Monday, January 28, 2013

इसलाम कहता है कि जो लड़का गर्भाधान में प्राकृतिक रूप से सक्षम है, वह बालिग़ है।


दिल्ली के जघन्य रेप कांड के सबसे बड़े शैतान को कल अदालत ने नाबालिग़ क़रार दे दिया है।
मनुष्य की बुद्धि अपूर्ण है और ईश्वर की पूर्ण। ईश्वर ने मनुष्य बनाया है तो उसके लिए विधि-विधान भी बनाय है। मनुष्य ने उसके विधि-विधान को नकार दिया और अपने लिए अपनी बुद्धि से कुछ जुगाड़ किया। इसीलिए उसने प्राकृतिक रूप से गर्भाधान में सक्षम बालिग़ व्यक्ति को भी बालक ही बताया। यह ग़लत है। इस बात को ग़लत केवल इसलाम कहता है और कुछ लोगों को इसलाम के नाम से ही चिढ़ है। इसलाम कहता है कि जो लड़का गर्भाधान में प्राकृतिक रूप से सक्षम है, वह बालिग़ है।
आज दुनिया भी यही मानना चाहती है। इसलाम जन मन की स्वाभाविक इच्छा है। इसे दबाया जाएगा तो दुनिया में कभी न्याय नहीं हो पाएगा। 


इसलाम का नाम लेकर किसी बादशाह ने आपको इतिहास में कभी कुचल डाला है तो उस बादशाह का विरोध कीजिए। न कि नफ़रत और प्रतिशोध में अंधे होकर आजीवन उसके धर्म का भी विरोध करते रहें ,चाहे वह आपकी समस्याओं का वास्तविक हल ही क्यों न हो !

कृप्या विचार कीजिए, इसी में आपके लोक परलोक की भलाई है।

यह कमेंट निम्न पोस्ट पर दिया गया है, जिसका लिंक व शीर्षक यह है-
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Monday, January 14, 2013

