Monday, December 5, 2011

औरत का मक़ाम


जो दे न सके
वह कंगाल है
पुरूष वह है
जो देता है
न देने वाले भी
अमृत बरसाते हैं
फूटते हैं नए अंकुर
मिलता है संतान सुख
जो कि सबसे बड़ा है
अपने वुजूद की मंज़िल
पाना बड़ा है
औरत को मर्द
यहीं तक पहुंचाता है।
वह न चाहे,
तब भी।
औरत का घर
उसका मक़ाम
यही तो है
कोई छत या दीवार नहीं
कोई धरा या आकाश नहीं।
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आज हमने रश्मि प्रभा जी की रचना पढ़ी तो हमारे मन में यह आया।
क्या आप सहमत हैं ?
पढ़िए आप रश्मि प्रभा जी की रचना का एक अंश

पुरुष और स्त्री


एक स्त्री बचपन से घर का सपना देखती है
दहलीज से आँगन तक
अपनी पायल के मोहक रुनझुन में
वह खुद को तलाशती है
जिम्मेदारियां उसे तीर्थ लगती हैं
सुबह से रात की परिक्रमा में
वह कुछ शब्द चाहती है -
प्यार के
एहसास के
सम्मान के ....
जिससे वह सर्वथा वंचित होती है !
सबकुछ खोकर
एक घर के लिए
साँसों की माला पे अपने घर को ही जपती है
तब तक - जब तक उसकी आँखें शुष्क न हो जाएँ
सोच शमशान न बन जाए .....

Monday, November 28, 2011

वैदिक यज्ञों में पशुबलि पर एक टिप्पणी

निरामिष: वैदिक यज्ञों में पशुबलि---एक भ्रामक दुष्प्रचार 
नामक यह पोस्ट स्वयं ही भ्रामक है.

वैदिक यज्ञों में पशुबलि पर विचार करके आपने एक अच्छी पहल की है।
इस विषय पर पिछले काफ़ी समय से चर्चा होती आ रही है और हरेक विद्वान ने इस विषय पर विचार किया है कि
क्या वैदिक यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी ?
और अगर दी जाती थी तो फिर उसे बौद्धों और जैनियों के विरोध के कारण छोड़ क्यों दिया गया ?

क्या हिन्दू कभी गोमांस नहीं खाते थे ?

प्रत्येक हिन्दू इस प्रश्न का उत्तर में कहेगा नहीं, कभी नहीं। मान्यता है कि वे सदैव गौ को पवित्र मानते रहे और गोह्त्या के विरोधी रहे।

उनके इस मत के पक्ष में क्या प्रमाण हैं कि वे गोवध के विरोधी थे? ऋग्वेद में दो प्रकार के प्रमाण है; एक जिनमें गो को अवध्य कहा गया है और दूसरा जिसमें गो को पवित्र कहा गया है। चूँकि धर्म के मामले में वेद अन्तिम प्रमाण हैं इसलिये कहा जा सकता है कि गोमांस खाना तो दूर आर्य गोहत्या भी नहीं कर सकते। और उसे रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन, अमृत का केन्द्र और यहाँ तक कि देवी भी कहा गया है।

शतपथ ब्राह्मण (३.१-२.२१) में कहा है; “..उसे गो या बैल का मांस नहीं खाना चाहिये, क्यों कि पृथ्वी पर जितनी चीज़ें हैं, गो और बैल उन सब का आधार है,..आओ हम दूसरों (पशु योनियों) की जो शक्ति है वह गो और बैल को ही दे दें..”।
इसी प्रकार आपस्तम्ब धर्मसूत्र के श्लोक १, ५, १७, १९ में भी गोमांसाहार पर एक प्रतिबंध लगाया है। हिन्दुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया, इस पक्ष में इतने ही साक्ष्य उपलब्ध हैं।

मगर यह निष्कर्ष इन साक्ष्यों के गलत अर्थ पर आधारित है।
ऋग्वेद में अघन्य (अवध्य) उस गो के सन्दर्भ में आया है जो दूध देती है अतः नहीं मारी जानी चाहिये। फिर भी यह सत्य है कि वैदिक काल में गो आदरणीय थी, पवित्र थी और इसीलिये उसकी हत्या होती थी।
श्री काणे अपने ग्रंथ धर्मशास्त्र विचार में लिखते हैं;”
ऐसा नहीं था कि वैदिक काल में गो पवित्र नहीं थी। उसकी पवित्रता के कारण ही वजसनेयी संहिता में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिये। “

♥ ऋग्वेद में इन्द्र का कथन आता है (१०.८६.१४), “वे पकाते हैं मेरे लिये पन्द्र्ह बैल, मैं खाता हूँ उनका वसा और वे भर देते हैं मेरा पेट खाने से” ।
♥ ♥ ऋग्वेद में ही अग्नि के सन्दर्भ में आता है (१०. ९१. १४)कि “उन्हे घोड़ों, साँड़ों, बैलों, और बाँझ गायों, तथा भेड़ों की बलि दी जाती थी..”

Thursday, October 6, 2011

अवज्ञा का अंजाम दंड के सिवाय क्या है ?

नास्तिकों ने बता दिया है कि ईश्वर होता नहीं है
और सत्ता पर काबिज लोगों का कानून कुछ बिगाड नहीं पाता।
सो न तो ये लोग ईश्वर-अल्लाह के प्रकोप से डरते हैं और न ही ये कानून से डरते हैं।
ये किसी से नहीं डरते और जो भी इन्हें सुधरने के लिए कहता है उसे ये जेल के भीतर कर देते हैं, चाहे अन्ना हो या संजीव भट्‌ट।
गरीबों की उपेक्षा असंतोष को जन्म देगी और अंसतोष से बगावत पैदा होगी, उसमें भी जनता ही मरेगी।
उसके बाद फिर जो सरकार बनेगी, उसमें फिर खुदगर्ज और बेईमान लोग कुर्सियों पर कब्जा जमा लेंगे।
हालात अब ऐसे हैं कि अब इंसान की अक्ल फेल है और फिर भी वह खुदा पर ईमान लाने के लिए और उसकी आज्ञा मानने के लिए तैयार नहीं है।
अवज्ञा का अंजाम दंड के सिवाय क्या है ?
वही मिल रहा है।
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देखिये 

