Sunday, May 22, 2011

‘बाग़ ए बाहू‘, जम्मू का एक मशहूर बाग़ है . इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर दिल पर छा जाते हैं - Anwer Jamal


शालिनी जी ! आपके दूसरे कमेंट का लुत्फ़ हेते हुए हम आपको यह बताना चाहेंगे कि जो इस फ़ोटो में आप जो बाग़ देख रही हैं, उस बाग़ का नाम है ‘बाग़ ए बाहू‘। यह जम्मू का एक मशहूर बाग़ है। इस बाग़ में इतने प्रेमी जोड़े प्रेम अगन में तपते हुए मिलते हैं कि अच्छे-ख़ासे जमे हुए पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाते हैं।
नेट पर आप इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर (दृश्यों) का लुत्फ़ लेने के लिए निम्न लिंक पर जा सकती हैं :

Bagh-e-Bahu : http://www.panoramio.com/photo/2952280

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आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ
शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

हैं लहू रंग जिसके शामो-सहर
मैं उसी अहद का मुक़द्दर हूँ

एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

शब्दार्थ
आरज़ू ए सहर-सुबह की ख़्वाहिश , शाम ए ग़म-ग़म की शाम , लहू रंग-रक्त रंजित , शामो सहर-शाम और सुबह ,अहद-युग
तारीकियों-अंधेरों , अनवर-सर्वाधिक प्रकाशमान