Sunday, March 20, 2011

धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ? The plan

आपकी पोस्ट को मैंने दोबारा फिर पढ़ा तो मेरी नज़र आपके इस वाक्य पर अटक गई :
आप ऐसे ही करते रहे तो मेरी दुकान बंद हो जाएगी और मैं बहुत सुखी इंसान हो जाऊंगाए क्योंकि मेरा विरोध अनवर जमाल से नही उन बातों से है जिनका विरोध आपने मेरे ब्लॉग पर देखाए मेरी मौत एक सुखद घटना होगी और आपका नव अवतरण उससे भी सुखद।

इसमें कुछ बिन्दु हैं , जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
1. मेरी दुकान बंद हो जाएगी।
2. मैं सुखी इंसान हो जाऊंगा।
3. मेरा विरोध अनवर जमाल से नहीं है।
4. मेरी मौत एक सुखद घटना होगी।
5. आपका नव अवतरण उससे भी ज़्यादा सुखद होगा।

जब इन तथ्यों पर मैं ईमानदारी से सोचता हूं तो मैं खुद चाहता हूं कि आप एक सुखी इंसान हो जाएं लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आपके ब्लॉग की मौत हो जाए। आप अच्छा लिखते हैं और मैं आपको पढ़ता हूं। आपने मेरी जायज़ बातों का भी विरोध किया, इसलिए मैंने आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया और उसका नतीजा यह हुआ कि जहां आप सही थे, उसे भी मैंने नज़रअंदाज़ कर दिया। यह मेरी ग़लती थी, जिसे कि मैंने आपकी सलाह के मुताबिक़ सुधार लिया है।
आपने मेरे नव अवतरण के प्रति भी अच्छी आशा जताई है और मैं खुद भी यही चाहता हूं कि मेरी वजह से आपमें से किसी को कोई कष्ट न पहुंचे। मेरे नव अवतरण की आउट लाइंस क्या होंगी ?
यह मैं अभी तक तय नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप ही मेरे नव अवतरण की रूपरेखा तैयार कर दीजिए और मैं उसे फ़ॉलो कर लूं।
मेरे नव अवतरण की भूमिका तैयार करना खुद मेरे लिए जिन कारणों से मुश्किल हो रहा है, वे प्रश्न आपको भी परेशान करेंगे लेकिन मुझे उम्मीद है कि आपकी प्रबुद्ध मंडली उनका कुछ न कुछ हल निकालने में ज़रूर कामयाब होगी।
जो चीज़ मुझे इस वर्चुअल दुनिया में लाई है वह है ईश्वर, धर्म और धार्मिक महापुरूषों का मज़ाक़ बना लेना।
मैं इसे पसंद नहीं करता कि कोई भी व्यक्ति ऐसा करे। इनमें से कुछ लोग रंजिशन ऐसा करते हैं और ज़्यादातर नादानी की वजह से। आज भी श्रीरामचंद्र जी , श्रीकृष्ण जी और शिवजी के बारे में ग़लत बातें लिखी जा रही हैं। मुझे कोई एक भी हिंदू कहलाने वाला भाई ऐसा नज़र नहीं आया जो कि उन्हें इन महापुरूषों की सच्ची शान बता सकता। मैंने जब भी बताया तो मुझसे यह कहा गया कि आप एक मुसलमान हैं, आप हमारे मामलों में दख़ल न दें।
1. आप मुझे बताएं कि अगर हिंदू महापुरूषों और ऋषियों का अपमान कोई हिंदू करता है तो क्या मुझे मूकदर्शक बने रहना चाहिए ?
2. कुछ हिंदू भाई ऐसा लिखते रहते हैं कि कुरआन में अज्ञान की बातें हैं, अल्लाह को गणित नहीं आता, मांस खाना राक्षसों का काम है, औरतों के हक़ में इसलाम एक लानत है। इससे भी बढ़कर पैग़म्बर साहब की शान में ऐसी गुस्ताख़ी करते हैं, जिन्हें मैं लिख भी नहीं सकता। दर्जनों ब्लाग और साइटों पर तो मैं खुद अपील कर चुका हूं और ऐसे अड्डे सैकड़ों से ज़्यादा हैं। जब इस तरह की पोस्ट पर मैं हिंदी ब्लाग जगत के ‘मार्गदर्शकों‘ को वाह वाह करते देखता हूं तो पता चलता है कि अज्ञानता और सांप्रदायिकता किस किस के मन में कितनी गहरी बैठी हुई है ?