गरीबी ----- एक आकलन



देश के गरीबों में भी एच आई जी, एम आई जी और एल आई जी निर्धारण करने की बहस आजकल जोर शोर से चल रही है ! गरीबों में गरीब यानी की महा गरीब की प्रतिदिन आय ३२ रुपये तय हो या अधिक इस पर सरकार ने खूब समय और धन व्यय किया है ! जब एक बार यह तय हो जायेगा तब इस पर विचार किया जायेगा कि इन दुखी लोगों की किस तरह और क्या मदद की जाये ! आखिर इसमें भी लंबा समय लगेगा ही ! अंत में यह सहायता भी तो उसी पाइप लाइन से गरीबों को उपलब्ध कराई जायेगी जिसमें भ्रष्टाचार के अनेकों छेद हैं और जिनसे लीक होकर सारा धन असली हकदारों तक पहुँचने से पहले ही काफी मात्रा में बाहर निकल जाता है ! यह सब ड्रामा उसी प्रकार है जिस तरह हमें पता होता है कि बाढ़ हर साल आनी ही है इसलिए बाढ़ पीड़ितों के लिये नाव, कम्बल और आटे दाल का प्रबंध तो किया ही जाना है परन्तु बाढ़ रोकने के लिये क्षतिग्रस्त बाँधों की मरम्मत और नये बाँध बनाने का कोई उपाय नहीं किया जाता !
गरीबों और महा गरीबों को पहचान कर फौरी मदद पहुँचाने की कोशिश अपनी जगह है पर सरकार का प्रमुख लक्ष्य गरीबी हटाना होना चाहिये ! गरीब को गरीब ही रख कर उसको सस्ता अनाज खिलाना ही सरकार का एकमात्र कर्तव्य नहीं होना चाहिये ! यह काम तो तत्काल हो ही जाना चाहिये क्योंकि हमारे पास अनाज सरकारी गोदामों में भरा पड़ा है और सड़ रहा है जिसको रखने तक के लिये जगह नहीं है ! लेकिन प्रमुख समस्या है लोगों की गरीबी दूर करना !
इस समस्या का हल ऐसे लोगों के लिये रोज़गार पैदा करना है जो शिक्षा से तो वंचित हैं ही उनके पास ज़मीन व धन भी नहीं हैं जिसकी सहायता से वे कोई रोज़गार कर सकें ! ऐसे गरीबों की आमदनी का सिर्फ एक ही ज़रिया है और वह है किसी कारखाने अथवा निर्माण स्थल पर मजदूरी करना या खेत खलिहानों में नौकरी करना क्योंकि इन सभी स्थानों में अकुशल या अप्रशिक्षित व्यक्ति भी खप जाते हैं ! अब करना यह है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स को चिन्हित किया जाये और उन्हें बढ़ावा दिया जाये जिसमें गरीब तबके के लोगों को बड़ी मात्रा में काम मिल सके !
व्यापार के क्षेत्र में वैश्वीकरण की नीतियों ने हमारे देश में बड़ा विप्लव ढाया है ! भारत का सारा बाज़ार चीनी सामानों से भरा पड़ा है ! यही सामान अगर हमारे देश में बने तो यहाँ के लोगों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ें और हमारे देश में औद्योगीकरण को सहारा मिले लेकिन सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के कारण यह संभव नहीं हो पाता ! चीन से आयातित सामान जिस कीमत पर बाज़ारों में उपलब्ध है वही सामान अपने देश में जब हम बनाते हैं तो उसकी कीमत कहीं अधिक बैठती है ! चीन अपने देश के बने हुए सामान को भारत और विश्व में सस्ता बेचने के लिये अपने उद्योगों को सस्ती बिजली, सस्ता कच्चा माल व सस्ती सुविधाएँ उपलब्ध कराता है ! इसी की वजह से वहाँ के उत्पादों की बिक्री बढ़ती है और अधिक से अधिक चीनी जनता को रोज़गार के अवसर मिलते हैं ! इसके विपरीत हम इस सस्ते सामान को इम्पोर्ट कर अपने उद्योगों की कठिनाइयों को बढ़ा रहे हैं ! इस तरह ना सिर्फ हम अपने देश के हुनरमंद कामगारों को बेरोजगार बना कर घर बैठा रहे हैं बल्कि उनके आत्मसम्मान को चोट पहुँचा कर उन्हें महा दरिद्रों की श्रेणी में पहुँचा रहे हैं ! अपने देश में व्यापारी को ना सिर्फ अपने लिये कमाना पड़ता है बल्कि उसे अपने सिर पर सवार नौकरशाह और चिर क्षुधित नेताओं की भूख मिटाने के लिये भी जोड़ तोड़ करनी पड़ती है ! नतीजतन भारत के उत्पाद अपने देश में ही मंहगे हो जाते हैं !
यह ध्यान देने की बात है कि इतना संपन्न अमेरिका मात्र 9% बेरोजगारी से चिंतित है और इसे अपनी सरकार की असफलता मान रहा है ! अपने देश में तो यदि परिवार में एक व्यक्ति भी रोज़गार में लगा है तो उस परिवार को बेरोजगार नहीं माना जाता ! हकीकत तो यह है कि हमारे देश में काम करने योग्य जन शक्ति का 40% तो पूर्ण रूप से बेरोजगार है और बाकी 30% आंशिक रूप से व बचे हुए 30% ही पूर्ण रूप से बारोजगार हैं !
लेकिन इस समस्या का हल भी मुश्किल नहीं है ! नीतियों का बदलाव ज़रूरी है ! ऐसे उपक्रम जिसमें अधिक से अधिक मैन पावर का इस्तेमाल हो उन्हें बढ़ावा मिलना चाहिये ! कच्चे माल पर और सुविधाओं पर अनावश्यक टैक्स नहीं लगने चाहिये ! ऑटोमैटिक मशीनों का इस्तेमाल सिर्फ उसी दशा में किया जाना चाहिये जिसमें बेहतर गुणवत्ता का लाभ मिल रहा हो और वह ज़रूरी भी हो ! उदाहरण के लिये हथकरघे से बुनी चादरें, परदे और तौलिए आदि यदि हमको सस्ते बनाने हैं तो कपास, लघु उद्योगों में काम आने वाली बिजली आदि व अन्य सुविधाओं को सस्ता करना होगा ! शायद इसके लिये सब्सीडी भी देनी पड़ेगी ! इस तरह की वस्तुओं को आयातित वस्तुओं के अनहेल्दी कम्पीटीशन से बचाने के लिये उचित नीतियां भी बनानी होंगी ! मकसद सिर्फ एक है कि हमारी जनता को रोज़गार मिले और गरीबी दूर हो ! हो सकता है कि इससे सरकारी खजाने पर दबाव बढ़े लेकिन वह दबाव निश्चित रूप से उस भार से तो कम ही होगा जो गरीबों के नाम से सब्सीडी देने के लिये खर्च किया जायेगा क्योंकि परिपाटी के अनुसार इस योजना में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला तो रहेगा ही रहेगा !
सबसे महत्वपूर्ण बात जो होगी वह यह है कि रोज़गार मिलने पर हमारे देश के गरीब का आत्मसम्मान बढ़ेगा और वह महसूस करेगा कि उसने अपनी मेहनत से रोटी कमाई है ना कि महा दरिद्र की श्रेणी में खड़े होकर सरकारी राशन भीख में माँग कर अपना पेट भरा है !

साभार : साधना वैद जी 

Wednesday, October 5, 2011

चाहे वह औरत हो या मर्द , दुराचारियों को शर्मसार करना ही हमारा कर्तव्य है


देह धंधे के आरोप में पकडी गई औरतों की पोस्ट हमने यहां पब्लिश की थी और आपकी आपत्ति के बाद इस ब्लाग की व्यवस्थापिका महोदया ने पुलिस गिरफ्‌त में मुंह छिपाए हुए उन औरतों के चित्र के बारे में हमसे ईमेल द्वारा बातचीत भी की थी कि क्यों न उस चित्र को हटा दिया जाए ?
लेकिन हमने कहा था कि रावण को हर साल जलाया जाता है और कोई पुरूष यह नहीं कहता कि रावण दहन से पुरूष की मर्यादा कलंकित हो रही है।
भाई उसने काम ऐसे ही किए थे।
जो भी गलत काम करेगा, उसे सरे आम शर्मसार होना ही पडेगा।
समाज के दुराचारियों को शर्मसार करना ही हमारा कर्तव्य है, अब चाहे वह औरत हो या मर्द ताकि कोई और उस ग़लत राह पर चलने का हौसला न करे.
किसी भी गलत तत्व को उसके लिंग के आधार पर बखशा नहीं जाना चाहिए।
और हमारे जवाब से शिखा जी संतुष्ट भी हो गयी थीं.


धन्यवाद !

तिरस्कृत होती ‘‘भारतीय नारी’’ में पुरूषों का योगदान भाग -१

भारतीय नारी पर प्रकाशित नारी देह ब्यापार पर प्रकाशित एक पोस्ट के साथ लगे एक पुलिस महिला के साथ मुहँ छिपाये देह ब्यापार में लिप्त महिलाओं के चित्र पर महिलाओं के सम्मान को बनाये रखने के उद्देश्य से कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां मैने भी की जिसपर इस ब्लाग की संस्थापक सहित अन्य सुधी पाठकों का सहयोग माँगा परन्तु किसी भी महिला अथवा नारी सम्मान के फरमाबरदारों का कोई संदेश अथवा टिप्पणी नहीं मिली अपितु सम्मानित लेखक महोदय जी ने यह कहा कि मैं उन पुरूषों के चित्र हासिल करूं जो इस ब्यवसाय में लिप्त हैं उन्हें भी स्थान दिया जायेगा।

अपेक्षकृत कुछ कडे शब्दो में प्रतिउत्तर भी प्राप्त हुये। मेरा मानना यह था कि यह सब इस ब्लाग के गुणात्मक विकास के लिये आवश्यक था सो समयानुसार घटित हो रहा था।

Monday, October 3, 2011

अच्छी बात है कि यहां मौत आ जाती है

यह बात एक देश की नहीं है, यह बात एक काल की भी नहीं है।
धर्म कहता है कि सच बोलो और सच बोलने वाले को शासक मार देते हैं हमेशा से,
यह दुनिया हमारे लिए नहीं है।
अच्छी बात है कि यहां मौत आ जाती है।
अगर जीवन अनंत होता यहां पर तो हम कैसे जी पाते ?

