Monday, June 10, 2013

दुनिया में सिर्फ़ बेवकूफ़ ही वफ़ादार बीवी से बेवफ़ाई करते हैं-Dr. Anwer Jamal


दुनिया में सिर्फ़ बेवकूफ़ ही वफ़ादार बीवी से बेवफ़ाई करते हैं और बेवफ़ा औरतों से दिल बहलाते हैं . नतीजे में सेहत और दौलत खोकर दर बदर की ठोकरें खाते हैं .
- डा. अनवर जमाल नक्शबंदी
 देखें यह लेख -


Wednesday, April 17, 2013

पूंजीपति अपने नफ़े के लिए आपकी सेहत का जनाज़ा निकाल सकते हैं


जंक फ़ूड में कुछ ऐसे रसायन मिलाए जाते हैं जो कि ‘फ़ाल्स फ़ीलिंग ऑफ़ हंगर‘ पैदा करते हैं। एक बार उन रसायनों की गंध नाक के ज़रिये दिमाग़ तक पहुंची नहीं कि आदमी उसे खाने के लिए लपका नहीं और फिर वह उसका आदी हो जाता है किसी नशेड़ी की तरह। इन रसायनों की वजह से इंसान बिना भूख के खाता है और पेट भरने के बाद भी खाता रहता है। इसके नतीजे में मोटापा, डायबिटीज़ व हार्ट प्रॉब्लम्स पैदा हो जाती हैं।
इसी वजह से हम तो घर के बाहर की बनी चीज़ें नहीं खाते। इससे भी बड़ी वजह यह है कि हमें ऐतबार ही नहीं है कि बाज़ार में बनी इन चीज़ों के इन्ग्रेडिएन्ट्स क्या हैं और उनमें से कोई ऐसा भी हो सकता है जिसे खाना हमारे लिए हराम हो।
पूंजीपति अपने नफ़े के लिए आपकी सेहत का जनाज़ा निकाल सकते हैं।
इसलिए ख़ुद भी सावधान रहने की ज़रूरत है और बच्चे को भी बचाए रखने की ज़रूरत है।
यह कमेन्ट निम्न पोस्ट पर-

Monday, April 1, 2013

क्या होगा BJP के पक्ष में सायबर प्रचार के बाद

दो चार बार सरकार बनने के बाद बीजेपी के बारे में प्रचारकों की राय भी बदल जायेगी तब कांग्रेस फिर आ जायेगी और फिर बीजेपी और फिर कांग्रेस.
जनता के हाथ कुछ नहीं आयेगा. शोर मचाने वाले शहरी ब्लॉगर हैं. वे अपने मेहनताने के रूप में उनके लेटर पर अपने बच्चों के एडमिशन बिना डोनेशन के करवा लेंगे.
बस.
कुल कहानी यह है.
मूल पोस्ट देखें:

‘अपना ब्लॉग’ मतलब अपना न!


लगभग डेढ़ वर्ष से इस स्तंभ को कभी-कभार देख रहा हूं। कुछ दिन देखता हूं फिर लंबे समय के लिए दूर हो जाता हूं। कभी-कभार कुछ ब्लॉग अच्छे पढ़ने को मिल जाते हैं।

इस स्तंभ पर एक पार्टी विशेष व जाति विशेष के ब्लॉगर्स व कमेंट्‌सकारों ने आपातकाल लगाया हुआ है या यूं कहें कि इस स्तंभ को हाईजैक कर रखा है। यदि आप कांग्रेस के पक्ष में या किसी कांग्रेस के नेता के पक्ष में (चाहे वह मनमोहन सिंह जैसा शालीन नेता ही क्यों न हो) कुछ बोल दिया तो आपकी खैर नहीं। आपकी सात पीढ़ियों को याद कर लिया जाता है। इसका असर यह होता है कि इस स्तंभ पर कांग्रेस के पक्ष में या किसी कांग्रेस के नेता के पक्ष में किसी को बोलने या लिखने की हिम्मत नहीं होती है। दादा लोग तैयार बैठे हैं बांहें चढ़ाकर।

इसी तरह से यदि आप भाजपा के या भाजपा के किसी नेता के खिलाफ लिख देते हैं तो तत्त्काल आप देशद्रोही हो जाते हैं। और यदि आपने मोदी जी के खिलाफ जरा भी मुंह खोल दिया तो समझो आपका मुंह तोड़ दिया जाएगा। मजेदार बात यह कि जो भी कांग्रेस को गाली देता है, इन ब्लॉगरों व कमेंटकारों को प्यारा हो जाता है, देश प्रेमी हो जाता है। केजरीवाल जब तक कांग्रेस को धमकाते रहे, सभी मिलकर उनकी जय-जयकार करते रहे, मैंने शुरू में केजरीवाल की मंशा पर जरा सा प्रश्न लगाया तो कमेंटकारों ने मेरी खबर ले ली...महान देशभक्त केजरीवाल के खिलाफ बोलने की हिम्मत कैसे हो गई? हुआ यह कि केजरीवाल ने गडकरी की किरकिरी कर दी...अब? अब ये देशभक्त ब्लॉगर और कमेंटकारों को काटो तो खून नहीं। अब आप केजरीवाल देशद्रोही हो गया, अब उनके खिलाफ लिखा जा सकता है!

रामदेव व अन्ना पक्के रहे, तो आज तक ब्लॉगर व कमेंटकार उनके साथ हैं। इन दोनों के खिलाफ कोई लिख कर देखे? मैंने जरा-सा लिख दिया था तो कमेंट्‌स की बौछार हो गई। जब कि मैंने तो सिर्फ यह पूछ लिया था कि रामदेव क्यों नहीं ईमानदारी से स्वीकारे कि वे भाजपा को पसंद करते हैं?

हर उस व्यक्ति की आलोचना करना, निंदा करना जो जरा सा भी कांग्रेस का पक्ष रखता हो। संजय दत्त के पीछे पड़े हैं। उसका बाप कांगे्रस में था, उसकी बहन कांग्रेस में है, छोड़ कैसे दें?

काटजू की खाट कर दी है, महान मोदी के खिलाफ बोलता है, काटजू साला?

इन ब्लॉगरों और कमेंटकारों में न तो तटस्थता है, न विचार है, न विमर्श है, न सोच है, बस अंध भक्ति। अब हर दूसरा ब्लॉग भाजपा के समर्थन में, मोदी की जय-जयकार में, कांग्रेस को गाली देने में या कांग्रेस समर्थित किसी भी व्यक्ति की सात पीढ़ियां याद करने में लगा रहता है। मुलायम और अखिलेश से खार खाये बैठे हैं, उनकी प्यारी भाजपा को धूल चटा दी...छोड़ेंगे नहीं इन दोनों को, हर थोड़ी देर में यादव परिवार के गडे मुर्दे उखड़ते हैं। और उत्तराखंड में बहुगुणा, उसकी तो!!!! जब ब्लॉग पढ़ता हूं तो हंसी आती है कि यह सब हो क्या रहा है?

