Saturday, May 14, 2011

क्या हिंदुस्तानी अदालतें ईरानी अदालत से बेहतर हैं ?

इकतरफ़ा प्रेम के मारे अंधे प्रेमी लड़की का इंकार सुनकर लड़की के चेहरे पर तेज़ाब फेंक देते हैं ताकि अगर वह उनकी न हो सकी तो वह किसी और की भी न हो सके । भारत में ऐसी घटनाएं आए दिन घटती रहती हैं ।
भारतीय क़ानून ईरान के इस्लामी क़ानून की तरह अपराधी को तुरंत दंडित नहीं करता । तुरंत क्या बल्कि अक्सर तो करता ही नहीं ।
एक औरत की क्या वैल्यू है ?
यहाँ तो पूरे के पूरे समुदाय का संहार कर दीजिए , क़ातिलों का बाल टेढ़ा होने वाला नहीं है ।
सन 1984 के दंगे में मारे गए सिक्खों के क़ातिलों में से आज तक किसी एक को भी फाँसी न हुई और अफ़ज़ल गुरू वग़ैरह को जिन्हें फाँसी की सज़ा सुना भी दी है तो उसे देते हुए डर लग रहा है ।
हमारे देश की अदालतें बढ़िया हैं और यहाँ सबको बिना कुछ ख़र्च किए जल्दी इंसाफ़ मिलता है , इसलिए ईरान को भारतीय अदालतों की तरह इंसाफ़ करना चाहिए ।
ऐसा कहने वाला कौन है ?

ख़ुद तो इंसाफ़ करना आता नहीं और जहाँ हो रहा है , वहाँ से सीखते नहीं , देखते नहीं।
ये वे आँखें हैं जो नफ़रत के तेज़ाब से खुद अंधी कर चुके हैं और अब सत्य और मार्ग दिखता ही नहीं ।

जयहिंद ।
वंदे ईश्वरम ।