Sunday, December 30, 2012

ब्लॉगिंग से मोह भंग की मूल वजह बताने में हिचकिचाहट कैसी ?

ब्लॉगिंग से मोह भंग की मूल वजह जो है उसे कहना समझदारी के खिलाफ़ समझ लेने से भी हिन्दी ब्लॉगिंग पर बुरा असर पड़ा है.
See:
डा. टी. एस. दराल साहब अपनी लम्बी पोस्ट में यह मूल वजह कितनी स्पष्ट कर पाए हैं ?
यह देखना आपका काम है .
अंतर्मंथन: 2012 -- ब्लॉगिंग की राह में मज़बूर हो गए --- हिंदी ब्लॉगिंग का कच्चा (चर्चा) चिट्ठा !

अब आप एक छोटी सी पोस्ट भी देखिये,  ब्लॉगिंग छोड़ने से पहले उन्होंने क्या कहा है ?


कमेन्ट माफिया 


आज कल हमारे ब्लॉग जगत पर एक अलग सा माफिया ग्रुप का कब्ज़ा हो गया। इस माफिया ग्रुप का नाम मैंने रखा हैं कमेन्ट माफिया या सी कंपनी भी कह सकते हैं।

कुछ लोगो का आपसी ग्रुप इतना मजबूत हो चूका हैं कि अगर किसी ब्लोगेर ने दादी कि सुनी हुई कहानी भी लिख दी तो ७०- ८० कमेन्ट तो मिल ही जाता हैं। और कुछ ब्लोगेर बंधू तो ऐसे हैं कि सिर्फ महिलावो के ब्लॉग पर ही टिप्पड़ी करेंगे। और कुछ कि तो बात ही अलग हैं।

कुछ बंधू तो nice लिख कर के चलते बनते हैं।

भाई लोग ऐसा क्यों करते हैं। मैंने बहुत से ऐसे ब्लॉग देखे हैं जिनमे बहुत सी अच्छी -अच्छी जानकारी दी गई, होती हैं, धर्म के उपर बहुत से ब्लॉग अच्छी जानकारी देते हैं। समाज के उपर हो या विज्ञानं के उपर लेकिन ऐसे लेख बिना पढ़े ही रह जाते हैं। आज कि राजनितिक हलचल हो या महंगाई , कोई नहीं जाता , बेचारा लिखने वाला भी सोचता हैं कि में क्या लिखू।

में अपनी बात ही कह दू, कि अगर मैं किसी कि बुराई करता नज़र आ जाऊ तो लोग दबा के टिप्पड़ी करेंगे लेकिन अगर कोई अच्छी बात लिखने लगु तो ऐसे लगता हैं कि साली टिप्पड़ी भी नासिक के प्याज के खेते से आ रही हैं।

खैर अब देखता हूँ।

Tuesday, December 18, 2012

बुरे लोगों की बुराई से बचने के लिए अच्छे लोगों को संगठित होकर अच्छे नियमों का पालन करना ही होगा


