Saturday, May 28, 2011

...भारत माता की बात आई तो ग़ैरत सोती रही ? -Dr. Anwer Jamal


भाई रतन सिंह शेख़ावत जी ! आपसे किसने कह दिया कि भारत की राजपूत जाति के अलावा किसी और जाति पर शोध करने के लिए विदेशी नहीं आते ?
यह भी आपने अच्छी बात बताई कि मुग़ल पीरिएड और इंग्लिश पीरिएड पर भी विदेशी शोध करने नहीं आते।

लड़की ब्याहने की बात आई तो लड़की के बाप की ग़ैरत जाग गई और कल्ला की भी और अगर अकबर रिश्ते की बात न करता तो ये दोनों ससुर जवांई उसके दरबार में बैठे ही थे उसकी जी हुज़ूरी करने के लिए और अकबर उन्हें लड़ने के लिए जहां भेजता था, जाते थे और अपने जाति भाईयों का नरसंहार करते रहते थे।
यह ग़ैरत भी अजीब तरह की ग़ैरत है जिसे केवल राजस्थान के राजपूत ही जानते हैं और इसी अजीबो-ग़रीब चरित्र वाली ग़ैरत पर शोध करने के लिए विदेशी आते होंगे।
आप ज़रा बताएं तो सही कि कल्ला की मौत के बाद शेष राजस्थानी राजपूत राजाओं ने अकबर के खि़लाफ़ बग़ावत का कितना बड़ा बिगुल फूंका, ख़ासकर कल्ला के ससुर राजा भोज ने क्या किया ?
या वह अपना दामाद मरवा के भी अकबर का ही वफ़ादार बना रहा ?
अपनी लड़की-बहू की बात आई तो ग़ैरत जाग गई और भारत माता की बात आई तो ग़ैरत सोती रही ?
भय्ये ऐसे स्वाभिमान और ऐसी अनोखी ग़ैरत का तो हमें सचमुच पता नहीं है, यह तो शोध वाले ही समझ सकते हैं।
http://vedkuran.blogspot.com/2011/05/dr-anwer-jamal.html
----------------------------------------------
Please see
Ratan Singh Shekhawat said...

@अनवर जमाल
तुम क्या जानो स्वाभिमान !
भारत पर मुगलों ने वर्षों राज किया ,अंग्रेजों ने भी यहाँ सालों तक राज किया फिर भी आज विदेशों से शोधकर्ता सिर्फ राजपूत संस्कृति और चरित्र पर शोध करने आते है | मुगलों व अंग्रेजी राज पर कोई शोध करने नहीं आता |
राजपूत संस्कृति समझना तुम्हारे जैसे लोगों के बस की बात नहीं |

Friday, May 27, 2011

दुखों को भूलकर मुस्कुराना सीख ले - Dr. Anwer Jamal

ईशा अग्रवाल  

ओ बहना,
बड़े नाज़ुक हैं हालात तेरे
जायज़ हैं पर सवालात तेरे
तन्हाई में घुटती है क्यों
जवानी के हैं दिन-रात तेरे
बाहर निकल और घूम फिर
ताज़ा हो जाएंगे जज़्बात तेरे
दुखों को भूलकर मुस्कुराना सीख ले
दूर हो जाएंगे सारे सदमात तेरे


बहुत अच्छे जज़्बात।
हमारे ब्लॉग पर भी तो आइये आप कभी।
आपकी इंतज़ार में
अनवर जमाल



http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/05/blog-post.हटमल
-----------------------------------
Please see
http://dastak-ekpehel.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html?showComment=1306514679595#c7528030443585054414
ना जाने ये कैसे हालात हैं मेरे?
ज़िन्दगी से कई अनसुलझे सवालात है मेरे?
कोई नहीं है पास,
तनहा मैं और खयालात हैं मेरे,
मीलो वीरानी छाई हैं,
ना चाहते हुए भी याद किसी की आई हैं,
कह दो इन यादो से सताए ना मुझको,
बे-मतलब रुलाये ना मुझको,
रुमाल अब आंसुओं को सोखता नहीं,
कोई किसी के आंसू पोछता नहीं,
इतना अकेला कभी अपने को पाया ना था,
दूर मुझसे कभी मेरा साया ना था,
ना जाने ये कैसे हालात हैं मेरे?
ज़िन्दगी से कई अनसुलझे सवालात है मेरे?

