Monday, February 28, 2011

केवल धर्म-धर्म की रट लगाने की बजाय हिंदुओं को हिंदू धर्म के और मुसलमानों को इस्लाम के उसूलों का पालन करके देश और समाज में शांति स्थापित करनी चाहिए Good Idea

@ शाहनवाज़ भाई ! पहली बात तो आपकी यह ग़लत है कि मैं किसी पर ज़ोर ज़बर्दस्ती कर रहा हूं ।
क्या मैंने किसी की कनपटी पर पिस्टल रखी हुई है ?
मैं तो मुसलमानों से भी कहता हूँ कि अगर आप इस्लाम धर्म को सत्य मानते हैं तो किसी को मत सताओ और अपने संपर्क में आने वालों को ज्यादा से ज्यादा नफ़ा पहुँचाओ।
अपने हिंदू भाइयों से भी मैं यही कहता हूँ कि आप जिस धर्म को सत्य मानते हैं उस पर चलिए भी तो सही ।
ऐसा कहने वाले को भारत में संत और महापुरुष माना जाता है।
अब आप बताइये कि आख़िर क्यों न कहा जाए कि आप लोग जिस धर्म को मानते हैं , उसके अनुशासन का पालन भी कीजिए ?
क्या भारतवासियों को मनमाना आचरण करके बर्बाद होते चुपचाप देखता रहूँ ?
आप बताइये कि क्या एक मुसलमान पर वाजिब नहीं है कि दूसरों को जहन्नम की आग से बचाने की फ़िक्र करे?
एक व्यवस्था को सत्य मानने का दावा करने वाले अगर उस व्यवस्था का पालन नहीं करते तो फिर उसका झंडा हाथ में लेकर इस्लाम और कुरआन को कोसना छोड़ दें ।
समीक्षा सिंह ऐसा ही करते आ रहे हैं जिनका जवाब आपने खुद तो दिया नहीं और अब चाहते हैं कि मैं भी इन्हें हकीकत न बताऊं , आखिर क्यों ?
क्या केवल इन दुनिया के हवसख़ोरों से धर्म निरपेक्ष और अच्छा आदमी कहलाने के लिए ?
न तो मुझे किसी की तारीफ की जरूरत है और न ही मुझे अपनी छवि खराब होने का ही कोई डर है ।
.......
भाई शाहनवाज़ साहब ने
http://hbfint.blogspot.com
पर मुझ पर ऐतराज जताया तो मैंने उन्हें यह जवाब दिया है ।

ब्लागर अपर्णा पलाश का नहीं बल्कि यह शेर मेरा है जो 'अहसास की परतें' ब्लाग के कमेँट बॉक्स पर नज़र आता है My creation

@ भाई समीक्षा सिंह जी ! आप लोग मेरी रचनाओं को ठीक ढंग से नहीं पढ़ते इसीलिए आप मुझसे बदगुमान और परेशान रहते हैं । अपर्णा पलाश बहन का कोई भी शेर मैंने अपने ब्लाग 'अहसास की परतें' के कमेँट बॉक्स के साथ नहीं लगाया है , तब आप मुझे चोरी का झूठा इल्ज़ाम क्यों दे रहे हैं ?
जो इस जगत का रचनाकार है वही एक ईश्वर है मैं उसी को मानता हूँ और आप भी उसी को मानते होंगे।
अगर आपकी नज़र में आपके धर्मग्रंथ प्रक्षिप्त नहीं हैं तो आप उनका पालन कीजिए।
आप खुद कहते हैं कि हिंदू धर्म के ग्रंथों से आपकी आस्था हिली चुकी है।

1. क्या आप आज के युग में विधवा को सती कर सकते हैं ?
2. क्या आप आज की व्यस्त जिंदगी में तीन टाइम यज्ञ कर सकते हैं ?
3. क्या आप आज अपने बच्चों को वैदिक गुरूकुल में पढ़ाते हैं ?
4. क्या आपके पिताजी 50 वर्ष पूरे करके वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल में जा चुके हैं ?
5. और अगर मुसलमानों की तरह वह जंगल नहीं जाते तो क्या अब आप उनसे अपने धर्मग्रंथों के पालन के लिए कहेंगे ?
......
http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com
पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं।

'मिथिलेश दुबे और हरीश सिहं ने साबित कर दिया है कि ...' इसे कहते हैं बिना बतंगड़ की बात और राई पर पहाड़ , यक़ीन न आए तो ख़ुद देख लीजिए

'प्रेम और एकता किसी को देखनी और सीखनी हो तो वह LBA परिवार के सदस्यों के आचरण को देख सकता है ।'
ऐसा मैं पहले भी कह चुका हूँ । आपने अपने ब्लाग का नाम भी बदल लिया और LBA को सबसे बड़ा ब्लाग समूह भी मान लिया , आज की इस ख़बर ने तो पूरे हिंदी ब्लाग जगत के सामने प्यार का एक पहाड़ ही खड़ा कर दिया है और इसके सामने LBA का हरेक दुश्मन आज ऊँट से भी छोटा होकर रह गया है ।
सचमुच यह हिंदी ब्लाग जगत की बड़ी खबरों में से एक है ।
UP Khabar के ज़िम्मेदार इस प्रेमपूर्ण व्यवहार के लिए बधाई के पात्र हैं । हम तो शुरू से ही आपके साथ हैं और इंशा अल्लाह , भविष्य में भी अपने इलाक़े से आपको अच्छी खबरें उपलब्ध कराने की और इस मंच को ऊँचा उठाने की पूरी कोशिश करेंगे ।
आप इस कमेँट को commentsgarden.blogspot.com
पर भी देख सकते हैं ।
......
www.upkhabar.in
पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं ।

Sunday, February 27, 2011

हे लिलीपुटो ! जो मुझे गालियाँ देते हैं , उन्हें भी अपने साझा ब्लाग HBFI का सदस्य बनाकर मैंने हिंदी ब्लाग जगत में एक ऐसा आदर्श क़ायम किया है जिसके सामने आज हरेक बड़ा ब्लागर बौना साबित हो रहा है , Anwer Jamal as Gulliver

@ 'अहसास की परतें-समीक्षा' के स्वामी ! आप ख़ुद को मेरा दुश्मन समझते हैं , मेरी निंदा करते हैं और नफ़रत में इतने अंधे हो चुके हैं कि अपनी सभ्यता खोकर आप मुझे अश्लील गालियाँ देते हैं । 'अहसास की परतें-समीक्षा' नाम से आपने एक पूरा ब्लाग ही मुझे बुरा कहने के लिए बना लिया है और उसे जिस Gmail अकाउंट से बनाया है उसमें भी आपने मेरे नाम के साथ भद्दी गाली जोड़ रखी है और इसी अकाउंट से आप हिंदी महिला पुरुष ब्लागर्स को अपने लेख का लिंक भेजते हैं और आपने झंडा उठा रखा है हिंदू धर्म का ?
हिंदू धर्म तो गालियाँ देने से रोकता है , तब आप उसका उल्लंघन करके उसकी रक्षा कैसे कर पाएँगे ?
ख़ैर , इस सबके बावजूद मैंने आपको HBFI का सदस्य बनाया है क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ ।
'हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल HBFI' हिंदी ब्लागर्स की एक सम्मानित संस्था है जिसे दुनिया भर में पढ़ा जाता है । इसमें हरेक लाभकारी विषय पर आप लिख सकते हैं और दूसरों के लेखन पर बेधड़क अपनी राय भी दे सकते हैं लेकिन किसी को भी मूर्खादि नहीं कह सकते । इस साझा ब्लाग की पहली पोस्ट में ही यह नियम बता दिया गया है । भविष्य में धूर्तादि कहने की इस गलती की पुनरावृत्ति आपके द्वारा न की जाय अन्यथा आपकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी।
और यह भी याद रखिए कि मुझे पता है कि आप कौन हैं और कहाँ नौकरी करके लौटे हैं ?
...................
HBFI की पोस्ट 'ब्लाग प्रवर्तक कौन ?' पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं। इसी के साथ आप यह भी देख सकते हैं कि आज के समय में जबकि साझा ब्लाग्स के संचालक अपने विरुद्ध कोई टीका टिप्पणी बर्दाश्त नहीं करते तब भी अनवर जमाल 'निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय' के सिद्धांत को साकार कर रहा है ।

