‘मेरे विचार में कोई किसी का अनुकरण नहीं करता। जिसमें जैसे जींस होते हैं और जैसा माहौल मिलता है, व्यक्ति वैसा बनता चला जाता है।‘-ज़ाकिर अली रजनीश
ज़ाकिर भाई ! कुछ लोग माहौल में ढलने के लिए खुद को बदलते हैं और कुछ लोग माहौल को ही अपने उसूलों के मुताबिक़ बदल देते हैं। गौतम बुद्ध जी की मिसाल से आप यह समझ सकते हैं। बुद्ध हिंदू परिवार में पैदा हुए। उस समय समाज में यज्ञ करना आदि बहुत से आडंबर आम थे और बहुत से कमज़ोर इच्छा शक्ति के लोग खुद को उसमें ढाल लिया करते थे लेकिन बुद्ध ने खुद को उस आडंबरपूर्ण माहौल में नहीं ढाला बल्कि सत्य और सही की तलाश में दुख उठाए। अंततः उन्होंने यज्ञादि आडम्बरपूर्ण ब्राह्मणवादी परंपराओं का विरोध किया और उन्हें बंद कराने में सफलता पाई। इन आडंबरों के बंद होते ही धन विकास कार्यों में खर्च होने लगा और बहुत कम मुद्दत में ही भारत सोने की चिड़िया बन गया। लोग कहते तो हैं कि भारत कभी सोने की चिड़िया था लेकिन वे यह नहीं बताते कि भारत सोने की चिड़िया बौद्ध काल में बना था और आज फिर बन सकता है बशर्ते कि भारतवासी अपने जीवन से आडंबर को निकाल दें। आडंबर निकालने के लिए इंसान में कोई जींस नहीं होता बल्कि सही-ग़लत की समझ होती है, उसका विवेक होता है जिसके आधार पर वह फ़ैसला लेता है। कुछ करने का हौसला और कुछ पाने की ख्वाहिश होती है। जब इंसान के अंदर सच और सही का अनुकरण करने का जज़्बा जाग जाता है तो वह सुधर जाता है। सुधरने के लिए इंसान में कोई जींस नहीं होता। इंसान को सुधरने के लिए किसी न किसी विचार पालन करना होता है और जो लोग उस विचार का पालन उससे पूर्व में कर चुके होते हैं उनके जीवन को सामने रखकर, उन्हें अपना आदर्श मानकर उनका अनुकरण करना होता है। इंसान बचपन से बुढ़ापे तक केवल अनुकरण ही करता है। अनुकरण के बिना इंसान का कोई लम्हा गुज़र ही नहीं सकता। कभी यह अनुकरण आदमी अवचेतन रूप से करता है और कभी चेतन रूप से।
आज हमारा देश और समाज जिन हालात में घिरा हुआ है। उनसे निकालने का तरीक़ा यह नहीं है कि आप लोगों को बताएं कि कोई किसी का अनुकरण नहीं करता, जैसे जींस और जैसा माहौल होता है, इंसान उसी में ढल जाता है। यह एक बेकार बात है। अंग्रेज़ों की हुकूमत में भी बहुत लोगों ने खुद को उनकी हुकूमत के मुताबिक़ नहीं ढाला बल्कि उनके बनाए माहौल के खि़लाफ़ अपने लिए खुद अपना एक अलग माहौल बनाया।
आपके वक्तव्य से न तो हक़ीक़त पता चलती है और न ही देश और समाज के सुधार में ही कोई मदद मिल सकती है। ऐसे विचारों से तो केवल आपकी सोच का पता चलता है जो कि सरासर एक ग़लत सोच है। माहौल अगर ग़लत है तो खुद को उसमें ढालिए मत बल्कि उसे बदलिए। इसलाम की तालीम यही है। खुदा का हुक्म यही है जो कि हरेक जीन का रचयिता है। जीन की आड़ में सुधरने से अपनी जान मत बचाईये।
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/02/real-role-model-for-indian-women_11.html
ज़ाकिर भाई ! कुछ लोग माहौल में ढलने के लिए खुद को बदलते हैं और कुछ लोग माहौल को ही अपने उसूलों के मुताबिक़ बदल देते हैं। गौतम बुद्ध जी की मिसाल से आप यह समझ सकते हैं। बुद्ध हिंदू परिवार में पैदा हुए। उस समय समाज में यज्ञ करना आदि बहुत से आडंबर आम थे और बहुत से कमज़ोर इच्छा शक्ति के लोग खुद को उसमें ढाल लिया करते थे लेकिन बुद्ध ने खुद को उस आडंबरपूर्ण माहौल में नहीं ढाला बल्कि सत्य और सही की तलाश में दुख उठाए। अंततः उन्होंने यज्ञादि आडम्बरपूर्ण ब्राह्मणवादी परंपराओं का विरोध किया और उन्हें बंद कराने में सफलता पाई। इन आडंबरों के बंद होते ही धन विकास कार्यों में खर्च होने लगा और बहुत कम मुद्दत में ही भारत सोने की चिड़िया बन गया। लोग कहते तो हैं कि भारत कभी सोने की चिड़िया था लेकिन वे यह नहीं बताते कि भारत सोने की चिड़िया बौद्ध काल में बना था और आज फिर बन सकता है बशर्ते कि भारतवासी अपने जीवन से आडंबर को निकाल दें। आडंबर निकालने के लिए इंसान में कोई जींस नहीं होता बल्कि सही-ग़लत की समझ होती है, उसका विवेक होता है जिसके आधार पर वह फ़ैसला लेता है। कुछ करने का हौसला और कुछ पाने की ख्वाहिश होती है। जब इंसान के अंदर सच और सही का अनुकरण करने का जज़्बा जाग जाता है तो वह सुधर जाता है। सुधरने के लिए इंसान में कोई जींस नहीं होता। इंसान को सुधरने के लिए किसी न किसी विचार पालन करना होता है और जो लोग उस विचार का पालन उससे पूर्व में कर चुके होते हैं उनके जीवन को सामने रखकर, उन्हें अपना आदर्श मानकर उनका अनुकरण करना होता है। इंसान बचपन से बुढ़ापे तक केवल अनुकरण ही करता है। अनुकरण के बिना इंसान का कोई लम्हा गुज़र ही नहीं सकता। कभी यह अनुकरण आदमी अवचेतन रूप से करता है और कभी चेतन रूप से।
आज हमारा देश और समाज जिन हालात में घिरा हुआ है। उनसे निकालने का तरीक़ा यह नहीं है कि आप लोगों को बताएं कि कोई किसी का अनुकरण नहीं करता, जैसे जींस और जैसा माहौल होता है, इंसान उसी में ढल जाता है। यह एक बेकार बात है। अंग्रेज़ों की हुकूमत में भी बहुत लोगों ने खुद को उनकी हुकूमत के मुताबिक़ नहीं ढाला बल्कि उनके बनाए माहौल के खि़लाफ़ अपने लिए खुद अपना एक अलग माहौल बनाया।
आपके वक्तव्य से न तो हक़ीक़त पता चलती है और न ही देश और समाज के सुधार में ही कोई मदद मिल सकती है। ऐसे विचारों से तो केवल आपकी सोच का पता चलता है जो कि सरासर एक ग़लत सोच है। माहौल अगर ग़लत है तो खुद को उसमें ढालिए मत बल्कि उसे बदलिए। इसलाम की तालीम यही है। खुदा का हुक्म यही है जो कि हरेक जीन का रचयिता है। जीन की आड़ में सुधरने से अपनी जान मत बचाईये।
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