@ हरीश जी ! मैं आपकी कोई पोस्ट पहली बार पढने की सआदत हासिल कर रहा हूँ .  आप इस समय जिस शख्स से रू ब रू हैं वह गीता की आठ से ज़्यादा टीकाएँ पढ़ चुका  है लेकिन मुझे तो कहीं भी लिखा नहीं मिला -
एक बार गीता पढ़कर देखिये और दोनों की तुलना कीजिये, आप कट्टर  क्यों है यह आप भी जानते हैं और हम " सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु  निरामया" क्यों है ?, 
और गीता ही क्या मुझे तो यह चारों वेदों , १८ पुराणों , १०८ उपनिषदों में  भी कहीं नहीं मिला . रामायण - महाभारत में भी यह सूत्र नहीं है और किसी भी  स्मृति में नहीं है . ज़रूर मेरी नज़र से चूक हुई होगी . अब अगर आप मुझ से  ज़्यादा जानकार हैं तो कृपया बताएं कि इतनी महान शिक्षा जो मैं अक्सर अपने  हिन्दू भाईयों के मुंह से सुनता रहता हूँ , वह आखिर है कौन से ग्रन्थ में ?
या फिर वैसे ही अपनी तरफ से बनाकर उड़ाई हुई एक अफ़वाह है ?
अगर आपको  यह सूत्र कहीं भी न मिले तो समझ लीजियेगा कि अभी खुद आपको बहुत खोज और अनुसंधान कि ज़रूरत है .
मैं हिन्दू धर्म में  कोई कमी नहीं मानता लेकिन जो लोग कमियों को हिन्दू  धर्म या इस्लाम  की परम्पराएं बताते हैं , उन लोगों का और उनकी दोषपूर्ण  परम्पराओं का विरोध ज़रूर करता हूँ .
मैं आपके जवाब की  इंतज़ार कर रहा हूँ और फिर उसके बाद मैं आपके इस लेख के  शेष बिन्दुओं की भी समीक्षा करके आपकी ग़लतफ़हमी दूर करने की कोशिश करूँगा . 
देखिये-
'हिन्दू जाति' और  ‘हिन्दू धर्म‘ की खूबियां और उनका प्रभाव - Anwer Jamal
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