Wednesday, March 30, 2011

'जियो क्योंकि हमारा मालिक चाहता है कि अभी हम जियें.' How to stop suicidial tendency

@ पूजा जी ! आपकी टिप्पणी को मैं गागर में सागर की संज्ञा देता हूँ . आपकी यह टिप्पणी भी ऐसी ही है.
आपने सच कहा जो भी कहा है . ख़ुदकुशी करने वाला सोचता है कि मरकर दुःख से पीछा छूट जायेगा लेकिन उसे सोचना चाहिए कि पाप से तो दुःख बढ़ता है कम नहीं होता . आदमी का अंतिम कर्म तो प्रभु से क्षमा याचना का और पुण्य का कर्म होना चाहिए ताकि आदमी के कर्मों का खाता उसके अच्छे कर्म पर बंद हो . इसीलिए मरते समय कालिमा पढ़ा जाता या ऊपरवाले का नाम लिया जाता है. ख़ुदकुशी करने वाला इसके खिलाफ अंतिम कर्म पाप का करके मरता है और खुद को  परलोक  की यातना का पात्र बनाता है . दुनिया की तकलीफ से घबराया तो मर गया और मरकर जो तकलीफ वह पायेगा , उससे बचने के लिए वह कहाँ जायेगा ?
मुसलमान यही सोचता है और ख़ुदकुशी से रुक जाता है. हरेक की ज़िन्दगी में ऐसे अवसर ज़रूर आते हैं जब उसके सपने और अरमान टूटते हैं या हालात अपने काबू से बाहर जाते हुए लगते हैं . ऐसी बेबसी और गम के आलम में आदमी को लगता है कि अब उसकी ज़िन्दगी उसके लिए एक बोझ है, अब जीना बेकार है , क्या फायदा ऐसी अधूरी और अपमानजनक ज़िन्दगी जीने से और दुःख उठाने से ?
इस जीने से तो अच्छा है कि मर जाएँ .
ऐसे अवसर मेरी जिंदगी  में भी  बहुत बार आये और जब भी मरने का विचार आया तो परलोक की सज़ा के डर  ने हमेशा अपने जीवन को ख़तम करने मुझे रोक दिया .
पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब स. ने मालिक के फज्लो करम से  हमेशा मुझे सही रास्ता दिखाकर पाप करके मरने से बचा लिया . ऐसे अवसर पर दीन की समझ रखने वाले एक मुसलमान  को उनकी वे हदीसें  याद आती हैं जिनमें बताया गया है कि
जो कोई ख़ुदकुशी करके मरता है . मरने के बाद वह क़ियामत के रोज़ तक बार बार उसी तरीके से खुदकुशी करके मरता रहेगा. उसके पाप का यह दंड उसे मिलेगा.
हमने सोचा कि इतने बड़े दुःख को कैसे उठाएंगे ?
लिहाजा दुनिया का हरेक दुःख परलोक की उस यातना के सामने छोटा लगने लगा और जीना आसन हो गया और जीने का मक़सद भी सामने आ गया कि 'जियो क्योंकि हमारा मालिक चाहता है कि अभी हम जियें .'
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/03/family-life.html

Tuesday, March 29, 2011

श्रद्धा के पात्रों को अपनी व्यंग्य विधा का पात्र न बनायें Honourable Personalities

हिन्दू कहलाने वाले भाइयों को अपनी काल्पनिक बातों को कहने के लिए शिव जी , माता पार्वती और अन्य पूर्वजों के नामों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए . इससे उनके इतिहास में जाने अनजाने भ्रामक बातें शामिल हो जाती हैं जो कि बाद में सच्चाई की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं और लोग उन बातों पर टीका टिप्पणी करते करते पूर्वजों  के बारे में भी अंट शंट कह बैठते हैं. श्रद्धा के पात्रों को अपनी व्यंग्य विधा का पात्र न बनायें . इस विषय में आप मुसलमानों से सीख सकते हैं.
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इस कमेन्ट की पृष्ठभूमि जानने के लिए देखें

शिव पार्वती और सांसदो की खरीद फ़रोख्त का सच

लंच टाईम मे दो गिलास छाछ  पीकर चैन की नींद सो रहे प्रभु शंकर को गरजने बरसने की आवाज आयी बाहर आकर प्रभु ने देखा सारे शिव गण पैकिंग मे लगे हैं और माता उनको सामान ठीक से रखने के लिये चिल्ला रही है । अचरज मे पड़े प्रभु ने माता से पूछा क्या बात है प्रिये आप सामान क्यों पैक करवा रहीं है । खबरदार जो मुझे आज के बाद प्रिये कहा माता भड़कीं अब मुझे टीवी पर मालूम पड़ेगा कि आप के मां बाप कौन हैं आप कहां पैदा हुये थे  और ये मुआ नंदी आपसे पहली बार कहां मिला था । मेरे पिता हिमालय ठीक ही कहते थे अब मैं कभी लौट के न आउंगी ।


पहले तो प्रभु हड़बड़ाये फ़िर माजरा समझ मे आने पर बोले बेड़ा गर्क हो ये इंडिया टीवी वालो का । फ़िर गुस्से मे आकर माता से बोले क्या ये अनाप शनाप चैनल देखते रहती हो इनका काम तो यही है भोले भाले लोगो को बेवकूफ़ बना कर टी आर पी बढ़ाना और कम से कम अपनी योग माया से चेक तो किया होता लगी सामान पैक करने । क्या आप जानती नही हो कि मेरा जन्म अनन्त परमेश्वर की माया से हुआ है ।अपनी गलती पर खिसियाकर माता बोली अरे वो तो मै कल संसद मे हुआ क्या ये देखने के लिये गयी थी तो शिव गण इंडिया टीवी देख रहे थे कि मै भी बैठ गयी ।

आप बताईये मै कौन से चैनल मे देखूं लोक सभा चैनल मे तो दोनो ओर के एक से एक वक्ता बोलते हैं कि समझ मे ही नही आता कौन सच्चा कौन झूठा जिसकी बात सुनो वही सही लगता है और लड़ते झगड़ते इतना है कि आधी बात तो समझ मे ही नही आती । प्रभु अब सोच मे पड़ गये बोले ऐसा तो कोई चैनल ही नही है जो सही बात बताये जिसको जहां से पैसा मिलता है उसी की भाषा बोलता है प्रिये इसी को तो येलो जर्नलिस्म बोलते हैं वैसे आज कल सभी चैनल सरकार से ही पैसा लेते हैं और उसी का पक्ष लेते हैं ।

