Sunday, May 1, 2011

बहरहाल और आखि़रकार , Blog Fixing के संदर्भ में


यशवंत जी ! आपकी पोस्ट पहली बार पढ़ी और अच्छी ही नहीं लगी बल्कि मज़ा आ गया। कम लोग हैं जिन्हें पढ़कर हमें मज़ा आता है। आपकी पोस्ट पर जो कमेंट्स पढ़े उन्होंने तो मज़े को दोबाला ही कर दिया। हम बहुत दिनों से blogkikhabren.blogspot.com  पर कह रहे थे कि
1. ब्लॉगर्स मीट हिंदी ब्लॉगिंग के स्तर को गिरा रही है।
2. ईनाम अपने चहेतों को आब्लाइज करने के लिए अंधे की रेवड़ियों की तरह दिए जा रहे हैं।
3. ब्लॉगर्स जिस नेता बिरादरी के भ्रष्ट होने पर एकमत और सहमत हो चुके हैं, उसी बिरादरी के एक फ़र्द से पुरस्कार लेना कैसे जायज़ है ?
4. ईनाम की मूल सूची को क्यों बदल दिया गया ?
5. किसी चर्चित ब्लॉगर को जानबूझकर ईनाम से वंचित क्यों किया जा रहा है ? बल्कि उसे निमंत्रित तक क्यों नहीं किया जा रहा है ?
हम कहते रहे और हिंदी ब्लॉगर्स भी सुनते रहे लेकिन इन्होंने कान नहीं धरा हमारी बात पर। खुशदीप जी ने भी हमारा समर्थन नहीं किया। जो कुछ बीता, यह सब तो हम बीतने से पहले ही बता रहे थे लेकिन भाई लोग कार्यक्रम को जबरन भव्य बनाने पर तुले हुए थे। कोई भी कार्यक्रम भव्य तभी बनेगा जबकि उसमें मालदार पूंजीपति और सत्तापक्ष के नेता शामिल हों और ये लोग इस मक़ाम तक आम तौर से पहुंचते ही तब हैं जबकि ये लोग अपनी ‘न्याय चेतना‘ का गला घोंट डालते हैं। कार्यक्रम के आयोजकों के अपने व्यावसायिक हित थे, उनकी पूर्ति बहरहाल हो ही गई है।
खुशदीप भाई ने जब निशंक जी को देख ही लिया था तो आयोजकों से अपनी मजबूरी ज़ाहिर करके इधर-उधर टल जाना था। अगर पुण्य प्रसून जी नाखुश न होते तो खुशदीप जी भी अपने घर ईनाम सहित खुश खुश ही लौटते जैसे कि शाहनवाज़ भाई और ललित भाई लौटे। इन्होंने तो अपने ईनाम नहीं लौटाए तो क्या इनकी आत्मा को खुशदीप जी के मुक़ाबले कम अंक दिए जाएं ?
इन्हें पुण्य प्रसून जी से कुछ लेना देना ही नहीं था सो ये अपने ईनाम साथ लेते आए।
खुशदीप भाई स्वस्थ होने के बाद ही पुण्य प्रसून जी के सामने पड़ेंगे और दो चार दिन बाद उनके अंदर भी ‘जाने भी दो यार‘ वाला भाव जाग चुका होगा और तब उनकी तरफ़ से संतुष्ट होते ही खुशदीप जी फिर से ब्लॉगिंग करने लगेंगे। उन्हें जो इंटरनेशनल पहचान मिली है वह हिंदी ब्लॉगिंग की वजह से ही मिली है। इस मंच से हटकर वे अपना ही कुछ खोएंगे और खोने के लिए वे कभी तैयार होंगे नहीं। वैसे भी ब्लॉगिंग का अभ्यस्त बीवी-बच्चे छोड़ सकता है लेकिन ब्लॉगिंग हरगिज़ नहीं छोड़ सकता। वे ऐसा ज़ाहिर करेंगे जैसे कि अगर लोगों ने उनसे आग्रह न किया होता तो वे अब दोबारा बिल्कुल भी न लिखते।
हमारे उस्ताद का कथन है कि हिंदी ब्लॉगर बेचारा जाएगा कहां ?
लिहाज़ा सब तसल्ली रखें और खुशदीप जी के सेहतयाब होने की दुआ करें।
इस सबके बाद में हम श्री रवीन्द्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति जी से यह कहना चाहेंगे कि आदमी ग़लतियों से ही सीखता है। किसी की आलोचना और असहयोग के कारण आप अपना मनोबल मत गंवा बैठिएगा। आपने एक आयोजन किया, चाहे उसमें कुछ भूल-चूक हुईं लेकिन आपने बहुत से लोगों को आपस में एक जगह तो किया।
आप बहरहाल बधाई के पात्र हैं।
अगली बार के आयोजन में इन ग़लतियों को शून्य करने की कोशिशें कीजिएगा और जल्दी ही आपको हम बुलाएंगे अपने सम्मान समारोह में।
जय हिंद!   
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