अब यदि यह मान ही लेना है कि सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही देशप्रेमी पार्टी, एक धर्म विशेष ही दुनिया का एक मात्र महान धर्म या असली धर्म, मोदी जी जैसा नेता न तो कभी पैदा हुआ न कभी होगा, कांग्रेस से अधिक देशद्रोही पार्टी इस मानवता ने कभी नहीं देखी, जो भी कोई कांग्रेस को ठीक मानता है उसकी सारी पीढ़ियां विक्षिप्तों की थी...तो फिर विचार कैसा, सोच कैसा, कैसे संभव है?

मैंने कुछ ब्लॉग देखे हैं जिसमें बहुत ही तार्किक ढंग से आंकड़ों के साथ साबित किया गया कि शीला दीक्षित ने भी अच्छा काम किया है, निलेश ने बिहार में अच्छे काम किये हैं, मोदी जी के काम में कमियां रही हैं...भाई लोग ऐसे पिल पड़े...?

सच कहता हूं, न तो मेरा कांग्रेस से कुछ लेना-देना है, न भाजपा ने मेरा कुछ बिगाड़ा है, धर्म से मैं दूर ही हूं, मोदी जी को निश्चित पसंद करता हूं, हाल में तो कुछ नेताओं में उनका नाम आता ही है। कुछ व्यक्तिगत कारणों से मोदी जी का मन में बहुत सम्मान है।

लेकिन हां, मनमोहन सिंह जी का बेहद सम्मान करता हूं। वे बेहद सभ्य, ईमानदार व शालीन व्यक्ति हैं, राजनीति में ऐसा व्यक्ति मिलना बेहद-बेहद मुश्किल है, कम से कम अभी तो संभव नहीं।

बाकी देश के हालातों से निराश हूं और जिम्मेदारी न तो कांग्रेस पर डालता, न ही किसी दूसरी पार्टी पर...मेरे अनुसार हमारे देश में प्रजातंत्र ही असफल हो गया। सभी पार्टियों में अपराधी प्रत्याशी होते हैं, राजनीति का अपराधीकरण देश के लिए बुरी से बुरी बात है!

जनसंख्या की प्रलय की तरह आती बाढ़ से आने वाले समय में देश का क्या होगा? सोच कर ही घबरा जाता हूं। कौन जादू का डंडा घूमायेगा? मुंगेरी लाल के हसीन सपनें बाकी सब तो...!!!

जागो! जागो!! जागो!!!

Sunday, March 10, 2013

ज़ालिमों के दरम्याँ मज़लूम, सौदागर कहलाए रे ! Parveen wife of Ziya ul Haq

ये हैं शहादत के सौदागर, मीडिया भी मौन !
लेखक: महेन्द्र श्रीवास्तव
पर हमारा कमेन्ट:

माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।

यहाँ ऐसा मशहूर है कि तोप की अर्ज़ी दो तब तमंचा मिलता है. जिन्होंने केवल अपना वाजिब हक़ माँगा उन्हें वह भी नहीं मिला. राजनेता दबाव में न हों तो इरोम के बरसों पुराने अनशन पर भी ध्यान नहीं देते.
गन्ना रस दे तो समझो दबाव पड़ रहा है.
सीबीआई पूरी गंभीरता से जांच करती है चाहे उसे अभियुक्त के अंतिम सांस तक करना पड़े.
सुश्री मायावती जी के शासनकाल में राजा भैया के निवास पर पुलिस अधिकारी श्री आर. एस. पांडेय जी ने छापा मारा था। उसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां दी गईं और फिर एक दिन उन्हें सड़क पर किसी वाहन से कुचल कर मार दिया गया। सन 2004 से उस केस की जांच सीबीआई कर रही है। जांच अभी चल ही रही है।
अब ज़िया उल हक़ के क़त्ल कि जांच और शामिल हो गयी.
दुनिया में न्याय होता, ख़ासकर भारत में न्याय हो जाया करता तो 'पाण्डेय' जी को तो मिल ही गया होता. जो  हक़ 'पाण्डेय' को न मिला, वह ज़िया को मिल जाए. ऐसे सपने ज़रूर संजोने चाहियें. सपने भी मर गए तो इंसान फिर किस भरोसे जियेगा ? 
राजनीति न्याय को खा चुकी है.  

Wednesday, March 6, 2013

हमारी एक अहम टिप्पणी, जिसे ख़ुद को फंसते देखकर मिटा डाला गया


हिंदी ब्लॉगर शिल्पा मेहता जी ने एक बहुत अच्छा सवाल खड़ा किया है कि 
इस पोस्ट पर हमने उनसे संवाद किया। उन्होंने हमारी 2 टिप्पणियां प्रकाशित कीं। उनमें कोई आपत्तिजनक बात न होने के बावजूद उन्होंने उन पर बहस शुरू कर दी और जब वे बहस में फंस गईं तो ब्लॉग मॉडरेडर ने हमारी तीसरी टिप्पणी डिलीट कर दी। उस तीसरी टिप्पणी को आप यहां देख सकते हैं। हम अपने ‘कॉमेन्ट्स गार्डन‘ में अपनी अहम टिप्पणियों को संजो लेते हैं।
ईश्वर कल्याणकारी मार्ग दिखाता है। धर्म सही होता है और महापुरूष उसके अनुकूल आचरण करके दिखाते हैं। इसके लिए वे कष्ट का जीवन जीते हैं और बलिदान देते हैं। ईश्वर की वाणी और महापुरूषों का आचरण निर्दोष होता है।
उनके सैकड़ों हज़ारों वर्ष बाद जब उसे लिखा जाता है तो कवि उसमें साहित्य सुलभ कल्पना और अलंकारों का समावेश कर देते हैं। बाद में हर तरह के मनुष्य होते हैं। कुछ के लिए सत्य के बजाय स्वार्थ प्रधान हो जाता है। ये साहित्य में क्षेपक करते हैं। कला, विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में नए प्रयोग होने से भी कुछ परिवर्तन होते चले जाते हैं।
जो ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में पहचानते हैं वे उनकी आलोचना नहीं करते। जो आलोचना करते हैं वे ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में नहीं पहचानते।
  1. that is true - but unfortunately, i have seen a very insulting post on the shivlinga on your own blog respected jamaal ji
  2. अगर आपने हमारे किसी ब्लॉग पर ऐसी कोई पोस्ट देखी है तो कृप्या आप सूचित करें। अगर उस पोस्ट का मक़सद शिव जी का अपमान करना होगा तो उसे तुरंत हटा दिया जाएगा। हमसे ज़्यादा शिव जी का सम्मान करने वाला यहां ब्लॉग जगत में दूसरा कोई नहीं है। जब कभी हमने दूसरे की आपत्तिजनक पोस्ट देखी तो हमेशा उसका ख़ुद भी विरोध किया और दूसरों से भी करवाया। हो सकता है कि आपको समझने में कुछ ग़लतफ़हमी हो रही हो।
    बताईये कि वह कौन सी पोस्ट है और आपको उसमें हमारी ओर से कौन सी बात अपमानजनक लग रही है ?
    हम आपके आभारी रहेंगे !

