तौहीद के अलंबरदार
शिर्क एक ऐसा गुनाह है जिसकी माफ़ी नहीं है और पुरानी सभ्यताओं में आज जितने भी रोग मौजूद मिलते हैं उनके पीछे सिर्फ़ एक शिर्क ही असल वजह है। यही वजह है कि पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब समाज को बुराई छोड़ने के लिए कहा तो सबसे पहले शिर्क ही छोड़ने के लिए कहा। शिर्क का रास्ता हमेशा मुक़द्दस हस्तियों से प्रेम में अति करने से ही खुलता है।
गो कि चूमने का अमल अपने आप में शिर्क नहीं है लेकिन पाक हस्तियों की क़ब्र पर वही आमाल अंजाम देने चाहिएं जो कि खुद उन हस्तियों ने अंजाम देने के लिए कहे हैं। पाक हस्तियों से सच्ची मुहब्बत तो यह है कि उनकी तालीम पर चला जाए लेकिन ज़्यादातर लोग इस सच्ची मुहब्बत का तो सुबूत देते नहीं और क़ब्रों को चूमकर समझते हैं कि उन्होंने उन लोगों से अपनी मुहब्बत ज़ाहिर करके अपने लिए आखि़रत की आग से बचाव का सामान कर लिया है। असल चीज़ उनके तरीक़े पर अमल करना है। अगर उसमें चूमना शामिल है तो ज़रूर चूमा जाए क्योंकि वे लोग तौहीद के अलंबरदार थे और उनकी पैरवी में ही नजात है। जिस चीज़ को उन्होंने चूमा, उनकी तक़लीद में उस चीज़ को ज़रूर चूमा जाए और जिस चीज़ पर उन्होंने कंकर मारा, उस पर कंकर मारा जाए और जिस रास्ते में उन्होंने अपनी जानें कुरबान कीं, उसी रास्ते में अपनी जानें कुरबान की जाएं। जो लोग अपनी औलाद को चूमकर अपने प्यार का इज़्हार करते हैं, उन्हीं के सामने जब अपनी बेटियों को जायदाद में हिस्सा देने की बात आती है तो शरीअत के हुक्म से ही नहीं बल्कि अपनी फ़ितरी मुहब्बत से भी मुंह मोड़ लेते हैं। ऐसे लोग कुछ भी चूम लें, दीन की बुनियाद से हटे होने की वजह से नुक्सान में हैं।
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/way-to-god.html
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शिर्क एक ऐसा गुनाह है जिसकी माफ़ी नहीं है और पुरानी सभ्यताओं में आज जितने भी रोग मौजूद मिलते हैं उनके पीछे सिर्फ़ एक शिर्क ही असल वजह है। यही वजह है कि पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब समाज को बुराई छोड़ने के लिए कहा तो सबसे पहले शिर्क ही छोड़ने के लिए कहा। शिर्क का रास्ता हमेशा मुक़द्दस हस्तियों से प्रेम में अति करने से ही खुलता है।
गो कि चूमने का अमल अपने आप में शिर्क नहीं है लेकिन पाक हस्तियों की क़ब्र पर वही आमाल अंजाम देने चाहिएं जो कि खुद उन हस्तियों ने अंजाम देने के लिए कहे हैं। पाक हस्तियों से सच्ची मुहब्बत तो यह है कि उनकी तालीम पर चला जाए लेकिन ज़्यादातर लोग इस सच्ची मुहब्बत का तो सुबूत देते नहीं और क़ब्रों को चूमकर समझते हैं कि उन्होंने उन लोगों से अपनी मुहब्बत ज़ाहिर करके अपने लिए आखि़रत की आग से बचाव का सामान कर लिया है। असल चीज़ उनके तरीक़े पर अमल करना है। अगर उसमें चूमना शामिल है तो ज़रूर चूमा जाए क्योंकि वे लोग तौहीद के अलंबरदार थे और उनकी पैरवी में ही नजात है। जिस चीज़ को उन्होंने चूमा, उनकी तक़लीद में उस चीज़ को ज़रूर चूमा जाए और जिस चीज़ पर उन्होंने कंकर मारा, उस पर कंकर मारा जाए और जिस रास्ते में उन्होंने अपनी जानें कुरबान कीं, उसी रास्ते में अपनी जानें कुरबान की जाएं। जो लोग अपनी औलाद को चूमकर अपने प्यार का इज़्हार करते हैं, उन्हीं के सामने जब अपनी बेटियों को जायदाद में हिस्सा देने की बात आती है तो शरीअत के हुक्म से ही नहीं बल्कि अपनी फ़ितरी मुहब्बत से भी मुंह मोड़ लेते हैं। ऐसे लोग कुछ भी चूम लें, दीन की बुनियाद से हटे होने की वजह से नुक्सान में हैं।
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मैंने यह कमेन्ट इस पोस्ट पर किया है :