प्रबुद्ध कहलाने वाले ब्लागर्स आए दिन अपनी समझदानी का अपमान क्यों और कैसे करते रहते हैं ? इसे किसने , किसको और कहाँ बताया ? The secret

लगातार कई साझा ब्लाग्स के वुजूद में आने का फ़ायदा पुराने ब्लागर्स के साथ साथ नए ब्लागर्स को भी पहुँचा है। आज उनका नाम सभी जान रहे हैं , उन्हें पढ़कर पाठक टिप्पणियाँ भी कर रहे हैं। उनके ब्लागीय जीवन में यह सुखद बदलाव आया है साझा ब्लाग्स के कारण । अपने लेख 'ब्लाग जगत में मेरा अनुभव' में श्री दिलबाग विर्क जी ने अपने अनुभव AIBA पर शेयर किए तो हमने उन्हें यह टिप्पणी दी है :
@ दिलबाग विर्क जी ! आपको यहाँ देखकर और 'हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल HBFI' में जोड़कर हमें शायद आपसे भी ज्यादा खुशी है । नए ब्लागर्स में आप सचमुच अच्छा लिखते हैं लेकिन जो लोग शिल्प और शैली आदि की नज़र से आप जितना अच्छा नहीं लिख पाते उनके लेखन को स्तरहीन केवल वे लोग कहते हैं जिन्हें वास्तव में ब्लागिंग की समझ ही नहीं होती ।
ब्लाग दरअस्ल डायरी है और डायरी को डायरी की विधा पर ही परखा जाना चाहिए। अगर ऐसा किया जाए तो फिर यह कहना संभव न रहेगा कि अधिकतर ब्लागर्स कूड़ा करकट लिखते हैं । ऐसा कहना ज़्यादातर ब्लागर्स का अपमान तो बाद में है पहले खुद अपनी समझदानी का अपमान करना है जो कि आए दिन प्रबुद्ध कहलाने वाले ब्लागर्स करते रहते हैं।
आप मेरे इस कमेंट को
commentsgarden.blogspot.com
पर भी देख सकते हैं और हमारी वाणी पर भी ।

Saturday, February 26, 2011

नारी नर का सहारा होकर क्यों खुद बेसहारा है आज भी ? The greedy seller

नाव अलग थी ,
अलग था घाट भी
नदी अलग थी
अलग था मार्ग भी
तन वही था मन वही
नयन वही था
वही था सपन भी
जिनमें वफ़ा की आस थी
चातक सी प्यास थी
काया थी माया थी
सपनों की पूरी एक दुनिया थी
जीवन की यह माला थी
जो टूटी और बिखर गई
समय के प्रहार से
किन्तु मैं यह माला
आँसुओं की डोर में
पिरो रही हूं आज भी

उम्र तो पानी है
जिसमें रवानी है
जो बहता है पल पल
माटी के शरीर में
प्रत्येक नस नाड़ी में
अपने निशान छोड़ता हुआ
आत्मा अमर है और
मन भी चिर युवा
मानव का मूल मन है
मन एक दर्पण है
इच्छाओं का भंडार है
व्याकुल है यह आज भी
इंतज़ार है किसी का उसे आज भी

दान धर्म है
और प्रेम तपस्या
प्रेम, दान-धैर्य में बल है
मनुष्य, पर बड़ा निर्बल है
नर का सहारा नारी तो है आज भी
नारी मगर ख़ुद क्यों बेसहारा है आज भी ?
......
रश्मि प्रभा जी की रचना 'जो जीता वही सिकंदर' को पढ़कर जो भाव मन में उठे , उन्हें शब्दों में व्यक्त किया तो यह रचना सामने आई ।

Friday, February 25, 2011

'हिंदी ब्लाग जगत की सबसे बड़ी महाख़बर आ गई' एक दोषपूर्ण शीर्षक , एक भ्रामक प्रचार Hyperbolic style

अजित वडनेरकर जी को बधाई !
वे सन्मार्ग पर चलकर परलोक में भी मालिक के सच्चे ईनाम के हक़दार बनें , ऐसी मैं कामना करता हूं
और साथ ही इस पोस्ट के शीर्षक पर ऐतराज़ करता हूं।
अजित जी को पुरस्कार मिलने की घोषणा को ब्लाग जगत की सबसे बड़ी घटना कैसे कहा जा सकता है ?
ब्लागवाणी आदि एग्रीगेटर्स के आने और चले जाने को और उनकी जगह हमारी वाणी के स्थापित हो जाने को 'ब्लाग जगत की सबसे बड़ी महाख़बर' क्यों नहीं माना गया ?
सामूहिक बलाग्स में एक के बाद एक तीन महिलाओं को रेखा श्रीवास्तव जी को LBA का, रश्मि प्रभा जी को HBFI का और वंदना गुप्ता जी को AIBA का अध्यक्ष बनाया गया जो कि ब्लाग जगत में संरचनात्मक बदलाव लाएगा । यह वाकई ब्लाग जगत की सबसे बड़ी खबरों में से एक है । इन दोनों ही घटनाओं का असर पूरे ब्लाग जगत पर पड़ा है और पड़ता रहेगा ।
सचमुच की इन महाख़बरों की मौजूदगी में किसी को पुरस्कार मिल जाने की आए दिन घटित होने वाली सामान्य सी घटना को ब्लाग जगत की सबसे बड़ी ख़बर कैसे कहा जा सकता है ?
क्या यह पुरस्कार अजित जी को कोई ब्लाग लिखने पर दिया जा रहा है ?
इस पोस्ट का शीर्षक भी दोषपूर्ण है । बड़ी ख़बर को बताने के लिए महाख़बर शब्द पर्याप्त है , इससे पहले बड़ी शब्द लगाना फ़िज़ूल है । यह खबर तो महाख़बर तक नहीं है और ब्लाग जगत की सबसे बड़ी महाख़बर तो हरगिज़ भी नहीं है ।
.....
Blog 'नुक्कड़' की पोस्ट पर मेरा यह कमेंट आपके लिए उपलब्ध है ताकि आप जान लें कि अनवर जमाल को अद्भुत विश्लेषण शक्ति प्राप्त है और वह हरेक ब्लागर के मुंह पर सच कहने का साहस रखता है।
ख़ुदग़र्ज़ और चापलूस ब्लागर्स की इस अंधेरी दुनिया में सच का दीपक हाथ में लिए अनवर जमाल आप सबसे कहता है कि आओ ! मेरे साथ चलो वर्ना जीवन भर ठोकरें खाते रहोगे और मरने के बाद नर्क की भयंकर आग में जलोगे।
परलोक में हरेक मनुष्य को एक दिन अपने कर्मों का फल भुगतना है 'सबसे बड़ी महाख़बर' यह है ।
कौन है जो इससे फ़ायदा उठाए ?

Thursday, February 24, 2011

सच यह है कि हमेशा ग़लत टाइप के पंडे पुजारियों ने लोगों के अँगूठे और गले कटवाए और अपने जुल्म को न्याय साबित करने के लिए अपने हाथों से ऐसी बातें हमारे पूर्वजों के बारे में लिख दीं ताकि लोग उन्हें पूर्वजों की परम्परा का पालन करने वाला समझें जबकि वास्तव में ये नालायक़ महान आर्य परंपराओं को मिटा रहे थे Just opposite