जब भी कोई ऊपर वाले पर कोई इल्ज़ाम लगाता है तो यह उनके दिल पर क़ियामत की तरह टूटता है जो सत्य जानते हैं। सत्य यह है कि उस पालनहार प्रभु ने किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं किया है। उसने मुनष्य को पेड़-पौधों और पशुओं से उच्चतर चेतना दी है। पेड़-पौधे और पशु सभी अपने स्वाभाविक कर्तव्य अंजाम देते हैं लेकिन यह इंसान ही है जो कि अपने अधिकार का ग़लत इस्तेमाल करता है। परस्पर सहयोग के बजाय शोषण कौन करता है ?
यह काम इंसान करता है। 
जो शोषण की शिकायत करता है, वही दूसरे स्तर पर ख़ुद शोषण करता हुआ नज़र आएगा। अपनी बहुओं से दहेज का लालच न रखने वाली और दूसरों का उदाहरण देकर उसके दिल को न जलाने वाली सास ननदें कितनी हैं ?
दहेज हत्या से लेकर कन्या भ्रूण हत्या तक, दर्जनों घिनौने अपराध बिना औरत के सहयोग के संभव ही नहीं हैं।
तांत्रिकों और बाबाओं को अपना रूपया और अपनी अस्मत देने के लिए औरत ख़ुद चलकर उनके डेरे पर जाती है। जो पढ़ी लिखी होने का दंभ रखती हैं और बाबाओं के पास नहीं जातीं, वे हीरोईनें और मॉडल्स बनकर दुनिया के सामने ख़ुद को परोसती हैं। पर्दे के पीछे उनके साथ क्या होता है ?, इसकी कहानियां भी समय समय पर सामने आती रहती हैं। वे तो आग भड़काकर पीछे हट जाती हैं लेकिन क्लिंटन अपने ऑफ़िस की किसी न किसी लेविंस्की को थाम ही लेता है। लेविंस्की न मिले तो अपने ब्वायफ़्रेंड के साथ देर रात अकेले घूमती हुई कोई आधुनिका ही सही। जागरूक शिक्षित कन्याएं आजकल गर्भनिरोधक गोलियां खा रही हैं और लिव इन रिलेशनशिप में रहकर अपनी मर्ज़ी से अपना शोषण करवा रही हैं।
ईश्वर की एक निर्धारित व्यवस्था है,  जिसका नाम सब जानते हैं। जब आदमी या औरत उससे बचकर किसी और मार्ग पर निकल जाए तो फिर वह जिस भी दलदल में धंस जाए तो उसके लिए वह ईश्वर को दोष न दे बल्कि ख़ुद को दे और कहे कि मैं ही पालनहार प्रभु के मार्गदर्शन को छोड़कर दूसरों के दर्शन और अपनी कामनाओं के पीछे चलता रहा।
अल्लाह तो लोगों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता, किन्तु लोग स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते है (44) जिस दिन वह उनको इकट्ठा करेगा तो ऐसा जान पड़ेगा जैसे वे दिन की एक घड़ी भर ठहरे थे। वे परस्पर एक-दूसरे को पहचानेंगे। वे लोग घाटे में पड़ गए, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया और वे मार्ग न पा सके (45)
सूरा ए यूनुस आयत 44 व 45
See: 

आदमी आज भी वही है जोकि वह आदिम युग में था। समय के साथ साधन बदलते हैं लेकिन प्रकृति नहीं बदलती। बुरे लोगों की बुराई से बचने के लिए अच्छे लोगों को संगठित होकर अच्छे नियमों का पालन करना ही होगा। इसके सिवाय न पहले कोई उपाय था और न आज है।

दीन के नाम पर दुकानदारी करने वाले मुल्लाओं की एक कारस्तानी The Sin

इसलाम एक चेतना है, क़ुरआन व सीरत पढ़कर इसे अपने अंदर ख़ुद जगाना पड़ता है। यह चेतना न जागे तो इसलाम महज़ कुछ निर्जीव परम्पराओं का समूह बन कर रह जाता है और जाहिल लोग इसलाम का नाम लेकर अपनी चौधराहट क़ायम कर लेते हैं। लोग इन्हें अपना नेता, पीर और क़ाज़ी समझते हैं। ये लोग उन ग़रीबों से भी धन ऐंठ लेते हैं, जिन्हें कि ज़कात व सदक़ा दिया जाना चाहिए। आम मुसलमान को क़ुरआन, मदरसे और मस्जिद से अक़ीदत (श्रद्धा) होती है। ये मुफ़्तख़ोर चौधरी मुसलमानों की अक़ीदत का फ़ायदा उठाते हैं। इसलाम और मुसलमानों को दुनिया में बदनाम करने वाले यही हैं। मुईनुददीन और मरियम का वाक़या ऐसे ही ज़रपरस्तों को बेनक़ाब करता है.
Source : http://sohrabali1979.blogspot.in/2012/11/blog-post_12.html

