@ आशुतोष जी ! धर्म ईश्वर की ओर से होता है और सत्य हमेशा मंगलकारी होता है। यह परम सत्य है। इसी परम सत्य को हिंदू ऋषियों ने जाना पहचाना और इसी का ज्ञान लोगों को दिया। उनके धर्म का नाम ही हिंदू धर्म है और हरीश सिंह जी को अपने हिंदू होने पर गर्व है लिहाज़ा उन्हें हिंदू धर्म में कमी नज़र नहीं आती है और उन्होंने कहा भी है कि गीता में संपूर्ण सत्य विद्यमान है। उन्होंने कमी बताई है हिंदू समाज में और यह इतिहास से सिद्ध है, आपने भी माना है कि कालांतर में कई तरह के विकार समाज में फैले और तमाम सुधारों के बावजूद ये विकार आज भी समाज में देखे जा सकते हैं। इन्हीं में से कुछ का ज़िक्र उन्होंने किया है। उन्होंने इन्हीं कुरीतियों का विरोध किया है जो कि एक आदमी को दूसरे आदमी से दूर करती हैं। कुरीतियों के विरोध को हिंदू विरोध की संज्ञा नहीं दी जा सकती और न ही देनी चाहिए वर्ना समाज सुधार का कार्य असंभव हो जाएगा।
राजा राम मोहन राय ने जब सती प्रथा का विरोध किया और हिंदू कन्याओं को शिक्षा देनी की शुरूआत की तो धर्माचार्यों द्वारा उनके कामों को हिंदू धर्म को मिटाने वाला कहा गया, जो कि सही नहीं था। आज यह बात सब जानते हैं। अगर हरीश जी की बातों को आप उन्हीं के कथन से समझने की कोशिश करते तो आसानी से उनकी मंशा आप समझ लेते और अगर आप उनकी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी भी पढ़ लेते तो आपको यह भी पता चल जाता कि एक आदमी एक साथ ही हिंदू और मुस्लिम हो सकता है।
मुस्लिम वह है जो कि अपनी इच्छाओं पर न चलकर ईश्वर के प्रति पूर्णतः समर्पित होकर उसके आदेशों को पालन करता है। ईश्वरीय ज्ञान के आलोक में चलने वाला आदमी कभी अज्ञान के अंधेरों में नहीं भटक सकता। इसलाम एक ही है, उसका स्रोत है ईश्वरीय ज्ञान कुरआन और उसे अपने आचरण से जीवंत से करने वाले पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब स. का जीवन चरित्र और उनके कथन। अगर आप मुस्लिम अर्थात ईश्वर के प्रति समर्पित होकर जीवन गुज़ारने के इच्छुक हैं तो आप कुरआन और हदीस, दोनों का अध्ययन खुद कर लीजिए । सत्य सरल और स्पष्ट है, निष्पक्ष होते ही आप पर तुरंत खुल जाएगा। जिन कामों से उनमें आपको रूकने के लिए कहा जाए, उनसे आप रूक जाएं और जिन कामों को करने के लिए कहा गया है, उन्हें आप करने लगें। बस, हो गए आप मुस्लिम।
लेकिन अगर ये सवाल आप सत्य और ज्ञान पाने के उद्देश्य से नहीं कर रहे हैं तो फिर आपको कोई नहीं बता पाएगा कि ईश्वर के आदेश के अनुसार जीवन कैसे व्यतीत किया जाए ?
मुस्लिम समाज में भी जब ईश्वरीय ज्ञान के बजाय बादशाहत और व्यक्तिवाद हावी हो गया और जनता भी ज्ञान के बजाय अपनी इच्छाओं के पीछे चलने लगी तो मुसलमानों में भी बहुत से मत बन गए और बहुत सी ख़राबियां पैदा हो गईं। ख़राबियों को दूर करना और दूरियों को पाटना ही हमारा काम होना चाहिए, न कि इन्हें बाक़ी रखना या इन्हें और ज़्यादा बढ़ा देना।
मत-मतांतर में बंटी हुई मानवता को एक करने के लिए प्रयास किये जाएं, आज यह समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
इस विषय में आप मेरा एक और लेख देख सकते हैं-
राजा राम मोहन राय ने जब सती प्रथा का विरोध किया और हिंदू कन्याओं को शिक्षा देनी की शुरूआत की तो धर्माचार्यों द्वारा उनके कामों को हिंदू धर्म को मिटाने वाला कहा गया, जो कि सही नहीं था। आज यह बात सब जानते हैं। अगर हरीश जी की बातों को आप उन्हीं के कथन से समझने की कोशिश करते तो आसानी से उनकी मंशा आप समझ लेते और अगर आप उनकी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी भी पढ़ लेते तो आपको यह भी पता चल जाता कि एक आदमी एक साथ ही हिंदू और मुस्लिम हो सकता है।
मुस्लिम वह है जो कि अपनी इच्छाओं पर न चलकर ईश्वर के प्रति पूर्णतः समर्पित होकर उसके आदेशों को पालन करता है। ईश्वरीय ज्ञान के आलोक में चलने वाला आदमी कभी अज्ञान के अंधेरों में नहीं भटक सकता। इसलाम एक ही है, उसका स्रोत है ईश्वरीय ज्ञान कुरआन और उसे अपने आचरण से जीवंत से करने वाले पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब स. का जीवन चरित्र और उनके कथन। अगर आप मुस्लिम अर्थात ईश्वर के प्रति समर्पित होकर जीवन गुज़ारने के इच्छुक हैं तो आप कुरआन और हदीस, दोनों का अध्ययन खुद कर लीजिए । सत्य सरल और स्पष्ट है, निष्पक्ष होते ही आप पर तुरंत खुल जाएगा। जिन कामों से उनमें आपको रूकने के लिए कहा जाए, उनसे आप रूक जाएं और जिन कामों को करने के लिए कहा गया है, उन्हें आप करने लगें। बस, हो गए आप मुस्लिम।
लेकिन अगर ये सवाल आप सत्य और ज्ञान पाने के उद्देश्य से नहीं कर रहे हैं तो फिर आपको कोई नहीं बता पाएगा कि ईश्वर के आदेश के अनुसार जीवन कैसे व्यतीत किया जाए ?
मुस्लिम समाज में भी जब ईश्वरीय ज्ञान के बजाय बादशाहत और व्यक्तिवाद हावी हो गया और जनता भी ज्ञान के बजाय अपनी इच्छाओं के पीछे चलने लगी तो मुसलमानों में भी बहुत से मत बन गए और बहुत सी ख़राबियां पैदा हो गईं। ख़राबियों को दूर करना और दूरियों को पाटना ही हमारा काम होना चाहिए, न कि इन्हें बाक़ी रखना या इन्हें और ज़्यादा बढ़ा देना।
मत-मतांतर में बंटी हुई मानवता को एक करने के लिए प्रयास किये जाएं, आज यह समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
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