"इंद्र -अहिल्या प्रसंग, कितना सही ?" के लेखक केशव जी से बातचीत

Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 11,2013 at 11:49 AM IST
मोहित जी ! असल बात यह है कि न तो आप इंद्र के पद को जानते हैं और न ही स्वर्ग की प्राप्ति के तरीक़े को।
स्वर्ग केवल सत्कर्मियों को ही प्राप्त होता है और उनमें जो सबसे श्रेष्ठ होता है, वह इंद्र कहलाता है। ऐसा पुराणों में वर्णित है।
सभी स्वर्गवासियों में सबसे ज़्यादा अच्छे इंद्र को आप अहंकारी और घमंडी कह रहे हैं ?
ये बुराईयाँ इन्द्र में नहीं थीं बल्कि उनमें थीं जिन्होंने इन्द्र का चरित्र चित्रण किया है। इसलिए अपना ज्ञान सुधारो,
‘‘इन्द्र को इल्ज़ाम न दो।‘‘
जब आपको अपने ही धर्म-नियम का पता नहीं है तो इसलाम के बारे में आप जो भी ग़लत बात कह दें, बिल्कुल नेचुरल है।
आपने कमेंट किया,
आपका शुक्रिया !
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(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 12:36 PM IST
प्रणाम अनवर साहब ,
सर जी, मुझे दुख हुआ की आप आये भी तो उखड़े मन से ...कॉपी पेस्ट का सहारा लेके :)
आप सीधा प्रशन मुझ से पूछते तो मुझे बड़ी खुशी होती ....
खैर , आप ने टिप्पणी की है तो उसका जबाब देना ही पड़ेगा बेशक उसमें प्रश्न जैसा कुछ नही है |
स्वर्ग/ जन्नत या नर्क/ दोज़ख जैसी कोई चीज नही होती ....अगर है , स्वर्ग ईरान के पास था और आपकी जन्नत सीरिया के पास थी ...जन्नत के बारे में आप मेरा लेख " क्या है जन्नत की हक़ीक़त" पढ सकते हैं |
और स्वर्ग के बारे में इस लेख में बताया ही गया है |
वसतीवक् रूप में ना कोई स्वर्ग है और ना कोई नर्क ....हाँ इस बात से सहमत हूँ की इंसान को कल्पनिक स्वर्ग की चिंता ना कर के केवल सद्कर्म करने चाहिये , यही उसकी ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होगी .....बेकार के पूजा पाठ , नवाज़ पढ के, लौडस्पीकर में दिन रात शोर मचा के, हज़ - तीर्थ करके , टीका या आधी टोपी पहन के पाखंड परने या दिखावा करने की कोई जरूरत नही |
मैने कहा ना इन्द्र केवल पोस्ट थी, और अच्छे इन्द्र भी, इसलिये वो घमंडी और अहनाकारी भी हो सकते हैं|
आपकी इस बात से सहमत की अधिक दोष उनका है जिन्होने इन्द्र ही क्या कई और महापुर्षो के चरित्र का गलत चित्रण् किया |
और आप जो कह रहे हैं की मुझे अपने ही धर्म नियम का पता नही ....तो हो सकता है की आप सही कह रहे हैं ....कोई भी ए दवा नही कर सकता की वो अपने धर्म के पूर्ण नियम को जनता हो या उसे सभी ग्रंथो का ज्ञान हो |
पर यही बात आप पर भी लागू होती है क्या आप क़ुरान और अल्लाह या मुहहमद साहब को पूरा जानते हैं ?
यदि हाँ तो क्या में आप से कुछ प्रश्न पूच सकता हूँ ?
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(केशव को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 01:43 PM IST
आपने अपने ब्लॉग में सत्यकाम का उधारण दिया है , बेशक , वैदिक काल में स्त्री पुरुष के सम्बंध खुले हुये थे | पुरुष की तरह स्त्री को भी ए अधिकार था की वो अपनी पसंद के पुरुष के साथ सम्बंध बना सके|
ए एक तरह से स्त्री को पुरुष के समकक्ष बराबर का अधिकार देने की बात थी |
महाभारत के आदि पर्व , अध्याय 122 में पाण्डु कुन्ती से कहते हैं की " है सुन्दरी, पूर्व काल में स्त्रियों को कुछ रोकटोक ना थी, वे भी पुरुषो की तरह स्वक्षन्द थी किसी को भी अपना साथी चुनने और भोग विलास करने में "
बेशक आज ए गलत लगे पर उस समय ए स्त्रीपुरुष को समन अधिकार देने जैसा था |
पर इस्लाम में क्या है .....पुरुष तो 31 पत्नियाँ रख सकता है पर स्त्री घर के बाहर भी निकले तो सर से पांव तक कपड़ा लपेट कर |
यंहा तक की जिस मुहम्मद साहब की आप लोग ए गुण गाते हो की उन्होने स्त्रियों को समन रूप से अधिकार दिया उन्ही की अपनी पत्नियों को ए अधिकार नही था की वो किसी बाहर के मर्द से बात भी कर सके
देखें- क़ुरान , सुरे अहज़ब की 55 वी आयत
फिर आप किस मुंह से सत्यकाम का उधारण दे रहे हैं ?
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(केशव को जवाब )- Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 11,2013 at 05:30 PM IST
सत्यकाम की बात शुरु करके आपने संदर्भ दिया महाभारत का.
यह नहीं चलेगा.
सत्यकाम की बात करें तो आप सत्यकाम की कथा संस्कृत में श्लोक दिखा कर उसका अनुवाद दें या केवल अनुवाद दें लेकिन दें ग्रंथ से ही.
तब उसे प्रमाण माना जायेगा.
टालू किस्म की बातचीत से न आपका भला है और न ही हमारा.