'गुरु द्रोणाचार्य जी को नाहक़ इल्ज़ाम न दो' शीर्षक से मैं एक लेख लिखकर बताऊंगा कि द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अँगूठा नहीं कटवाया था , उन्हें बेवजह बदनाम किया जाता है जैसे कि श्री कृष्ण जी और पांडवों को । महाभारत में पहले मात्र 8 हज़ार श्लोक थे और इसका नाम जय था , फिर इसका नाम भारत रखा गया और श्लोक हो गए 24 हजार । इसके बाद आज इसमें लगभग 1 लाख श्लोक पाए जाते हैं और इसका नाम है महाभारत । आज कुछ पता नहीं है कि शुरू वाले 8 हजार श्लोकों में से इसमें आज कितने श्लोक बाकी हैं और बाकी हैं भी कि नहीं ? जिस किताब में इतनी भारी मिलावट हो चुकी हो उसके आधार पर हम अपने पूर्वजों का चरित्र सही जान ही नहीं सकते ।
पंडे पुजारियों ने ज़रूर लोगों के अँगूठे और गले कटवाए और अपने जुल्म को न्याय साबित करने के लिए अपने हाथों से ऐसी बातें हमारे पूर्वजों के बारे में लिख दीं ताकि लोग उन्हें पूर्वजों की परम्परा का पालन करने वाला समझें जबकि वास्तव में ये नालायक़ महान आर्य परंपराओं को मिटा भी रहे थे और उन्हें बिगाड़ भी रहे थे ।
......
आप मेरे इस अपूर्व कमेँट को 'हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल' की पोस्ट 'एकलव्य का अँगूठा' पर देख सकते हैं जो कि 24 फरवरी 2011 को रश्मि प्रभा जी द्वारा पेश की गई है ।

Wednesday, February 23, 2011

अगर बुद्ध आएँगे तो वे क्या कराएँगे ? - Anwer Jamal

@ गिरिजेश जी ! आप कहते हैं कि आज ज़माने को बुद्ध की ज़रूरत है लेकिन अगर बुद्ध आएँगे तो वे हिंदुओं के यज्ञ बंद कराएँगे और तब आपस में फिर वैसे ही संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी जैसा संघर्ष इतिहास में पूर्व में घटित हो चुका है । ऐसा तो न तो बुद्ध के काल में हुआ और न ही उनके बाद हुआ कि बुद्ध ने शांति का संदेश दिया हो और लोगों ने उनकी बात मानकर आपस में धर्म के नाम पर इंसानियत का खून बहाना छोड़ दिया हो ।
....
गिरिजेश कुमार की पोस्ट अमन के पैग़ाम पर ।

Monday, February 21, 2011

कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी एक बदबख़्त और ज़ालिम हाकिम है लेकिन एक ज़ालिम ऐसा भी है कि जिसके सामने उसके सारे ज़ुल्म छोटे पड़ जाते हैं Ungratefull Generation

क़द्र माँ बाप की अगर कोई जान ले
अपनी जन्नत को दुनिया में पहचान ले
अमन के पैग़ाम पे भी माँ की अज़्मत को बयान किया जाना 'माँ बचाओ , मानवता बचाओ' अभियान को ही मजबूत करता है जो कि मैं 'प्यारी माँ' ब्लाग के माध्यम से चला रहा हूँ । उनकी ताजा पोस्ट 'जैसा बोओगे वैसा ही तो काटोगे' पर मैंने कहा कि
@ जनाब मासूम साहब ! आपके लेख का शीर्षक देखा तो मैंने मन बनाया था कि आज कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी की बदबख़्तियों पर कुछ लिखूंगा लेकिन अपनी माँ को तो वह भी सम्मान देता है । जो आदमी अपनी माँ को घर से निकाल दे वह तो कर्नल से भी बड़ा बदबख़्त है और आप कहते हैं कि लोग फिर भी उसे नेक समझते हैं तो हक़ीक़त में उन्हें नेकी और बदी की तमीज़ ही नहीं है ।

एक आमंत्रण सबके लिए
क्या आप हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल के सदस्य बनना पसंद फ़रमाएंगे ?
अगर हॉ तो अपनी email ID भेज दीजिए ।
eshvani@gmail.com
धन्यवाद !

औरतों के लिए भ्रष्टों ने वह कर डाला जो तथाकथित ईमानदारों ने न तो किया और न ही करने के लिए तैयार हैं Women empowerment

विचारक टाइप बातें
काम की बातें

मर्द भी औरतों के दुश्मन हैं । बाप अपने लड़के की शादी में ख़र्च भी करता है और अपना घर दुकान और खेत खलिहान भी उसी को देकर मरता है ।

भाइयों की शादी के बाद और माँ बाप की मौत के बाद बेटियाँ जब अपने जन्म स्थान पर आती हैं तो बस मेहमान की तरह और अपने पति के घर भी रहती हैं तो बस एक मेहमान की तरह ।
भारत के रिश्वतख़ोर अफ़सरों और भ्रष्ट नेताओं ने ज़रूर अपनी पत्नियों और लड़कियों को माल से लाद दिया है । भ्रष्टों ने वह कर डाला जो तथाकथित ईमानदारों ने न तो किया और न ही करने के लिए तैयार हैं ।

औरतों की कमियाँ अपनी जगह लेकिन अगर ससुर , पति और घर के दूसरे पुरूष सदस्य ध्यान दें और लापरवाही न बरतें तो किसी बहू का उत्पीड़न संभव ही नहीं है ।
....
यह कमेँट आप देख सकते हैं भाई तारकेश्वर गिरी जी की पोस्ट पर

औरत ही औरत कि सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं, -- तारकेश्वर गिरी. 

http://taarkeshwargiri.blogspot.com/2011/02/blog-post_20.html?showComment=1298290831544#c8097216453682418201

Saturday, February 19, 2011

'कौन करता है सबको एक समान समझने का दावा ?' यह मैंने इस कमेँट में बताया है और यह भी कि यह दावा ग़लत है लेकिन नाम नहीं लिया उन साहब का The argue

जो आदमी सबको एक समान समझना चाहे उसे सबको एक समान महत्व भी देना चाहिए । सबको एक समान समझता बहुत मुश्किल है लेकिन बहुत जरूरी भी है क्योंकि न्याय , शांति और सुख -समृद्धि की प्राप्ति इसके बिना संभव ही नहीं है ।
'सबको एक समान न समझने' के इसी अवगुण के कारण आज असोसिएशन में भागम भाग और अंदर बाहर मची हुई है ।
ब्लागवाणी मिग 16 की तरह गिरा तो इसी कारण गिरा । चिठ्ठाजगत के उड़नखटोले की चूल भी आजकल किसी बद्दुआ की वजह से हिली हुई चल रही है । ब्लाग को परिवार मानने वाले ने भी अपने हैलीकॉप्टर में अपने तो फ़सादियों को भी चढ़ा लिया और हमें शेट्टी समझकर बाहर ही छोड़ दिया । हमने भी अपने हैलीकॉप्टर तैयार किए और आज हमारे पास दो दो संकलक रूपी हैलीकॉप्टर हैं लेकिन पूर्वाग्रह देखिए कि हमारे चाहने और माँगने के बावजूद भी उन्होंने न चाहा कि वे हमसे जुड़ें ।
ऐसे छोटे काम बड़ों के तो होते नहीं ।
मैं सच कहूंगा क्योंकि काहू से बैर खत्म करने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है ।
आपकी पोस्ट और इमेज अच्छी है ।
...
अमन के पैग़ाम पर एक ताजा पोस्ट आज 'न काहू से दोस्ती न काहू बैर' शीर्षक से नज़र आ रही है ,उसी पोस्ट पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं । इसी के साथ आप 'हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल' के सदस्य बनें ताकि आपको पढ़ना मेरे लिए और मुझ जैसे कुछ और लोगों के लिए आसान हो जाए । इसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार रहूंगा ।

Friday, February 18, 2011

कोई भी आदमी खुद को आखि़र क्यों सुधारे ? The reformation

ग़रीबी कष्ट लाती है, दुख देती है और इंसान सदा से जिस चीज़ से डरता आया है, वह एकमात्र दुख ही तो है। जो दुख उठाने के लिए तैयार नहीं है, वह न तो कभी खुद ही सुधर सकता है और न ही कभी अपने समाज को सुधारने के लिए ही कुछ कर सकता है।
आज समाज में हर तरफ़ बिगाड़ आम है। आम लोग इस बिगाड़ का ठीकरा अपने समाज के ख़ास लोगों पर फोड़कर यह समझते हैं कि अगर हमारे नेता, पूंजीपति और नौकरशाह सुधर जाएं तो फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। वे चाहते हैं कि दूसरे सुधर जाएं और हमारे नेता, पूंजीपति और नौकरशाह खुद भी देश की जनता से यही उम्मीद पाले बैठे हैं कि जनता सुधर जाए तो देश सुधर जाए और सुधरने से हरेक डरता है क्योंकि सभी इस बात को जानते हैं कि सुधरने की कोशिश ग़रीबी, दुख और ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं देगी।
तब कोई भी आदमी खुद को आखि़र क्यों सुधारे ?