Sunday, May 22, 2011

शाकाहारी संतों की बात मानी जाए तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव ही नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे।

स्वांस स्वांस का करो विचारा । बिना स्वांस का करो आहारा ।
सीधी सी बात है । जिसकी स्वांस का आवागमन होता है । वह जीव है । और उसको मारना पाप ही है । अर्थात इस भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय हेतु स्वांस को आधार माना गया है ।
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.com/2011/05/blog-post_20.html
@भाई राजीव जी ! आप संतों का आदर करते हैं उनके बताए आहार को ही लेना चाहते हैं तो आप इस धरती पर जीवित नहीं रह सकते। इन संतों को पशु-पक्षी सांस लेते नज़र आए तो लिख दिया कि आहार में श्वास को आधार मानो लेकिन उन्हें ‘सत्य का ज्ञान‘ नहीं था कि पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं। आज वैज्ञानिकों ने उस सत्य का पता चला लिया है जिसका पता इन संतों को नहीं था। वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि ‘पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं।‘

वैज्ञानिक वनस्पति जगत को भी जीवित वस्तुओं में ही शुमार करते हैं। अगर इन संतों की बात मान ली गई तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे। बस जो मन में समा गया उसे नियम बनाकर परोस दिया। इसी का नाम दर्शन और फ़िलॉसफ़ी है और हद तो तब हो जाती है जबकि ये लोग क़ुरआन की मूल भाषा का ज्ञान प्राप्त किए बिना ही उसकी आयतों के अर्थ भी बताने लगते हैं। अगर इन्हें इस्लाम के बारे में कोई बात कहनी है तो उसे कहने से पहले इस्लामी विद्वानों से मिलकर पूरी बात पता कर लेनी चाहिए। आजकल तो ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं कि अगर आप फ़ोन करके भी कुछ जानना चाहें तो वे आपको फ़ोन पर भी पूरी जानकारी देंगी।  
ये फ़ोन नं. ऐसे ही हैं 011-24355454, 41827083, 24356666, 46521511
फ़ैक्स 011-45651771
इन पर मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब, दिल्ली की ओर से नियुक्त किसी सेवाकर्मी से बात होती है। उनके लेक्चर्स के वीडियो देखने की सुविधा निम्न वेबसाइट पर है

हिंदू ग्रंथों और मुस्लिम ग्रंथों में मांसाहार को अनुचित नहीं माना गया है। देखिए यह लिंक

Haj or Yaj विभिन्न धर्म-परंपराओं का संगम : हज By S. Abdullah तारिक

-----------------------------------------------

इस संवाद की पृष्ठभूमि जानने के लिए देखें 

कुरआन या कोई धर्म माँस खाने को नहीं कहता । 

‘बाग़ ए बाहू‘, जम्मू का एक मशहूर बाग़ है . इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर दिल पर छा जाते हैं - Anwer Jamal


शालिनी जी ! आपके दूसरे कमेंट का लुत्फ़ हेते हुए हम आपको यह बताना चाहेंगे कि जो इस फ़ोटो में आप जो बाग़ देख रही हैं, उस बाग़ का नाम है ‘बाग़ ए बाहू‘। यह जम्मू का एक मशहूर बाग़ है। इस बाग़ में इतने प्रेमी जोड़े प्रेम अगन में तपते हुए मिलते हैं कि अच्छे-ख़ासे जमे हुए पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाते हैं।
नेट पर आप इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर (दृश्यों) का लुत्फ़ लेने के लिए निम्न लिंक पर जा सकती हैं :

Bagh-e-Bahu : http://www.panoramio.com/photo/2952280

-----------------------------------------------------

आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ
शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

हैं लहू रंग जिसके शामो-सहर
मैं उसी अहद का मुक़द्दर हूँ

एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

शब्दार्थ
आरज़ू ए सहर-सुबह की ख़्वाहिश , शाम ए ग़म-ग़म की शाम , लहू रंग-रक्त रंजित , शामो सहर-शाम और सुबह ,अहद-युग
तारीकियों-अंधेरों , अनवर-सर्वाधिक प्रकाशमान