पूरी बात जाननेके लिए देखें :
http://loksangharsha.blogspot.com/2011/10/blog-post_03.html

महा भ्रष्ट कांग्रेसियों से भी बदतर है पवित्र गंगा का ढोंग रचाने वाले भाजपाई


कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में वाकयुद्ध प्रारंभ है वह उनको भ्रष्ट कहते हैं और वह उनको। वस्तुस्तिथि यह है कि अगर दोनों में तुलना की जाये तो इस समय महा भ्रष्ट कांग्रेसियों की सरकार में भी ए.राजा से लेकर सुरेश कलमाड़ी और अमर सिंह से लेकर सुधीर कुलकर्णी तक तिहाड़ जेल में पिकनिक मना रहे हैं। वहीँ भाजपा येदुरप्पा से लेकर बंगारू लक्ष्मण तक किसी भी अपने नेता को या सहयोगी दल के नेता को तिहाड़ जेल की पिकनिक नही करा पायी क्यूंकि उसका मानना है कि वह पवित्र गंगा है और उस पवित्र गंगा में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के कथित दामाद से लेकर पीसी धनिया में घोड़े की लीद मिला कर बेचने वाला कार्यकर्ता पवित्र गंगा के नाम से पवित्र रहता है।
हद तो यहाँ तक हो गयी कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी संजीव भट्ट को शपथ पत्र देने की सजा भुगतनी पड़ रही है। उनको निलंबित कर फर्जी केस गढ़ कर उनके घर में पुलिस द्वारा तोड़ फोड़ की गयी और उनको गिरफ्तार कर पुलिस कस्टडी रिमांड की मांग न्यायालय में की गयी जिस पर न्यायालय ने पुलिस कस्टडी रिमांड के प्रार्थना पत्र को ख़ारिज कर दिया। अडवाणी से लेकर नागपुर मुख्यालय तक किसी भी नेता की नैतिकता जाग्रत नही हुई। संजीव भट्ट की पत्नी ने गृह मंत्री चिदंबरम को पत्र लिखकर संजीव भट्ट की सुरक्षा की मांग की है। इस प्रकरण से पवित्रता का दंभ भरने वाली भाजपा को जरा भी शर्म नही महसूस हुई।

Saturday, September 3, 2011

राम मंदिर के बारे में सही नज़रिया क्या है ?

नफ़रत किसी समस्या का हल नहीं होती
आज एक भाई का लेख पढ़ा जो वास्तव में एक ग़ैर मुस्लिम भाई हैं लेकिन दावा करते हैं कि उन्होंने देवबंद के मदरसे से क़ुरआन और हदीस की तालीम हासिल की है और उनका हाल यह है कि इस्लाम की पारिभाषिक शब्दावली को भी ठीक से नहीं लिख सकते।
एक पोस्ट में उन्होंने वाक़या ए मैराज पर ऐतराज़ जताया है और पैग़ंबर साहब स. को सताने वाले ज़ालिमों को सत्य का पुजारी घोषित कर दिया है।
यह हिंदी ब्लॉगिंग है, यहां कोई भी ब्लॉगर कुछ भी कर सकता है लेकिन हक़ीक़त यह होती है कि वे दूसरों का तो क्या अपना भी भला नहीं कर सकते। जो सत्य को असत्य कह दे नफ़रत की वजह से, उसका भला तब तक हो भी नहीं सकता जब तक कि वह नफ़रत को दिल से निकाल न दे।
हमने उनसे कहा कि
एस. प्रेम जी ! आपके लहजे से इस्लाम और इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. के लिए कितनी घोर घृणा टपक रही है, इसे हरेक पाठक पहली ही नज़र में जान लेता है।
इस तरह घृणा दिल में रखने के बाद आप किसी भी सच्चाई को नहीं समझ सकते।
मैराज हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पेश आई। उसे बेशक आपने नहीं देखा और आप क़ुबूल भी कर सकते हैं और इंकार भी कर सकते हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरब समाज में बिना सूद क़र्ज़ के लेन देन की व्यवस्था की जो कि आज भी दुनिया के सबसे विकसित देश अपने नागरिकों के लिए नहीं कर पाए हैं।
उन्होंने लड़कियों के जीवित गाड़े जाने की प्रथा का पूरी तरह ख़ात्मा कर दिया।
लोगों को ग़ुलाम आज़ाद करने की प्रेरणा दी।
ग़रीबों और ज़रूरतमंदों का हक़ मालदारों के माल में मुक़र्रर किया जिसे मुसलमान आज उनके जाने के लगभग 1400 साल बाद भी निभा रहा है।
इस तरह के बहुत से काम उनके जीवन में देखे जा सकते हैं।
इन कामों को दुनिया के जिस चिंतक ने भी देखा, उसी ने सराहा।
लेकिन आपने इन सब कामों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
जैसे ये काम कुछ भी हैसियत न रखते हों।
ऐसा काम वही आदमी करता है जिसके दिल में कूट कूट कर नफ़रत भरी हो और जिसे सत्य की तलाश न हो।
जिन लोगों ने मुहम्मद साहब को उनके शहर में तरह तरह से तकलीफ़ें बिना बात दीं और फिर मक्का से निकाल दिया, उन्हें आपने सत्य का पुजारी घोषित कर दिया ?
अगर ये सत्य के पुजारी थे तो फिर ये सत्य से क्यों फिर गए और थोड़े दिन बाद ही मुसलमान हो गए। पूरा मक्का ही मुसलमान हो गया और आज तक वहां मुसलमान ही हैं और आज भी वहां बिना सूद के ही लेन देन होता है और ज़कात का सिस्टम आज भी क़ायम है।
आप ख़ुद को ज़्यादा लायक़ समझते हैं तो इससे बेहतर व्यवस्था इस देश में या कम से कम अपने गांव देहात में ही स्थापित करके दिखाएं।
मालिक आप पर दया करे,

आमीन !
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राम मंदिर के बारे में सही नज़रिया क्या है ?
1. जनाब ए आली चुन्नू साहब ! लेखक का दिल ख़ुश हो जाता है जबकि उसके लेख को गहराई से पढ़ ले कोई और आपने हमारा दिल सचमुच ख़ुश कर दिया है और इस ख़ुशी में हम ‘राम मंदिर‘ बनाने लिए भी तैयार हैं और उसमें तन-धन लगाने के लिए भी क्योंकि मन तो पहले से ही लगा हुआ है।
इस बात को हम आज नहीं कह रहे हैं बल्कि जब अयोध्या पर हाई कोर्ट का फ़ैसला भी नहीं आया था हमने तभी कह दिया था कि
‘हम चाहते कि अयोध्या में बने राम मंदिर‘
लेकिन  पहले यह तो जान लीजिये कि 'राम' और रामचंद्र में अंतर क्या है ?
 औरमंदिर किस राम का बनना चाहिए ?
2. दूसरी बात यह है कि मंगोल अब की बात हैं और श्री रामचंद्र जी को हुए 12 लाख 96 हज़ार साल हो चुके हैं एकॉर्डिंग टू पंडितीय कैलकुलेशन, सो आपको पता होना चाहिए कि ऐसे में मंगोल ख़ुद श्री रामचंद्र जी के ही वंशज हुए।
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महासभाई मानसिकता के लोग मुसलमानों में केवल कमियां ही क्यों देखते हैं ?
भाई चुन्नू साहब ! ज़रा ध्यान दीजिए कि हम ऊपर अपने लेख में कह चुके हैं कि मुसलमानों को तौबा करके सुधर जाना चाहिए और सभी लोगों के साथ भलाई का बर्ताव करना चाहिए।
ऐसे में आपका ऐतराज़ जायज़ नहीं है।
...और साथ ही हमने यह भी कहा है कि मुसलमानों को चाहिए कि वे गुनाह से तौबा करके नेकी का जीवन जिएं।

