संत आ गया है स्पष्टीकरण देने.
सपष्ट किया जाता है कि आचार्य जी ने कविता को पसंद किया और उसे कंठस्थ भी किया . इसके बाद लोगों को सुनाया . प्रवचन कर्ता विषय के अनुसार बहुत से शेर और कविताएँ सुनाते ही हैं , आचार्य जी ने कभी नहीं कहा होगा कि यह रचना मेरी है. पत्रकार अपनी मर्जी से कुछ भी लिख देते हैं , ये न तो जानते हैं और न ही मानते हैं. आप अखबारों से जवाब तलब करें कि जब आचार्य जी ने कहा नहीं है कि यह कविता उनकी रचना है तो आपने लिख कैसे दिया ?
आप शुरू से ही रचना के लिए लड़ते आये हैं , आप लड़िये हम भी आपके साथ है चाहे रचना आपके साथ हो या न हो .
@ मेरे गरीब कवि अलबेला खत्री जी , आप किसी आचार्य को कड़वा कसैला न कहें .
वे बेचारे तो पहले ही स्वादमुक्त जीवन जी रहे हैं.http://www.mushayera.blogspot.com/
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