Sunday, May 15, 2011

डा. दिव्य जी, बुलंद हौसला दिलाएगा आपको मुश्किलों पर विजय

@ डा. दिव्य जी ! आपका हौसला तोड़ते होंगे वे हार्मोनजीवी , जिन्होंने आपसे कोई उम्मीद ख़ामख़्वाह पाल ली होगी ।
मैं तो ऐसे लोगों को अपनी ब्लॉग रूपी फ़सल में खाद की तरह इस्तेमाल करता हूँ।
भाग जाते हैं सब, जो आते हैं मेरा हौसला तोड़ने । वे बेचारे ख़ुद ही अपना हौसला तोड़-छोड़ बैठते हैं।
मेरा अनुसरण कीजिए और 'मार्ग' पर चलिए। विरोधी खुद मार्ग पर आ जाएँगे ।
विरोधी कुछ भी नहीं हैं बल्कि उल्टे वे तो आपकी गरिमा का सामान हैं ।
जो आपको चित करने आएगा और ख़ुद ही चित हो जाएगा तो आपकी शान बुलंद होना तय है ।
मैं तो इंतज़ार ही नहीं बल्कि दुआ भी करता हूँ कि मालिक आज तो किसी को भेज दे !
...लेकिन कोई आने-गाने के लिए तैयार ही नहीं होता । इस मामले में आप ख़ुशनसीब हैं और फिर भी गिला-शिकवा कर रही हैं ?   

अल्लामा इक़बाल फ़रमाते हैं कि

तुन्दी ए बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती हैं तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए 


......

शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़
Please see 

And also see

Saturday, May 14, 2011

क्या हिंदुस्तानी अदालतें ईरानी अदालत से बेहतर हैं ?

इकतरफ़ा प्रेम के मारे अंधे प्रेमी लड़की का इंकार सुनकर लड़की के चेहरे पर तेज़ाब फेंक देते हैं ताकि अगर वह उनकी न हो सकी तो वह किसी और की भी न हो सके । भारत में ऐसी घटनाएं आए दिन घटती रहती हैं ।
भारतीय क़ानून ईरान के इस्लामी क़ानून की तरह अपराधी को तुरंत दंडित नहीं करता । तुरंत क्या बल्कि अक्सर तो करता ही नहीं ।
एक औरत की क्या वैल्यू है ?
यहाँ तो पूरे के पूरे समुदाय का संहार कर दीजिए , क़ातिलों का बाल टेढ़ा होने वाला नहीं है ।
सन 1984 के दंगे में मारे गए सिक्खों के क़ातिलों में से आज तक किसी एक को भी फाँसी न हुई और अफ़ज़ल गुरू वग़ैरह को जिन्हें फाँसी की सज़ा सुना भी दी है तो उसे देते हुए डर लग रहा है ।
हमारे देश की अदालतें बढ़िया हैं और यहाँ सबको बिना कुछ ख़र्च किए जल्दी इंसाफ़ मिलता है , इसलिए ईरान को भारतीय अदालतों की तरह इंसाफ़ करना चाहिए ।
ऐसा कहने वाला कौन है ?

ख़ुद तो इंसाफ़ करना आता नहीं और जहाँ हो रहा है , वहाँ से सीखते नहीं , देखते नहीं।
ये वे आँखें हैं जो नफ़रत के तेज़ाब से खुद अंधी कर चुके हैं और अब सत्य और मार्ग दिखता ही नहीं ।

जयहिंद ।
वंदे ईश्वरम ।

Tuesday, May 10, 2011

सारी ज़मीन एक प्रेतलोक बन चुकी है Ghostland

आप असीमा बहन की पोस्ट पर जायेंगे तो आपको वहां मेरा यह कमेंट नज़र आएगा : 