इस्लाम को कलंकित करने वाला फरमान

ऐसा लगता है कि आजकल इस्लाम को बदनाम करने का ठेका स़िर्फ मुसलमानों ने ले रखा है. न स़िर्फ दुनिया के तमाम देशोंबल्कि भारत से भी अक्सर ऐसे समाचार मिलते रहते हैंजिनसे इस्लाम बदनाम होता है और मुसलमानों का सिर नीचा होता है. कभी बेतुके फतवे इस्लामी तौहीन का कारण बनते हैं तो कभी तालिबानी पंचायती फरमान. पिछले दिनों ऐसी ही एक शर्मनाक ख़बर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज़िले से मिलीजिसके अनुसारवहां के सलेमपुर की एक मुस्लिम पंचायत ने गांव के एक बुज़ुर्ग दंपत्ति का सामाजिक बहिष्कार करने की घोषणा की है. बताया जाता है कि लगभग 1000 की मुस्लिम आबादी वाले इस गांव में मोइनुद्दीन एवं मरियम नामक एक ग़रीब बुज़र्ग दंपत्ति अपने झोपड़ीनुमा कच्चे मकान में रहते हैं और टॉफीनमक एवं बिस्कुट जैसी सस्ती चीज़ें बेचकर जीवनयापन करते हैं. इनकी ग़रीबी का आलम यह है कि ये अपने चंद मवेशियों के लिए घास-चारा और ईंधन के लिए लकड़ी आदि दूरदराज़ के खेतों से इकट्ठा करते हैं. इनके रहन-सहन से ही इनकी आर्थिक हैसियत का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
इसी गांव के मुसलमानों ने अपनी एक मुस्लिम पंचायत अर्थात अंजुमन बना रखी है. गांव में एक मदरसा निर्माणाधीन हैजिसके लिए स्थानीय एवं बाहरी लोगों से चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. अंजुमन द्वारा मोइनुद्दीन एवं मरियम से भी मदरसे के चंदे के रूप में पांच सौ रुपये की मांग की गई. इस ग़रीब दंपत्ति ने अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र चंदा देने में असमर्थता व्यक्त कर दी. बस फिर क्या थामोइनुद्दीन तो इस पंचायत की नज़र में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया. अंजुमन ने मोइनुद्दीन के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार की घोषणा कर दी. उसकी ख़स्ताहाल झोपड़ी के बाहर एक बोर्ड लगा दिया गया कि गांव का कोई भी व्यक्ति मोइनुद्दीन की दुकान से कोई सामान नहीं ख़रीदेगाकोई उससे किसी प्रकार का बर्तावव्यवहार एवं वास्ता नहीं रखेगा. यदि किसी ने अंजुमन के आदेश का उल्लंघन किया तो उसे 500 रुपये बतौर ज़ुर्माना अदा करने होंगे. तालिबानी फरमान का अंत यहीं नहीं हुआबल्कि इन तथाकथित इस्लामी ठेकेदारों ने इस दंपत्ति को अपने खेतों में शौच के लिए जाने पर भी पाबंदी लगा दी. यह आदेश भी जारी कर दिया गया कि मरणोपरांत इस परिवार के किसी व्यक्ति को स्थानीय क़ब्रिस्तान में दफन भी नहीं किया जाएगा. पंचायत के फरमान के बाद इस परिवार को अपनी दो व़क्त की रोटी जुटा पाने में भी दिक्कत पेश आ रही है. गांव की मुस्लिम पंचायत इसकी बदहाली और भुखमरी पर स्वयं को गौरवांवित महसूस कर रही हैवहीं दूसरी तऱफ पड़ोस के एक गांव का सिख परिवार मानवता का प्रदर्शन करते हुए इसे दो व़क्त की रोटी मुहैया करा रहा है.