इस तरह की अच्छी बातों से भरी हुई पोस्ट पर भी आपका ऐतराज़ जताना तो यह बताता है कि एक मुसलमान चाहे कितना ही अच्छा और सही लिख ले लेकिन आप जैसे महासभाई मानसिकता के लोग हमेशा उसमें केवल कमियां ही देखेंगे ?
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मुसलमानों पर ऐतराज़ के चक्कर में नशे की हिमायत
चुन्नू भाई साहब ! आप मांस का औचित्य सिद्ध करते हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन आप नशे को भी समाज का अभिन्न अंग बताएं तो हमें आपत्ति है।
नशे से कितने घर तबाह और बर्बाद हैं , अगर आप इस पर एक नज़र डाल लें तो आप कहते कि हां नशा समाज के लिए वर्जित होना चाहिए जैसे कि इस्लाम में है।
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‘शराबन तहूरा‘ अर्थात पवित्र पेय
आपने ख़ुद ही कह दिया है कि जन्नत की शराब दुनिया की शराब से भिन्न होगी।
दरअस्ल पूरा नाम ‘शराबन तहूरा‘ अर्थात पवित्र पेय है। अरबी में शराब हरेक पीने वाली चीज़ के लिए आता है जैसे कि हिंदी में पेय हरेक पीने वाली चीज़ को कहा जाता है। इसके साथ ‘तहूरा‘ शब्द और बढ़ा दिया गया , जिससे किसी को भी ग़लतफ़हमी न रहे लेकिन इसके बावजूद आप ख़ुद तो ग़लतफ़हमी में हों या न हों लेकिन दूसरों को ग़लतफ़हमी में डाल रहे हैं।
पेय पदार्थ को अरबी में 'शराब' कहते हैं और 'तहूरा' का अर्थ पवित्र होता है। हमारा रब जन्नत में 'शराबन तहूरा' अर्थात पवित्र पेय पिलाएगा। इसमें ऐतराज़ कैसा ?
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मुसलमानों पर बेवजह ऐतराज़ क्यों ?
भाई चुन्नू जी ! हमारी समझ में यही नहीं आता कि जब मुसलमान ख़ुद को श्री रामचंद्र जी से नहीं जोड़ते थे तब आप जैसे लोग कहते थे कि मुसलमानों को चाहिए कि वे श्री रामचंद्र जी को अपना पूर्वज मान लें और अब जब हमने मानना शुरू कर दिया है तो आपका फ़र्ज़ था कि आप हमारा हौसला बढ़ाते लेकिन अब आप ऐतराज़ कर रहे हैं कि हम ख़ुद को श्री रामचंद्र जी का वंशज क्यों बता रहे हैं ?
आखि़र आप लोग कन्फ़्यूज़ क्यों हैं ?
आपको पता क्यों नहीं है कि आप मुसलमानों को किस रूप में देखना चाहते हैं ?

धर्म को तो अंबेडकर जी ने भी नहीं नकारा, तब आप क्यों धर्म का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं ?
भाई विनोद हौसलेवाला जी ! धर्म के नाम पर लोगों का शोषण किया गया, उनकी इज़्ज़त लूटी गई और आज भी ये सब धर्म के नाम पर चल रहा है लेकिन आपको जानना चाहिए कि यह सब ‘धर्म के नाम पर किया गया‘, न कि धर्म के अनुसार किया गया।
विरोध पाखंड और ज़ुल्म का किया जाना चाहिए जिसे अधर्म कहा जाता है जबकि आप विरोध कर रहे हैं ‘धर्म‘ का ।
धर्म का विरोध तो कभी बाबा साहब अंबेडकर ने भी नहीं किया।
उन्होंने हिन्दू धर्म की कुरीतियों के विरूद्ध आवाज़ उठाई और जब देखा कि इसे सुधारना संभव नहीं है तो उन्होंने उसका त्याग करके बौद्ध मत ग्रहण कर लिया।
इसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार किया।
आपकी भाषा में कहा जाय तो उन्होंने ‘बौद्ध धर्म की पीपड़ी बजाई‘।

क्या आप बाबा साहब के लिए ऐसे शब्द बोल सकते हैं।
अगर नहीं बोल सकते तो फिर आप दूसरों के महापुरूषों के लिए भी खिल्ली उड़ाने वाले शब्द न बोलें।
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तर्क कीजिए लेकिन शालीनता से
भाई विनोद हौसलेवाला जी ! आपने अंशु जी के लेख का हवाला तारीख़ के साथ दिया है। यह तरीक़ा पत्र पत्रिकाओं में चलता है नेट पर नहीं। लिंक बनाने का तरीक़ा हमारी एक पोस्ट में सिखाया गया है जिसका लिंक इस पोस्ट में दिया हुआ है।
अंशु जी ने सवाल रामचंद्र जी के बारे में किया और नाम अल्लाह का भी ले दिया।
रामचंद्र जी के बारे में जवाब तलब पहले आप उनसे कर लीजिए जो उनका मंदिर बनाने की मुहिम छेड़कर अरबों रूपया डकार गए हैं और अल्लाह के बारे में कोई ऐतराज़ हो तो सवाल अलग से कर लीजिए।
इंशा अल्लाह आपको जवाब दिया जाएगा।

प्लीज़ चीज़ों को गड्डमड्ड मत कीजिए।
हमने अपील की है कि शालीनता के साथ अपने तर्क पेश करें।
आपने तर्क तो पेश किया लेकिन शालीनता भूल गए ?
जो कि पोस्ट का शीर्षक भी है।
 यह लिंक देखें :

नफ़रत दिल में रखने के बाद आप किसी भी सच्चाई को नहीं समझ सकते

आज एक भाई का लेख पढ़ा जो वास्तव में एक ग़ैर मुस्लिम भाई हैं लेकिन दावा करते हैं कि उन्होंने देवबंद के मदरसे से क़ुरआन और हदीस की तालीम हासिल की है और उनका हाल यह है कि इस्लाम की पारिभाषिक शब्दावली को भी ठीक से नहीं लिख सकते।
एक पोस्ट में उन्होंने वाक़या ए मैराज पर ऐतराज़ जताया है और पैग़ंबर साहब स. को सताने वाले ज़ालिमों को सत्य का पुजारी घोषित कर दिया है।
यह हिंदी ब्लॉगिंग है, यहां कोई भी ब्लॉगर कुछ भी कर सकता है लेकिन हक़ीक़त यह होती है कि वे दूसरों का तो क्या अपना भी भला नहीं कर सकते। जो सत्य को असत्य कह दे नफ़रत की वजह से, उसका भला तब तक हो भी नहीं सकता जब तक कि वह नफ़रत को दिल से निकाल न दे।
हमने उनसे कहा कि 
एस. प्रेम जी ! आपके लहजे से इस्लाम और इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. के लिए कितनी घोर घृणा टपक रही है, इसे हरेक पाठक पहली ही नज़र में जान लेता है।
इस तरह घृणा दिल में रखने के बाद आप किसी भी सच्चाई को नहीं समझ सकते।
मैराज हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पेश आई। उसे बेशक आपने नहीं देखा और आप क़ुबूल भी कर सकते हैं और इंकार भी कर सकते हैं लेकिन हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरब समाज में बिना सूद क़र्ज़ के लेन देन की व्यवस्था की जो कि आज भी दुनिया के सबसे विकसित देश अपने नागरिकों के लिए नहीं कर पाए हैं।
उन्होंने लड़कियों के जीवित गाड़े जाने की प्रथा का पूरी तरह ख़ात्मा कर दिया।
लोगों को ग़ुलाम आज़ाद करने की प्रेरणा दी।
ग़रीबों और ज़रूरतमंदों का हक़ मालदारों के माल में मुक़र्रर किया जिसे मुसलमान आज उनके जाने के लगभग 1400 साल बाद भी निभा रहा है।
इस तरह के बहुत से काम उनके जीवन में देखे जा सकते हैं।
इन कामों को दुनिया के जिस चिंतक ने भी देखा, उसी ने सराहा।
लेकिन आपने इन सब कामों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
जैसे ये काम कुछ भी हैसियत न रखते हों।
ऐसा काम वही आदमी करता है जिसके दिल में कूट कूट कर नफ़रत भरी हो और जिसे सत्य की तलाश न हो।
जिन लोगों ने मुहम्मद साहब को उनके शहर में तरह तरह से तकलीफ़ें बिना बात दीं और फिर मक्का से निकाल दिया, उन्हें आपने सत्य का पुजारी घोषित कर दिया ?
अगर ये सत्य के पुजारी थे तो फिर ये सत्य से क्यों फिर गए और थोड़े दिन बाद ही मुसलमान हो गए। पूरा मक्का ही मुसलमान हो गया और आज तक वहां मुसलमान ही हैं और आज भी वहां बिना सूद के ही लेन देन होता है और ज़कात का सिस्टम आज भी क़ायम है।
आप ख़ुद को ज़्यादा लायक़ समझते हैं तो इससे बेहतर व्यवस्था इस देश में या कम से कम अपने गांव देहात में ही स्थापित करके दिखाएं।
मालिक आप पर दया करे,