@ असीमा, मेरी बहन ! यह दुनिया ख़ुदग़र्ज़ और अहसान फ़रामोश है। इसके पूंजीपति भी ऐसे ही हैं और इसके ग़रीब भी ऐसे ही हैं। आपके आदरणीय पिता जी ने अपनी नैतिक चेतना के प्रभाव में आकर जो कुछ किया, वह अपनी जगह दुरूस्त है। किसी के मानने या उसे नकारने से उसके सही होने में कोई अंतर नहीं आएगा और न ही आपके पिता की महानता में कोई कमी-बेशी होगी। जो भी नेकी और सच्चाई की राह पर चला है, आर्थिक रूप से वह अपने साथियों से पिछड़ता ही गया और अंत में उसे वह जनता भी भुला देती है, जिसके लिए वह लड़ता है।
जलियां वाला बाग़ में गोलियां खाने वालों को इस देश के नेता और जनता भुला चुके हैं, आपके पिता के साथ भी यही किया जा रहा है और देशसेवा करने वालों के साथ हमेशा यही किया जाएगा। यह एक सच है। 
आपके मन की पीड़ा को मैं समझ सकता हूं। जो लोग कंधों पर उठाए जाने के लायक़ हों, उन्हें यूं नज़रअंदाज़ करने का मतलब है कि आगे से कोई भी ऐसा बलिदान नहीं करेगा और अगर करेगा तो उसका अंजाम भी यही होगा। जितने पढ़े-लिखे लोग हैं, वे इस सच्चाई से वाक़िफ़ हैं, इसीलिए वे 90 प्रतिशत भ्रष्ट हो चुके हैं। नेकी का बदला दुनिया कभी किसी को दे ही नहीं पाई, बदला तो सिर्फ़ वह मालिक ही देता है जिसने बंदे को पैदा किया और उसे नेकी की प्रेरणा दी है। दुनिया की सामूहिक नैतिक चेतना मृत प्रायः है, केवल शरीर ज़िंदा हैं। सारी ज़मीन एक प्रेतलोक बन चुकी है। इन प्रेतों के पास शरीर भी है। लगभग सभी भटक रहे हैं। सत्य और न्याय से तो बहुत कम मतलब रह गया है। हरेक आदमी ऐश करना चाहता है और समृद्ध होना चाहता है। 
<b>जो भी नेकी सच्चे मालिक को भुलाकर की जाती है, वह हसरत और अफ़सोस के सिवा कुछ और नहीं दे पाती।</b> आपके आदरणीय पिता जी के द्वारा जो भी सत्य आप पर प्रकट हुआ है, उसे आप एक और महानतर सत्य को पाने का माध्यम बना लेंगी तो आपके मन की दुनिया में शिकायत और मायूसी के अंधेरों के बीच एक नई आशा का सूरज उगेगा। मुझे यह उजाला हासिल है, आपको भी मैं यही भेंट करता हूं। 
आपके लिए और आपके आदरणीय पिता जी के लिए मैं पालनहार से विशेष प्रार्थना करूंगा।
धन्यवाद !

Monday, May 9, 2011

9 मई का दिन हमारी मंगनी का दिन है, एक हर्ष संदेश


My wife
9 मई का दिन हमारी मंगनी का दिन है। (सन 1999)
जज़्बात अच्छे हैं जो गाने के माध्यम से पेश किए गए।
... और हां,

ब्लॉग जगत की तमाम परेशान आत्माओं के नाम एक हर्ष संदेश
अब आप मुझे जैसे ढालना चाहें, ढाल लें,
सलाह और सुझाव आमंत्रित हैं,
अवधि मात्र 3 दिवस है।
ऐसा क्यों कह रहा हूं, यह भी एक पूरी पोस्ट का विषय है जो कि मैं बनाऊंगा नहीं। बस, सलाह दीजिए और पालन कराइये।
जय हिंद !   
Please go to