माता ने बोला क्या एनडीटीवी भी ऐसा ही है । प्रभु मुस्कुराये कल शाम की न्यूज नही देखी क्या स्टिंग आपरेशन की खबर इस तरह घुमा फ़िरा कर बता रहे थे कि मानो बीजेपी ही चोर है और कांग्रेस उसके जाल मे फ़स गयी थी । माता ने कहा अरे फ़िर जनता कहां जाये ऐसा क्यो हैं प्रभु । ऐसा इसीलिये है प्रिये कि आज भारत की मीडिया हिन्दी भाषी लोगो को मूर्ख समझती है इसलिये हिंदी टीवी और अखबार सिवाय हत्या बलात्कार आदि के कुछ भी नही पेश करते देखा नही आज पत्रिका अखबार ने केवल एक छोटे से कालम मे कल की संसद की घटना छापी है । मीडिया का मानना है कि केवल अंग्रेजी जानने वाले लोगो को ही सच्ची खबर देनी चाहिये । ऐसे लोग वोट भी नही देते इसलिये मीडिया से सरकार भी नाराज नही होती ।


अच्छा आप ही बताईये प्राणनाथ क्या सच है । सच ये है प्रिये कि सांसद बिके थे लेकिन कांग्रेस ने नही खरीदे थे ये काम समाजवादी पार्टी के अमरसिंग ने किया था । अब समाजवादी पार्टी को क्या फ़ायदा था कि वो पहले अमर सिंग की बेईज्जती को भूल कर न्यूक्लियर डील का समर्थन करने पहुच गयी यही नही सांसद खरीदने मे भी लग गयी ये गहन शोध का विषय है । अब ये बीजेपी वाले लोग सही बात कहते नहीं हैं और समझते भी नही है मनमोहन सच तो कह रहे हैं कांग्रेस खरीदने मे शामिल नही है वह तो पहले ही न्यूक्लियर डील मे अमेरिका के हाथ  बिक चुकी थी । अब बिका हुआ कोई किसी को क्या खरीदेगा भला । जो कुछ किया भी है वह अमेरिका के इशारे पर किया है । विकीलीक क्या बता रहा है दूतावास का आदमी चेक करने गया था काम सही तरीके से हो रहा है कि नही । पर आडवानी अमेरिका के खिलाफ़ एक शब्द नही बोले डील परमाणू के खिलाफ़ नही बोले अब ये लोग भी तो ........

Sunday, March 20, 2011

धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ? The plan

आपकी पोस्ट को मैंने दोबारा फिर पढ़ा तो मेरी नज़र आपके इस वाक्य पर अटक गई :
आप ऐसे ही करते रहे तो मेरी दुकान बंद हो जाएगी और मैं बहुत सुखी इंसान हो जाऊंगाए क्योंकि मेरा विरोध अनवर जमाल से नही उन बातों से है जिनका विरोध आपने मेरे ब्लॉग पर देखाए मेरी मौत एक सुखद घटना होगी और आपका नव अवतरण उससे भी सुखद।

इसमें कुछ बिन्दु हैं , जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
1. मेरी दुकान बंद हो जाएगी।
2. मैं सुखी इंसान हो जाऊंगा।
3. मेरा विरोध अनवर जमाल से नहीं है।
4. मेरी मौत एक सुखद घटना होगी।
5. आपका नव अवतरण उससे भी ज़्यादा सुखद होगा।

जब इन तथ्यों पर मैं ईमानदारी से सोचता हूं तो मैं खुद चाहता हूं कि आप एक सुखी इंसान हो जाएं लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आपके ब्लॉग की मौत हो जाए। आप अच्छा लिखते हैं और मैं आपको पढ़ता हूं। आपने मेरी जायज़ बातों का भी विरोध किया, इसलिए मैंने आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया और उसका नतीजा यह हुआ कि जहां आप सही थे, उसे भी मैंने नज़रअंदाज़ कर दिया। यह मेरी ग़लती थी, जिसे कि मैंने आपकी सलाह के मुताबिक़ सुधार लिया है।
आपने मेरे नव अवतरण के प्रति भी अच्छी आशा जताई है और मैं खुद भी यही चाहता हूं कि मेरी वजह से आपमें से किसी को कोई कष्ट न पहुंचे। मेरे नव अवतरण की आउट लाइंस क्या होंगी ?
यह मैं अभी तक तय नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप ही मेरे नव अवतरण की रूपरेखा तैयार कर दीजिए और मैं उसे फ़ॉलो कर लूं।
मेरे नव अवतरण की भूमिका तैयार करना खुद मेरे लिए जिन कारणों से मुश्किल हो रहा है, वे प्रश्न आपको भी परेशान करेंगे लेकिन मुझे उम्मीद है कि आपकी प्रबुद्ध मंडली उनका कुछ न कुछ हल निकालने में ज़रूर कामयाब होगी।
जो चीज़ मुझे इस वर्चुअल दुनिया में लाई है वह है ईश्वर, धर्म और धार्मिक महापुरूषों का मज़ाक़ बना लेना।
मैं इसे पसंद नहीं करता कि कोई भी व्यक्ति ऐसा करे। इनमें से कुछ लोग रंजिशन ऐसा करते हैं और ज़्यादातर नादानी की वजह से। आज भी श्रीरामचंद्र जी , श्रीकृष्ण जी और शिवजी के बारे में ग़लत बातें लिखी जा रही हैं। मुझे कोई एक भी हिंदू कहलाने वाला भाई ऐसा नज़र नहीं आया जो कि उन्हें इन महापुरूषों की सच्ची शान बता सकता। मैंने जब भी बताया तो मुझसे यह कहा गया कि आप एक मुसलमान हैं, आप हमारे मामलों में दख़ल न दें।
1. आप मुझे बताएं कि अगर हिंदू महापुरूषों और ऋषियों का अपमान कोई हिंदू करता है तो क्या मुझे मूकदर्शक बने रहना चाहिए ?
2. कुछ हिंदू भाई ऐसा लिखते रहते हैं कि कुरआन में अज्ञान की बातें हैं, अल्लाह को गणित नहीं आता, मांस खाना राक्षसों का काम है, औरतों के हक़ में इसलाम एक लानत है। इससे भी बढ़कर पैग़म्बर साहब की शान में ऐसी गुस्ताख़ी करते हैं, जिन्हें मैं लिख भी नहीं सकता। दर्जनों ब्लाग और साइटों पर तो मैं खुद अपील कर चुका हूं और ऐसे अड्डे सैकड़ों से ज़्यादा हैं। जब इस तरह की पोस्ट पर मैं हिंदी ब्लाग जगत के ‘मार्गदर्शकों‘ को वाह वाह करते देखता हूं तो पता चलता है कि अज्ञानता और सांप्रदायिकता किस किस के मन में कितनी गहरी बैठी हुई है ?
ऐसी पोस्ट्स पर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ?
3. मैं अपने देशवासियों में अनुशासनहीनता और पाखंड का आम रिवाज देख रहा हूं। एक आदमी खुद को मुसलमान कहता है और शराब का व्यापारी है। जब इसलाम में शराब हराम है तो कोई मुसलमान शराब का व्यापार कर ही कैसे सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान सूद ले सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान खुद को ऊंची जाति का घोषित कर सकता है जबकि इसलाम में न सूद है और न ही जातिगत ऊंचनीच ?
ऐसा केवल इसलिए है कि इसलाम उनके जीवन में नहीं है बस केवल आस्था में है। चोरी, व्यभिचार, हत्या, बलवा और बहुत से जुर्म आज मुस्लिम समाज में आम हैं जबकि वे सभी इसलाम में हराम हैं।
यही हाल हिंदू समाज का है कि हिंदू दर्शन सबसे ज़्यादा चोट ‘माया मोह‘ पर करता है और मैं देखता हूं कि हिंदू समाज में धार्मिक जुलूसों में रथों की रास पकड़ने से लेकर चंवर डुलाने तक हरेक पद की नीलामी होती है और पैसे के बल पर ‘माया के मालिक‘ इन पदों पर विराजमान होकर अपनी शान ऊंची करते हैं। दहेज भी ये लोग लेते हैं और कन्या भ्रूण हत्या भी केवल दहेज के डर से ही की जा रही है।
जो सन्यासी इन्हें रोक सकते थे, उनके पास भी आज अरबों खरबों रूपये की संपत्ति जमा है। हिंदू बालाएं फ़ैशन और डांस के नाम पर अश्लीलता परोस रही हैं जबकि काम-वासना और अश्लीलता से उन्हें रूकने के लिए खुद उनका धर्म कहता है।
मैं चाहता हूं कि हरेक नर नारी जिस सिद्धांत को अपनी आत्मा की गहराई से सत्य मानता हो, वह उस पर अवश्य चले वर्ना पाखंड रचाकर समाज में धर्म को बदनाम न करे।
हिंदू हो या मुसलमान जब वे नशा करते हैं, दंगों में एक दूसरे का खून बहाते हैं तो उससे धर्म बदनाम होता है। जो लोग कम अक़्ल रखते हैं और धर्म के आधार पर लोगों को नहीं परखते बल्कि लोगों के कामों को ही धर्म समझते हैं वे धर्म का विरोध करने लगते हैं और दूसरों को भी धर्म के खि़लाफ़ बग़ावत के लिए उकसाते हैं जैसा कि पिछले दिनों एक वकील साहब ने किया।
धर्म को बदनाम करने वाले पाखंडियों को धर्म पर चलने के लिए कहना ग़लत है क्या ?
धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ?
इसी तरह के कुछ सवाल और भी हैं जो इनसे ही उपजते हैं।
मैंने कभी हिंदू धर्म की निंदा नहीं की और हमेशा हिंदू महापुरूषों का आदर किया और उनका आदर करने की ही शिक्षा दी। मेरी सैकड़ों पोस्ट्स इस बात की गवाह हैं। मैं खुद को भी एक हिंदू ही मानता हूं लेकिन डिफ़रेंट और यूनिक टाइप का हिंदू। बहरहाल, अगर आप मुझे हिंदू नहीं मानते तो न मानें। मैं इस पर बहस नहीं करूंगा लेकिन मैं यह ज़रूर चाहूंगा कि आप उपरोक्त सवालों पर ग़ौर करके मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें ताकि मेरे शब्द आपके लिए किसी भी तरह कष्ट का कारण न बनें।
मैं आपका आभारी रहूंगा।
शुक्रिया !
For context , please go to
http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300612412366#c5412010183540951113

