Sunday, May 22, 2011

शाकाहारी संतों की बात मानी जाए तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव ही नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे।

स्वांस स्वांस का करो विचारा । बिना स्वांस का करो आहारा ।
सीधी सी बात है । जिसकी स्वांस का आवागमन होता है । वह जीव है । और उसको मारना पाप ही है । अर्थात इस भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय हेतु स्वांस को आधार माना गया है ।
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.com/2011/05/blog-post_20.html
@भाई राजीव जी ! आप संतों का आदर करते हैं उनके बताए आहार को ही लेना चाहते हैं तो आप इस धरती पर जीवित नहीं रह सकते। इन संतों को पशु-पक्षी सांस लेते नज़र आए तो लिख दिया कि आहार में श्वास को आधार मानो लेकिन उन्हें ‘सत्य का ज्ञान‘ नहीं था कि पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं। आज वैज्ञानिकों ने उस सत्य का पता चला लिया है जिसका पता इन संतों को नहीं था। वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि ‘पेड़-पौधे भी सांस लेते हैं।‘

वैज्ञानिक वनस्पति जगत को भी जीवित वस्तुओं में ही शुमार करते हैं। अगर इन संतों की बात मान ली गई तो मानव जाति का जीवन इस पृथ्वी पर संभव नहीं है बल्कि अगर अपने उसूल पर ख़ुद संत ही चलें तो वे ख़ुद भी जीवित न रह पाएंगे। बस जो मन में समा गया उसे नियम बनाकर परोस दिया। इसी का नाम दर्शन और फ़िलॉसफ़ी है और हद तो तब हो जाती है जबकि ये लोग क़ुरआन की मूल भाषा का ज्ञान प्राप्त किए बिना ही उसकी आयतों के अर्थ भी बताने लगते हैं। अगर इन्हें इस्लाम के बारे में कोई बात कहनी है तो उसे कहने से पहले इस्लामी विद्वानों से मिलकर पूरी बात पता कर लेनी चाहिए। आजकल तो ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं कि अगर आप फ़ोन करके भी कुछ जानना चाहें तो वे आपको फ़ोन पर भी पूरी जानकारी देंगी।  
ये फ़ोन नं. ऐसे ही हैं 011-24355454, 41827083, 24356666, 46521511
फ़ैक्स 011-45651771
इन पर मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब, दिल्ली की ओर से नियुक्त किसी सेवाकर्मी से बात होती है। उनके लेक्चर्स के वीडियो देखने की सुविधा निम्न वेबसाइट पर है

हिंदू ग्रंथों और मुस्लिम ग्रंथों में मांसाहार को अनुचित नहीं माना गया है। देखिए यह लिंक

Haj or Yaj विभिन्न धर्म-परंपराओं का संगम : हज By S. Abdullah तारिक

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इस संवाद की पृष्ठभूमि जानने के लिए देखें 

कुरआन या कोई धर्म माँस खाने को नहीं कहता ।