Wednesday, May 4, 2011

मैं जज़्बात से भरा हुआ एक पठान आदमी आदमी हूं Afghan Blood

@ आदरणीय भाई खुशदीप सहगल जी ! मैंने आपकी नसीहत को ग़ौर से दो बार पढ़ा, आधे घंटे के अंतराल से। आपने मुझे नसीहत की है जिससे मेरे प्रति आपकी फ़िक्रमंदी का पता चलता है लेकिन आपकी नसीहत पर अमल करने से पहले मुझे अपनी पूरी स्ट्रैटेजी पर ग़ौर करना होगा और आपको भी यह जानना ज़रूरी है कि यह सब आखि़र हो क्यों रहा है ? 
हालांकि इसे बयान करने के लिए एक पूरी पोस्ट दरकार है लेकिन संक्षेप में अर्ज़ करता हूं कि ‘मैं न कोई संत हूं और न ही कोई जोकर।‘
संत का काम क्षमा करना होता है और जोकर का हंसाना। मैं जज़्बात से भरा हुआ एक आम आदमी हूं, एक पठान आदमी। पठान का मिज़ाज क़बायली होता है, वह आत्मघाती होता है। वह हर चीज़ भूल सकता है लेकिन वह इंतक़ाम लेना नहीं भूलता। मैं आर्यन ब्लड हूं। इस्लाम को पसंद करने के बावजूद मैं अभी भी इस्लाम के सांचे में पूरी तरह ढल नहीं पाया हूं। अभी मैं अंडर प्रॉसैस हूं। इसी हाल में मैं हिंदी ब्लॉगर बन गया। मेरे दीन का और खुद मेरा तिरस्कार किया गया। एक लंबे अर्से तक सुनामी ब्लॉगर्स मेरी छवि को दाग़दार करते रहे और बाक़ी ब्लॉगर्स मुझे दाग़दार करने वालों की चिलम भरते रहे। ये वही लोग हैं जिन्हें नेकी और नैतिकता का ख़ाक पता नहीं है। जो कुछ मुझे दिया गया है, मैं उसके अलावा उन्हें और क्या लौटा सकता हूं ?
इसीलिए आपको मेरे लेख में आक्रोश मिलेगा, प्रतिशोध मिलेगा, अपमान और तिरस्कार भी मिलेगा, कर्कश स्वर और दुर्वचन भी मिलेगा, टकराव और संघर्ष मिलेगा। आपको मेरे लेख में बहुत कुछ मिलेगा लेकिन असत्य नहीं मिलेगा। ‘छिनाल छिपकली प्रकरण‘ भी ऐसी ही एक घटना है जो कि एक वास्तविक घटना है। औरत को सरेआम नंगा किया गया लेकिन कोई मर्द नहीं आया इसकी निंदा करने। द्रौपदी की साड़ी ज़रा सी खींचने पर तो दुःशासन आज तक बदनाम है और जिन्होंने औरत को पूरा नंगा कर दिया, उसे अपमानित ही कर डाला वे नेकनाम कैसे बने घूम रहे हैं ‘सम्मान बांटने का पाखंड‘ रचाते हुए ?
इस प्रकरण को लेख से निकालने का मतलब है अपने लेख के मुख्य संदेश को निकाल देना, फिर इसमें बचेगा ही क्या ?
इसी संदेश को रूचिकर बनाने के लिए अन्य मसाले भरे गए हैं। जिसे आप एक कंकर की तरह अप्रिय समझ रहे हैं, वास्तव में वही मुद्दे की बात है। हां, अगर वह झूठ हो तो मैं उसे निकाल दूंगा , झूठ से मेरा कोई संबंध नहीं है। अपने विरोधी के खि़लाफ़ भी मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
मेरा बहिष्कार करके मेरे विरोधियों ने और उनके सपोर्टर्स ने मेरा क्या बिगाड़ा ?
किसी से कोई रिश्ता बनने ही नहीं दिया कि किसी से कोई मोह होता, किसी के दिल दुखने की परवाह होती। जब किसी को हमारी परवाह नहीं है तो फिर भुगतो अपने कर्मों को। मत आओ हमारे ब्लॉग पर, मत दो हमें टिप्पणियां और फिर भुगतो फिर उसका अंजाम। ऐसा मैं सोचता हूं और जो मैं सोचता हूं वही अपने ब्लॉग पर लिखता हूं।
क्या ब्लॉग पर सच्चाई लिखना मना है ?
इसके बावजूद मेरे दिल में कुछ लोगों के प्यार भी है और सम्मान भी। प्रिय प्रवीण जी के साथ आप और डा. अमर कुमार जी ऐसे ही लोग हैं। डा. अमर कुमार जी के ज्ञान में वृद्धि की कोशिश करना सूरज को दिया दिखाना है और आपको मैं अपना मानता हूं।
आपकी सलाह प्रैक्टिकल दुनिया में जीने का बेहतरीन उपदेश है। मैं इस सलाह की क़द्र करता हूं। महानगरीय जीवन में यह उसूल लोगों की ज़िंदगी में आम है लेकिन मैं एक क़स्बाई सोच वाला आदमी हूं, मेरा माहौल भी आपसे थोड़ा अलग है। इसलिए हो सकता है कि आपकी सलाह पर अमल करने में मुझे कुछ समय लग जाए।
एक नेक सलाह के लिए मैं आपका दिल से आभारी हूं।
शुक्रिया !
और देखें 

Tuesday, May 3, 2011

हमने इस पूरे प्रकरण को ब्लॉग जगत के सामने जैसे रखा था यह ठीक वैसे ही घटित हुआ है

एक भविष्यवाणी : खुशदीप जी बहुत जल्द लौट आएंगे।
सैद्धांतिक आधार : सच्चा ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ना भी चाहे तो ब्लॉगिंग खुद ही उसे छोड़ने को तैयार नहीं होती।