आमीन !
आप शिक्षित और सभ्य हैं। ज्ञान की बात के अवसर पर इस तरह अज्ञान की बातें करना महान आर्य परंपरा पर कलंक लगाना है। अतः आपसे हमारी विनम्र विनती है कि हमारा काम आपसी नफ़रतों को मिटाना है और इसके लिए आपस में एक दूसरे की परंपराओं और मान्यताओं को जानना बहुत ज़रूरी है। हमारे स्वभाव को समझने के लिए आप यह पोस्ट देखिए
हमारा यह प्रयास कैसा लगा ?
आप भी बताइयेगा।
देखिए अलग-अलग लेखकों के कुछ लिंक्स :
1- अच्छी टिप्पणियाँ ही ला सकती हैं प्यार की बहार Hindi Blogging Guide (22)
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/hindi-blogging-guide-22.html

2- औरत हया है और हया ही सिखाती है , ‘स्लट वॉक‘ के संदर्भ में
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_5673.html 
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Thursday, September 1, 2011

लगा दीजिए मंदिरों का माल दलितों और ग़रीब द्विजों के विकास में Masjid E Rasheed, Deoband

देवबंद की मस्जिद ए रशीद
ईद के मौक़े पर हमने देवबंद के बारे में एक पोस्ट लिखी और कहा कि

हिंदू मुस्लिम की मुहब्बत का ताजमहल है देवबंद


लेकिन जो लोग हिन्दू मुस्लिम के प्रेम के दुश्मन हैं, ऐसे मौक़ों पर वे ज़रूर आते हैं। कुछ शरारती तत्व आ गए और पोस्ट के विषय से हटकर क़ुरआन में कमियां बताने लगे।
देखिए उनके ऐतराज़ और हमारे जवाब इस लिंक पर
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%A6-%E0%A4%AE-%E0%A4%B8-%E0%A4%B2-%E0%A4%AE-%E0%A4%95-%E0%A4%AE-%E0%A4%B9%E0%A4%AC-%E0%A4%AC%E0%A4%A4-%E0%A4%95-%E0%A4%A4-%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%B2-%E0%A4%B9-%E0%A4%A6-%E0%A4%B5%E0%A4%AC-%E0%A4%A6
भंडाफोड़ू उर्फ बी.एन. शर्मा जी ! ब्लॉगस्पॉट के हमारे ब्लॉग पर तो आपकी आने की कभी हिम्मत नहीं हुई और आप यहां चले आते हैं, ऐसा अन्याय क्यों ?
क़ुरआन में युद्ध के आदेश पर आपके ऐतराज़ को फ़िज़ूल बता रहे हैं स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी ।
देखिए उनके कथन का एक अंश और लिंक पर जाकर पढ़िए पूरी किताब।
आपके आने से हम बहुत ख़ुश हैं और इस ख़ुशी का कारण आप ही जैसे विद्वान जान भी सकते हैं। वर्ना हम तो पिछले कई महीनों से बोर हो रहे थे।
आपका सादर धन्यवाद !
स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी का महान शोध
मायाभिरिन्द्र मायिनं त्वं शुष्णमवातिर : ।
विदुष्टं तस्य मेधिरास्तेषां ॠवांस्युत्तिर ॥
-ऋग्वेद , मण्डल 1 , सूक्त 11 , मन्त्र 7
भावार्थ - बुद्धिमान मनुष्यों को इश्वर आदेश देता है कि -
साम , दाम, दण्ड , और भेद की युक्त से दुष्ट और शत्रु जनों का नाश करके विद्या और चक्रवर्ती राज्य कि यथावत् उन्नति करनी चाहिये तथा जैसे इस संसार में कपटी , छली और दुष्ट पुरुष वृद्धि को प्राप्त न हों , वैसा उपाय निरंतर करना चाहिये ।
-हिंदी भाष्य महर्षि दयानंद
अत: पैम्फलेट में दी गयी आयतें अल्लाह के वे फ़रमान हैं , जिनसे मुस्लमान अपनी व एकेश्वरवादी सत्य धर्म इस्लाम की रक्षा कर सके । वास्तव में ये आयतें व्यवाहरिक सत्य हैं । लेकिन अपने राजनितिक फायदे के लिए कुरआन मजीद की इन आयतों की ग़लत व्याख्या कर उन्हें जनता के बीच बंटवा कर कुछ स्वार्थी लोग , मुसलमानों व विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच क्या लड़ाई-झगडा करने व घृणा फैलाने का बीज बो नहीं रहे ?

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भंडाफोड़ू उर्फ बी.एन. शर्मा जी ! सोमनाथ के बारे में मुख़बिरी भी तो पंडों ने माल के बंटवारे के लालच में ही की थी ग़ज़नी जाकर महमूद ग़ज़नवी से। वर्ना उसे क्या सपना आ रहा था कि सोमनाथ के मंदिर में इतना बड़ा ख़ज़ाना है जिस पर पंडे ऐश मार रहे हैं।
उसने ग़लत काम किया है लेकिन ग़रीब लोग तो यही कहेंगे कि अगर वह उस ख़ज़ाने को (ग़ज़नी की) आर्य प्रजा के विकास में न लगाता तो वह धन भी केरल के पदमनाभ मंदिर की तरह ही ब्लॉक पड़ा रहता।
आपकी आमदनी पर चोट पड़ी तो आपका चिल्लाना वाजिब है।
हम आपकी पीड़ा समझते हैं।
अब सुधार लीजिए अपनी ग़लतियां और लगा दीजिए मंदिरों का माल हरिजनों और दलितों और ग़रीब द्विजों के विकास में, वर्ना कोई न कोई आकर यह भी लूट लेगा।
लुटेरों को आधा दोष दीजिए और आधा दोष ख़ुद पर भी लगाइये। 
.......................................
प्यारे भाई शरद जी ! आपकी ईद की मुबारकबाद हमें दिल से क़ुबूल हैं।
देखिए हम किसी पर सवार नहीं हैं और न ही यहां किसी के ब्लॉग पर जाकर हम आपत्ति कर रहे हैं। इसके बावजूद हमारे ब्लॉग पर लोग आकर मज़ाक़ उड़ा रहे हैं इस्लाम का , ऐसा क्यों ?
हमने ईद के संबंध में एक अच्छी पोस्ट लिखी है और इसमें किसी के धर्म की कोई निंदा नहीं है।
क्या किसी को हक़ बनता है कि वह इतनी साफ़ सुथरी पोस्ट पर आकर ऐतराज़ करे ?
और जब कोई ऐतराज़ करता है तो भी हम चुप रह जाते हैं लेकिन फिर वे लोग बार बार आग्रह करते हैं कि हमें जवाब दो।
ऐसे में हम क्या करें ?