Thursday, February 17, 2011

हमारे पूर्वज लड़कियों की शादियाँ उनके रजस्वला होने से पहले 8-10 वर्ष की उम्र में ही कर देते थे Marriage in childhood

हमारे पूर्वज निश्चय ही महान थे लेकिन इसका ज्ञान यहाँ मेरे अलावा जिन लोगों को है उनमें से किसी एक का भी नाम हिंदी-संस्कृत में नहीं है
@ आदरणीय राज भाटिया जी ! आपके बुज़ुर्ग पागल थे या नहीं , आपकी इस बात पर तो मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि कुछ पीढ़ियों पूर्व जो आपके पूर्वज हैं सेम वही पूर्वज मेरे भी हैं और इतिहास बताता है कि उनकी परंपरा यह थी कि वे लड़कियों को घर का काम सिखाते थे , घर से बाहर निकलने भी कम देते थे , उन्हें पढ़ने लिखने भी नहीं देते थे , लड़कियों को अपनी जायदाद में हिस्सा भी वे नहीं देते थे , वे बुजुर्ग अपनी लड़कियों की शादियाँ उनके रजस्वला होने से पहले 8-10 वर्ष की उम्र में ही कर देते थे , विधवा होने पर उसे सती कर देते थे या किसी कोने में डाल देते थे लेकिन उसका पुनर्विवाह नहीं करते थे, जो आदमी दहेज के कारण अपनी लड़की की शादी नहीं कर पाता था वह उसे देवदासी बना देता था और देवताओं के पुजारी पंडे उसे वेश्या बना देते थे और आज भी बना रहे हैं । शब्दकोष में विधवा शब्द का एक अर्थ वेश्या भी अंकित है ।
ये थे आपके पूर्वजों के संस्कार । ये संस्कार हरेक विधवा को मनहूस और वेश्या बना देते हैं ।
आपके पूर्वज विवाह को एक ऐसा संस्कार बताकर गए हैं जिसमें एक औरत अपने पति से सात जन्मों के लिए बंधी होती है । ऐसे में केवल पति की देह का अंत होता है , उसके साथ उसके रिश्ते का नहीं । तब पहले पति के साथ रिश्ता बाक़ी होने के बावजूद भी औरत अगर भौतिक ज़रूरतों की ख़ातिर किसी अन्य पुरूष का साया अपने ऊपर लेती है तो उसे पत्नी किसकी कहा जाएगा ?
ऐसे थे आपके पूर्वजों के संस्कार
जिन्हें ढोने के लिए अब आप ख़ुद भी तैयार नहीं हैं ।

आपको काल्पनिक महानता के ख़ोल से निकलकर समस्याओं का सच्चा समाधान ढूंढना होगा और वह भी आपको आपके पूर्वजों के पूर्वजों की परंपराओं में ही मिल जाएगा ।
अनवर जमाल उस गूढ़ रहस्य और सच्चे समाधान को जानता है लेकिन आप नहीं जानते ।
अगर मेरे अलावा यहाँ संस्कृत नामधारी कोई अन्य व्यक्ति जानता हो तो वह बताए कि उनकी परंपराओं में लड़की और लड़के को मिलकर अपना वंश चलाने की अनुमति किस आयु में दी जाती थी ?

हमारे पूर्वज निश्चय ही महान थे लेकिन इसका ज्ञान यहाँ मेरे अलावा जिन लोगों को है उनमें से किसी एक का भी नाम हिंदी-संस्कृत में नहीं है ।

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Posted by DR. ANWER JAMAL to अमन का पैग़ाम at Wednesday, February 16, 2011




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इस कमेन्ट को 'अमन के पैगाम' से आज हटा दिया गया .
इस कमेन्ट में ऐसी क्या कमी है ?
क्या इसमें कोई भी ऐसी बात है जिसे हम सभी अपने कोर्स में नहीं पढ़ते ?
हमारे बच्चे भी इन बातों को कोर्स में पढ़ते हैं.
सच्चाई को कैसे कोई झुठला  सकता है ?

Tuesday, February 15, 2011

क्या आप अपनी लड़कियों को नंगी घूमने दे सकते हैं ? Golden preaching

क्या मां-बाप, गुरू और राजा केवल मर्दों का होता है ?
अगर वाक़ई वे न्याय के गुण से युक्त हैं, वे अपने पद के अनुरूप ही अपनी संतान, अपने शिष्यों और अपनी प्रजा के प्रति वत्सल भाव रखते हैं तो यक़ीनन वे केवल मर्दों के ही नहीं हो सकते बल्कि वे सबके होंगे। मां-बाप अपनी औलाद का, गुरू अपने शिष्यों का और एक अच्छा राजा अपनी प्रजा का भला चाहता है। उनकी भलाई के लिए ही ये सभी अपने अपने स्तर पर कुछ नियम और अनुशासन बनाते हैं और उनका अनिवार्य रूप से पालन कराते हैं। इनमें से कोई भी यह छूट नहीं देता कि कोई भी जो चाहे वह करे।

@ प्रिय प्रवीण जी ! आप भी एक बाप हैं, एक शिक्षक हैं और एक फ़ौजी भी हैं। इसक बावजूद आप अनुशासन की अहमियत को नहीं समझ पा रहे हैं। इंसान के लिए अनुशासन अनिवार्य है। परमेश्वर भी मनुष्यों का कल्याण चाहता है और इंसान का कल्याण तभी संभव है जबकि वह ईश्वरीय अनुशासन का पालन करे। ईश्वरीय अनुशासन के नाम पर हुड़दंग काटने वाले ईश्वर के द्रोही और मानवता के अपराधी हैं। उनके अत्याचार के कारण आप ईश्वर के न्याय और कल्याण भाव के प्रति प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते।
क्या आप अपनी लड़कियों को नंगी घूमने दे सकते हैं ?
आप तो उनकी इतनी परवाह करते हैं कि उन्हें स्कूल के समय स्कूल की ड्रेस पहनाते हैं और घर लौटने पर दूसरी और शादी विवाह आदि में जाने पर दूसरी। उन्हें अलग अलग मौक़ों पर अलग अलग ड्रेस पहनना किसने सिखाया ?
यक़ीनन आपने !
जब आपकी शादी हुई या आपकी बहनों की शादी हुई तो उनके बाल कैसे हों ?
उनके हाथ कैसे हों ?
उनका लिबास कैसा हो ?
उनका मेकअप कैसा हो?
यह सब उस दुल्हन ने तय नहीं किया था बल्कि उसके गार्जियन्स ने ही तय किया था। क्या तब भी आपने कहा था कि आपको क्या अधिकार है इस लड़की के लिए इतना कुछ तय करने का ?
आपके लिए आपके माता-पिता और गुरू सदा से नियम अनुशासन तय करते आए हैं और आप उन्हें मानते आए हैं। आप सेना में थे तो आपने कभी नहीं कहा कि आज तो गर्मी है, मैं तो तहबंद और बनियान पहनकर ही ड्यूटी दूंगा।
आपने नहीं कहा। आपने भारी भरकम वर्दी भी पहनी और बुलेट प्रूफ़ भी और तमाम दिक्कतों के बावजूद आपने विश्वास किया कि आपके ऊपर वाला अफ़सर आपके हित में ही ये पाबंदिया आयद कर रहा है। ऐसा ही आप उस ऊपर वाले के बारे में विश्वास क्यों नहीं रखते ?
ये मामूली सवाल हैं, जिन्हें आप जैसा बुद्धिजीवी स्वयं हल करने में सक्षम है।
अब जल्दी कीजिए वुज़ू सीखिए और नमाज़ अदा कीजिए और कोई सवाल भी मत कीजिए क्योंकि जब आप ड्रिल करते थे तो आपने कभी ऐतराज़ नहीं किया और अगर किसी ने किया भी तो उसके ऐतराज़ की वजह से सेना के अनुशासन को , उसके नियम को नहीं बदला गया बल्कि उस ऐतराज़ करने वाले को ही दंड दिया गया। जहां न्याय है , वहां सीमा और संतुलन भी है और अनुशासन भी और फिर उसके उल्लंघन करने वाले के लिए दंड भी है। आप सेना में सब कुछ देख चुके हैं।
आपसे अनुशासन के पालन की पूरी आशा मुझे है।
अब आपको अपने स्वभाव को और मेरी आशा को पूरा करना है।
जय हिंद !