रश्मि रविजा जी से सहमत।

हमने इस पूरे प्रकरण को ब्लॉग जगत के सामने जैसे रखा था यह ठीक वैसे ही घटित हुआ है। इसे आप देख सकते हैं निम्न लिंक पर
अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging

और अंत में एक प्यारा सा शेर आप सभी की नज़्र करता हूं

झील हो, दरिया हो, तालाब हो या झरना हो
जिस को देखो वही सागर से ख़फ़ा लगता है

Monday, May 2, 2011

जो सीखना चाहते हैं वे उर्दू सीख सकते हैं मात्र तीन घंटे में Know Urdu within 3 hours

मात्र 3 घंटों मे ही उर्दू 
ग़ज़ल एक बार पढ़ी और बार-बार सुनी। 
अच्छी लिखी गई है और पढ़ी भी अच्छी गई है।
लेकिन अगर अर्चना जी अपने तलफ़्फ़ुज़ अर्थात उच्चारण को सुधार लें तो प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा।
मस्लन उन्होंने 
‘साज़-संगीत को छेड़ देना ज़रा‘
यह पंक्ति बिल्कुल ठीक पढ़ी है
इसमें उन्होंने ‘ज़‘ की ध्वनि ही उच्चारित की है लेकिन दूसरी जगहों पर जहां भी उन्होंने ‘ज़रा‘ कहने की कोशिश की है उनके मुंह से ‘जरा‘ ही निकला है। उर्दू जानने वालों के लिए यह बेहद खटकता है। 
ऐसे उन्होंने ‘खत‘ कहा है जबकि यह आवाज़ ‘ख़त‘ गले से निकलती है। गले से कहा जाता है ‘ख़‘।
‘हम तरन्नुम में भरकर ग़ज़ल गाएंगे‘
में भी उन्होंने ‘ज़‘ तो सही कह दिया लेकिन ‘ग़‘ के बजाय ‘ग‘ कह गईं। ‘ग़‘ की ध्वनि भी गले से ही निकलती है।
किसी उर्दू जानने वाले से एक सिटिंग ले लेंगी तो सदा के लिए ग़लत उच्चारण से मुक्ति मिल जाएगी।
कभी-कभी उर्दू न जानने वाले लोगों के लिए यह जानना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि किस अक्षर के नीचे बिंदी है और उसे कैसे उच्चारित किया जाए ?
अर्चना चाओजी  जी और इससे पहले शिखा जी के पाठ को यह ज़रूरत महसूस हो रही है कि जो सीखना चाहते हैं, उन्हें उर्दू भी सिखा दी जाए।
मैं मात्र 3 घंटों मे ही उर्दू सिखा देता हूं। इसके लिए मैं 6 दिन तक आधा घंटा रोज़ाना लेता हूं और बस 6 दिनों में काम हो जाता है। इसके लिए मैंने एक स्पेशल कोर्स डिज़ायन किया है।
आमने सामने 6 दिनों में सिखा देता हूं तो नेट पर ज़्यादा से ज़्यादा 10-12 दिन लग जाएंगे।
इसके बाद उर्दू का विशाल साहित्य आपके सामने होगा।
तब आप हरेक हर्फ़ को वैसे ही जानेंगे जैसा कि वास्तव में वह है। हिन्दी जानने वाले तबक़े में उर्दू शायरी का बेहद शौक़ है बल्कि उनके दिल में उर्दू जानने का भी शौक़ है। उनके शौक़ का ख़याल हमें अहसास दिला रहा है कि कुछ करना चाहिए।