    हमारे लिए भी आपकी यह पोस्ट आश्चर्य पैदा कर रही है। अभी थोड़े दिन पहले आप स्वयं वैदिक यज्ञों और मंदिरों में पशुबलि की आलोचना कर रही थीं और ऐसा करने वालों से उसे छोड़ने की अपील भी कर रही थीं।

    क्या हिन्दू धर्मग्रंथ आपको ऐसी आलोचना और अपील करने का अधिकार देते हैं ?
  3. उस पोस्ट को आपने स्वयं ही "एक हिन्दू भाई ने लिखा" से शुरू कर पोस्ट किया है । इस पर श्याम गुप्ता जी समीक्षासिंह जी की आपत्तियां भी , कि इसे आप हटा लीजिये, आपने मना कर दिया । तो अब मेरे कहने से आप भला क्यों इसे हटाएंगे ? instead - a discussion will start here about that post - which i do not want on my blog ...

    मैं यहाँ इस पोस्ट का लिंक न तो खुद दूँगी, न ही यदि आपने दिया तो प्रकाशित करूंगी । आप भी जानते हैं और मैं भी , कि किस पोस्ट की बात कर रही हूँ मैं - आप चाहें तो उसे अभी ही हटा लीजिये - लिंक की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।

    हिन्दू धर्म के अनुयायियों से यह अपील इसीलिए की , क्योंकि वे तो "उदारता" और "अकट्टरता" के जोश में यह सब लिखते हैं, लेकिन उनकी लिखी बात को
    "हिन्दू भाई ऐसा सोचते हैं"
    का जामा पहना कर पेश किया जाता है । इस पोस्ट पर आई मिश्र जी की टिपण्णी का भी एक भाग आपने "अरविन्द मिश्र जी कहते हैं" कह कर पोस्ट लगाईं है ।
  4. @@ हमारे लिए भी आपकी यह पोस्ट आश्चर्य पैदा कर रही है। अभी थोड़े दिन पहले आप स्वयं वैदिक यज्ञों और मंदिरों में पशुबलि की आलोचना कर रही थीं और ऐसा करने वालों से उसे छोड़ने की अपील भी कर रही थीं।
    क्या हिन्दू धर्मग्रंथ आपको ऐसी आलोचना और अपील करने का अधिकार देते हैं ?

    ----
    - हाँ - देते हैं ।
    और हाँ , अपने ही धर्म को समझने के लिए मुझे आपकी सलाह की आवश्यकता नहीं - मेरे पास अपने स्रोत हैं | आभार ।
  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
    --------------------------------------------------------------
    हटा दी गयी टिप्पणी यह है-
    आदरणीया, सलाह और प्रश्न में अंतर होता है और उसके अंत में प्रश्न चिन्ह भी बना होता है। हमने आपको सलाह नहीं दी है बल्कि जिस विषय पर आपने पोस्ट लिखी है, उस विषय पर आपसे प्रश्न किया है।
    अगर आप अपने धार्मिक महापुरूषों की रीतियों की आलोचना का अधिकार स्वयं के लिए मानती हैं और उसका स्रोत बताना भी उचित नहीं समझती हैं तो आज हरेक यही कर रहा है। दूसरे भी आपसे यही कहेंगे।
    आप स्वयं सोचिए कि आप अपनी अपील के खि़लाफ़ ही क्यों जा रही हैं ?

    हमारे ब्लॉग पर एक नारी ब्लॉगर अपना नाम देने पर बड़ा विवाद पैदा कर चुकी है। ऐसी संभावना को शून्य करने के लिए ही हमने आदरणीय मिश्रा जी का नाम देकर लिंक दिया है। 
    सादर !

Wednesday, February 27, 2013

अग्नि की खोज से पहले हिन्दू मुर्दे को दफ़न किया करते थे

शगुन गुप्ता की पोस्ट '

मौत से भी बुरे हैं रीति रिवाज़ !'

पर एक चर्चा 


Dr. Anwer Jamal का कहना है:

February 24,2013 at 03:18 PM IST
अच्छी पोस्ट के लिये शुक्रिया.
अग्नि की खोज के बाद मनुष्य ने दाह संस्कार करना सीखा। अग्नि की खोज से पहले हिन्दू मुर्दे को दफ़न किया करते थे। बच्चे और सन्यासी को आज भी हिन्दुओं में दफ़न किया जाता था। इसलाम में भी मुर्दे को दफ़न ही किया जाता है और इस तरह का कोई संस्कार नहीं किया जाता।
स्मृति आत्मा में सुरक्षित रहती है। खोपड़ी में घी भर कर जलाने से मुर्दे की स्मृति नष्ट नहीं होती। इसलाम में औरत को बहुत सम्मान से पूरा ढक कर दफ़न किया जाता है। मरने के बाद भी मर्द उसके नग्न शरीर को हाथ नहीं लगाता। मुर्दे की जान पलंग पर ही निकलने देते हैं और उसके अंगों को भी नहीं तोड़ा जाता। एक मुसलमान को जीवन के अंतिम अवसर पर पूरा सम्मान मिलता है और मरने के बाद भी। दफ़न आर्थिक रूप से भी सस्ता पड़ता है। मुर्दे को जलाने में 10 हज़ार रूपये से ज़्यादा ख़र्च आ जाता है जो कि ग़रीब आदमी को क़र्ज़दार बना देता है।
वेदों में दफ़न करने का ज़िक्र भी मौजूद है और आत्मा के इस जगत में आवागमन का कोई वर्णन नहीं है। अग्नि की खोज ने हिन्दुओं के सारे संस्कारों को बदल कर रख दिया है। इससे धर्म का स्वरूप बदल गया है। इसलाम धर्म का मूल स्वरूप है। जिसे इज़्ज़त से मरने की तमन्ना हो, वह इसलामी तरीक़े से दफ़न होने की वसीयत करके जाए।
देखें यह लिंक -
http://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_funeral

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(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- 
Abhi का कहना है:

February 24,2013 at 04:26 PM IST
गुरु जी, अग्नि की खोज से पेहले भी इस्लाम था क्या?
जवाब दें

(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- 
Mangoman Hindustani का कहना है:

February 24,2013 at 10:56 PM IST
डॉक्टर जमाल, जिन्हे सिर्फ और सिर्फ एक भारतीय नागरिक का जीवन और एक भारतीय की ही म्ररत्यूं चाहिये उन्हे कोनसी वसीयत करनी चाहिये? वैसे मेरे विचार से तो ये बात ज्यादा मायने रखती है कि आपके जीवन का अंत चाहे कैसे भी हुआ हो परंतु आप देश के गद्दार की मौत तो नही मारे गये? ना कि आपका अंतिम संस्कार कैसे हुआ? कुछ हिन्दू लोग तो आपने शव को नदी में प्रवाहित भी करते है ताकि जलीय जीवों का भी कुछ भला हो. सर जी, कमियां हर धर्म और मजहब में है जरूरत उनमे सुधार करने की है ना की अपने को दूसरो से महान दिखाने की. क्या आप बता सकते है कि शहीद भगत सिंह के अंतिम संस्कार के तरीके से उनकी महानता पर कोई फर्क पड़ा?
जवाब दें

