नारी मन में बहुत से सवाल उठते हैं और हरेक दिल उसे अपने अंदाज़ में बयान करता है. मैंने यह बयान किया है एक पोस्ट पर :
DR. ANWER JAMAL said...
- प्रेम , ममता और त्याग बैसाखियाँ नहीं हैं हिस्सा हैं तुम्हारे वुजूद का गर ये नहीं तो तुम नहीं आत्महत्या न करो मुक्ति के नाम पर नारी होकर जीना है तो बस काफ़ी है ख़ुद की पहचान
कभी देवी बनाकर
मन्दिर में
सिंहासन पर बैठाया.
समझ कर ज़ागीर
कभी जूए में
दांव पर लगाया.
और कभी बनाकर सती
जिंदा चिता में जलाया.
कुचल कर अरमानों को
बनाया कभी नगरवधू
तो कभी देवदासी.
परिवार की इज्ज़त के नाम पर
अपनों ने ही
लटका के पेड से
कभी दी फांसी.
बेटी, पत्नी और माँ बनकर
जी रही हूँ सदियों से,
पर नहीं जी पायी
एक दिन के लिए भी
सिर्फ़ अपने लिये
केवल
एक नारी बनकर.
क्यों थमा दी
प्रेम, ममता और त्याग
की वैसाखियाँ
मेरे हाथों में,
होने दो मुझे भी खड़ा
अपने पैरों पर.
मुक्त कर दो मुझे
कुछ क्षण को
इन सभी बंधनों से,
और अहसास करने दो
क्या होता है
जीना
सिर्फ़ एक नारी बनकर.
http://sharmakailashc.blogspot.com/2011/03/blog-post_06.html