आप ऐसा कर पाएँ तो फिर चाहे जो पूछिये हम जवाब देंगे.
(केशव को जवाब )- Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 11,2013 at 05:22 PM IST
प्यारे भाई ! जो वचन हमने कहीं एक बार लिखा है उसी को दोबारा लिखने से उसका वज़न कम नहीं होता.
हमने कब कहा है कि इन्द्र एक पद नहीं है ?
हरेक कल्प का इन्द्र अलग होता है .
क्या आप बताएंगे कि एक कल्प में कितने वर्ष होते हैं ?
खरबोब खराब वर्ष ,
है न ?
अगर इन्द्र होता है तो वह खरबों वर्ष शासन करता है.
अब आप बताइये कि अगर इन्द्र धरती का कोई राजा था तो क्या कल्प तक उसके द्वारा राज्य करना संभव है ?
इसी बात से स्वर्ग धरती से अलग प्रमाणित हो जाता है.
आपको अपने धर्म के बुनियादी नियम क़ायदों का पता नहीं है.
हमारे बारे में आपने पूछा है तो हम बता दें कि हमें अपने धर्म के बुनियादी नियमों का पता है और हम उनका पालन करते हैं.
न पता होता तो हम उनका पालन कैसे कर पाते ?
इतनी जानकारी रखना अनिवार्य और फ़र्ज़ होती है हरेक मुस्लिम पर .
आपके यहाँ भी इसी तरह की व्यवस्था थी लेकिन उसे अब भुला दिया गया.
हरेक अपनी मौज का मालिक है, चाहे पता करे या न करे.
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 07:34 PM IST
प्यारे बढे भाई साहब ,
लगता है की आप बात को समझे नही , हमने कहा है की इन्द्र एक पदवी थी...जैसे कभी सम्राट की पदवी होती थी |
और इन्द्र मनव था या यूं काहे की आदि मनव था इस लिये ए मानना की कोई मनुष्य कल्प तक शाशन कर सकता है ए संभव नही है |
आप मेरे लेख को अगर ध्यान से पढेंगे तो उसमें ए कहा गया है की इन्द्र आदि मानव था, देव , दानव, दैत्या ए मनुष्य थे ...जिनके नाम से आगे वंश चला |
इन्द्र को कल्प वर्ष तक शाशन करने की कल्पना कर लि गयी जैसे की हनुमान को बंदर, जामवन्त को भालू , वरहा को वरहा देव बना के उसकी अजीब सी तस्वीर बना दी ...आदि |
इसी प्रकार स्वर्ग और नर्क भी कल्पना की उडन है ....अगर ए थे भी तो वैसे ही थे जैसा मैने लेख में बताया है ...ईरान के आसपास का इलाका स्वर्ग लोग कहतलता था |
आप कल्पनिक बातो पर शायद इसलिये विश्वास कर रहे हैं क्यों की क़ुरान में भी ऐसी ही कल्पनिक बाते ( स्वर्ग नर्क, जिन्‍न) आदि का वर्णन है |
आप जानबूझ कर मानने से इंकार कर रहे हैं क्यों की इससे आपके क़ुरान को भी धक्का लगेगा |
हमे क्या पता है ए हम अच्छी तरह से जानते हैं ....
आप बताइये की आप कितने इस्लाम की बुनियादी बातो का पालन कर रहे हैं ?
अगर आप मानते हैं की आप इस्लाम की बुनियादी बातो का पालन कर रहे हैं ...तो फिर क़ुरान की बातो का भी पालन कर रहे होंगे क्यों की बिना क़ुरान के इस्लाम का कोई अस्तित्व नही |
क़ुरान ने खुद यह बात स्पस्थ कर दी है की इस्लाम केवल अरब के लिये आया था , और किसी मुल्क के लोगो के लिये नही
क़ुरान की 42 वी सुरा( सुरे शूरा) में कहा गया है की अरबी क़ुरान ने तुम्हारी तरफ से नाज़िल किया है ताकि तुम मक्के के रहने वालो को और जो लोग मक्के के आस पास बस्ते हैं उन को पाप से डराओ '
यानी केवल माका और उसके आस पास के लोगो के लिये थी क़ुरान
सुरे यासिन की पंचवी आयत में भी कहा गया है की "तुम ऐसे लोगो को डराओ जिन के बाप दादे नही डराए गये , इस से वे गाफिल हैं "
इस तरह से और भी आयते हैं जो ए कहती हैं की क़ुरान का संदेश केवल अरब के लिये था .. . जब क़ुरान का सदेश केवल अरब के लोगो के लिये था तो आप हिन्दुस्तान में पैदा होके कैसे उसके नियम को फॉलो कर रहे हैं? भारत के लिये तो क़ुरान थी ही नही |
और आप भी क़ुरान को भुला दीजिये क्यों की ए अब ए आउट डेटिड हो गयी है .....1400 पहले की प्रस्थितियाँ और थी.
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 09:15 PM IST
अनवर साहब, आप जहां से ब्लॉग को कॉपी पेस्ट कर के लाये हैं क्या उन्होने ऐसा कोई श्लोक या अनुवाद दिया जिससे ए सिद्धा होता हो की जाबली का ब्लातकार हुआ था ?
आप ने केवल कॉपी पेस्ट किया अपनी अक्ल नही लगाई ....आप संस्कृत के अनुवादया श्लोक से ए सिद्धा कर दीजिये की जाबली का" ब्लातकार" हुआ था तो में भी ए सिद्धा कर दूंगा की उसका ब्लातकार नही हुआ था | ध्यान रहे" ब्लातकार" का मतलब होता है जबरन .....आप चाहे तो जिसका ब्लॉग कॉपी पेस्ट करके लाये हैं उससे भी सहयता ले सकते हैं ....
और इतना बता दूं ...आपकी सुविधा के लिये ...की सत्यकाम का प्रसंग चांद्योग उपनिषद ने आया है |...बाकी आप सिद्धा कीजिये की जाबली का ब्लातकार हुआ था ..बाकी मैं सिद्धा कर दूंगा :)



