सुनिये मेरी भी....: तो 'ईश्वर' क्या आप केवल मर्दों के ही हो ?... दे ही दो आज जवाब !!!

Monday, February 14, 2011

क्यों न अब आप वुज़ू करना और नमाज़ पढ़ना भी सीख लीजिए क्योंकि चोटी रखकर यज्ञ हवन करना तो आपके बस का नहीं है और गणेश जी को दूध आप पिलाएंगे नहीं ?

@ प्रिय प्रवीण जी ! आपने ईश्वर को पुकारा ,
आपने ईश्वर से कुछ पूछा ।
इससे पता चला कि आपने ईश्वर को मानना तो शुरू कर ही दिया है ।
आप देखिए कि ईश्वर की पूजा औरतें ज़्यादा करती हैं । इसका मतलब यह है कि वे ईश्वर को केवल मर्दों का नहीं मानतीं बल्कि अपना भी मानती हैं ।
अब जब आपने ईश्वर को मान ही लिया है तो क्यों न वुज़ू करना और नमाज़ पढ़ना भी सीख लीजिए क्योंकि चोटी रखकर यज्ञ हवन करना आपके बस का नहीं है और गणेश जी को दूध आप पिलाएंगे नहीं ।
......
देखिए 'सुनिए मेरी भी ' पर मेरा कमेँट ।@ प्रिय प्रवीण जी ! आपने ईश्वर को पुकारा ,
आपने ईश्वर से कुछ पूछा ।
इससे पता चला कि आपने ईश्वर को मानना तो शुरू कर ही दिया है ।
आप देखिए कि ईश्वर की पूजा औरतें ज़्यादा करती हैं । इसका मतलब यह है कि वे ईश्वर को केवल मर्दों का नहीं मानतीं बल्कि अपना भी मानती हैं ।
अब जब आपने ईश्वर को मान ही लिया है तो क्यों न अब आप वुज़ू करना और नमाज़ पढ़ना भी सीख लीजिए क्योंकि चोटी रखकर यज्ञ हवन करना तो आपके बस का नहीं है और गणेश जी को दूध आप पिलाएंगे नहीं ?
......
देखिए 'सुनिए मेरी भी ' पर मेरा कमेँट ।
सुनिये मेरी भी....: तो ईश्वर; क्या आप केवल मर्दों के ही हो ?... दे ही दो आज जवाब !!!

आख़िरकार भोले के भगत गिरी जी भी मस्ता गए Valentine day पर ? अब भुगतो जुर्माना 5 रूपये का

भय्या तारकेश्वर गिरी जी ! आप शिव सैनिक से तो वैसे ही मशहूर हो ऐसे में तो भाभी जी की भी हिम्मत नहीं होती आपको लाल गुलाब देने की ।
लेकिन कविता आपकी अच्छी है।
भाभी जी को तब सुनाना जब लाइट भागी हुई हो ।
आपके 5 रुपये खर्च हो ही जाएँगे क्योंकि ख़ाँ साहब की तरह आप सोचते नहीं ।
शुभकामनाएं ।

Saturday, February 12, 2011

कमबख़्तो ! सीता माता को इल्ज़ाम न दो Greatness of Sita Mata

हिंदी चिंतका शिखा कौशिक जी की पोस्ट 'गारंटी दीजिए कि रावण ने सीता माता का हरण उनके परिधान देखकर किया था'
पर शिखा कौशिक 'नूतन ' की  गारंटी दीजिये  रचना पढ़ी और उस पर डाक्टर श्याम गुप्ता जी का कमेँट भी पढ़ा तो हमें कहना पड़ा कि

कमबख़्तो ! सीता माता को इल्ज़ाम न दो
@ शिखा जी ! सबसे पहले तो मैं आपको मुबारकबाद देना चाहता हूँ एक अच्छी पोस्ट ब्लाग जगत को देने के लिए और निंदा करता हूँ उन लोगों की जो औरत को समाज में कमज़ोर और मर्द का ग़ुलाम देखना चाहते हैं जैसे कि हिंदू सभ्यता के जानकार श्री श्याम गुप्ता जी औरत को समाज में दोयम दर्जे पर देखना ही नहीं चाहते बल्कि रखे हुए भी हैं ।
इसके बाद मैं यह कहना चाहता हूँ कि हमारे समाज और हमारे क़ानून ने लड़कियों को यह अधिकार दे रखा है कि वे अपनी मर्ज़ी से कपड़े पहन ही नहीं सकतीं बल्कि उतार भी सकती हैं ।
गाँव का समाज अपनी ज़रूरतों के हिसाब से चलता है और चाहता है कि जहाँ तक हो सके सीता सुरक्षित रहे ।
श्याम जी ने मेरी सीता माता को मर्यादा का उल्लंघन करने वाली कहकर महापाप किया है ।

'हा लक्ष्मण !' की आवाज़ सुनकर उन्होंने वही किया जो सिर्फ़ एक ऐसी औरत ही कर सकती है जिसे अपने पति से अपने प्राणों से भी ज़्यादा प्यार हो ।

अफ़सोस ! श्री श्याम जी डाक्टर होने के बावजूद सीता माता के त्याग और बलिदान को न समझ पाए।

इन बातों की समझ सिर्फ़ अनवर जमाल जैसे मुसलमानों को ही होती है।

आडंबरों के बंद होते ही धन विकास कार्यों में खर्च होने लगा और बहुत कम मुद्दत में ही भारत बौद्ध काल में सोने की चिड़िया बन गया Golden bird

‘मेरे विचार में कोई किसी का अनुकरण नहीं करता। जिसमें जैसे जींस होते हैं और जैसा माहौल मिलता है, व्यक्ति वैसा बनता चला जाता है।‘-ज़ाकिर अली रजनीश
ज़ाकिर भाई ! कुछ लोग माहौल में ढलने के लिए खुद को बदलते हैं और कुछ लोग माहौल को ही अपने उसूलों के मुताबिक़ बदल देते हैं। गौतम बुद्ध जी की मिसाल से आप यह समझ सकते हैं। बुद्ध हिंदू परिवार में पैदा हुए। उस समय समाज में यज्ञ करना आदि बहुत से आडंबर आम थे और बहुत से कमज़ोर इच्छा शक्ति के लोग खुद को उसमें ढाल लिया करते थे लेकिन बुद्ध ने खुद को उस आडंबरपूर्ण माहौल में नहीं ढाला बल्कि सत्य और सही की तलाश में दुख उठाए। अंततः उन्होंने यज्ञादि आडम्बरपूर्ण ब्राह्मणवादी परंपराओं का विरोध किया और उन्हें बंद कराने में सफलता पाई। इन आडंबरों के बंद होते ही धन विकास कार्यों में खर्च होने लगा और बहुत कम मुद्दत में ही भारत सोने की चिड़िया बन गया। लोग कहते तो हैं कि भारत कभी सोने की चिड़िया था लेकिन वे यह नहीं बताते कि भारत सोने की चिड़िया बौद्ध काल में बना था और आज फिर बन सकता है बशर्ते कि भारतवासी अपने जीवन से आडंबर को निकाल दें। आडंबर निकालने के लिए इंसान में कोई जींस नहीं होता बल्कि सही-ग़लत की समझ होती है, उसका विवेक होता है जिसके आधार पर वह फ़ैसला लेता है। कुछ करने का हौसला और कुछ पाने की ख्वाहिश होती है। जब इंसान के अंदर सच और सही का अनुकरण करने का जज़्बा जाग जाता है तो वह सुधर जाता है। सुधरने के लिए इंसान में कोई जींस नहीं होता। इंसान को सुधरने के लिए किसी न किसी विचार पालन करना होता है और जो लोग उस विचार का पालन उससे पूर्व में कर चुके होते हैं उनके जीवन को सामने रखकर, उन्हें अपना आदर्श मानकर उनका अनुकरण करना होता है। इंसान बचपन से बुढ़ापे तक केवल अनुकरण ही करता है। अनुकरण के बिना इंसान का कोई लम्हा गुज़र ही नहीं सकता। कभी यह अनुकरण आदमी अवचेतन रूप से करता है और कभी चेतन रूप से।
आज हमारा देश और समाज जिन हालात में घिरा हुआ है। उनसे निकालने का तरीक़ा यह नहीं है कि आप लोगों को बताएं कि कोई किसी का अनुकरण नहीं करता, जैसे जींस और जैसा माहौल होता है, इंसान उसी में ढल जाता है। यह एक बेकार बात है। अंग्रेज़ों की हुकूमत में भी बहुत लोगों ने खुद को  उनकी हुकूमत के मुताबिक़ नहीं ढाला बल्कि उनके बनाए माहौल के खि़लाफ़ अपने लिए खुद अपना एक अलग माहौल बनाया।
आपके वक्तव्य से न तो हक़ीक़त पता चलती है और न ही देश और समाज के सुधार में ही कोई मदद मिल सकती है। ऐसे विचारों से तो केवल आपकी सोच का पता चलता है जो कि सरासर एक ग़लत सोच है। माहौल अगर ग़लत है तो खुद को उसमें ढालिए मत बल्कि उसे बदलिए। इसलाम की तालीम यही है। खुदा का हुक्म यही है जो कि हरेक जीन का रचयिता है। जीन की आड़ में सुधरने से अपनी जान मत बचाईये। 
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/02/real-role-model-for-indian-women_11.html

