अनवर जमाल जब झूठपतियों के विरूद्ध बवंडर खड़े करता है तो लोग भागे भागे आते हैं , कोई गालियाँ देने , कोई समर्थन के लिए और कोई यह अपील करने के लिए कि मैं यह रविश छोड़कर कुछ रचनात्मक लिखूं।
मेरा हरेक कार्य रचनात्मक है , इसे कम लोग जानते हैं। नवीन सृजन से पहले विध्वंस आवश्यक है।
लेकिन ख़ैर , कल ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी की एक कविता वटवृक्ष पर देखी। उसी कविता को मैंने LBA पर डाल दिया और इस समय वह हमारी वाणी के बोर्ड पर भी नज़र आ रही है और मात्र 5 पाठक दिखा रही है जिनमें से इसे 2 बार तो खुद मैंने ही अलग अलग सिस्टम्स से खोला है । इस रचनात्मक पोस्ट पर आपको किसी ब्लॉगर की कोई टिप्पणी नज़र नहीं आएगी । जबकि इसी ब्लॉग LBA के सदस्य 100 से ज्यादा हैं और फ़ॉलोअर्स 207 हैं । इनमें वे बड़े ब्लॉगर भी हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग के संरक्षक और मार्गदर्शक होने का नाटक किया करते हैं , हक़ीक़त में ये तास्सुब और लालच में अंधे हैं । जब मार्गदर्शक ही अंधे हों तो फिर कैसी दिशा और कैसी दशा ?
मेरी रचनात्मक पोस्ट पर एक भी टिप्पणी का न आना ख़ुद एक जुर्म है जिससे हिंदी ब्लॉगर्स का उत्साह ठंडा पड़ जाएगा , मेरा तो पड़ेगा नहीं क्योंकि इस पोस्ट और हिंदी ब्लॉगिंग का हश्र बुरा देखकर मेरा क्रोध भड़क रहा है और मैं इसके ज़िम्मेदार बड़े ब्लॉगर्स में किसी को भी पकड़कर जैसे ही उसके 'टटरे पर जूत' बजाना शुरू करूँगा वैसे ही बहुत से आ जाएँगे मुझे नेक नसीहतें करने के लिए ।
अरे बदबख़्तो ! अगर तुमने पहले ही अच्छी पोस्ट को अच्छा कह दिया होता तो तुम्हारी इज़्ज़त क्यों नीलाम होती ?
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