(केशव को जवाब )- Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 14,2013 at 05:15 PM IST
आर्यों के राजा को इन्द्र कहा जाता था. वह ईरान में रहता था. आज ईरान का शासक और वहां की प्रजा मुस्लिम है तो क्या यह मान लेना चाहिये कि आर्यों का राजा इन्द्र और आर्य मुस्लिम हो चुके है ?
क़ुर्'आन 42: 7 को ध्यान से पढिये-
और (जैसे हम स्पष्ट आयतें उतारते है) उसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर एक अरबी क़ुरआन की प्रकाशना की है, ताकि तुम बस्तियों के केन्द्र (मक्का) को और जो लोग उसके चतुर्दिक है उनको सचेत कर दो और सचेत करो ...
इस आयत में मक्का के चारों और की बस्तियों के लोगों को सचेत करने के लिये कहा जा रहा है भाई . अगर आपने दुनिया के नक़्शे में मक्का को देखा होता तो आप जानते कि 'चारों ओर' मे सारी दुनिया आ जाती है. लिहाज़ा क़ुर्'आन पर ऐतराज़ सिर्फ न जानने की वजह से किया जाता है.
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 14,2013 at 08:12 PM IST
प्रणाम अनवर साहब,
इन्द्र तो आदिपुरुष था , उसकी संताने या वंसज कब के मर खप गये होंगे, वैदिक धर्म तो कभी का खत्म हो गया था | ए तो प्रलय से पहले की बात है उसके बाद ना जाने कितने ही धर्मो में बदला होगा ईरान ...इस्लाम से पहले जोरोस्ट्रियान थे उसे पाले कोई और ..उससे पहले कोई और ....अब क्या पता आने वाले कुछ सदियों में इस्लाम भी ना रहे वहा पर ....इसमें इतना गर्व करने की कोई बात नही जैसा आप इस्लाम को लेके कर रहे हैं |
हा हा हा ...और सही सही बताइये की क्या आप वाकई डाक्टर हैं या फिर कोई मदरसे के मौलवी ?
प्रथ्वी अण्डाकार हैं ना की कागज पर खिचे किसी गोला जिसका केन्द मक्का हो |
चलिये ए बताइये की मुहम्मद साहब को कैसे पता की मक्का ही प्रथ्वी का केन्द्र है ...ओहो क्षमा कीजिये गा मैं तो भूल गया ...स्वयं क़ुरान यानी मुहम्मद जी के अनुसार अल्लाह ने प्रथ्वी 6 दिन में बना दी और पर्वत इस लिये गाड़ दिये ताकि पृथ्वी हिले ना ....फिर तो आपकी बात माननी पड़ेगी की मक्का वाकई प्रथ्वी का केन्द्र है क्यों जब प्रथ्वी को अल्ला ने बनाया तो इस तरह बनाया की मक्का उसके केन्द्र में आये :
फिर तो आपकी बात मानाने पड़ेगी :)
पर फिर इधर भी गडबड है क्यों की मक्का पहले ( लगभग 5 शताब्दी ) में पगानो का मंदिर था जिसकी 360 मूर्तियाँ आज भी उधर हैं ..मुहम्मद जी ने मूर्तियों तोड दिया था... .उससे पहले मक्का ग्रीक के कब्जे में थी
इसका मतलब ए हुया की जिसे आप मुहमम्द साहब के अनुसार प्रतवी का केन्द्र कह रहे हैं वो वास्तव में शिव मंदिर का केन्द्र है ( देखे प्रोफेसर पी के ओंक )
और जरा उस बात पर भी गौर कीजिये जिसमें आप ए कह रहे हैं की चारो दियहाओं का मतलब पूरी दुनिया है |












