Friday, February 11, 2011

नैतिक मूल्यों के पालन के लिए आज की नारी को किस प्राचीन भारतीय नारी का अनुकरण करना चाहिए और क्यों ? The Real role model for Indian women

‘आज की नारी को किस प्राचीन भारतीय नारी का अनुकरण करना चाहिए और क्यों ?‘
आज समाज में अश्लीलता बढ़ती ही जा रही है। उसे करने वाले कोई और नहीं हैं बल्कि हम खुद ही हैं। ग़नीमत यह है कि अभी भी हरेक समुदाय की महिलाओं और लड़कियों की बड़ी तादाद पारिवारिक मूल्यों और नैतिकता के परंपरागत चलन में विश्वास रखती हैं लेकिन इसके बावजूद एक बड़ी तादाद उन लड़कियों की भी हमारे दरमियान मौजूद है जो अपने बदन के किसी भी हिस्से की नुमाईश बेहिचक कर रही हैं। उनमें से कुछ मजबूरन ऐसा कर रही हो सकती हैं लेकिन यह भी हक़ीक़त है कि बहुत सी लड़कियां नैतिकता के परंपरागत विश्वास को गंवा चुकी हैं। जो लड़कियां मजबूरी में यह सब करती हैं वे अपने हालात बदलते ही खुद को संभाल लेती हैं लेकिन जिन लड़कियों को अपने बदन की नुमाईश में और उसे दूसरों को सौंपने में कोई बुराई नज़र नहीं आती, उन्हें उस गंदी दलदल से निकालना आसान नहीं होता। इसके लिए उनके मन में नैतिकता के प्रति विश्वास बहाल करना पड़ता है, उसे किसी आदर्श नारी के अनुकरण की प्रेरणा देनी पड़ती है और उस पर यह सिद्ध करना होता है कि जिस मार्ग पर वह चल रही है, उसका अंजाम उसके लिए नुक्सानदेह है और नैतिक मूल्यों के पालन में अगर उसे रूपये और शोहरत का नुक्सान भी होता है, तब भी उसका अंजाम उसके लिए बेहतर होगा। ऐसे में उसे किस प्राचीन भारतीय नारी के आदर्श का अनुकरण करने की प्रेरणा दी जाए ?
यह एक सवाल है जो कि इस पोस्ट पर आज ज़ेरे बहस है। जब मुद्दा उठाया गया है तो फिर इस समस्या के निराकरण के लिए इस सबसे ज़रूरी सवाल का जवाब दिया जाना भी निहायत ज़रूरी है। यह कोई आरोप-प्रत्यारोप मात्र नहीं है। ब्लागिंग का उद्देश्य समाज में स्वस्थ बदलाव लाना होना चाहिए न कि यथास्थितिवाद को क़ायम रखने का प्रयास करना।

@ भाई श्याम गुप्ता जी ! यह दुखद है कि आप खुद को डाक्टर कहलाने के बावजूद कह रहे हैं कि मेरे सभी सवालों के जवाब दे दिए गए हैं।
अगर मेरे सभी सवालों के जवाब दे दिए गए हैं तो आप बताएं कि ‘आज की नारी को किस प्राचीन भारतीय नारी का अनुकरण करना चाहिए और क्यों ?‘
भाई ! क्या आप ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि बनाने की बातें करना बंद करेंगे या फिर मैं उस पर सवाल पूछना शुरू करूं ?
ख़ैर , यह भी एक बड़े लतीफ़े की बात है कि जिसकी वजह से श्री रवीन्द्र प्रभात को जाना पड़ा, वह बदस्तूर यहां ब्रह्मा जी का प्रचार करने के लिए डटा हुआ है बल्कि ऑल   इंडिया ब्लागर्स एसोसिएशन में शामिल हो चुका है। इसके बावजूद बड़ी मासूमियत से जनाब यह भी पूछते हैं कि उनके जाने की वजह का खुलासा नहीं हुआ।
हाय, आपकी मासूमियत पे कौन न कुर्बान जाएगा गुप्ता जी।
हमें तो आप जैसे लोगों की मौजूदगी की सख्त ज़रूरत है।
आपका हम स्वागत करते हैं।
धन्यवाद !
इस कमेन्ट कि पूरी बैकग्राउंड आप यहाँ देख सकते हैं-
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/02/blog-post_09.html

Blogger ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ said...
मेरे विचार में कोई किसी का अनुकरण नहीं करता, जिसमें जैसे जींस होते हैं और जैसा माहौल मिलता है, व्‍यक्ति वैसा बनता चला जाता है। --------- ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
February 10, 2011 9:54 पम
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क्या आप जाकिर जी के कथन से सहमत हैं ?
मैं तो उनके कथन से सहमत नहीं हूँ.
आप अपनी बात बताएं.

Wednesday, February 9, 2011

आज की नारी किस प्राचीन भारतीय नारी का अनुकरण करे और क्यों ? Who is a role model for Indian women ?

आज मैंने LBA पर मिथिलेश दुबे जी की पोस्ट 'जब नारी शील उघड़ने लगे ' पढ़ी तो मुझे कहना पड़ा कि
@ भाई मिथिलेश दुबे जी ! आपने आजकल औरतों द्वारा शोहरत , पैसे और ऐश की ख़ातिर नंगे होकर नाचने से लेकर पूर्ण नग्न फ़िल्में बनाने तक जितनी भी बातों पर चिंता प्रकट की है , बिल्कुल जायज़ की है लेकिन आपने उसका कोई व्यवहारिक समाधान पेश नहीं किया है।
आपने पश्चिम का अंधानुकरण करने वाली , छोटे छोटे वस्त्रों में नाचने वाली आधुनिक बालाओं की निंदा की है लेकिन भारतीय सभ्यता का भी कोई काल ऐसा नहीं गुजरा जब यहाँ की बालाएं छोटे छोटे कपड़ों में न नाची हों बल्कि बिल्कुल नग्न होकर भी सब कुछ किया जा चुका है ।
मनु स्मृति कहती है कि 8-10 साल की लड़की की शादी कर दी जाए । वह यह भी कहती है कि लड़के की आयु लड़की से तीन गुना होनी चाहिए ।
गांधी जी किस प्रकार किसी को नैतिकता का उपदेश दे सकते हैं ?
जबकि वे ख़ुद अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग के लिए हिंदुओं की नाबालिग़ कन्याओं को नंगी करके उनके साथ सोया करते थे ।
आख़िर क्या ज़रूरत थी एक बुड्ढे को उभरती हुई जवान लड़कियों के मासूम जज़्बात पर चोट करके उनके वुजूद को गाली देने की ?
आप पूरी टिप्पणी पढ़ने के लिए देखें :
ऐसा करना बलात्कार से भी ज़्यादा गंभीर क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?

