रिश्ते और संबंध अगर नाजायज़ हैं तो उन्हें तोड़ना ही अच्छा है ।
कौन सा संबंध और कौन सा रिश्ता जायज़ है और कौन सा नाजायज़ ?
इसे तय करने की क्षमता इंसान में न पहले थी और न ही आज है । इसे वही तय कर सकता है जो सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हो। जब तक उस मालिक से इंसान अपने रिश्ता ए बंदगी को न पहचाने और उसके संबंध में जो हक़ इंसान पर वाजिब हैं , वह उन्हें अदा करना न जान ले तब तक उसे अपने किसी भी सवाल का सही जवाब मिलने वाला नहीं है।
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रश्मि प्रभा जी के ब्लॉग परिचर्चा की एक ताजा पोस्ट पर मेरा यह कमेँट आपके लिए सुलभ है :
http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.com