प्यारे भाई केशव ! ठहाके मार कर हंसना गंभीर लोगों का लक्षण नहीं होता .
आप इन्द्र को मानते हैं लेकिन कल्प को नहीं मानते क्योंकि इस से आपको धरती से अलग एक लोक मानना पड़ेगा.
आप इन्द्र को उपाधि और ईरान के लोगों को आर्य जाति का सदस्य मानते हैं लेकिन हमने कहा कि वे आज मुस्लिम हैं तो आप कह रहे हैं कि इन्द्र और आर्य सब मर खप गये होंगे .
आप इतनी बड़ी बात कह रहे हैं और बिना किसी प्रमाण के ?

दूसरी बात -
जो चीज़ गोल न हो तो क्या उसका कोई केन्द्र नहीं होता ?
क्या भारत गोल है जो दिल्ली को इसका केन्द्र माना जाता है ?

पूरी पृथ्वी का केन्द्र मक्का है, इसे वैज्ञानिक बता रहे हैं और कह रहे हैं कि
काबा के मुताबिक चले दुनिया भर की घडियां
हैरत मत कीजिए,सच्चाई यही है कि दुनिया में वक्त का निर्धारण काबा को केन्द्रित करके किया जाना चाहिए क्योंकि काबा दुनिया के बीचों बीच है। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर यह साबित कर चुका है। सेन्टर का दावा है कि ग्रीनविचमीन टाइम में खामियां हैं।
दुनिया में वक्त का निर्धारण ग्रीनविच रेखा के बजाय काबा को केन्दित रखकर किया जाना चाहिए क्योंकि काबा शरीफ दुनिया के एकदम बीच में है। विभिन्न शोध इस बात को साबित कर चुके हैं। वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि ग्रीनविच मीन टाइम में खामी है जबकि काबा के मुताबिक वक्त का निर्धारण एकदम सटीक बैठता है। ग्रीनवीच मानक समय को लेकर दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है और और कोशिश की जा रही है कि ग्रीनविचमीन टाइम पर फिर से विचार किया जाए।ग्रीनविचमीन टाइम को चुनौति देकर काबा समय-निर्धारण का सही केन्द्र होने का दावा किया है इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने। रिसर्च सेन्टर ने वैज्ञानिक तरीके से इसे सिध्द कर दिया है और यह सच्चाई दुनिया के सामने लाने की मुहिम में जुटा है। वे कॉन्फे्रस के जरिए दुनिया को यह हकीकत बताने जा रहे हैं। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के डॉ। अब्द अल बासेत सैयद इस संबंध में कहते हैं कि जब अंग्रेजों के शासन में सूर्यास्त नहीं हुआ करता था, तब ग्रीनविच टाइम को मानक समय बनाकर पूरी दुनिया पर थोप दिया गया। डॉ। अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का में चुम्बकीय क्षमता शून्य है।
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इंद्र -अहिल्या प्रसंग - कितना सही ?-केशव  


