया भी मिलनी मुश्किल हो गयीं.
ये लोग मुसलमान को मुसलमान से लड़ाने के लिए शुरू में कुछ दिन साथ देते हैं लेकिन जब देखते हैं कि दाल नहीं गल रही है तो फिर भाग जाते हैं. मेरे साथ यही हुआ , आपके साथ भी यही हुआ होगा.   
लेकिन हिन्दुओं में प्यार की कमी नहीं है , बहुत दिल ऐसे हैं जो बड़े हैं और प्यार से लबालब भरे हैं . ऐसा एक दिल भी मिल जाये तो बहुत है और यहाँ तो भरमार है., वे मुझे पढ़ते भी हैं और फोन पर या चैट  पर सराहते भी हैं लेकिन कुछ मजबूरियों की वजह से टिप्पणी नहीं दे पाते . 'एक चुप सौ को हरावे' कहावत मशहूर है , मेरे खामोश पाठक ही मेरी ताक़त है और आपको भी लोग खामोशी से पढ़ते होंगे.
लेखक को रीडर्स  चाहियें और वे मिल ही जाते हैं .
टिप्पणी का अचार डालना है क्या ?
आपको एक नया कीर्तिमान बनाने के लिए मुबारकबाद.
मालिक आपका और आपकी बेगम का जोड़ा मय बच्चों के सलामत रखे और सबको ब्लॉगर बनाए .
आमीन.
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/03/meri-2400-posten-puri.html