(Mangoman Hindustani को जवाब )- 
Dr. Anwer Jamal का कहना है:

February 27,2013 at 01:19 PM IST
देश का ग़ददार देश को नुक्सान पहुंचाता है। अगर आप देश को नुक्सान पहुंचाकर मरना नहीं चाहते तो आप देख लीजिए कि वेदों में दफ़न करने और जलाने की दोनों विधियां मौजूद हैं। चिता जलाने में ख़र्च भी ज़्यादा है और इसमें पेड़ भी कटते हैं और ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ती है। जलने से मनुष्य मांस और चरबी व घी जलने की दुर्गंध भी दूर दूर तक फैलती है। राख को नदी में बहाने से यह भी डर है कि कहीं वह बहकर दुश्मन देश की सरहद में न पहुंच जाए और हमारे शरीर की राख पानी में मिलकर उस देश की फ़सल को पुष्ट करे और उस अन्न को खाकर विदेश के सैनिक और आतंकवादी ताक़त पाएं और हमारे देश पर हमला करके उसे नुक्सान पहुंचाएं।
इस नुक्सान से बचने का आसान तरीक़ा केवल दफ़न करना है। शरीर दफ़न होकर अपने ही देश की भूमि का अंग बनेगा। वह जीवों और पेड़ों की खाद्य सामग्री बनेगा। मरकर भी वह हमारे देश की इकोलॉजी को समृद्ध बनाएगा। ताज़ा हवा में सांस लेकर हमारे सैनिक और देशवासी ताक़तवर बनेंगे और दुश्मनों के दांत खटटे करेंगे।
अतः अगर आप एक वफ़ादार की भांति मरना चाहें तो आपका अंतिम संस्कार बहुत महत्व रखता है और दफ़न होना देश के प्रति आपकी वफ़ादारी को प्रमाणित करता है।

जवाब दें

(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- 
nirmal का कहना है:

February 24,2013 at 08:34 PM IST
सब से अच्छा पारसियों मे है जो मरने के बाद भी जीव जन्तुयो के काम आते है जो जीवन भर कुदरत के खिलाफ उनको खाते रहे.
जवाब दें

(nirmal को जवाब )- 
Dr. Anwer Jamal का कहना है:

February 27,2013 at 01:05 PM IST
अगर जीवों के खाने के कारण अंतिम संस्कार का तरीक़ा बेहतरीन कहला सकता है तो क़ब्र में भी लाश को जीव ही खाते हैं। मृतक का सम्मान भी बना रहता है।

Friday, February 22, 2013

सूर्य नमस्कार हिन्दू धर्म के किस ग्रंथ में पाया जाता है और इसका प्रचलन हिन्दू समाज में कब हुआ ?


सूर्य नमस्कार के विषय में आदरणीय ब्रजकिशोर जी हमारा संवाद हुआ। उसे यहां पेश किया जा रहा हैं उनकी पोस्ट का लिंक यह है-

सेक्स शिक्षा धर्मनिरपेक्ष तो सूर्यनमस्कार क्या ?


Dr. Anwer Jamal का कहना है:
February 21,2013 at 05:47 PM IST
लोगों की हालत यह है वे बात की हक़ीक़त को नहीं जानते और विरोध करने लग जाते हैं और ऐसा ही समर्थन करने वाले भी करते हैं.
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- ब्रजकिशोर सिंहका कहना है:
February 21,2013 at 07:42 PM IST
मित्र,आपकी बात सही है लेकिन सिर्फ वैसे लोगों के लिए जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं और सिर्फ समर्थन के लिए समर्थन या विरोध के लिए विरोध करते हैं और जो लोग निष्पक्ष होकर मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं करते.
जवाब दें
(ब्रजकिशोर सिंह को जवाब )- Dr. Anwer Jamalका कहना है:
February 22,2013 at 01:11 PM IST
मित्र, अगर लोग किसी बात को गुण दोष के आधार पर माना करते तो फिर वे अच्छे नेताओं को संसद में भेजते।
अगर आप भी गुण दोष के आधार पर आसन करते तो सूर्य नमस्कार न करके नमाज अदा करते।
सूर्य नमस्कार में सूर्य को नमस्कार है और नमाज में अजन्मे परमेश्वर को नमन है और योग का उददेश्य परमेश्वर से जुड़ना है न कि सूर्य से जुड़ना। सूर्य से लाभ उठाने के लिए धूप में खेलना पर्याप्त है। पातंजलि के योग दर्शन में एक सुखासन के अलावा दूसरा आसन तक नहीं है।
इसके बावजूद आप नमाज नहीं पढेंगे।
क्या यही है गुण दोष का विवेचन करना ?
मेरा उददेश्य आलोचना करना या इल्ज़ाम देना नहीं है। योग और स्वास्थ्य का उददेश्य से सूर्य नमस्कार से पूरा होता हो तो वह किया जाए और उससे वह उददेश्य पूरा न होता हो तो फिर सूर्य नमस्कार क्यों किया जाए ?
मैं प्राणायाम करता हूं।
मैंने योग में औपचारिक प्रशिक्षण के लिए साढ़े तीन वर्ष ख़र्च किये हैं और वैसे पिछले 30 लगाए हैं। शवासन आदि काफ़ी लाभदायक हैं लेकिन सूर्य नमस्कार मनुष्य को वस्तुओं के सामने झुकाता है। वस्तुओं को नमन करना इसलाम में नहीं है।
आप सूर्य नमस्कार की हिमायत कर रहे हैं लेकिन आप यह भी नहीं बता सकते कि यह हिन्दू धर्म के किस ग्रंथ में पाया जाता है और इसका प्रचलन हिन्दू समाज में कब हुआ ?
जानते हों तो बताने की कृपा करें।
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- ब्रजकिशोर सिंहका कहना है:
February 22,2013 at 02:17 PM IST
मित्र मैं तो पहले ही कह चुका हूँ जिनका सूर्यनमस्कार में विश्वास नहीं हो वे इसे सिर्फ व्यायाम समझ कर कर लें फायदा ही होगा। जहाँ तक नमाज पढ़ने का सवाल है तो ऐसा करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि मैं भी मानता हूँ कि ईश्वर मूलतः निराकार और निर्गुण है। सूर्य नमस्कार किस पुस्तक में वर्णित है अभी मैं नहीं बता सकता क्योंकि अभी मैंने डेरा बदला है और किताबें अस्त-व्यस्त है।



Tuesday, February 19, 2013

हमारे देश में आतंकवाद किसने पनपाया ?


देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर भी राजनीति की जा रही है। यह ग़लत है लेकिन ग़लत काम करने वाले ही सदा से राज करते आए हैं।
मुजरिमों को सज़ा देने में भी राजनीति की जा रही है तो फिर न्याय कैसे होगा ?
अन्याय होगा तो आक्रोश पैदा होगा। आक्रोश फूटेगा तो फिर सुरक्षाकर्मी मरेंगे और तब न्याय के लिए जनता में से ही कुछ को सज़ा सुना दी जाएगी। ये मरे या वह, जो अन्याय करता है, वह महफ़ूज़ रहता है। आतंकवाद का मूल यही है। मूल सुरक्षित है। मूल की सुरक्षा हमारा कर्तव्य बना दिया गया है। ऐसा न किया तो संदिग्ध बन जाएगा।
राजनेता बड़े खिलाड़ी हैं। ये राजनीति भले ही दो कौड़ी की करते हों लेकिन अक्ल बहुत ऊँची रखते हैं। 
हमारे देश में आतंकवाद नहीं था। इसे किसने पनपाया ?
जब भी इस सवाल का जवाब ढूंढा जाएगा तो किसी न किसी राजनेता का नाम ही सामने आएगा। आतंकवाद के असल ज़िम्मेदार को कभी सज़ा सुनाई गई हो, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।
प्यादे मारे जा रहे हैं, शाह सलामत है।
-----------------
यह कमेंट आदरणीय महेन्द्र श्रीवास्तव जी की पोस्ट पर दिया गया है-

Tuesday, February 12, 2013

जन को सज्जन बनाने वाला केवल धर्म है Dharm


भाई ! असल बात यह है कि नर नारी अपने पैदा करने वाले को भूल चुके हैं। उसे भूलने के बाद कौन किसका हक़ अदा करेगा और क्यों ?
हरेक अपने मन की चाही करेगा और कर ही रहे हैं।
ये सब अपनी बग़ावत की सज़ा भुगत रहे हैं।
इनकी अक्लमंदी इनके किसी काम नहीं आ रही है।
जो जितना पढ़ा लिखा है, आज वह उतना ही बड़ा हैवान है।
जैविक बम बनाने वाले वैज्ञानिक सब पढ़े लिखे हैं।
करो अपनी मनमानी और फिर भुगतो उसका परिणाम।
आपके पूरे लेख में ईश्वर अल्लाह का नाम नहीं आया।
उसका आदेश नहीं आया।
आप केवल सही बात बताएं।
यह न देखें कि लोग तो यह बात नहीं मानेंगे।
नहीं मानेंगे तो न मानें।
उनके मानने को देखकर उनके सामने फ़िलॉसफ़ी न परोसिए।
कल्याण दर्शन से नहीं धर्म से होता है।
धर्म का आम करो।
जन को सज्जन बनाने वाला केवल धर्म है।
हम धर्म को ही समस्या का हल मानते हैं।
यह कमेन्ट निम्न पोस्ट पर -
प्रस्तुतकर्ता DINESH PAREEK 

Friday, February 1, 2013

हमारे देश का नाम भारत क्यों पड़ा?

आदरणीय डा. अरविन्द मिश्रा जी, 
मज़े की बात यह है कि अरब लोग अपनी सुन्दर और प्यारी बेटियों का नाम हिंदा रखते थे . इस नाम की धातु अरबी में 'इंद' है, जो बहुत से रहस्य अनावृत करती है लेकिन अरबों के नज़रिये को किन्हीं वजहों से हमेशा नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है.
उस रहस्य को जानने वाले इस नेट जगत में केवल हम हैं. इसीलिये हमने हमेशा कहा है कि हम भौगोलिक दृष्टि से भी हिन्दू हैं और धर्म की दृष्टि से भी. जो भारत देश से अरबों के प्यार का कारण नहीं जानता वह हमारी तरह कभी नहीं कह सकता.
आपकी पोस्ट बात को काफ़ी सुलझा रही है. महर्षि स्वंभू मनु के बारे में थोड़ा और बता देते कि उनकी पत्नी का नाम आद्या है और अथर्ववेद 11,8,7 में यह भी बताया गया है कि मन्यु और आद्या का विवाह वर्तमान पृथ्वी पर नहीं हुआ था बल्कि विगत पृथ्वी पर हुआ, तो यह गुत्थी और ज़्यादा सुलझ जाती.
पूर्वजों को पहचाने बिना उनकी महानता और अपनी प्राकृतिक एकता को पहचानना संभव ही नहीं है. आज हालत यह हो चुकी है कि अधिकतर भारतीय भरत जी को ही नहीं पहचानते . फिर उन्हें मनु का क्या पता कि कौन मनु स्वयंभू थे और कौन से मनु विवस्वत थे ?
देश का महान दुर्भाग्य है कि अपने पूर्वज भरत के बारे में लिख दिया कि वे पागलों की तरह व्यवहार करते थे.
अपने पूर्वजों को हम ढंग से आदर तक न दे पाये.

धन्यवाद.
यह कमेंट देखिये निम्न लाजवाब पोस्ट पर-
प्रस्तुतकर्ता Dr. 
 इस देश का नाम भारत क्यों पड़ा?
 ऋग्वेद में 'भरतों' का बहुत बार उल्लेख है!  दरअसल मनु के वंश में एक प्रतापी राजा भरत हुआ है -मत्स्य पुराण में उल्लेख है -'मनुर्भरत उच्यते' -मनु को ही भरत की संज्ञा दी गयी है . यह कहा गया -'वर्ष तत भारतं स्मृतं' अर्थात मनु से ही भारत नाम आया है . दरअसल ऋग्वेद में जो 'भरताः' नाम  आया है वह मनु के वंशज का है न कि दुष्यंत के बेटे भरत का . आर्यों की दो शाखाएं हैं सूर्यवंशी आर्य और चन्द्र वंशी आर्य .वे भरत जिनके नाम  पर इस देश का नामकरण हुआ उनका सम्बन्ध सूर्यवंशी आर्यों से है न कि चंद्रवंशी आर्यों से ...दुष्यंत चंद्रवंशी आर्य हैं .मजे की बात यह भी है कि राम के भाई भरत भी हैं मगर उनके नाम पर भारत का नाम पड़ा यह भी कहीं उल्लिखित नहीं है।

आतंकवाद कभी इस्लामी नहीं हो सकता


आदरणीय भाई विजय कुमार सिंघल अनजान जी ! अगर वैदिक आतंकवाद या भगवा आतंकवाद कहना अनुचित है तो फिर आप इस्लामी आतंकवाद किस आधार पर कह सकते है ?
‘इस्लामी आतंकवाद‘ एक ग़लत शब्द है
इस्लामी आतंकवाद यह एक शब्द है जिसे पश्चिम के सूदख़ारों ने इस्लाम को बदनाम करने के लिए दिया और दुनिया भर के सूदख़ोरों ने इसे दुहराया। यह लेख पढ़कर पता चला कि दीन की सही समझ न रखने वाले ऐसे लोग भी इसकी चपेट में आ गए हैं जिनके नाम मुसलमानों जैसे हैं। 
‘इस्लाम‘ का एक अर्थ सलामती और शान्ति है। 
‘इस्लामी आतंकवाद‘ का अनुवाद होता है ‘शान्तिवादी आतंकवाद‘।
क्या दुनिया में ‘शान्तिवादी आतंकवाद‘ संभव है ?
जहां शान्ति होगी वहां आतंकवाद नहीं हो सकता और जहां आतंकवाद होगा वहां शान्ति नहीं हो सकती।
अतः ‘इस्लामी आतंकवाद‘ एक ग़लत शब्द है। अपने खंडन के लिए यह शब्द ख़ुद ही गवाह है। 
लेखक को इस बात पर संजीदगी से विचार करना चाहिए।
यह कमेंट देखिये निम्न लेख पर -

हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकते !

विजय कुमार सिंघल 'अंजान'   Sunday January 27, 2013

Monday, January 28, 2013

इसलाम कहता है कि जो लड़का गर्भाधान में प्राकृतिक रूप से सक्षम है, वह बालिग़ है।


दिल्ली के जघन्य रेप कांड के सबसे बड़े शैतान को कल अदालत ने नाबालिग़ क़रार दे दिया है।
मनुष्य की बुद्धि अपूर्ण है और ईश्वर की पूर्ण। ईश्वर ने मनुष्य बनाया है तो उसके लिए विधि-विधान भी बनाय है। मनुष्य ने उसके विधि-विधान को नकार दिया और अपने लिए अपनी बुद्धि से कुछ जुगाड़ किया। इसीलिए उसने प्राकृतिक रूप से गर्भाधान में सक्षम बालिग़ व्यक्ति को भी बालक ही बताया। यह ग़लत है। इस बात को ग़लत केवल इसलाम कहता है और कुछ लोगों को इसलाम के नाम से ही चिढ़ है। इसलाम कहता है कि जो लड़का गर्भाधान में प्राकृतिक रूप से सक्षम है, वह बालिग़ है।
आज दुनिया भी यही मानना चाहती है। इसलाम जन मन की स्वाभाविक इच्छा है। इसे दबाया जाएगा तो दुनिया में कभी न्याय नहीं हो पाएगा। 


इसलाम का नाम लेकर किसी बादशाह ने आपको इतिहास में कभी कुचल डाला है तो उस बादशाह का विरोध कीजिए। न कि नफ़रत और प्रतिशोध में अंधे होकर आजीवन उसके धर्म का भी विरोध करते रहें ,चाहे वह आपकी समस्याओं का वास्तविक हल ही क्यों न हो !

कृप्या विचार कीजिए, इसी में आपके लोक परलोक की भलाई है।

यह कमेंट निम्न पोस्ट पर दिया गया है, जिसका लिंक व शीर्षक यह है-
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Monday, January 14, 2013