यह तो था इन तथाकथित इस्लामपरस्तों का तालिबानी फरमानजो इन्होंने यह सोचकर जारी किया कि शायद ये तुगलकी सोच वाले मुसलमान इस्लाम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैंपरंतु आइए देखें कि इस्लाम दरअसल इन हालात में क्या सीख देता है. मैं अपने बचपन से कुछ इस्लामी शिक्षाएं वास्तविक इस्लामी दानिश्वरों से सुनता आया हूं. ऐसी ही एक इस्लामी तालीम थी कि पहले घर में चिराग़ जलाओफिर मस्जिद में. इस कहावत का अर्थ क्या हैयही न कि अपनी पारिवारिक ज़रूरतों से अगर पैसे बचें तो फिर अपने ख़ुदा की राह में ख़र्च करें. यह तो क़तई नहीं कि आप ख़ुद या आपके पड़ोसी भूखे रहें और आप मस्जिद या मदरसे के निर्माण कार्य के लिए चंदा देते फिरें. जो लोग इस्लाम में वाजिब कहे जाने वाले हज के नियम से वाक़ि़फ हैंवह यह भलीभांति जानते हैं कि अगर आप क़र्ज़दार हैं और हज कर रहे हैंतो वह भी जायज़ नहीं है. यहां तक कि अगर आप पर अपने बेटों एवं बेटियों की शादी का ज़िम्मा बाक़ी है तो पहले इन पारिवारिक ज़रूरतों को पूरा करने के बाद ही हज किया जा सकता है. अगर आप आर्थिक रूप से सुदृढ़ हैं तो फिर कभी भी हज कर सकते हैं. इसी तरह लगभग सभी इस्लामी कार्यकलापों के लिए यह बताया गया है कि हमेशा चादर के भीतर ही पैर फैलाना है. यहां तक कि फिज़ूलख़र्ची को भी इस्लाम में गुनाह क़रार दिया गया है. अपने को आर्थिक परेशानी में डालकर धर्म पर पैसे ख़र्च करना इस्लाम हरगिज़ नहीं सिखाता. मगर तालिबानी सोच रखने वाले कुछ मुसलमानों ने अपने गढ़े हुए इस्लाम के अंतर्गत फरमान जारी करके दो ग़रीब मुसलमानों को रोजी-रोटी से वंचित कर दिया. वहीं एक सिख परिवार वास्तविक मानवीय इस्लामी एवं सिख धर्म की शिक्षाओं का पालन करते हुए इन्हें दो व़क्त की रोटी मुहैया कराता रहा. क्या यही है इन तालिबानों का इस्लाम?क्या ऐसे फरमान इस्लाम धर्म की वास्तविक शिक्षाओं के अंतर्गत जारी किए जाने वाले फरमान कहे जा सकते हैं?
यह ग़ैर इस्लामी फरमान जारी करने के बाद पंचायत के प्रमुख का कहना था कि यह परिवार नमाज़ नहीं पढ़ताहमारे चंदे मेंख़ुशी और गम मेंहमारे धार्मिक कामों में शरीक नहीं होतालिहाज़ा गांव के लोग इससे अपना वास्ता क्यों रखेंसवाल यह है कि मान लिया जाए कि वह परिवार यदि किसी धार्मिक आयोजन या नमाज़-रोज़े में उनके साथ शरीक नहीं होता तो भी किसी को इस बात का कोई अधिकार नहीं है कि वह ज़ोर-ज़बरदस्ती करके उसके विरुद्ध कोई ऐसा फरमान जारी करे. किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधियों में शिरकत करना या न करना किसी भी व्यक्ति का अति व्यक्तिगत मामला है. यदि कोई व्यक्ति धार्मिक कार्यकलापों में हिस्सा लेता है तो वह उसके पुण्य का भागीदार होगा. इसी प्रकार शरीक न होने अथवा नमाज़ आदि अदा न करने पर पाप का भागीदार भी स़िर्फ वही होगा. धर्म प्रचारक या मुल्ला-मौलवी उसे अपनी बात प्यार-मोहब्बत से समझा सकते हैंलेकिन उसका सामाजिक बहिष्कार करनाउसे आर्थिक संकट में डालना या उसके विरुद्ध कोई तालिबानी फरमान जारी करना पूरी तरह ग़ैर इस्लामीग़ैर इंसानी और अधार्मिक है.
दरअसल आज ऐसे तालिबानी सोच रखने वाले मुसलमानों एवं कठमुल्लाओं ने इस्लाम धर्म को बदनाम कर दिया है. चाहे वह अ़फग़ानिस्तान के बामियान प्रांत में महात्मा बुद्ध जैसे विश्व शांति के दूत समझे जाने वाले महापुरुष की मूर्ति को तोप के गोलों से ध्वस्त करने जैसी कायरतापूर्ण कार्रवाई हो या पाकिस्तान में मस्जिदोंदरगाहों एवं धार्मिक जुलूसों में शिरकत करने वाले शांतिप्रिय लोगों की बड़ी संख्या में जान लेना या भारत में कभी बेतुके फतवे जारी करनासलेमपुर गांव जैसा फरमान सुनाया जाना आदि कृत्य शर्मनाकइस्लाम