Saturday, March 19, 2011

, ईश्वर ने महाराज मनु को सारी भूमि दी थी न कि भूमि का कोई एक टुकड़ा The Real King

हिन्दू एकता के लिए आपका लेखन सराहनीय है लेकिन अगर आप कुछ बातों को जान लेते तो आप ज्यादा सही जानकारी दे पाते .
आपने कहा कि
"हमें उन बेसमझों पर बढ़ा तरस आता है जो गाय हत्या व हिन्दुओं के कत्ल के दोषियों मुसलमानों व ईसाईयों (जो न हमारे देश के न खून के न हमारी सभ्यता और संस्कृति के) को अपना भाई बताते हैं."

फिर आप यह भी कहते हैं कि
"मनु जी के चार सन्तानें हुईं । जब बच्चे बड़े होने लगे तो मनु जी के मन में यह विचार आया कि सब कामों पर एक ही ताकतवर बच्चा कब्जा न कर ले इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों को काम बांट दिए ।"

आज पृथ्वी पर जो भी मनुष्य है वह मनु जी की ही संतान तो हैं , तो क्या सभी आपस में भाई नहीं हुए ?
सारी वसुधा पर मनु की ही संतान फैली हुई है , ईश्वर ने महाराज मनु को सारी भूमि दी थी न कि भूमि का कोई एक टुकड़ा . इसलिए केवल एक इलाक़े   के लोगों को जोड़ने की  कोशिश न करके मनु की सारी संतान को बताया जाये कि वे वास्तव में एक ही परिवार हैं .
आशा है कि आप मेरी विनती पर अवश्य गौर करेंगे.
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/father-manu-anwer-jamal_25.html

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For Context :
http://www.vicharmimansa.com/2010/08/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82-%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4/

Thursday, March 17, 2011

ZEAL द्वारा क़ियामत के बारे में पूछे गए तीन सवालों के जवाब About Dooms Day

Nice post.
और अपने रब से माफ़ी माँगो फिर उसकी तरफ़ पलट आओ ; बेशक मेरा रब बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करने वाला है।
ज़लज़लों और क़ुदरती तबाहियों के बारे में अल्लाह की नीति The punishment


डाक्टर साहिबा आपने पूछा है कि
1- क्या आग , पानी और भूकंप तीनों मिलकर महाप्रलय लायेंगे ?
2- क्या प्रलय छोटी-छोटी किश्तों में होगी और सृष्टि बची रहेगी ?
3- क्या काल का चतुर्थ युग कलियुग विनाश की कगार पर है ?


तीनों के उत्तर

1- हाँ
2- हाँ
3- यह इस बात पर निर्भर है कि आप के नज़्दीक  चारों युगों कि गणना क्या है ?
ब्रह्माकुमारी मत के अनुसार कलियुग १२५० साल का होता है जबकि दुसरे लोग लाख साल से ऊपर बताते हैं .
आप क्या मानती हैं ?
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मुकम्मल जानकारी के लिए आपको जाना होगा :
ZEAL: सन २०१३ के अंत तक महाप्रलय निश्चित है --श्री अशोक घई .