As he grew older (and following Kasturba’s death) he was to have more women around him and would oblige women to sleep with him whom – according to his segregated ashram rules – were forbidden to sleep with their own husbands. Gandhi would have women in his bed, engaging in his “experiments” which seem to have been, from a reading of his letters, an exercise in strip-tease or other non-contact sexual activity. Much explicit material has been destroyed but tantalising remarks in Gandhi’s letters remain such as: “Vina’s sleeping with me might be called an accident. All that can be said is that she slept close to me.” One might assume, then, that getting into the spirit of the Gandhian experiment meant something more than just sleeping close to him.

Sunday, February 6, 2011

भारतीय विवाह पद्धति में बदलाव एक स्वागत योग्य कदम है From vivah to nikah

विवाह की बुनियाद है प्रेम। विपरीत लिंगी के प्रति ऐसा प्रेम मैथुन की प्रेरणा देता है जो कि स्वाभाविक है। इसी से नस्ल चलती और इसी से सभ्यता का विकास होता है। विवाह का मक़सद होता है फ़र्ज़ और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण । दुनिया के तमाम देशों में नर नारी के मैथुन को केवल विवाह के तहत ही जायज़ माना जाता है और इसके अलावा को नाजायज़ । दुनिया की तमाम विवाह परंपराओं का यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो इस्लामी विवाह पद्धति अपेक्षाकृत ज़्यादा सादा और व्यवहारिक है। यही कारण है कि आज जाने अन्जाने बहुसंख्यक भारतीयों ने भी अपने विवाह को एक संस्कार से बदल कर उसे इस्लामी निकाह की तरह एक समझौते का रूप दे दिया है जो कि एक स्वागत योग्य क़दम है। भविष्य में और भी ज़्यादा परिवर्तन देखने में आएंगे जो कि ज़रूरत के दबाव में करने ही पड़ेंगे जैसे कि विवाह को संस्कार से एक समझौते में बदलने पर मजबूर होना पड़ा।
ज़रूरतों के तहत अगर आदमी बिगड़ता है तो ज़रूरतों के दबाव में आकर समाज को सुधरना भी पड़ता है।
विवाह संबंधी जटिलताओं को दूर करने का व्यवहारिक उपाय है इस्लामी विवाह को उसके पूरे विधान के साथ अपनाया जाए।
आप मेरे इस कमेंट को देख सकते हैं amankapaigham.com
की नई पोस्ट पर ।

Saturday, February 5, 2011

'Live in relationship' पूरी तरह व्याभिचार है , अनैतिक है और पाप है । हिंदू और मुस्लिम , दोनों समुदाय के प्रबुद्ध लोगों को समान पवित्र मूल्यों की रक्षा के लिए मिलकर इस पापकर्म की निंदा करनी चाहिए ।

आदम और हव्वा को भविष्य पुराण में आदम और हव्यवती कहा गया है और आम तौर पर हिंदू धार्मिक साहित्य में इन्हें मनु और शतरूपा कहा गया है । इन्हें सन्तानोत्पत्ति की आज्ञा स्वयं परमेश्वर ने दी थी । सारी दुनिया के लोग इन्हीं की सन्तान हैं । हिन्दू और मुसलमानों में विवाह और निकाह की जो परंपरा पाई जाती है वास्तव में वह इन्हीं का अनुसरण है ।
जो उनके मार्ग से हटता है , वह धर्म से भी हटने का पाप करता है। आधुनिक जीवन शैली की वजह से आज विवाह और निकाह की धार्मिक परंपरा रोज़ ब रोज़ कमज़ोर पड़ती जा रही है । 'Live in relationship' भी एक ऐसी ही आधुनिक और घृणित परंपरा है जिसमें युवक युवतियाँ बिना वैवाहिक संबंध के बिल्कुल पति पत्नी की तरह साथ रहते हैं। यह निंदनीय कुकर्म आज का उच्च शिक्षित युवा वर्ग कर रहा है।
इससे यह स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा अपने आप में समाज की समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं है बल्कि अगर इसे धर्म से काट दिया जाए तो यह ख़ुद नई नई समस्याओं को जन्म देती है।
भारत एक धर्म और आध्यात्मिक देश है जहाँ पवित्र सामाजिक मूल्यों का पालन आज भी बहुसंख्या में किया जाता है । 'Live in relationship' पूरी तरह व्याभिचार है , अनैतिक है और पाप है । हिंदू और मुस्लिम , दोनों समुदाय के प्रबुद्ध लोगों को समान पवित्र मूल्यों की रक्षा के लिए मिलकर इस पापकर्म की निंदा करनी चाहिए । हम सबका ईश्वर एक है , हमारा खून एक है और हमारे आधारभूत धार्मिक सिद्धांत और मूल्य भी एक ही हैं । कुल मिलाकर हम हम सब एक हैं । इस एकत्व का बोध हमें है । जरूरत है कि अब इस बोध को आम किया जाए और अपने माँ बाप के मार्ग और धर्म का पालन किया जाए ।

सहशिक्षा लेकर हराम की औलाद पैदा करते हुए हमारे हिंदू-मुस्लिम युवा आखिर धर्म का मर्म कब समझेंगे ? Invalid relationship

भाई तारकेश्वर जी ! अपनी पोस्ट के जरिए आज आपने एक बहुत बड़ा सच समाज के सामने रख दिया है । वह यह है कि मुसलमान लड़कियों को हिन्दू भाई फुसलाकर गायत्री मंत्र सुना रहे हैं और मुसलमान हैं कि फिर भी उन पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगाते कि हिँदुओं ने कोई मिशन इस नापाक काम के लिए चला रखा है । क्योंकि हकीकत यह है कि ये सब सहशिक्षा आदि के परिणाम हैं । बड़े शहरों में आज हरेक तरह के प्रेम विवाह होना सामान्य चलन है ।
'Love jihad' की पोलपट्टी खोलने के लिए आपको बधाई ।
मालिक आपको बुलंद कर दे , इतना बुलंद कि हरेक बेकार बात आपसे गिरकर नीचे जा पड़े ।
जो हिंदू युवक गायत्री सुन रहा है और मुसलमान लड़की को भगाकर उससे विवाह भी रचाए बैठा है , अगर वह अपने पापकर्म से तौबा नहीं करता है तो ईश्वर की ओर से उस पर सदा श्राप रहेगा , जिनमें से एक मुख्य यह होगा कि उसके घर में ऐसे बच्चे पैदा होंगे जिन्हें हिन्दू शास्त्र 'वर्णसंकर' घोषित करते हैं और आम बोलचाल की भाषा में लोग उन्हें हरामी कहते हैं ।
गायत्री के ज़रिए सन्मार्ग वही पा सकता है जो हराम की औलाद पैदा करने का ख़्वाहिशमंद न हो ।
आप मेरा यह कमेँट 'मुस्लिम महिला के घर गायत्री मंत्र की धुन' पर देख सकते हैं ।

शास्त्रीय पद्धति और लोकाचार को तोड़कर ऐसे वासनाजीवी अपनी क्षुद्र ख़्वाहिश पूरी करने के लिए अक्सर समाज को दंगे की आग में झोंकने से भी नहीं चूकता ।
अभी पिछले दिनों हमारे मुहल्ले के ही एक पठान युवक ने एक हिंदू पंजाबी लड़की को भगाकर उससे शादी रचा ली और पूरा शहर दंगे की कगार पर पहुँच गया था । एक लंबी दास्तान है उसकी भी ।
हालांकि इस्लाम में उनकी औलाद को हरामी नहीं माना जाएगा लेकिन निकाह से पहले जो कुछ उन्होंने किया उसे इस्लाम नाजायज़ ही कहता है । नाजायज़ रास्ते पर चलने वाले लोग समाज के लिए तो क्या अपने बच्चों तक के लिए आदर्श नहीं हुआ करते । ऐसे लोग एक आदर्श समाज की स्थापना में एक बाधा हैं और उनके द्वारा गायत्री मंत्र सुना जाना गायत्री मंत्र का मख़ौल उड़ाना है ।

Friday, February 4, 2011

हाँ , सचमुच ! फ़रिश्ता बनना कुछ भी तो मुश्किल नहीं है The angel

ठीक ऐसे ही
जो अपनी माँ को आदर नहीं दे सकता वह मौसी के पैर क्या दबाएगा ?