ऐसी पोस्ट्स पर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ?
3. मैं अपने देशवासियों में अनुशासनहीनता और पाखंड का आम रिवाज देख रहा हूं। एक आदमी खुद को मुसलमान कहता है और शराब का व्यापारी है। जब इसलाम में शराब हराम है तो कोई मुसलमान शराब का व्यापार कर ही कैसे सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान सूद ले सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान खुद को ऊंची जाति का घोषित कर सकता है जबकि इसलाम में न सूद है और न ही जातिगत ऊंचनीच ?
ऐसा केवल इसलिए है कि इसलाम उनके जीवन में नहीं है बस केवल आस्था में है। चोरी, व्यभिचार, हत्या, बलवा और बहुत से जुर्म आज मुस्लिम समाज में आम हैं जबकि वे सभी इसलाम में हराम हैं।
यही हाल हिंदू समाज का है कि हिंदू दर्शन सबसे ज़्यादा चोट ‘माया मोह‘ पर करता है और मैं देखता हूं कि हिंदू समाज में धार्मिक जुलूसों में रथों की रास पकड़ने से लेकर चंवर डुलाने तक हरेक पद की नीलामी होती है और पैसे के बल पर ‘माया के मालिक‘ इन पदों पर विराजमान होकर अपनी शान ऊंची करते हैं। दहेज भी ये लोग लेते हैं और कन्या भ्रूण हत्या भी केवल दहेज के डर से ही की जा रही है।
जो सन्यासी इन्हें रोक सकते थे, उनके पास भी आज अरबों खरबों रूपये की संपत्ति जमा है। हिंदू बालाएं फ़ैशन और डांस के नाम पर अश्लीलता परोस रही हैं जबकि काम-वासना और अश्लीलता से उन्हें रूकने के लिए खुद उनका धर्म कहता है।
मैं चाहता हूं कि हरेक नर नारी जिस सिद्धांत को अपनी आत्मा की गहराई से सत्य मानता हो, वह उस पर अवश्य चले वर्ना पाखंड रचाकर समाज में धर्म को बदनाम न करे।
हिंदू हो या मुसलमान जब वे नशा करते हैं, दंगों में एक दूसरे का खून बहाते हैं तो उससे धर्म बदनाम होता है। जो लोग कम अक़्ल रखते हैं और धर्म के आधार पर लोगों को नहीं परखते बल्कि लोगों के कामों को ही धर्म समझते हैं वे धर्म का विरोध करने लगते हैं और दूसरों को भी धर्म के खि़लाफ़ बग़ावत के लिए उकसाते हैं जैसा कि पिछले दिनों एक वकील साहब ने किया।
धर्म को बदनाम करने वाले पाखंडियों को धर्म पर चलने के लिए कहना ग़लत है क्या ?
धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ?
इसी तरह के कुछ सवाल और भी हैं जो इनसे ही उपजते हैं।
मैंने कभी हिंदू धर्म की निंदा नहीं की और हमेशा हिंदू महापुरूषों का आदर किया और उनका आदर करने की ही शिक्षा दी। मेरी सैकड़ों पोस्ट्स इस बात की गवाह हैं। मैं खुद को भी एक हिंदू ही मानता हूं लेकिन डिफ़रेंट और यूनिक टाइप का हिंदू। बहरहाल, अगर आप मुझे हिंदू नहीं मानते तो न मानें। मैं इस पर बहस नहीं करूंगा लेकिन मैं यह ज़रूर चाहूंगा कि आप उपरोक्त सवालों पर ग़ौर करके मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें ताकि मेरे शब्द आपके लिए किसी भी तरह कष्ट का कारण न बनें।
मैं आपका आभारी रहूंगा।
शुक्रिया !
For context , please go to
http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300612412366#c5412010183540951113