विवाह की बुनियाद है प्रेम। विपरीत लिंगी के प्रति ऐसा प्रेम मैथुन की प्रेरणा देता है जो कि स्वाभाविक है। इसी से नस्ल चलती और इसी से सभ्यता का विकास होता है। विवाह का मक़सद होता है फ़र्ज़ और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण । दुनिया के तमाम देशों में नर नारी के मैथुन को केवल विवाह के तहत ही जायज़ माना जाता है और इसके अलावा को नाजायज़ । दुनिया की तमाम विवाह परंपराओं का यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो इस्लामी विवाह पद्धति अपेक्षाकृत ज़्यादा सादा और व्यवहारिक है। यही कारण है कि आज जाने अन्जाने बहुसंख्यक भारतीयों ने भी अपने विवाह को एक संस्कार से बदल कर उसे इस्लामी निकाह की तरह एक समझौते का रूप दे दिया है जो कि एक स्वागत योग्य क़दम है। भविष्य में और भी ज़्यादा परिवर्तन देखने में आएंगे जो कि ज़रूरत के दबाव में करने ही पड़ेंगे जैसे कि विवाह को संस्कार से एक समझौते में बदलने पर मजबूर होना पड़ा।
ज़रूरतों के तहत अगर आदमी बिगड़ता है तो ज़रूरतों के दबाव में आकर समाज को सुधरना भी पड़ता है।
विवाह संबंधी जटिलताओं को दूर करने का व्यवहारिक उपाय है इस्लामी विवाह को उसके पूरे विधान के साथ अपनाया जाए।
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