माँ ! काश , तुमने मुझे शिक्षा न दिलाई होती
(ये उद्गार उस कन्या के हैं जिसे शिक्षा ने मार डाला)
माँ , क्यों दिलाई तुमने शिक्षा ?
स्कूल कॉलेज में हवस के मारों की निगाहें
गर्म सलाख़ों की मानिंद
उतरती रहीं मेरे वुजूद की गहराईयों में
डिग्रियाँ पाती रही
रिसर्च करती रही
आगे बढ़ती रही
नीचे गिरती रही
दबना भी पड़ा नीचे
एक बार नहीं बल्कि बार बार
कभी शोध ओ. के. कराने के लिए
कभी नौकरी पाने के लिए
ताकि जुटा सकूं दहेज ख़ुद अपने लिए
दूसरे के नीचे ख़ुद को बिछाने के लिए
किसी नीच को रिझाने के लिए
इतनी मशक़्क़त आख़िर क्यों ?
इतनी साधना , इतनी तपस्या क्यों ?
खुद को इतना नीचे गिराने के लिए
इतनी ऊँची शिक्षा आखिर क्यों ?
माँ ! काश , तुमने मुझे शिक्षा न दिलाई होती
अनपढ़ ही मुझे तुमने ब्याही होती
किसी ऐसे के साथ
जो सचमुच एक इंसान होता
......
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