...और सत्य तो वही देखेगा जो निष्पक्ष होकर विचार करेगा।

Saturday, August 13, 2011

हमारे बेटे अमन ख़ान की पैदाइश पर Welcome And Prayer

ब्लॉगर के बेटे के जन्म का चर्चा Amn Khan
अच्छाई और बुराई, दोनों ही ख़सलतें हरेक इंसान के अंदर मौजूद होती हैं।
समाज में अमन तब आएगा जब इंसान के अंदर ईमान आएगा, ईमानदारी आएगी।
ईमानदारी की पहली पहचान यह है कि इंसान जिस बात को अपने लिए पसंद करे , दूसरों के लिए भी वही बात पसंद करे।
जो आदमी किसी को दो बोल शुभकामनाओं के भी न दे सके, वह दूसरों को कुछ और भला क्या दे सकता है ?
...हम ख़ुशनसीब हैं कि हमारे बेटे अमन खान की पैदाइश पर मासूम साहब को ख़ुशी हुई और उन्होंने एक लेख लिखकर अपनी ख़ुशी में बहुत से लोगों को शरीक किया और उन्होंने हमारे बेटे को अपना प्यार और आशीर्वाद दिया। कुछ भाई बहनों ने दूसरी पोस्ट्स पर भी अपनी नेक ख्वाहिशात का इज़्हार किया है।
इसके लिए हम अमन से प्यार करने वाले सभी भाई बहनों के तहे दिल से शुक्रगुज़ार हैं।
अल्लाह हम सबको अमन की राह चलाए और हमारी नस्लों को इसी राह का वारिस बनाए,
आमीन ! 
See my comment : 
http://www.amankapaigham.com/2011/08/blog-post_10.html?showComment=1313279550196#c4068502343906902771

Thursday, July 14, 2011

‘इस्लामी आतंकवाद‘ एक ग़लत शब्द है Terrorism or Peace, What is Islam

इस्लामी आतंकवाद यह एक शब्द है जिसे पश्चिम के सूदख़ारों ने इस्लाम को बदनाम करने के लिए दिया और दुनिया भर के सूदख़ोरों ने इसे दुहराया। यह लेख पढ़कर पता चला कि दीन की सही समझ न रखने वाले ऐसे लोग भी इसकी चपेट में आ गए हैं जिनके नाम मुसलमानों जैसे हैं। हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके परिजनों को करबला में ज़ालिमाना तरीक़े से क़त्ल कर डाला गया। इन ज़ालिमों में हुकूमत के लालची यज़ीद के सैनिक भी थे और वे दग़ाबाज़ भी थे जिन्होंने ख़त लिखकर आली मक़ाम इमाम हुसैन रज़ि. को बुलाया था। नबी स. और औलादे नबी से मुहब्बत ईमान का लाज़िमी तक़ाज़ा और उसकी एक लाज़िमी अलामत है। ये ज़ालिम इस मुहब्बत से बिल्कुल ख़ाली थे। इनके अमल को आज तक दुनिया के किसी भी आलिम ने ‘इस्लामी अमल‘ नहीं कहा। दग़ाबाज़ों का कोई भी अमल कभी इस्लामी नहीं होता।
हज़रत मुहम्मद स. ने फ़रमाया है कि
‘जो धोखा दे वह हम में से नहीं है।‘

क़ातिलाने हुसैन का धोखा जगज़ाहिर है। उनके अमल को सिर्फ़ आतंकवाद कहा जाना उचित है।
इस्लाम क्या है ?
यह इमाम हुसैन रज़ि. की ज़िंदगी से जानने की ज़रूरत है।
‘इस्लाम‘ का एक अर्थ सलामती और शान्ति है।
‘इस्लामी आतंकवाद‘ का अनुवाद होता है ‘शान्तिवादी आतंकवाद‘।
क्या दुनिया में ‘शान्तिवादी आतंकवाद‘ संभव है ?
जहां शान्ति होगी वहां आतंकवाद नहीं हो सकता और जहां आतंकवाद होगा वहां शान्ति नहीं हो सकती।
अतः ‘इस्लामी आतंकवाद‘ एक ग़लत शब्द है। अपने खंडन के लिए यह शब्द ख़ुद ही गवाह है।
लेखक को इस बात पर संजीदगी से विचार करना चाहिए।

Tuesday, June 7, 2011

वंदे मातरम् गाने मात्र से आदमी में वीरता और बलिदान की भावना नहीं आ जाती वर्ना बाबा रामदेव जी में ये गुण ज़रूर आ चुके होते



आपने सच कहा हमारे बाबा भोले-भाले हीरो हैं और कपिल जी हैं खलनायक सनम बेवफ़ा के डैनी जैसे ।
कपिल जी के लिए हम निम्न कहावतें नहीं कह सकते:

1. कौआ चला हंस की चाल और वह अपनी भी भूल गया ।
2. सियार का रंग उतर गया तो उसकी हक़ीक़त खुल गई।
3. अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान ।

अगर ये कहावतें कपिल जी पर फ़िट नहीं बैठतीं तो फिर आप उन्हें ज़िम्मेदार भी नहीं ठहरा सकते लेकिन फिर भी हमें मानना चाहिए कि बाबा भोले हैं । आज भी जब उन्हें नींद नहीं आती तो आश्रम की औरतें उन्हें कपिल जी का नाम लेकर सुला देती हैं बिल्कुल शोले स्टाइल में लेकिन बाबा हैं कि ठीक डेढ़ बजे जाग जाते हैं और छलाँगे लगाने लगते हैं । अब निजी ख़र्चे पर दो चार लेडीज़ सूट के साथ एक बुरक़े का ऑर्डर भी उन्होंने दिया है । ऐसी अफ़वाह सुनने में आ रही है।
बाबा को अच्छा कहो और कपिल जी को बुरा , यह नीति ठीक है । जो ऐसा करेगा उसे ठुमकती बुढ़िया वर्ग लाइक करेगा , श्योर।
आपके टोटके भी ग़ज़ब के हैं साहब । आप वही बोलते हैं जो लोग सुनना चाहते हैं । जबकि हम वह कहते हैं जो हम कहना चाहते हैं।
और हम यह कहना चाहते हैं कि वंदे मातरम् गाने मात्र से आदमी में वीरता और बलिदान की भावना नहीं आ जाती वर्ना बाबा रामदेव जी में ये गुण ज़रूर आ चुके होते।

Monday, June 6, 2011

जनता ‘मानवता के आदर्श‘ को पहचानना सीखे और उसका अनुसरण भी करे। तभी उसे ऐसे नेता मयस्सर आएंगे जो उसे ‘सीधी राह‘ दिखांएगे - Dr. Anwer Jamal

हालात ख़राब हैं मालिक सबका भला करे और हमारे मुल्क में अम्नोअमान  बना रहे , बस यही दुआ है हमारी  
भाई साहब ! पहले भी कई बार हाशिए पर जा चुकी है कांग्रेस लेकिन जो लोग उसकी जगह लेते हैं वही फिर से उसके आने का मार्ग तैयार करते हैं। इस तरह ये सभी दल एक के बाद एक सत्ता का सुख लेते रहते हैं। जनता को किसी बेईमान से राहत मिलने वाली नहीं है क्योंकि जनता नेकी के उसूलों पर चलने के लिए ही तैयार नहीं है। जनता तो गुटखा, तंबाकू और शराब में पहले खरबों रूपये ख़र्च करती है और फिर शीला की जवानी जैसे अश्लील गानों पर नाचती झूमती है और कैंसर और एड्स की मरीज़ होकर दुख भोग कर मर जाती है। 
नेक लोग इन लुच्चे-टुच्चे लोगों में ऐसे पिसते रहते हैं जैसे कि गेहूं के साथ घुन। 
आज जिसे देखिए वही नेता बना घूम रहा हो चाहे उनमें राजनेताओं की कुटिल चाल समझने के लायक़ अक्ल न हो। अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव इसके ज़िन्दा उदाहरण हैं। ये तो फिर भी ग़नीमत हैं लेकिन आजकल तो वेश्याएं और समलैंगिक तक नेता बने घूम रहे हैं और देश को दिशा देने में लगे हैं।
अरे भाई ! नेता बनने के लिए कुछ योग्यता होना ज़रूरी है कि नहीं या पीछे भीड़ इकठ्ठी हुई नहीं और खड़े हो गए नेता बनकर ?
जनता की समस्याओं का समाधान तभी मुमकिन है जबकि वह ‘मानवता के आदर्श‘ को पहचानना सीखे और उसका अनुसरण भी करे। तभी उसे ऐसे नेता मयस्सर आएंगे जो उसे ‘सीधी राह‘ दिखांएगे।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/baba-ramdev-ji.html?showComment=१३०७३९९७२८३५७

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Please go to 
http://akhtarkhanakela.blogspot.com/2011/06/blog-post_2798.html?showComment=1307418601107#c4638248580970462366

Sunday, June 5, 2011

BJP and Congress have same character. 'जैसा भूतनाथ वैसा प्रेतनाथ'

हमारी नज़र में तो जैसा भूतनाथ वैसा प्रेतनाथ ।
शासन तो BJP का भी आया था ।

1. क्या उसने लोकपाल बिल मंज़ूर कराया ?