Friday, March 11, 2011

माँ ! काश , अनपढ़ ही मुझे तुमने ब्याही होती Desire

माँ ! काश , तुमने मुझे शिक्षा न दिलाई होती
(ये उद्गार उस कन्या के हैं जिसे शिक्षा ने मार डाला)
माँ , क्यों दिलाई तुमने शिक्षा ?
स्कूल कॉलेज में हवस के मारों की निगाहें
गर्म सलाख़ों की मानिंद
उतरती रहीं मेरे वुजूद की गहराईयों में
डिग्रियाँ पाती रही
रिसर्च करती रही
आगे बढ़ती रही
नीचे गिरती रही
दबना भी पड़ा नीचे
एक बार नहीं बल्कि बार बार
कभी शोध ओ. के. कराने के लिए
कभी नौकरी पाने के लिए
ताकि जुटा सकूं दहेज ख़ुद अपने लिए
दूसरे के नीचे ख़ुद को बिछाने के लिए
किसी नीच को रिझाने के लिए
इतनी मशक़्क़त आख़िर क्यों ?
इतनी साधना , इतनी तपस्या क्यों ?
खुद को इतना नीचे गिराने के लिए
इतनी ऊँची शिक्षा आखिर क्यों ?
माँ ! काश , तुमने मुझे शिक्षा न दिलाई होती
अनपढ़ ही मुझे तुमने ब्याही होती
किसी ऐसे के साथ
जो सचमुच एक इंसान होता
......
Please see this comment on

Thursday, March 10, 2011

क्या द्विवेदी जी ने यह ठीक किय मेरे साथ ? Answer me .

प्रिय  भाई प्रवीन शाह जी ! क्रिकेट का शौक़ तो बौर्ज़ुआ  कल्चर  है , सो हम तो समय बर्बाद करके जीवन को बर्बाद न तो खुद करते हैं और न ही आप जैसे अपने प्रिय को सलाह देते है हैं .
खैर ,  हम तो आज आपके पास यह कहने आये थे कि आपने जो स्टेटमैंट द्विवेदी जी की पोस्ट पर खुद को नास्तिक सा ज़ाहिर करने के लिए दिया है , वह आपने जानबूझकर दिया है ,
केवल हमें निराश करने के लिए. लेकिन हम निराश होने वाले नहीं हैं . हमने आपके लिए टोपी और मुसल्ला ख़रीद लिया है और कुरते पजामे का ऑर्डर आपकी रज़ा मिलते ही दे दिया जायेगा .
यार आपके बिना जन्नत में दिल उदास रहेगा . कुछ हंसी ठिठौली करने वाले ज़िंदादिल लोगों को साथ ले जाना बहुत ज़रूरी है . लिहाज़ा अब ना नुकुर मत करो . जैसे शादी करते वक़्त आपने भाई बहनों पर भरोसा किया था वैसे ही एक बार अपने प्रिय पर भी तो करके देखो  न .
एक शिकायत आपकी नास्तिक बिरादरी के सदस्य की :
आपका कमेन्ट द्विवेदी जी ने छाप दिया और मेरे ४-५ कमेन्ट हालाक कर दिए और कहते हैं खुद को कहते हैं बुद्धिजीवी ?
क्या यह ठीक किय गया मेरे साथ ?
अनवरत: औरत और मर्द बराबर हैं लेकिन "एक जैसे' हरगिज़ नहीं हैं हर महीने औरतें कुछ ऐसी चीज़ें भी खरीदती हैं जो मर्द कभी नहीं खरीदते Women are different

रांड तो यही चाहती है कि सबके खसम मर जावें , द्विवेदी जी के धर्म विरोधी उद्घोष की तथ्यात्मक समीक्षात्मक न्यूज़
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Please see :
http://praveenshah.blogspot.com/2011/03/blog-post.html?showComment=1299766882957#c1647355472576363032

हिंदी ब्लॉगर्स कानून को पूरा आदर देते हुए अपनी आर्ट का बेहतरीन नमूना पेश करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है

क़ानून सलामत रहे हमारा
सिर फोड़ने और जान से मारने की धमकी देने के मामलों को 323/324/504/506 Ipc के तहत दर्ज किया जाता है और भारतीय संविधान इन्हें अहस्तक्षेपीय अपराध मानती है । बिना लाइसेंस अवैध हथियार रखना 25 Arms Act और स्मैक चरस आदि बेचना जैसे मामलों NDPS Act में भी खड़े खड़े बिना अंदर जाए जमानत हो जाती है और लगभग ये सभी मामले हमेशा बिना सजा हुए छूटते हैं जबकि इनमें वादी राज्य सरकार होती है । जो लोग ख़ामख़्वाह हल्ला मचा रहे हैं वे ऐसे अमीर घरों से हैं जिन्हें क़ानून का कोई तजर्बा नहीं है । जो लोग दिन रात कानून में ही सोते जागते और खेलते हैं वे ऐसे नादानों की चिंता पर केवल हँसते हैं ।
किसी को भी चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है । आप देख सकते हैं कि इस देश में बलात्कार और दहेज उत्पीड़न के बारे में पहले से ही कानून मौजूद हैं और हर साल इनका आँकड़ा बढ़ता ही जा रहा है । इससे साबित होता है कि अगर लोग न मानें तो कानून बेचारा खड़ा खड़ा टुकुर टुकुर देखता रहता है । वैसे भी ब्लॉगर मीट और ब्लॉगोत्सव आदि गुटगर्दी के चलते ब्लॉगिंग अमीरों का चोचला और व्यसन बनकर रह गया है । शशि थरूर और अमर सिंह की राजनैतिक खुन्नस ने तो सरकारों को भी परेशान करके रख दिया था। ऐसी परिस्थितियों से भविष्य में बचने के लिए ही यह क़ानूनसाज़ी की जा रही है । जिससे न तो वे डरेंगे जो ब्लॉगिंग को एक नशे और व्यसन की तरह लेते हैं और न ही वे डरेंगे जो Freedom fighter हैं Virtual world के क्योंकि क्रांतिकारियों को जो करना था वह उन्होंने किया हालाँकि अंग्रेज फाँसी और काला पानी की सजाओं का कानून बनाए बैठे थे । दीवानों की अपनी मौज होती है । वे कानून को पूरा आदर देते हुए अपनी आर्ट का बेहतरीन नमूना पेश करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है।
For more details please go to
देशनामा: छिनने वाली है ब्लॉगरों की आज़ादी...खुशदीप
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One another post

बर्नार्ड शॉ ने कहा

शोहरत और नामवरी की ख़्वाहिश मामूली ज़हन रखने वालों की एक खुली हुई कमजोरी है और बड़े बुद्धिजीवियों की गुप्त कमज़ोरी है ।
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Wednesday, March 9, 2011

अनवरत: औरत और मर्द बराबर हैं लेकिन "एक जैसे' हरगिज़ नहीं हैं हर महीने औरतें कुछ ऐसी चीज़ें भी खरीदती हैं जो मर्द कभी नहीं खरीदते Women are different

