Sunday, November 25, 2012

मानव जाति की वास्तविक विडम्बना manav jati

यह बात बिल्कुल सही है कि बहुत सी बातें मौलवी साहिबान और पंडित जी अपने विवेक से बताते हैं और कई  बार ऐसा भी होता है कि धर्म की गददी पर ऐसे स्वार्थी तत्व बैठ जाते हैं जिनका मक़सद परोकपकार और ज्ञान का प्रचार नहीं होता बल्कि शोषण होता है। आज ऐसे तत्व ज़्यादा हैं लेकिन धार्मिक जन भी हैं।
धर्म जीवन की गुणवत्ता बढ़ाता है, जीने की राह दिखाता है। सबको बराबरी और प्रेम की शिक्षा देता है। ईश्वर सबको आनंदित देखना चाहता है। इसीलिए वह मनुष्य का मार्गदर्शन करता है। 
उसके मार्गदर्शन का नाम ही ‘धर्म‘ है, 
अपनी तरफ़ से मनुष्य जो कुछ चलाता है, वह दर्शन है।
दुनिया में दर्शन बहुत से हैं जबकि धर्म केवल एक है और सदा से बस एक ही है।
यही एक धर्म कल्याणकारी है।
लोग अपने स्वार्थ में पड़कर एक धर्म के अनुसार व्यवहार न करके अपने बनाए हुए दर्शनों में चकराते रहते हैं।
मानव जाति की वास्तविक विडम्बना यही है।
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यह कमेंट पल्लवी सक्सेना जी की पोस्ट पर किया गया है-
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Sunday, November 18, 2012

सब एक परमेश्वर की रचना और एक मनु/आदम की संतान हैं

चर्चामंच पर एक पोस्ट 'गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश' का लिंक देने से कुछ फ़िरकापरस्तों नें समस्त चर्चाकारों के ऊपर मूढ़मति और न जाने क्या-क्या होने का आरोप लगाकर वह लिंक हटवा दिया तथा अतिनिम्न कोटि की टिप्पणियों से आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी को नवाज़ा।



इस पर हमने कहा है :
@ चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी ! सब एक परमेश्वर की रचना और एक मनु/आदम की संतान हैं. सब एक गृह के वासी हैं और मरकर सबको यहाँ से जाना है. इसलिए अच्छा यह है सब एक दुसरे को प्रेम और सहयोग दें. इस से सबको शान्ति मिलेगी और सबके बच्चे एक सुरक्षित वातावरण में पल सकेंगे.
हिन्दुओं को उनका धर्म और गुरु यही बताता है और मुसलामानों को उनका इस्लाम यही सिखाता है.
ऐतराज़ करने वाले भी यह बात जानते हैं लेकिन उनके अपने राजनीतिक स्वार्थ हैं. वे भी हमारे अपने भाई हैं. जल्दी ही वह दिन आएगा जब वे भी ठीक बात कहेंगे. नफरतों की उम्र ज़्यादा नहीं होती.
इसीलिए हमने मुसलामानों से कहा है कि
ऐ मुसलमानो ! हक़ अदा करो