Wednesday, January 9, 2013

लीजिए, यह रहा आपका अमृत, इसे चखकर देखिए और बताईये कि यह सनातन ही है न ? Amrit


देवताओं ने अमृत का घड़ा छिपा दिया था। कुंभ का आयोजन उसी अमृत कुंभ की तलाश है। उसी घड़े की तलाश में ज्ञानी जन बहुत समय से लगे हुए हैं। कुंभ में भी लोग कुछ पाने के लिए जुड़ते हैं और हज में भी। कुंभ का संबंध भी ब्रहमा जी से है और हज का संबंध भी अब्राहम से है। जैसे जैसे भाषाओं की जानकारी बढ़ेगी तो सबको पता चल जाएगा कि ब्रहमा और अब्राहम एक ही हैं जैसे कि मनु और आदम एक हैं। मनु और ब्रहमा के ज्ञान कलश को ढूंढना आज कुछ भी भारी नहीं है। कई बार चीज़ सामने रखी रहती है लेकिन आदमी उसे देख नहीं पाता। अमृत के बारे में यही ग़लती की जा रही है।
यह धरती तो मर्त्यलोक है ही। यहां से तो जाना ही है हरेक को लेकिन आदमी जाए तो अमर लोक जाए न कि नर्क लोक।
ऋग्वेद के पहले मंडल का पहला मंत्र ‘अग्निमीले‘ से शुरू होता है अर्थात हम अग्नि का ईलन करते हैं।
ईलन का अर्थ पूजन से है।
यह ईल शब्द ही इसराईल में मिलता है। इसराईल एक देश का नाम है जो कि नबी इसराईल के नाम पर रखा गया है। उनका वास्तविक नाम याक़ूब है। याक़ूब अब्राहम के वंशज हैं।
यह ‘ईल‘ शब्द ही सब फ़रिश्तों के नामों में मिलता है जैसे कि जिबराईल, मीकाईल और इज़राईल आदि।
ईल शब्द से ही इला और इलाह बना है।
अरबी में ‘इलाह‘ का अर्थ पूजनीय होता है।
‘इलाह‘ अजर और अमर है।
इलाह शब्द अरबी में गया तो इसमें ‘अल‘ लगाने से ‘अल्लाह‘ शब्द बना-
अल + इलाह = अल्लाह
इलाह का अर्थ अरबी में भी पूजनीय ही माना जाता है और अल्लाह को परमेश्वर का निजी नाम की हैसियत से जाना जाता है।
विकीपीडिया की यह जानकारी भी देखी जा सकती है।
The term Allāh is derived from a contraction of the Arabic definite article al- "the" andʾilāh "deity, god" to al-lāh meaning "the [sole] deity, God".
‘इलाह‘ केवल पूजनीय ही नहीं है बल्कि विधान का दाता भी है। वैध-अवैध निश्चित करने का अधिकार केवल उसी को है।

अब ‘अग्नि‘ को समझें।
स्थौलाष्ठीवि ऋषि के अनुसार ‘अग्नि‘ का अर्थ अग्रणी है अर्थात जो सबसे अग्र हो, सब रचनाओं से भी पहले होने से उस परमेश्वर को अग्नि कहा गया है।
अग्रणी परमेश्वर का पूजन ही अमर लोक जाने का एकमात्र उपाय है।
यही अमृत ज्ञान है।
इसे कुंभ वाले सारे ही भूल गए हों, ऐसी बात नहीं है। परंतु उन्होंने इस ज्ञान कलश को छिपा दिया है।
हज वाले दुनिया भर में यह ज्ञान लुटा रहे हैं। इस ज्ञान को आप अपने ग्रंथों से मिला कर देख लीजिए कि वही सनातन-पुरातन ज्ञान है कि नहीं ?
‘अग्नि‘ को आग समझ लेने से आग की पूजा शुरू हो गई। वेद का छंद ही ईरान में ‘ज़न्द‘ कहलाया। आर्य भारत में भी आग पूजते रहे और ईरान में भी। एक अग्रणी परमेश्वर को पूजने वाली आर्य जाति आग की पुजारी बनकर रह गई। शब्दों को ठीक से न समझा जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

रविकर जी की निम्न पोस्ट अच्छी लगी। इसी से प्रेरित होकर यह एक पोस्ट बन गई है।



दान समझ कर डाल दे, हो जा हिन्दु रिलैक्स -





डालो पैसे कुम्भ में, है नहिं मेला टैक्स ।
दान समझ कर डाल दे,  हो जा हिन्दु रिलैक्स ।
 हो जा हिन्दु रिलैक्स, फैक्स आया है भारी ।
हज पर अगली बार, सब्सिडी की तैयारी ।
अमरनाथ जय जयतु, नहीं इच्छा तुम पालो ।
नेकी कर ले भगत, दान दरिया में डालो ।।