औरत और मर्द बराबर हैं लेकिन "एक जैसे' हरगिज़ नहीं हैं. कुछ चीज़ें औरतें भी खरीदती हैं और मर्द भी लेकिन हर महीने औरतें कुछ ऐसी चीज़ें भी खरीदती हैं जो मर्द कभी नहीं खरीदते .
औरतों को समान बताने वालों ने उसे 'सामान' बना लिया है मौज मस्ती का . तमाम कोशिशों के बावजूद भी औरत औरत ही होती है इसीलिये खेलों में भी औरतों की टीम अलग ही होती है .
औरत और मर्द सामान हैं यह कहकर उन्हें बॉक्सिंग में कभी टायसन के सामने नहीं उतारा गया .
न मनु के धर्म में कमी थी और न ही पैगम्बर साहब के बताये तरीके में कमी है लेकिन जब खुदगर्ज़ लोग दीन धर्म की गद्दी पर क़ब्ज़ा कर लेंगे और समाज भी नेक आदमी के बजाय नापाक आदमी की ही सुनेगा तो चारों तरफ ऐसा ही हा हा कार मचेगा जैसा की आप आज मचता हुआ देख रहे हैं .
आपकी उम्र आख़िर आ चुकी है और फिर भी जवान दीयों की लौ बुझता देखने खामख़याली लिए बैठे हैं , कुछ ताज्जुब नहीं क्योंकि भारतवासियों को कल्पना में जीने की आदत है.
आपका दिया सदा रौशन रहे ऐसी दुआ हम उस मालिक से करते हैं जिसे आप अब नहीं मानते लेकिन एक रोज़ उसे अपने आमाल का हिसाब देंगे.
औरत की हक़ीक़त

मनु और मुहम्मद की दण्ड व्यवस्था
मेरा यह कमेन्ट आपके लिए निम्न लिंक पर अवेलेबल है :
अनवरत: महिलाओं का समान अधिकार प्राप्त करने का संकल्प धर्म की सत्ता की समाप्ति की उद्घोषणा है

Tuesday, March 8, 2011

Vertual Scientist Anwer Jamal के एक ताज़े शोध का ख़ुलासा : हिंदी ब्लॉगिंग की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार हैं इसके अंधे मार्गदर्शक

अनवर जमाल जब झूठपतियों के विरूद्ध बवंडर खड़े करता है तो लोग भागे भागे आते हैं , कोई गालियाँ देने , कोई समर्थन के लिए और कोई यह अपील करने के लिए कि मैं यह रविश छोड़कर कुछ रचनात्मक लिखूं।
मेरा हरेक कार्य रचनात्मक है , इसे कम लोग जानते हैं। नवीन सृजन से पहले विध्वंस आवश्यक है।
लेकिन ख़ैर , कल ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी की एक कविता वटवृक्ष पर देखी। उसी कविता को मैंने LBA पर डाल दिया और इस समय वह हमारी वाणी के बोर्ड पर भी नज़र आ रही है और मात्र 5 पाठक दिखा रही है जिनमें से इसे 2 बार तो खुद मैंने ही अलग अलग सिस्टम्स से खोला है । इस रचनात्मक पोस्ट पर आपको किसी ब्लॉगर की कोई टिप्पणी नज़र नहीं आएगी । जबकि इसी ब्लॉग LBA के सदस्य 100 से ज्यादा हैं और फ़ॉलोअर्स 207 हैं । इनमें वे बड़े ब्लॉगर भी हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग के संरक्षक और मार्गदर्शक होने का नाटक किया करते हैं , हक़ीक़त में ये तास्सुब और लालच में अंधे हैं । जब मार्गदर्शक ही अंधे हों तो फिर कैसी दिशा और कैसी दशा ?
मेरी रचनात्मक पोस्ट पर एक भी टिप्पणी का न आना ख़ुद एक जुर्म है जिससे हिंदी ब्लॉगर्स का उत्साह ठंडा पड़ जाएगा , मेरा तो पड़ेगा नहीं क्योंकि इस पोस्ट और हिंदी ब्लॉगिंग का हश्र बुरा देखकर मेरा क्रोध भड़क रहा है और मैं इसके ज़िम्मेदार बड़े ब्लॉगर्स में किसी को भी पकड़कर जैसे ही उसके 'टटरे पर जूत' बजाना शुरू करूँगा वैसे ही बहुत से आ जाएँगे मुझे नेक नसीहतें करने के लिए ।
अरे बदबख़्तो ! अगर तुमने पहले ही अच्छी पोस्ट को अच्छा कह दिया होता तो तुम्हारी इज़्ज़त क्यों नीलाम होती ?
Please go to
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/03/blog-post_7104.html

बाइबिल वाले अब आ जाएंगे और वेद-पुराण वाले पहले ही आ चुके हैं , अब होगा ब्लॉग सागर में अमृत के लिए ज्ञान मंथन

@ रोज़ की रोटी ब्लॉग वाले मेरे ईसाई भाई ! आपने मेरे कमेंट पर मुनासिब तवज्जो दी। मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ। मैं आपके जवाब की बाइबिल के प्रकाश में विवेचना करूंगा ।
कृप्या बताएं कि आप रोमन कैथोलिक ईसाई हैं या कुछ और ?
आप कितनी पुस्तकों वाली किस बाइबिल को ईश वचन मानते हैं ?
यह जानकारी मिलने के बाद हम आपस में तथ्यपरत संवाद कर सकेंगे कि
मसीह का मार्ग वास्तव में क्या था ?
.......
इसी के साथ मैंने उन्हें वर्ड वेरिफ़िकेशन हटाने का तरीक़ा बताते हुए 'हिंदी ब्लॉगर्स फोरम इंटरनेशनल' की सदस्यता का ऑफर भी दिया ताकि वे मसीह के जीवन और उनके संदेश की जानकारी उन लोगों को भी दे सकें जो कि उनके ब्लॉग तक किन्हीं वजहों से नहीं पहुँच पाते।
मैं 'ब्लॉग-सागर' समुद्र मंथन के प्रति कृत संकल्प हूँ।
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"व्यवस्था का उद्देश्य" पर अनवर जमाल जी की टिपणी के सन्दर्भ में

अन्वर जमाल साहब,
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। आपकी टिप्पणी में कही गई बातों में कुछ सच है, कुछ अन्समझा है और कुछ गलत। इन तीनों को बाइबल की कुछ सच्चाईयों के सन्दर्भ में समझाने की कोशिश करता हूं, आशा है कि कामयाब हो पाऊंगा।

१. सच यह है कि प्रभु यीशु मसीह और उनके चेले व्यवस्था का पालन करते थे।

प्रभु यीशु का दावा था कि वे व्यवस्था को हटाने नहीं वरन उसे पूरा करने आए हैं। व्यवस्था को सही और सच्चे दिली तौर से पूरा कर पाना किसी भी इन्सान के लिये असंभव है; और जब तक व्यवस्था पूरी नहीं होती वह लागू भी रहती, क्योंकि परमेश्वर की कही कोई बात पूरी हुए बिना रह नहीं सकती। प्रभु यीशु मसीह ने, जो व्यवस्था का देने वाला है, व्यवस्था को सही और सच्चे दिली तौर से पूरा किया और उसकी जगह परमेश्वर की आज्ञाकारिता और उसे प्रसन्न करने की एक आसान और कारगर विधी दी जो किसी नियम - कानून के पालन के बन्धनों द्वारा नहीं वरन मसीह में विश्वास और प्रेम द्वारा है।


. अन्समझा यह है कि वे, यानि मसीह और उनके चेले, ऐसा क्यों करते थे और व्यवस्था क्यों दी गई?