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ

Nice post.

Welcome.

मानवता को बचाइये
लेकिन पहले माँ को बचाइये

हर दिल में इक जज़्बा जगाइये
'प्यारी माँ' को अपनाइये

'प्यारी माँ' केवल एक ब्लाग मात्र नहीं है बल्कि एक अभियान है जिसमें आपके सहयोग की ज़रूरत है । अपनी ईमेल आईडी भेजिए ताकि आप इस रचनात्मक और पवित्र अभियान मेँ एक लेखिका के तौर पर शामिल हो सकें ।
धन्यवाद !

eshvani@gmail.com

मैंने यह कमेँट आज कविता रावत जी के ब्लाग पर दिया है -
http://kavitaravatbpl.blogspot.com

केवल मस्जिद ही एक ऐसी जगह जहां न कोई मूर्ति है और न ही आडम्बर The submission

DR. ANWER JAMAL has left a new comment on the post "कर्म करूं या श्रद्धा से नत हो जाऊँ या फिर मांगने क...":

एक ऐसी जगह जहां न कोई मूर्ति है और न ही आडम्बर
प्रभु पालनहार से मांगने की सबसे बड़ी चीज़ है उसका मार्गदर्शन । साईं बाबा भक्त हैं भगवान नहीं। आख़िर जब उन्होंने ख़ुद ईश्वर होने का दावा नहीं किया तो फिर उन्हें भगवान किसने और क्यों बना लिया ?
और आप जैसे पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों ने भी उन्हें लोगों की ज़रूरतें पूरी करने वाला मान लिया ?
क्या आप नहीं जानतीं कि ईश्वर अजन्मा , अविनाशी और शाश्वत है ?
जिसमें ये गुण न हों वह सत्पुरूष कितना भी बड़ा क्यों न हो लेकिन ईश्वर नहीं हो सकता । जहां ईश्वर की पूजा होती है वहाँ आडम्बर नहीं होता और न ही वहाँ मूर्ति होती है , न पत्थर की और न ही सोने चाँदी की । ऐसी जगह केवल मस्जिद है और यही वह जगह है जहाँ इनसान को उसकी वाणी सुनने का सौभाग्य अनिवार्य रूप से मिलता है जिससे उसे मार्गदर्शन मिलता है जो कि सबसे बड़ी चीज़ है और इसी को पाने के बाद इनसान को वास्तव में पता चलता है कि उसे क्या करना चाहिए , कैसे करना चाहिए और क्यों करना चाहिए ?
इसी ज्ञान के बाद इनसान अपने मन की श्रद्धा का सही इस्तेमाल करने के लायक़ बनता है और नतमस्तक होने की रीति जान पाता है जिसका नाम है 'नमाज़'।
जब आप लोग सच से मुंह फेरकर जाएंगे तो फिर आप आडम्बर के सिवा कुछ और कैसे पा सकते हैं ?

Thursday, February 3, 2011

सलाहियतें किसी सनद की मोहताज नहीं होतीं Self realization

मैं एक योग्य आदमी हूं। आपने माना, मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं वर्ना सलाहियतें किसी सनद की मोहताज नहीं होतीं।
जिन विषयों पर हज़ारों साल से विवाद चला आ रहा है, उन विषयों को यहां उठाया जाएगा तो विवाद का उठना स्वाभाविक है। अगर लोग ध्यान से पढ़ते ही न हों या उनमें किसी विश्लेषण की क्षमता और सुधार की आकांक्षा ही न हो तो बेशक वे ख़ामोश रहेंगे लेकिन जो आदमी ऐसा न हो और वह सच भी जानता हो तो वह ज़रूर बोलेगा।
कम योग्यता का आदमी जब अपने से ज़्यादा ज्ञानवान के मुंह में लगाम डालने की कोशिश करेगा तो उसे चैलेंज के सिवा कुछ भी सुनने को नहीं मिलेगा। उसे चाहिए कि वह चैलेंज स्वीकार करके अपनी क्षमता और पात्रता सिद्ध करे वर्ना अपने पांडित्य प्रदर्शन से बचे। हर आदमी ऐसा हिंदू नहीं होता जैसे कि वे खुद होते हैं। अभी ज़माने में अनवर जमाल जैसे हिंदू भी मौजूद हैं जिन्हें वास्तव में ‘तत्व‘ का बोध है। जो मेरा अनुसरण करेगा, उसे भी यह बोध नसीब होगा। अपने सूक्ष्म शरीर के जिन रहस्यों के बारे में उसने केवल ग्रंथों में पढ़ा है, अनवर जमाल उनकी अनुभूति उसे कराएगा। जो उस ज्ञान को जान लेगा, मौत उसे मार नहीं सकती और कोई निराशा उस पर हावी हरगिज़ हो नहीं सकती। कोई शत्रु उसे परास्त नहीं कर सकता। विजय और ऐश्वर्य उसका नसीब है , लोक में भी और परलोक में भी। जो चाहे आज़मा ले।
हाथ कंगन को आरसी की ज़रूरत कभी नहीं रही।
इसका नाम आत्मविश्वास है, जिसे लोग ग़लती से अहंकार कहते हैं।
@ बहन रेखा श्रीवास्तव जी ! आपके शुभ वचनों के लिए अनवर जमाल आपका आभारी है।
धन्यवाद !

Wednesday, February 2, 2011

सबसे बड़े लतीफ़े 'सहस्राधार चक्र' को मुस्लिम सूफ़ी 'लतीफ़ा ए उम्मुद्-दिमाग़' कहते हैं और इसे भी वे अपनी तवज्जो की बरकत से सहज ही जगा देते हैं Yoga and sufi practice

जनाब अशोक कुमार 'बिन्दु' जी ! आपका लेख अच्छा है लेकिन डा. कुंवर आनंद सुमन का कथन बिल्कुल झूठ है । पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब ने न कभी मूर्तियां बेचीं और न ही कभी शिवलिंग की उपासना की। आप उनसे हवाला मांगिए तो सही, वे अपनी बग़लें झांकने लगेंगे। ऐसे लोग अपनी झूठी पौराणिक मान्यताओं को बचाने के लिए पाक पैग़म्बरों पर भी इल्ज़ाम लगाने से बाज़ नहीं आते। आप हज़रत आदम और हज़रत मुहम्मद साहब समेत किसी भी ऋषि-नबी-वली-संत से आज भी रूहानी मुलाक़ात कर सकते हैं। आप उनसे ख़ुद पूछ सकते हैं कि जो बातें उनके बारे में कही जाती हैं , उनमें से कौन सी बात सच है और कौन सी बात झूठ ?
योगी जिसे चक्र कहते हैं , मुस्लिम सूफ़ी उसे लतीफ़ अर्थात सूक्ष्म होने के कारण लतीफ़ा कहते हैं और बहुत थोड़े अर्से में ही वे अपने मुरीद के तमाम चक्रों को जगा देते हैं। सबसे बड़े लतीफ़े सहस्राधार चक्र को वे लतीफ़ा ए उम्मुद्-दिमाग़ कहते हैं और इसे भी वे अपनी तवज्जो की बरकत से सहज ही जगा देते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इस काम को सिर्फ़ वही कर सकता है जो कि सचमुच सूफ़ी हो । आजकल बहुत से पाखंडी उनके मेकाप में घूम रहे हैं । उनसे बचने की ज़रूरत है ये लोग ठगों में से हैं।
http://vedquran.blogspot.com

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हमारी वाणी पत्रिका में छपे एक लेख प्रतिक्रिया देते हुए आज हमने यह उपरोक्त टिप्पणी की है। कुछ वक़्त बाद हम बताएंगे कि सूफ़ी दर्शन क्या है ?
और वे कौन सी साधनाएं करते हैं ?
और उन्हें कौन से फल प्राप्त होते हैं ?