Please go to 
http://mushayera.blogspot.com/2011/05/blog-post_03.html

Sunday, May 1, 2011

बहरहाल और आखि़रकार , Blog Fixing के संदर्भ में


यशवंत जी ! आपकी पोस्ट पहली बार पढ़ी और अच्छी ही नहीं लगी बल्कि मज़ा आ गया। कम लोग हैं जिन्हें पढ़कर हमें मज़ा आता है। आपकी पोस्ट पर जो कमेंट्स पढ़े उन्होंने तो मज़े को दोबाला ही कर दिया। हम बहुत दिनों से blogkikhabren.blogspot.com  पर कह रहे थे कि
1. ब्लॉगर्स मीट हिंदी ब्लॉगिंग के स्तर को गिरा रही है।
2. ईनाम अपने चहेतों को आब्लाइज करने के लिए अंधे की रेवड़ियों की तरह दिए जा रहे हैं।
3. ब्लॉगर्स जिस नेता बिरादरी के भ्रष्ट होने पर एकमत और सहमत हो चुके हैं, उसी बिरादरी के एक फ़र्द से पुरस्कार लेना कैसे जायज़ है ?
4. ईनाम की मूल सूची को क्यों बदल दिया गया ?
5. किसी चर्चित ब्लॉगर को जानबूझकर ईनाम से वंचित क्यों किया जा रहा है ? बल्कि उसे निमंत्रित तक क्यों नहीं किया जा रहा है ?
हम कहते रहे और हिंदी ब्लॉगर्स भी सुनते रहे लेकिन इन्होंने कान नहीं धरा हमारी बात पर। खुशदीप जी ने भी हमारा समर्थन नहीं किया। जो कुछ बीता, यह सब तो हम बीतने से पहले ही बता रहे थे लेकिन भाई लोग कार्यक्रम को जबरन भव्य बनाने पर तुले हुए थे। कोई भी कार्यक्रम भव्य तभी बनेगा जबकि उसमें मालदार पूंजीपति और सत्तापक्ष के नेता शामिल हों और ये लोग इस मक़ाम तक आम तौर से पहुंचते ही तब हैं जबकि ये लोग अपनी ‘न्याय चेतना‘ का गला घोंट डालते हैं। कार्यक्रम के आयोजकों के अपने व्यावसायिक हित थे, उनकी पूर्ति बहरहाल हो ही गई है।
खुशदीप भाई ने जब निशंक जी को देख ही लिया था तो आयोजकों से अपनी मजबूरी ज़ाहिर करके इधर-उधर टल जाना था। अगर पुण्य प्रसून जी नाखुश न होते तो खुशदीप जी भी अपने घर ईनाम सहित खुश खुश ही लौटते जैसे कि शाहनवाज़ भाई और ललित भाई लौटे। इन्होंने तो अपने ईनाम नहीं लौटाए तो क्या इनकी आत्मा को खुशदीप जी के मुक़ाबले कम अंक दिए जाएं ?
इन्हें पुण्य प्रसून जी से कुछ लेना देना ही नहीं था सो ये अपने ईनाम साथ लेते आए।
खुशदीप भाई स्वस्थ होने के बाद ही पुण्य प्रसून जी के सामने पड़ेंगे और दो चार दिन बाद उनके अंदर भी ‘जाने भी दो यार‘ वाला भाव जाग चुका होगा और तब उनकी तरफ़ से संतुष्ट होते ही खुशदीप जी फिर से ब्लॉगिंग करने लगेंगे। उन्हें जो इंटरनेशनल पहचान मिली है वह हिंदी ब्लॉगिंग की वजह से ही मिली है। इस मंच से हटकर वे अपना ही कुछ खोएंगे और खोने के लिए वे कभी तैयार होंगे नहीं। वैसे भी ब्लॉगिंग का अभ्यस्त बीवी-बच्चे छोड़ सकता है लेकिन ब्लॉगिंग हरगिज़ नहीं छोड़ सकता। वे ऐसा ज़ाहिर करेंगे जैसे कि अगर लोगों ने उनसे आग्रह न किया होता तो वे अब दोबारा बिल्कुल भी न लिखते।
हमारे उस्ताद का कथन है कि हिंदी ब्लॉगर बेचारा जाएगा कहां ?
लिहाज़ा सब तसल्ली रखें और खुशदीप जी के सेहतयाब होने की दुआ करें।
इस सबके बाद में हम श्री रवीन्द्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति जी से यह कहना चाहेंगे कि आदमी ग़लतियों से ही सीखता है। किसी की आलोचना और असहयोग के कारण आप अपना मनोबल मत गंवा बैठिएगा। आपने एक आयोजन किया, चाहे उसमें कुछ भूल-चूक हुईं लेकिन आपने बहुत से लोगों को आपस में एक जगह तो किया।
आप बहरहाल बधाई के पात्र हैं।
अगली बार के आयोजन में इन ग़लतियों को शून्य करने की कोशिशें कीजिएगा और जल्दी ही आपको हम बुलाएंगे अपने सम्मान समारोह में।
जय हिंद!   
Please go to