मसीह ने व्यवस्था का पालन किया परमेश्वर के वचन को पूरा करने और उद्धार का मार्ग देने के लिये। आरंभ में उनके चेलों के पास भी परमेश्वर के वचन के पालन के लिये केवल व्यवस्था ही थी। मसीह के क्रूस पर चढ़ाकर मारे जाने और फिर तीसरे दिन जी उठने से पहले, यहूदी लोगों के पास परमेश्वर की आज्ञाकारिता का कोई और माध्यम नहीं था। व्यवस्था मसीह के आने तक मसीह की पहिचान कराने और परमेश्वर के लोगों को मसीह के लिये संभाल कर रखने के लिये एक शिक्षक के समान थी। मसीह के जी उठने के बाद व्यवस्था पूरी हो गई और परमेश्वर तक पहुंचने की राह मसीह में होकर बन गई - न केवल यहूदियों के लिये वरन किसी भी धर्म - जाति - समाज - स्थान के दायरों से परे समस्त मानव जाति के लिये भी। उसके बाद चेले भी व्यवस्था का नहीं वरन मसीह में मिले अनुग्रह का पालन करने लगे, जो अपने आप में व्यवस्था का दिल से पालन करने के समान था।

व्यवस्था का उद्देश्य कभी उद्धार देना नहीं था, व्यवस्था परमेश्वर की पवित्रता और मनुष्यों की पापमय दशा को पहिचानने के लिये परमेश्वर द्वारा मनुष्यों को दिया गया एक पैमाना या नापने का ज़रिया है। "व्यवस्था का उद्देश्य" ब्लॉग के लेख में तीन उदाहरणों से इसी बात को साफ किया गया है कि व्यवस्था केवल समस्या की पहिचान करवाती है, व्यवस्था में समस्या का समाधान नहीं है। इसे एक और उदाहरण से समझिये - जैसे एक्स-रे, रक्त जांच आदि के द्वारा रोग की पहिचान होती है इलाज नहीं; जांच के नतीजों द्वारा इलाज निर्धारित होता है लेकिन करी गई जांच अपने आप में दवा या इलाज नहीं है, वैसे ही व्यवस्था के द्वारा हमारे पाप के रोग की पहिचन होती है, उसका इलाज नहीं। पाप का इलाज तो मसीह यीशु ही में है।

व्यवस्था हमें हमारी पापों में गिरी हुई दशा दिखाती है, लेकिन वह न तो हमें पाप करने से रोक पाती है और न किसी पापी को माफी देकर निष्पाप बना सकती है। व्यवस्था पाप के लिये पापी को सिर्फ सज़ा का हकदार बता सकती है। मनुष्य के हर पाप के लिये व्यवस्था के पास सिर्फ सज़ा है और सज़ा की दहशत है। इसलिये व्यवस्था पर बने रहने वाला मनुष्य परमेश्वर की आज्ञाकारिता परमेश्वर के लिये अपने प्रेम के अन्तर्गत नहीं वरन सज़ा से बचने के डर से करता रहता है।

व्यवस्था के साथ एक और मुश्किल यह है कि जो कोई व्यवस्था के साथ जीना चाहता है, वो अगर एक भी बात में गलती से भी चूक गया तो फिर वह पूरी व्यवस्था का दोषी और सज़ा का हकदार ठहरता है; जैसे साफ श्वेत चादर पर यदि एक छोटे भाग में ही कीचड़ का दाग़ क्यों न लग जाए, गन्दी पूरी चादर ही मानी जाती है। इसलिये सारी उम्र व्यवस्था का पालन करते रहो और आखिर में आकर किसी एक बात में चूक जाओ तो पिछला सारा हिसाब खत्म हो जाता है, सिर्फ सज़ा सामने रह जाती है।

एक और अहम बात समझने की आवश्यक्ता है - व्यवस्था में दी गई शिक्षाएं, विधियां और रीतियां आदि, सभी आने वाले उद्धारकर्ता अर्थात प्रभु यीशु मसीह के जीवन और कार्यों का पूर्वावलोकन था, एक इशारों में कही गई बात थी जिसे मसीह ने आकर स्पष्ट तथा सजीव किया। इसीलिये मसीह व्यवस्था की परिपूर्णता और सजीव स्वरूप है, और अब उस पुराने छाया समान स्वरूप, अर्थात विधियों की व्यवस्था के स्थान पर वह अपने सजीव और सदा विद्यमान स्वरूप को हमें पालन करने के लिये देता है। इसीलिये जो मसीह और मसीह की शिक्षाओं का पालन करते हैं वे व्यवस्था का भी पालन करते हैं। जो बात व्यवस्था अपने लिखित स्वरूप में करने में असमर्थ थी - अर्थात प्रेम, अनुग्रह और क्षमा; वह मसीह के सजीव स्वरूप में समर्थ हो गई। अब विधियों का लेख तो हमारे सामने से हट गया लेकिन परमेश्वर की व्यवस्था अपने सच्चे और खरे स्वरूप में अभी भी पालन के लिये विद्यमान है। अब उसमें अर्थात मसीह रूपी व्यवस्था में दण्ड की आज्ञा नहीं वरन प्रेम, अनुग्रह और क्षमा है, पाप की माफी है, पाप करने की प्रवृति पर विजयी हो पाने की सामर्थ देने की क्षमता है।


३. गलत है आपका कहना कि "इसीलिए पॉल की उनसे नहीं बनी और उसने अपने मत को अन्य जातियों के लिए आसान बनाने की खातिर व्यवस्था को निरस्त घोषित कर दिया। जिसका कि उन्हें कोई अधिकार न था।"