2. क्या वह विदेशों से काला धन वापस लाई ?

आज अपने वोट बैंक खो देने के डर से ये बाबा का साथ दे रहे हैं । जो इनके ख़िलाफ़ नहीं बोलता , उसे क्या उपाधि दी जाएगी ?

अनवर जमाल बोलता है सच और ग़द्दार सच कभी सुनता नहीं ।

टिप्पणी सुरक्षित कर ली गई है । यहाँ से हटेगी तो वाटिका में लगेगी ।

वंदे ईश्वरम्
........

और फिर सचमुच ऐसा हुआ कि आदरणीय प्रोफ़ेसर पी. के. मिश्रा जी सच को सहन नहीं कर पाए और अपने विरूद्ध समझकर उन्होंन इस टिप्पणी को अपने ब्लॉग हरी धरती से मिटा डाला।
लेकिन सच कभी मिटता नहीं है। कमेंट गार्डन यही सिद्ध करता है।

Saturday, May 28, 2011

...भारत माता की बात आई तो ग़ैरत सोती रही ? -Dr. Anwer Jamal


भाई रतन सिंह शेख़ावत जी ! आपसे किसने कह दिया कि भारत की राजपूत जाति के अलावा किसी और जाति पर शोध करने के लिए विदेशी नहीं आते ?
यह भी आपने अच्छी बात बताई कि मुग़ल पीरिएड और इंग्लिश पीरिएड पर भी विदेशी शोध करने नहीं आते।

लड़की ब्याहने की बात आई तो लड़की के बाप की ग़ैरत जाग गई और कल्ला की भी और अगर अकबर रिश्ते की बात न करता तो ये दोनों ससुर जवांई उसके दरबार में बैठे ही थे उसकी जी हुज़ूरी करने के लिए और अकबर उन्हें लड़ने के लिए जहां भेजता था, जाते थे और अपने जाति भाईयों का नरसंहार करते रहते थे।
यह ग़ैरत भी अजीब तरह की ग़ैरत है जिसे केवल राजस्थान के राजपूत ही जानते हैं और इसी अजीबो-ग़रीब चरित्र वाली ग़ैरत पर शोध करने के लिए विदेशी आते होंगे।
आप ज़रा बताएं तो सही कि कल्ला की मौत के बाद शेष राजस्थानी राजपूत राजाओं ने अकबर के खि़लाफ़ बग़ावत का कितना बड़ा बिगुल फूंका, ख़ासकर कल्ला के ससुर राजा भोज ने क्या किया ?
या वह अपना दामाद मरवा के भी अकबर का ही वफ़ादार बना रहा ?
अपनी लड़की-बहू की बात आई तो ग़ैरत जाग गई और भारत माता की बात आई तो ग़ैरत सोती रही ?
भय्ये ऐसे स्वाभिमान और ऐसी अनोखी ग़ैरत का तो हमें सचमुच पता नहीं है, यह तो शोध वाले ही समझ सकते हैं।
http://vedkuran.blogspot.com/2011/05/dr-anwer-jamal.html
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Please see
Ratan Singh Shekhawat said...

@अनवर जमाल
तुम क्या जानो स्वाभिमान !
भारत पर मुगलों ने वर्षों राज किया ,अंग्रेजों ने भी यहाँ सालों तक राज किया फिर भी आज विदेशों से शोधकर्ता सिर्फ राजपूत संस्कृति और चरित्र पर शोध करने आते है | मुगलों व अंग्रेजी राज पर कोई शोध करने नहीं आता |
राजपूत संस्कृति समझना तुम्हारे जैसे लोगों के बस की बात नहीं |

Friday, May 27, 2011

दुखों को भूलकर मुस्कुराना सीख ले - Dr. Anwer Jamal

ईशा अग्रवाल  

ओ बहना,
बड़े नाज़ुक हैं हालात तेरे
जायज़ हैं पर सवालात तेरे
तन्हाई में घुटती है क्यों
जवानी के हैं दिन-रात तेरे
बाहर निकल और घूम फिर
ताज़ा हो जाएंगे जज़्बात तेरे
दुखों को भूलकर मुस्कुराना सीख ले
दूर हो जाएंगे सारे सदमात तेरे


बहुत अच्छे जज़्बात।
हमारे ब्लॉग पर भी तो आइये आप कभी।
आपकी इंतज़ार में
अनवर जमाल



http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/05/blog-post.हटमल
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Please see
http://dastak-ekpehel.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html?showComment=1306514679595#c7528030443585054414
ना जाने ये कैसे हालात हैं मेरे?
ज़िन्दगी से कई अनसुलझे सवालात है मेरे?
कोई नहीं है पास,
तनहा मैं और खयालात हैं मेरे,
मीलो वीरानी छाई हैं,
ना चाहते हुए भी याद किसी की आई हैं,
कह दो इन यादो से सताए ना मुझको,
बे-मतलब रुलाये ना मुझको,
रुमाल अब आंसुओं को सोखता नहीं,
कोई किसी के आंसू पोछता नहीं,
इतना अकेला कभी अपने को पाया ना था,
दूर मुझसे कभी मेरा साया ना था,
ना जाने ये कैसे हालात हैं मेरे?
ज़िन्दगी से कई अनसुलझे सवालात है मेरे?

Sunday, May 22, 2011

शाकाहारी संतों की बात मानी जाए तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव ही नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे।

स्वांस स्वांस का करो विचारा । बिना स्वांस का करो आहारा ।
सीधी सी बात है । जिसकी स्वांस का आवागमन होता है । वह जीव है । और उसको मारना पाप ही है । अर्थात इस भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय हेतु स्वांस को आधार माना गया है ।
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.com/2011/05/blog-post_20.html
@भाई राजीव जी ! आप संतों का आदर करते हैं उनके बताए आहार को ही लेना चाहते हैं तो आप इस धरती पर जीवित नहीं रह सकते। इन संतों को पशु-पक्षी सांस लेते नज़र आए तो लिख दिया कि आहार में श्वास को आधार मानो लेकिन उन्हें ‘सत्य का ज्ञान‘ नहीं था कि पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं। आज वैज्ञानिकों ने उस सत्य का पता चला लिया है जिसका पता इन संतों को नहीं था। वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि ‘पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं।‘

वैज्ञानिक वनस्पति जगत को भी जीवित वस्तुओं में ही शुमार करते हैं। अगर इन संतों की बात मान ली गई तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे। बस जो मन में समा गया उसे नियम बनाकर परोस दिया। इसी का नाम दर्शन और फ़िलॉसफ़ी है और हद तो तब हो जाती है जबकि ये लोग क़ुरआन की मूल भाषा का ज्ञान प्राप्त किए बिना ही उसकी आयतों के अर्थ भी बताने लगते हैं। अगर इन्हें इस्लाम के बारे में कोई बात कहनी है तो उसे कहने से पहले इस्लामी विद्वानों से मिलकर पूरी बात पता कर लेनी चाहिए। आजकल तो ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं कि अगर आप फ़ोन करके भी कुछ जानना चाहें तो वे आपको फ़ोन पर भी पूरी जानकारी देंगी।  
ये फ़ोन नं. ऐसे ही हैं 011-24355454, 41827083, 24356666, 46521511
फ़ैक्स 011-45651771
इन पर मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब, दिल्ली की ओर से नियुक्त किसी सेवाकर्मी से बात होती है। उनके लेक्चर्स के वीडियो देखने की सुविधा निम्न वेबसाइट पर है

हिंदू ग्रंथों और मुस्लिम ग्रंथों में मांसाहार को अनुचित नहीं माना गया है। देखिए यह लिंक

Haj or Yaj विभिन्न धर्म-परंपराओं का संगम : हज By S. Abdullah तारिक

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इस संवाद की पृष्ठभूमि जानने के लिए देखें 