"इंद्र -अहिल्या प्रसंग, कितना सही ?" के लेखक केशव जी से बातचीत

Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 11,2013 at 11:49 AM IST
मोहित जी ! असल बात यह है कि न तो आप इंद्र के पद को जानते हैं और न ही स्वर्ग की प्राप्ति के तरीक़े को।
स्वर्ग केवल सत्कर्मियों को ही प्राप्त होता है और उनमें जो सबसे श्रेष्ठ होता है, वह इंद्र कहलाता है। ऐसा पुराणों में वर्णित है।
सभी स्वर्गवासियों में सबसे ज़्यादा अच्छे इंद्र को आप अहंकारी और घमंडी कह रहे हैं ?
ये बुराईयाँ इन्द्र में नहीं थीं बल्कि उनमें थीं जिन्होंने इन्द्र का चरित्र चित्रण किया है। इसलिए अपना ज्ञान सुधारो,
‘‘इन्द्र को इल्ज़ाम न दो।‘‘
जब आपको अपने ही धर्म-नियम का पता नहीं है तो इसलाम के बारे में आप जो भी ग़लत बात कह दें, बिल्कुल नेचुरल है।
आपने कमेंट किया,
आपका शुक्रिया !
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 12:36 PM IST
प्रणाम अनवर साहब ,
सर जी, मुझे दुख हुआ की आप आये भी तो उखड़े मन से ...कॉपी पेस्ट का सहारा लेके :)
आप सीधा प्रशन मुझ से पूछते तो मुझे बड़ी खुशी होती ....
खैर , आप ने टिप्पणी की है तो उसका जबाब देना ही पड़ेगा बेशक उसमें प्रश्न जैसा कुछ नही है |
स्वर्ग/ जन्नत या नर्क/ दोज़ख जैसी कोई चीज नही होती ....अगर है , स्वर्ग ईरान के पास था और आपकी जन्नत सीरिया के पास थी ...जन्नत के बारे में आप मेरा लेख " क्या है जन्नत की हक़ीक़त" पढ सकते हैं |
और स्वर्ग के बारे में इस लेख में बताया ही गया है |
वसतीवक् रूप में ना कोई स्वर्ग है और ना कोई नर्क ....हाँ इस बात से सहमत हूँ की इंसान को कल्पनिक स्वर्ग की चिंता ना कर के केवल सद्कर्म करने चाहिये , यही उसकी ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होगी .....बेकार के पूजा पाठ , नवाज़ पढ के, लौडस्पीकर में दिन रात शोर मचा के, हज़ - तीर्थ करके , टीका या आधी टोपी पहन के पाखंड परने या दिखावा करने की कोई जरूरत नही |
मैने कहा ना इन्द्र केवल पोस्ट थी, और अच्छे इन्द्र भी, इसलिये वो घमंडी और अहनाकारी भी हो सकते हैं|
आपकी इस बात से सहमत की अधिक दोष उनका है जिन्होने इन्द्र ही क्या कई और महापुर्षो के चरित्र का गलत चित्रण् किया |
और आप जो कह रहे हैं की मुझे अपने ही धर्म नियम का पता नही ....तो हो सकता है की आप सही कह रहे हैं ....कोई भी ए दवा नही कर सकता की वो अपने धर्म के पूर्ण नियम को जनता हो या उसे सभी ग्रंथो का ज्ञान हो |
पर यही बात आप पर भी लागू होती है क्या आप क़ुरान और अल्लाह या मुहहमद साहब को पूरा जानते हैं ?
यदि हाँ तो क्या में आप से कुछ प्रश्न पूच सकता हूँ ?
जवाब दें
(केशव को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 01:43 PM IST
आपने अपने ब्लॉग में सत्यकाम का उधारण दिया है , बेशक , वैदिक काल में स्त्री पुरुष के सम्बंध खुले हुये थे | पुरुष की तरह स्त्री को भी ए अधिकार था की वो अपनी पसंद के पुरुष के साथ सम्बंध बना सके|
ए एक तरह से स्त्री को पुरुष के समकक्ष बराबर का अधिकार देने की बात थी |
महाभारत के आदि पर्व , अध्याय 122 में पाण्डु कुन्ती से कहते हैं की " है सुन्दरी, पूर्व काल में स्त्रियों को कुछ रोकटोक ना थी, वे भी पुरुषो की तरह स्वक्षन्द थी किसी को भी अपना साथी चुनने और भोग विलास करने में "
बेशक आज ए गलत लगे पर उस समय ए स्त्रीपुरुष को समन अधिकार देने जैसा था |
पर इस्लाम में क्या है .....पुरुष तो 31 पत्नियाँ रख सकता है पर स्त्री घर के बाहर भी निकले तो सर से पांव तक कपड़ा लपेट कर |
यंहा तक की जिस मुहम्मद साहब की आप लोग ए गुण गाते हो की उन्होने स्त्रियों को समन रूप से अधिकार दिया उन्ही की अपनी पत्नियों को ए अधिकार नही था की वो किसी बाहर के मर्द से बात भी कर सके
देखें- क़ुरान , सुरे अहज़ब की 55 वी आयत
फिर आप किस मुंह से सत्यकाम का उधारण दे रहे हैं ?
जवाब दें
(केशव को जवाब )- Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 11,2013 at 05:30 PM IST
सत्यकाम की बात शुरु करके आपने संदर्भ दिया महाभारत का.
यह नहीं चलेगा.
सत्यकाम की बात करें तो आप सत्यकाम की कथा संस्कृत में श्लोक दिखा कर उसका अनुवाद दें या केवल अनुवाद दें लेकिन दें ग्रंथ से ही.
तब उसे प्रमाण माना जायेगा.
टालू किस्म की बातचीत से न आपका भला है और न ही हमारा.
आप ऐसा कर पाएँ तो फिर चाहे जो पूछिये हम जवाब देंगे.
(केशव को जवाब )- Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 11,2013 at 05:22 PM IST
प्यारे भाई ! जो वचन हमने कहीं एक बार लिखा है उसी को दोबारा लिखने से उसका वज़न कम नहीं होता.
हमने कब कहा है कि इन्द्र एक पद नहीं है ?
हरेक कल्प का इन्द्र अलग होता है .
क्या आप बताएंगे कि एक कल्प में कितने वर्ष होते हैं ?
खरबोब खराब वर्ष ,
है न ?
अगर इन्द्र होता है तो वह खरबों वर्ष शासन करता है.
अब आप बताइये कि अगर इन्द्र धरती का कोई राजा था तो क्या कल्प तक उसके द्वारा राज्य करना संभव है ?
इसी बात से स्वर्ग धरती से अलग प्रमाणित हो जाता है.
आपको अपने धर्म के बुनियादी नियम क़ायदों का पता नहीं है.
हमारे बारे में आपने पूछा है तो हम बता दें कि हमें अपने धर्म के बुनियादी नियमों का पता है और हम उनका पालन करते हैं.
न पता होता तो हम उनका पालन कैसे कर पाते ?
इतनी जानकारी रखना अनिवार्य और फ़र्ज़ होती है हरेक मुस्लिम पर .
आपके यहाँ भी इसी तरह की व्यवस्था थी लेकिन उसे अब भुला दिया गया.
हरेक अपनी मौज का मालिक है, चाहे पता करे या न करे.
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 07:34 PM IST
प्यारे बढे भाई साहब ,
लगता है की आप बात को समझे नही , हमने कहा है की इन्द्र एक पदवी थी...जैसे कभी सम्राट की पदवी होती थी |
और इन्द्र मनव था या यूं काहे की आदि मनव था इस लिये ए मानना की कोई मनुष्य कल्प तक शाशन कर सकता है ए संभव नही है |
आप मेरे लेख को अगर ध्यान से पढेंगे तो उसमें ए कहा गया है की इन्द्र आदि मानव था, देव , दानव, दैत्या ए मनुष्य थे ...जिनके नाम से आगे वंश चला |
इन्द्र को कल्प वर्ष तक शाशन करने की कल्पना कर लि गयी जैसे की हनुमान को बंदर, जामवन्त को भालू , वरहा को वरहा देव बना के उसकी अजीब सी तस्वीर बना दी ...आदि |
इसी प्रकार स्वर्ग और नर्क भी कल्पना की उडन है ....अगर ए थे भी तो वैसे ही थे जैसा मैने लेख में बताया है ...ईरान के आसपास का इलाका स्वर्ग लोग कहतलता था |
आप कल्पनिक बातो पर शायद इसलिये विश्वास कर रहे हैं क्यों की क़ुरान में भी ऐसी ही कल्पनिक बाते ( स्वर्ग नर्क, जिन्‍न) आदि का वर्णन है |
आप जानबूझ कर मानने से इंकार कर रहे हैं क्यों की इससे आपके क़ुरान को भी धक्का लगेगा |
हमे क्या पता है ए हम अच्छी तरह से जानते हैं ....
आप बताइये की आप कितने इस्लाम की बुनियादी बातो का पालन कर रहे हैं ?
अगर आप मानते हैं की आप इस्लाम की बुनियादी बातो का पालन कर रहे हैं ...तो फिर क़ुरान की बातो का भी पालन कर रहे होंगे क्यों की बिना क़ुरान के इस्लाम का कोई अस्तित्व नही |
क़ुरान ने खुद यह बात स्पस्थ कर दी है की इस्लाम केवल अरब के लिये आया था , और किसी मुल्क के लोगो के लिये नही
क़ुरान की 42 वी सुरा( सुरे शूरा) में कहा गया है की अरबी क़ुरान ने तुम्हारी तरफ से नाज़िल किया है ताकि तुम मक्के के रहने वालो को और जो लोग मक्के के आस पास बस्ते हैं उन को पाप से डराओ '
यानी केवल माका और उसके आस पास के लोगो के लिये थी क़ुरान
सुरे यासिन की पंचवी आयत में भी कहा गया है की "तुम ऐसे लोगो को डराओ जिन के बाप दादे नही डराए गये , इस से वे गाफिल हैं "
इस तरह से और भी आयते हैं जो ए कहती हैं की क़ुरान का संदेश केवल अरब के लिये था .. . जब क़ुरान का सदेश केवल अरब के लोगो के लिये था तो आप हिन्दुस्तान में पैदा होके कैसे उसके नियम को फॉलो कर रहे हैं? भारत के लिये तो क़ुरान थी ही नही |
और आप भी क़ुरान को भुला दीजिये क्यों की ए अब ए आउट डेटिड हो गयी है .....1400 पहले की प्रस्थितियाँ और थी.
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 11,2013 at 09:15 PM IST
अनवर साहब, आप जहां से ब्लॉग को कॉपी पेस्ट कर के लाये हैं क्या उन्होने ऐसा कोई श्लोक या अनुवाद दिया जिससे ए सिद्धा होता हो की जाबली का ब्लातकार हुआ था ?
आप ने केवल कॉपी पेस्ट किया अपनी अक्ल नही लगाई ....आप संस्कृत के अनुवादया श्लोक से ए सिद्धा कर दीजिये की जाबली का" ब्लातकार" हुआ था तो में भी ए सिद्धा कर दूंगा की उसका ब्लातकार नही हुआ था | ध्यान रहे" ब्लातकार" का मतलब होता है जबरन .....आप चाहे तो जिसका ब्लॉग कॉपी पेस्ट करके लाये हैं उससे भी सहयता ले सकते हैं ....
और इतना बता दूं ...आपकी सुविधा के लिये ...की सत्यकाम का प्रसंग चांद्योग उपनिषद ने आया है |...बाकी आप सिद्धा कीजिये की जाबली का ब्लातकार हुआ था ..बाकी मैं सिद्धा कर दूंगा :)



