पूरी बाइबल परमेश्वर का वचन है, मसीह का वचन है - पौल (या पौलूस) द्वारा लिखी हुई किताबें भी। पूरी बाइबल में सबसे ज़्यादा किताबें पौल ही की लिखी हुई हैं और बाकी सभी किताबों की तरह पौल के लिखी किताबें भी परमेश्वर की आत्मा की प्रेरणा ही से लिखी गईं हैं। पौल ने कभी अपनी किसी किताब में व्यवस्था को अनुचित, बुरा या गलत नहीं बताया। पौल मसीह के आरंभिक चेलों में से नहीं था। पौल मसीही विश्वास में बाद में आया, पहले वो मसीहीयों के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द करके उन्हें सताने वाला यहूदी हुआ करता था, जो बड़ी कड़ाई से व्यवस्था का पालन करता था। एक बार जब वह स्वयं व्यवस्था के असली और सही उद्देश्य को मसीही विश्वास में आने के द्वारा पहिचान गया तो फिर उसके बाद उसने हमेशा व्यवस्था के इसी सही और सच्चे उद्देश्य को पहिचानने और मसीह में होकर संसार के हरेक पापी को मिलने वाले अनुग्रह, क्षमा और उद्धार की सच्चाई का बयान किया। मसीही विश्वास में आने के बाद भी उसने हमेशा व्यवस्था को पूरा आदर और सम्मान दिया। पौल ने व्यवस्था के उल्लंघन करने की नहीं वरन मसीह में होकर व्यवस्था के पालन ही की शिक्षा दी।

न तो पौल ने कभी कोई "अपना मत" चलाने की कोशिश करी और न ही उसने परमेश्वर से मिली शिक्षाओं को "अन्य जातियों के लिए आसान बनाने की खातिर व्यवस्था को निरस्त घोषित कर दिया"। उसने हमेशा मसीह ही को आगे रखा और उसके समय के मसीह के बाकी चेलों ने भी उसका साथ दिया, उसकी शिक्षाओं को माना, उनका समर्थन किया और उन्हें सही बताया। बाइबल में कहीं यह नहीं दर्शाया गया कि पौल ने कोई अलग मत स्थापित करने का प्रयास किया अथवा वह मसीह के अन्य चेलों से अलग चला हो या मसीह के अन्य चेलों ने उसे कभी गलत बताया हो।

किसी मनुष्य को यह अधिकार नहीं कि वो परमेश्वर की शिक्षाओं और उसकी किसी बात में कोई फेरबदल कर सके और उसकी बातों को "आसान" बनाने के लिये उनमें मिलावट कर सके। पौल की लिखी किताबों का परमेश्वर के वचन बाइबल में सम्मिलित होना ही इस बात का प्रमाण है कि उसकी द्वारा लिखित बातें और शिक्षाएं सही, जायज़ और परमेश्वर के मन के अनुसार हैं।

आशा है कि मैं व्यवस्था पालन को लेकर आपकी चिंताओं का निवारण करने में सफल रहा हूँ।

धन्यवाद,
रोज़ की रोटी
http://rozkiroti.blogspot.com/2011/03/blog-post_08.html

Monday, March 7, 2011

नाजायज़ रिश्तों और जायज़ रिश्तों के निर्धारण का आधार

रिश्ते और संबंध अगर नाजायज़ हैं तो उन्हें तोड़ना ही अच्छा है ।
कौन सा संबंध और कौन सा रिश्ता जायज़ है और कौन सा नाजायज़ ?
इसे तय करने की क्षमता इंसान में न पहले थी और न ही आज है । इसे वही तय कर सकता है जो सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हो। जब तक उस मालिक से इंसान अपने रिश्ता ए बंदगी को न पहचाने और उसके संबंध में जो हक़ इंसान पर वाजिब हैं , वह उन्हें अदा करना न जान ले तब तक उसे अपने किसी भी सवाल का सही जवाब मिलने वाला नहीं है।
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रश्मि प्रभा जी के ब्लॉग परिचर्चा की एक ताजा पोस्ट पर मेरा यह कमेँट आपके लिए सुलभ है :
http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.com

ईसाइयो ! तौबा करो मसीह की मुख़ालिफ़त से

हज़रत ईसा मसीह ने तो व्यवस्था के विरोध में कभी ऐसा न कहा कि
'व्यवस्था ने न कभी किसी का उद्धार किया और न ही कभी कर सकती है'
फिर आप उनकी शिक्षा के विरूद्ध ऐसा क्यों कह रहे हैं ?
वे ख़ुद और उनकी माँ हमेशा मूसा की व्यवस्था का पालन करते रहे । इतना ही नहीं बल्कि मरियम मगदलिनि व अन्य प्रेरित जैसे उनके खास शिष्य भी उनकी ही तरह व्यवस्था का आजीवन पालन करते रहे । इसीलिए पॉल की उनसे नहीं बनी और उसने अपने मत को अन्य जातियों के लिए आसान बनाने की खातिर व्यवस्था को निरस्त घोषित कर दिया । जिसका कि उन्हें कोई अधिकार न था । आप लोग तौबा कीजिए ऐसी ग़लत बात से। मालिक आपको जरूर माफ कर देगा ।
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http://rozkiroti.blogspot.com पर देखिए मेरा यह कमेँट ।

Sunday, March 6, 2011

नारी होकर जीना है तो बस काफ़ी है ख़ुद की पहचान Self realization

नारी मन में बहुत से सवाल उठते हैं और हरेक दिल उसे अपने अंदाज़ में बयान करता है. मैंने यह बयान किया है एक पोस्ट पर :


प्रेम , ममता और त्याग बैसाखियाँ नहीं हैं हिस्सा हैं तुम्हारे वुजूद का गर ये नहीं तो तुम नहीं आत्महत्या न करो मुक्ति के नाम पर नारी होकर जीना है तो बस काफ़ी है ख़ुद की पहचान

कभी देवी बनाकर
मन्दिर में 
सिंहासन पर बैठाया.
समझ कर ज़ागीर
कभी जूए में
दांव पर लगाया.
और कभी बनाकर सती
जिंदा चिता में जलाया.
कुचल कर अरमानों को
बनाया कभी नगरवधू
तो कभी देवदासी.
परिवार की इज्ज़त के नाम पर
अपनों ने ही
लटका के पेड से 
कभी दी फांसी.


बेटी, पत्नी और माँ बनकर
जी रही हूँ सदियों से,
पर नहीं जी पायी
एक दिन के लिए भी
सिर्फ़ अपने लिये
केवल
एक नारी बनकर.


क्यों थमा दी
प्रेम, ममता और त्याग
की वैसाखियाँ
मेरे हाथों में,
होने दो मुझे भी खड़ा
अपने पैरों पर.