विरोधी और मानवता विरोधी ही नहींबल्कि इस्लाम धर्म की प्रतिष्ठा पर धब्बा लगाने वाले भी हैं. यह कैसी विडंबना है कि उस गांव के तथाकथित मुसलमान एक मुस्लिम परिवार को भूखा-परेशान देखकर ख़ुश हो रहे हैंजबकि एक सिख परिवार उस परेशानहाल मुस्लिम परिवार की भूख और परेशानियां सहन नहीं कर पा रहा और यथासंभव मदद कर रहा है. क्या संदेश देती हैं हमें ऐसी घटनाएंक्या ऐसे फरमानों से इस्लाम का नाम रोशन हो रहा हैयहां एक सवाल यह भी उठता है कि जिस मदरसे की बुनियाद में ऐसे तालिबानी फरमान शामिल होंउन मदरसों से भविष्य में निकलने वाले बच्चों की मज़हबी तालीम क्या हो सकती है और आगे चलकर वही तालीम क्या गुल खिलाएगीइस बात का बड़ी सहजता से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इन कट्टरपंथी तालिबानी सोच के मुसलमानों को उस सिख परिवार से प्रेरणा लेनी चाहिए,जो उनके द्वारा भुखमरी की कगार पर पहुंचाए गए मुस्लिम परिवार को रोटी मुहैया करा रहा है. आज भी देश में हज़ारों ऐसी मिसालें मिलेंगीजिनमें हिंदूमुस्लिम एवं सिख समुदाय के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. कहीं हिंदू नमाज़ पढ़ते हैंकहीं रोज़ा रखते हैंकहीं मोहर्रम में ताज़ियादारी करते हैं तो कहीं पीरों-फकीरों की दरगाहों की मुहा़फिज़त करते हैं. इन ग़ैर मुस्लिमों का इस्लामी गतिविधियों की ओर झुकाव की वजह स़िर्फ उदारवादी इस्लामी शिक्षाएं हैंन कि कट्टरपंथी तालिबानी फरमान.
सलेमपुर की घटना से एक बात और ज़ाहिर होती है कि जब इन मुसलमानों का रवैया अपने ही समुदाय के एक परिवार के साथ ऐसा है तो फिर दूसरे समुदाय के प्रति इनसे प्रेम-सद्भाव से पेश आने की उम्मीद कैसी की जा सकती है. प्रभावित परिवार आज इस स्थिति में पहुंच गया है कि बुज़ुर्ग महिला मरियम ने यहां तक कह दिया कि अब हम इनके आगे न झुक सकते हैंन कुछ मांग सकते हैंबल्कि हमें ग़ैर मुस्लिमों के आगे झुकने और उनसे मांगने में कोई हर्ज नहीं है. कितना बेहतर होतायदि यही पंचायत अथवा अंजुमन ग़रीबों को आत्मनिर्भर बनानेउनकी रोज़ी-रोटी और शिक्षा आदि सुनिश्चित करने को तवज्जो देती. बजाय इसके वह लोगों से ज़ोर-ज़बरदस्ती करके चंदा वसूलने और न देने पर उनका सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार करने जैसा अधार्मिक कृत्य अंजाम दे रही है. ज़रूरत इस बात की है कि ऐसे अज्ञानी कठमुल्लाओं से इस्लाम धर्म को कलंकित होने से बचाया जाए. क्या ऐसे तुगलकी और तालिबानी फरमान ग़ैर मुस्लिमों को अपनी ओर आकर्षित कर सकेंगेजिनसे मुस्लिम समुदाय का ही कोई परिवार रुसवा और बेज़ार हो जाए. जो इस्लाम सभी धर्मों एवं समुदायोंयहां तक कि पेड़-पौधों के साथ भी मानवता और सद्भाव से पेश आने की बात करता होवह किसी को भूखे रहने के लिए मजबूर करने की तालीम कैसे दे सकता है. इस्लाम में सूदखोरी हराम क्यों क़रार दी गई हैइसीलिए कि किसी व्यक्ति पर नाजायज़ आर्थिक बोझ न पड़े. इस्लाम में दिनोंदिन बढ़ती जा रही ऐसे लोगों की घुसपैठ रोकनी होगी. ऐसे फरमान जारी करने वालों के ख़िला़फ भी सख्त कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत हैजैसा सलेमपुर के उस ग़रीब दंपत्ति के साथ वहां की अंजुमन ने किया. यह ग़ैर इस्लामी और अमानवीय हैइसकी जितनी भी घोर निंदा की जाएकम है.
तनवीर जाफरी