(केशव को जवाब )- Dr. Anwer Jamal का कहना है:
January 14,2013 at 05:15 PM IST
आर्यों के राजा को इन्द्र कहा जाता था. वह ईरान में रहता था. आज ईरान का शासक और वहां की प्रजा मुस्लिम है तो क्या यह मान लेना चाहिये कि आर्यों का राजा इन्द्र और आर्य मुस्लिम हो चुके है ?
क़ुर्'आन 42: 7 को ध्यान से पढिये-
और (जैसे हम स्पष्ट आयतें उतारते है) उसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर एक अरबी क़ुरआन की प्रकाशना की है, ताकि तुम बस्तियों के केन्द्र (मक्का) को और जो लोग उसके चतुर्दिक है उनको सचेत कर दो और सचेत करो ...
इस आयत में मक्का के चारों और की बस्तियों के लोगों को सचेत करने के लिये कहा जा रहा है भाई . अगर आपने दुनिया के नक़्शे में मक्का को देखा होता तो आप जानते कि 'चारों ओर' मे सारी दुनिया आ जाती है. लिहाज़ा क़ुर्'आन पर ऐतराज़ सिर्फ न जानने की वजह से किया जाता है.
जवाब दें
(Dr. Anwer Jamal को जवाब )- केशव का कहना है:
January 14,2013 at 08:12 PM IST
प्रणाम अनवर साहब,
इन्द्र तो आदिपुरुष था , उसकी संताने या वंसज कब के मर खप गये होंगे, वैदिक धर्म तो कभी का खत्म हो गया था | ए तो प्रलय से पहले की बात है उसके बाद ना जाने कितने ही धर्मो में बदला होगा ईरान ...इस्लाम से पहले जोरोस्ट्रियान थे उसे पाले कोई और ..उससे पहले कोई और ....अब क्या पता आने वाले कुछ सदियों में इस्लाम भी ना रहे वहा पर ....इसमें इतना गर्व करने की कोई बात नही जैसा आप इस्लाम को लेके कर रहे हैं |
हा हा हा ...और सही सही बताइये की क्या आप वाकई डाक्टर हैं या फिर कोई मदरसे के मौलवी ?
प्रथ्वी अण्डाकार हैं ना की कागज पर खिचे किसी गोला जिसका केन्द मक्का हो |
चलिये ए बताइये की मुहम्मद साहब को कैसे पता की मक्का ही प्रथ्वी का केन्द्र है ...ओहो क्षमा कीजिये गा मैं तो भूल गया ...स्वयं क़ुरान यानी मुहम्मद जी के अनुसार अल्लाह ने प्रथ्वी 6 दिन में बना दी और पर्वत इस लिये गाड़ दिये ताकि पृथ्वी हिले ना ....फिर तो आपकी बात माननी पड़ेगी की मक्का वाकई प्रथ्वी का केन्द्र है क्यों जब प्रथ्वी को अल्ला ने बनाया तो इस तरह बनाया की मक्का उसके केन्द्र में आये :
फिर तो आपकी बात मानाने पड़ेगी :)
पर फिर इधर भी गडबड है क्यों की मक्का पहले ( लगभग 5 शताब्दी ) में पगानो का मंदिर था जिसकी 360 मूर्तियाँ आज भी उधर हैं ..मुहम्मद जी ने मूर्तियों तोड दिया था... .उससे पहले मक्का ग्रीक के कब्जे में थी
इसका मतलब ए हुया की जिसे आप मुहमम्द साहब के अनुसार प्रतवी का केन्द्र कह रहे हैं वो वास्तव में शिव मंदिर का केन्द्र है ( देखे प्रोफेसर पी के ओंक )
और जरा उस बात पर भी गौर कीजिये जिसमें आप ए कह रहे हैं की चारो दियहाओं का मतलब पूरी दुनिया है |












































प्यारे भाई केशव ! ठहाके मार कर हंसना गंभीर लोगों का लक्षण नहीं होता .
आप इन्द्र को मानते हैं लेकिन कल्प को नहीं मानते क्योंकि इस से आपको धरती से अलग एक लोक मानना पड़ेगा.
आप इन्द्र को उपाधि और ईरान के लोगों को आर्य जाति का सदस्य मानते हैं लेकिन हमने कहा कि वे आज मुस्लिम हैं तो आप कह रहे हैं कि इन्द्र और आर्य सब मर खप गये होंगे .
आप इतनी बड़ी बात कह रहे हैं और बिना किसी प्रमाण के ?

दूसरी बात -
जो चीज़ गोल न हो तो क्या उसका कोई केन्द्र नहीं होता ?
क्या भारत गोल है जो दिल्ली को इसका केन्द्र माना जाता है ?

पूरी पृथ्वी का केन्द्र मक्का है, इसे वैज्ञानिक बता रहे हैं और कह रहे हैं कि
काबा के मुताबिक चले दुनिया भर की घडियां
हैरत मत कीजिए,सच्चाई यही है कि दुनिया में वक्त का निर्धारण काबा को केन्द्रित करके किया जाना चाहिए क्योंकि काबा दुनिया के बीचों बीच है। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर यह साबित कर चुका है। सेन्टर का दावा है कि ग्रीनविचमीन टाइम में खामियां हैं।
दुनिया में वक्त का निर्धारण ग्रीनविच रेखा के बजाय काबा को केन्दित रखकर किया जाना चाहिए क्योंकि काबा शरीफ दुनिया के एकदम बीच में है। विभिन्न शोध इस बात को साबित कर चुके हैं। वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि ग्रीनविच मीन टाइम में खामी है जबकि काबा के मुताबिक वक्त का निर्धारण एकदम सटीक बैठता है। ग्रीनवीच मानक समय को लेकर दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है और और कोशिश की जा रही है कि ग्रीनविचमीन टाइम पर फिर से विचार किया जाए।ग्रीनविचमीन टाइम को चुनौति देकर काबा समय-निर्धारण का सही केन्द्र होने का दावा किया है इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने। रिसर्च सेन्टर ने वैज्ञानिक तरीके से इसे सिध्द कर दिया है और यह सच्चाई दुनिया के सामने लाने की मुहिम में जुटा है। वे कॉन्फे्रस के जरिए दुनिया को यह हकीकत बताने जा रहे हैं। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के डॉ। अब्द अल बासेत सैयद इस संबंध में कहते हैं कि जब अंग्रेजों के शासन में सूर्यास्त नहीं हुआ करता था, तब ग्रीनविच टाइम को मानक समय बनाकर पूरी दुनिया पर थोप दिया गया। डॉ। अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का में चुम्बकीय क्षमता शून्य है।
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इंद्र -अहिल्या प्रसंग - कितना सही ?-केशव