मुक्त कर दो मुझे
कुछ क्षण को
इन सभी बंधनों से,
और अहसास करने दो
क्या होता है 
जीना
सिर्फ़ एक नारी बनकर.
http://sharmakailashc.blogspot.com/2011/03/blog-post_06.html

इसलाम की ज्ञानराशि से अनायास संपन्न हो रही हिंदू कवयित्रियों में से एक हैं हरकीरत 'हीर' Across the river

इस्लाम आपको इतना अच्छा लगेगा कि आप भी मुसलमान हो जाएँगी , इंशा अल्लाह .
हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को पंजाबी क्या ?
बहन हरकीरत जी ! इस्लाम का इल्म रखने वाले और उस पर अमल करने वाले किसी भी आलिम के घर में या किसी भी आम आदमी के घर में जाकर देख लीजिये कि उनकी औरतें दुनिया में भी जन्नत में रहती हैं . आप मेरे घर में आकर देख लीजिये . आप न आ सकें तो मुझ से फोन नंबर लेकर मेरी बहनों और मेरी बीवी से बात कर लीजिये कि वो मुझ से और इस्लाम के कानून से कितनी संतुष्ट हैं . सभी परदे कीई  पाबंद हैं और कान्वेंट एजुकेटिड हैं, बीवी विदेश में तालीम पा चुकी हैं और मेरी बहनें पोस्ट ग्रेजुएट कर चुकी   हैं .
अब मैं आपको अन्दर की बात भी बट्टा  दूँ , जो कि आम तौर  पर  कोई आपको न बताएगा .
मेरी बीवी नेक है लेकिन किसी को तबलीग नहीं कर सकती अर्थात निहायत तन्हाई पसंद  है, कुछ उनके घरवालों की  गलतियाँ भी थीं कि शादी के बाद  मेरे घर में झगड़ा शुरू  हो गया और मैंने पक्का इरादा कर लिया कि मैं उन्हें हर हाल में तलाक़ देकर रहूँगा . यह गुस्सा इतनी पक्की बुनियादों पर था कि उनके वालिद न कल बोल सकते थे और न आज बोल सकते हैं कि मैं गलत हूँ. तीन बच्चे होने के बाद भी मेरा इरादा यही था कि तलाक़ तो मैं हर हाल में दूंगा लेकिन जब भी कुरान   पढ़ा , हदीस पढ़ी . अपने मौलाना से पूछा, हर जगह से यही आवाज़ आई कि यह काम मत करना , गलतियों को माफ़ करो और भुला दो तुम्हारा रब भी यही करता है और ऐसा ही करने के किये कहता है तमाम जायज़ चीज़ों में अल्लाह के नज़दीक सबसे नापसंद चीज़ तलाक़ है .
खुदा कि नापसंद चीज़ को मैं कैसे करूं  ?
माँ बाप और भाई बहन सब बीवी की    तरफ से  खड़े  हो गए . सास ससुर तो विदेश  लौट गए थे अपनी बेटी इण्डिया  में ब्याह कर . उनकी तरफ से मेरे घर वाले ही मेरे फैसले कि मुखालिफ़त  करते थे . उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ भी मैं जा ही नहीं सकता था .
मेरी हिम्मत नहीं होती थी तलाक़ देने की और वक़्त गुज़रता रहा और फिर ऐसा हुआ कि वक़्त ने दिल के घाव पर मरहम का काम  किया और अब मेरे दिल में अन्दर से भी कोई ख्वाहिश नहीं है कि मैं अपनी बीवी को तलाक़ दूं.  और मज़े की बात यह है कि मेरी बीवी मुझ से , मेरे बर्ताव से आज जितना खुश हैं  उससे ज्यादा  खुश वो तब थीं जब मैं तलाक़ देने  का इरादा रखता था क्योंकि पिछले एक साल से इंटरनेट मेरा बहुत वक्त पी जाता है.  
'गैरमुस्लिम इस्लाम-दुश्मनों' की  किताबों से इस्लाम को जानने की  कोशिश मत कीजिये . इस्लाम पर इल्म के साथ  अमल करने वालों  जिंदगियां की  देखिये  आपको इतना अच्छा लगेगा कि आप भी मुसलमान हो जाएँगी , इंशा अल्लाह .जैसे की कमलादास और बहुत सी हिन्दू कवयित्रियाँ  मुसलमान हो चुकी हैं .
मैं जो करता हूँ वही कहता हूँ और जो सोचता हूँ वही आपको बताता हूँ .
Please also see
<a href="http://hamarivani.com/user_profile.php?userid=15">http://hamarivani.com/user_profile.php?userid=15</a>
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आप मेरे इस कमेन्ट को हरकीरत 'हीर' जी के ब्लॉग भी देख दकते हैं.
अब आप देखिये उनकी वह कविता जिसमें वह अपनी जानकारी की कमी की कमी की वजह से इस्लाम को इलज़ाम दे रही हैं .

Harkeerat 'Heer'
 अब पेश है इक नज़्म ....' इक औरत ''
इस्लाम धर्म में औरत


पर इतनी पाबंदियां हैं कि रूह काँप जाती है सुन .....


इक औरत ....

सुप्त सी ...
अनसिये ज़ख्मों तले
लिपटा ली जाती है देह मेरी
जहाँ ज़िस्म की गंध उतरती हैकभी दूसरी,कभी तीसरी .....
तो कभी चौथी बन ....

रात गला काटती है
कई ज़ज्बात मरते हैंइक ज़हरीली सी कड़वाहट
उतर जाती है हलक में .....
तुम नहीं खड़ी हो सकतीखुदा की इबादत के लिएमेरी बराबरी पर .....
तुम्हारा वजूद .....
ज़ुल्म सहने ,तिरस्कार झेलने
और बुर्के की ओट में कैद है
तुम्हारी नस्ल को....
तालीम हासिल करने का हक नहींतुम्हारा गुनाह है ...
तुम इस कौम में पैदा हुई ....
तुम जिन्दा रहोगी
तो मेरे रहमोकरम पर .....
उफ्फ़ ....
.
इन शब्दों का खौफ
डराता है मुझे .....
ये किसकी अर्थी है ...
पत्तो से झूलती हुई .....
ये कौन लिए जा रहा है
मेरे मन की लाशें ......
ये कैसा धर्म है ...?
ये कैसा ईमान है ....?
ये कैसी जहालतें हैं ...?ये कैसा कानून है ...?
ये कैसी जड़ कौम है ....?

मेरे ज़िस्म पर मेरे खाविंद कामालिकाना हक़ है ...मेरे विचारों पर फतवे हैं ...मेरी सोच पर लगाम है ...

ओह ...!
यकसां ये 'तलाक' का
तीन बार कहा गया शब्दमेरे सामने चीखने लगा है ......मेरे अन्दर कोई पौधाकैक्टस बन उग आया हैये पत्थर क्यूँ रोशनदानों से झांकते हैं ?चुप की चादर ताने ये सुरमई अँधेरा
किस उडीक में है ......?

अधिकार
के सारे शब्द तुम्हारे हाथों में .....
और मेरे हाथों में सारे कर्तव्य ?

अय
खुदा ...!
बता मैं कटघरे में क्यों हूँ ?मैं औरत क्यों हूँ ...?
मुझे औरत होने से गुरेज है ...मुझे औरत होने से गुरेज है ......!!


( इस नज्म के लिए मैं राजेन्द्र जी से माफ़ी चाहूंगी क्योंकि उन्हें इस तरह की नज्में नजायज़ लगतीं हैं )