कुरआन या कोई धर्म माँस खाने को नहीं कहता । 

‘बाग़ ए बाहू‘, जम्मू का एक मशहूर बाग़ है . इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर दिल पर छा जाते हैं - Anwer Jamal


शालिनी जी ! आपके दूसरे कमेंट का लुत्फ़ हेते हुए हम आपको यह बताना चाहेंगे कि जो इस फ़ोटो में आप जो बाग़ देख रही हैं, उस बाग़ का नाम है ‘बाग़ ए बाहू‘। यह जम्मू का एक मशहूर बाग़ है। इस बाग़ में इतने प्रेमी जोड़े प्रेम अगन में तपते हुए मिलते हैं कि अच्छे-ख़ासे जमे हुए पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाते हैं।
नेट पर आप इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर (दृश्यों) का लुत्फ़ लेने के लिए निम्न लिंक पर जा सकती हैं :

Bagh-e-Bahu : http://www.panoramio.com/photo/2952280

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आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ
शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

हैं लहू रंग जिसके शामो-सहर
मैं उसी अहद का मुक़द्दर हूँ

एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

शब्दार्थ
आरज़ू ए सहर-सुबह की ख़्वाहिश , शाम ए ग़म-ग़म की शाम , लहू रंग-रक्त रंजित , शामो सहर-शाम और सुबह ,अहद-युग
तारीकियों-अंधेरों , अनवर-सर्वाधिक प्रकाशमान

Sunday, May 15, 2011

डा. दिव्य जी, बुलंद हौसला दिलाएगा आपको मुश्किलों पर विजय

@ डा. दिव्य जी ! आपका हौसला तोड़ते होंगे वे हार्मोनजीवी , जिन्होंने आपसे कोई उम्मीद ख़ामख़्वाह पाल ली होगी ।
मैं तो ऐसे लोगों को अपनी ब्लॉग रूपी फ़सल में खाद की तरह इस्तेमाल करता हूँ।
भाग जाते हैं सब, जो आते हैं मेरा हौसला तोड़ने । वे बेचारे ख़ुद ही अपना हौसला तोड़-छोड़ बैठते हैं।
मेरा अनुसरण कीजिए और 'मार्ग' पर चलिए। विरोधी खुद मार्ग पर आ जाएँगे ।
विरोधी कुछ भी नहीं हैं बल्कि उल्टे वे तो आपकी गरिमा का सामान हैं ।
जो आपको चित करने आएगा और ख़ुद ही चित हो जाएगा तो आपकी शान बुलंद होना तय है ।
मैं तो इंतज़ार ही नहीं बल्कि दुआ भी करता हूँ कि मालिक आज तो किसी को भेज दे !
...लेकिन कोई आने-गाने के लिए तैयार ही नहीं होता । इस मामले में आप ख़ुशनसीब हैं और फिर भी गिला-शिकवा कर रही हैं ?   

अल्लामा इक़बाल फ़रमाते हैं कि

तुन्दी ए बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती हैं तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए 


......

शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़
Please see 

And also see

Saturday, May 14, 2011

क्या हिंदुस्तानी अदालतें ईरानी अदालत से बेहतर हैं ?

इकतरफ़ा प्रेम के मारे अंधे प्रेमी लड़की का इंकार सुनकर लड़की के चेहरे पर तेज़ाब फेंक देते हैं ताकि अगर वह उनकी न हो सकी तो वह किसी और की भी न हो सके । भारत में ऐसी घटनाएं आए दिन घटती रहती हैं ।
भारतीय क़ानून ईरान के इस्लामी क़ानून की तरह अपराधी को तुरंत दंडित नहीं करता । तुरंत क्या बल्कि अक्सर तो करता ही नहीं ।
एक औरत की क्या वैल्यू है ?
यहाँ तो पूरे के पूरे समुदाय का संहार कर दीजिए , क़ातिलों का बाल टेढ़ा होने वाला नहीं है ।
सन 1984 के दंगे में मारे गए सिक्खों के क़ातिलों में से आज तक किसी एक को भी फाँसी न हुई और अफ़ज़ल गुरू वग़ैरह को जिन्हें फाँसी की सज़ा सुना भी दी है तो उसे देते हुए डर लग रहा है ।
हमारे देश की अदालतें बढ़िया हैं और यहाँ सबको बिना कुछ ख़र्च किए जल्दी इंसाफ़ मिलता है , इसलिए ईरान को भारतीय अदालतों की तरह इंसाफ़ करना चाहिए ।
ऐसा कहने वाला कौन है ?

ख़ुद तो इंसाफ़ करना आता नहीं और जहाँ हो रहा है , वहाँ से सीखते नहीं , देखते नहीं।
ये वे आँखें हैं जो नफ़रत के तेज़ाब से खुद अंधी कर चुके हैं और अब सत्य और मार्ग दिखता ही नहीं ।

जयहिंद ।
वंदे ईश्वरम ।

Tuesday, May 10, 2011

सारी ज़मीन एक प्रेतलोक बन चुकी है Ghostland

आप असीमा बहन की पोस्ट पर जायेंगे तो आपको वहां मेरा यह कमेंट नज़र आएगा : 


@ असीमा, मेरी बहन ! यह दुनिया ख़ुदग़र्ज़ और अहसान फ़रामोश है। इसके पूंजीपति भी ऐसे ही हैं और इसके ग़रीब भी ऐसे ही हैं। आपके आदरणीय पिता जी ने अपनी नैतिक चेतना के प्रभाव में आकर जो कुछ किया, वह अपनी जगह दुरूस्त है। किसी के मानने या उसे नकारने से उसके सही होने में कोई अंतर नहीं आएगा और न ही आपके पिता की महानता में कोई कमी-बेशी होगी। जो भी नेकी और सच्चाई की राह पर चला है, आर्थिक रूप से वह अपने साथियों से पिछड़ता ही गया और अंत में उसे वह जनता भी भुला देती है, जिसके लिए वह लड़ता है।
जलियां वाला बाग़ में गोलियां खाने वालों को इस देश के नेता और जनता भुला चुके हैं, आपके पिता के साथ भी यही किया जा रहा है और देशसेवा करने वालों के साथ हमेशा यही किया जाएगा। यह एक सच है। 
आपके मन की पीड़ा को मैं समझ सकता हूं। जो लोग कंधों पर उठाए जाने के लायक़ हों, उन्हें यूं नज़रअंदाज़ करने का मतलब है कि आगे से कोई भी ऐसा बलिदान नहीं करेगा और अगर करेगा तो उसका अंजाम भी यही होगा। जितने पढ़े-लिखे लोग हैं, वे इस सच्चाई से वाक़िफ़ हैं, इसीलिए वे 90 प्रतिशत भ्रष्ट हो चुके हैं। नेकी का बदला दुनिया कभी किसी को दे ही नहीं पाई, बदला तो सिर्फ़ वह मालिक ही देता है जिसने बंदे को पैदा किया और उसे नेकी की प्रेरणा दी है। दुनिया की सामूहिक नैतिक चेतना मृत प्रायः है, केवल शरीर ज़िंदा हैं। सारी ज़मीन एक प्रेतलोक बन चुकी है। इन प्रेतों के पास शरीर भी है। लगभग सभी भटक रहे हैं। सत्य और न्याय से तो बहुत कम मतलब रह गया है। हरेक आदमी ऐश करना चाहता है और समृद्ध होना चाहता है। 
<b>जो भी नेकी सच्चे मालिक को भुलाकर की जाती है, वह हसरत और अफ़सोस के सिवा कुछ और नहीं दे पाती।</b> आपके आदरणीय पिता जी के द्वारा जो भी सत्य आप पर प्रकट हुआ है, उसे आप एक और महानतर सत्य को पाने का माध्यम बना लेंगी तो आपके मन की दुनिया में शिकायत और मायूसी के अंधेरों के बीच एक नई आशा का सूरज उगेगा। मुझे यह उजाला हासिल है, आपको भी मैं यही भेंट करता हूं। 
आपके लिए और आपके आदरणीय पिता जी के लिए मैं पालनहार से विशेष प्रार्थना करूंगा।
धन्यवाद !