क्या मां-बाप, गुरू और राजा केवल मर्दों का होता है ?
अगर वाक़ई वे न्याय के गुण से युक्त हैं, वे अपने पद के अनुरूप ही अपनी संतान, अपने शिष्यों और अपनी प्रजा के प्रति वत्सल भाव रखते हैं तो यक़ीनन वे केवल मर्दों के ही नहीं हो सकते बल्कि वे सबके होंगे। मां-बाप अपनी औलाद का, गुरू अपने शिष्यों का और एक अच्छा राजा अपनी प्रजा का भला चाहता है। उनकी भलाई के लिए ही ये सभी अपने अपने स्तर पर कुछ नियम और अनुशासन बनाते हैं और उनका अनिवार्य रूप से पालन कराते हैं। इनमें से कोई भी यह छूट नहीं देता कि कोई भी जो चाहे वह करे।@ प्रिय प्रवीण जी ! आप भी एक बाप हैं, एक शिक्षक हैं और एक फ़ौजी भी हैं। इसक बावजूद आप अनुशासन की अहमियत को नहीं समझ पा रहे हैं। इंसान के लिए अनुशासन अनिवार्य है। परमेश्वर भी मनुष्यों का कल्याण चाहता है और इंसान का कल्याण तभी संभव है जबकि वह ईश्वरीय अनुशासन का पालन करे। ईश्वरीय अनुशासन के नाम पर हुड़दंग काटने वाले ईश्वर के द्रोही और मानवता के अपराधी हैं। उनके अत्याचार के कारण आप ईश्वर के न्याय और कल्याण भाव के प्रति प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते।
क्या आप अपनी लड़कियों को नंगी घूमने दे सकते हैं ?
आप तो उनकी इतनी परवाह करते हैं कि उन्हें स्कूल के समय स्कूल की ड्रेस पहनाते हैं और घर लौटने पर दूसरी और शादी विवाह आदि में जाने पर दूसरी। उन्हें अलग अलग मौक़ों पर अलग अलग ड्रेस पहनना किसने सिखाया ?
यक़ीनन आपने !
जब आपकी शादी हुई या आपकी बहनों की शादी हुई तो उनके बाल कैसे हों ?
उनके हाथ कैसे हों ?
उनका लिबास कैसा हो ?
उनका मेकअप कैसा हो?
यह सब उस दुल्हन ने तय नहीं किया था बल्कि उसके गार्जियन्स ने ही तय किया था। क्या तब भी आपने कहा था कि आपको क्या अधिकार है इस लड़की के लिए इतना कुछ तय करने का ?
आपके लिए आपके माता-पिता और गुरू सदा से नियम अनुशासन तय करते आए हैं और आप उन्हें मानते आए हैं। आप सेना में थे तो आपने कभी नहीं कहा कि आज तो गर्मी है, मैं तो तहबंद और बनियान पहनकर ही ड्यूटी दूंगा।
आपने नहीं कहा। आपने भारी भरकम वर्दी भी पहनी और बुलेट प्रूफ़ भी और तमाम दिक्कतों के बावजूद आपने विश्वास किया कि आपके ऊपर वाला अफ़सर आपके हित में ही ये पाबंदिया आयद कर रहा है। ऐसा ही आप उस ऊपर वाले के बारे में विश्वास क्यों नहीं रखते ?
ये मामूली सवाल हैं, जिन्हें आप जैसा बुद्धिजीवी स्वयं हल करने में सक्षम है।
अब जल्दी कीजिए वुज़ू सीखिए और नमाज़ अदा कीजिए और कोई सवाल भी मत कीजिए क्योंकि जब आप ड्रिल करते थे तो आपने कभी ऐतराज़ नहीं किया और अगर किसी ने किया भी तो उसके ऐतराज़ की वजह से सेना के अनुशासन को , उसके नियम को नहीं बदला गया बल्कि उस ऐतराज़ करने वाले को ही दंड दिया गया। जहां न्याय है , वहां सीमा और संतुलन भी है और अनुशासन भी और फिर उसके उल्लंघन करने वाले के लिए दंड भी है। आप सेना में सब कुछ देख चुके हैं।
आपसे अनुशासन के पालन की पूरी आशा मुझे है।
अब आपको अपने स्वभाव को और मेरी आशा को पूरा करना है।जय हिंद !
सुनिये मेरी भी....: तो 'ईश्वर' क्या आप केवल मर्दों के ही हो ?... दे ही दो आज जवाब !!!