@ आदरणीय भाई खुशदीप सहगल जी ! मैंने आपकी नसीहत को ग़ौर से दो बार पढ़ा, आधे घंटे के अंतराल से। आपने मुझे नसीहत की है जिससे मेरे प्रति आपकी फ़िक्रमंदी का पता चलता है लेकिन आपकी नसीहत पर अमल करने से पहले मुझे अपनी पूरी स्ट्रैटेजी पर ग़ौर करना होगा और आपको भी यह जानना ज़रूरी है कि यह सब आखि़र हो क्यों रहा है ?
हालांकि इसे बयान करने के लिए एक पूरी पोस्ट दरकार है लेकिन संक्षेप में अर्ज़ करता हूं कि ‘मैं न कोई संत हूं और न ही कोई जोकर।‘संत का काम क्षमा करना होता है और जोकर का हंसाना। मैं जज़्बात से भरा हुआ एक आम आदमी हूं, एक पठान आदमी। पठान का मिज़ाज क़बायली होता है, वह आत्मघाती होता है। वह हर चीज़ भूल सकता है लेकिन वह इंतक़ाम लेना नहीं भूलता। मैं आर्यन ब्लड हूं। इस्लाम को पसंद करने के बावजूद मैं अभी भी इस्लाम के सांचे में पूरी तरह ढल नहीं पाया हूं। अभी मैं अंडर प्रॉसैस हूं। इसी हाल में मैं हिंदी ब्लॉगर बन गया। मेरे दीन का और खुद मेरा तिरस्कार किया गया। एक लंबे अर्से तक सुनामी ब्लॉगर्स मेरी छवि को दाग़दार करते रहे और बाक़ी ब्लॉगर्स मुझे दाग़दार करने वालों की चिलम भरते रहे। ये वही लोग हैं जिन्हें नेकी और नैतिकता का ख़ाक पता नहीं है। जो कुछ मुझे दिया गया है, मैं उसके अलावा उन्हें और क्या लौटा सकता हूं ?
इसीलिए आपको मेरे लेख में आक्रोश मिलेगा, प्रतिशोध मिलेगा, अपमान और तिरस्कार भी मिलेगा, कर्कश स्वर और दुर्वचन भी मिलेगा, टकराव और संघर्ष मिलेगा। आपको मेरे लेख में बहुत कुछ मिलेगा लेकिन असत्य नहीं मिलेगा। ‘छिनाल छिपकली प्रकरण‘ भी ऐसी ही एक घटना है जो कि एक वास्तविक घटना है। औरत को सरेआम नंगा किया गया लेकिन कोई मर्द नहीं आया इसकी निंदा करने। द्रौपदी की साड़ी ज़रा सी खींचने पर तो दुःशासन आज तक बदनाम है और जिन्होंने औरत को पूरा नंगा कर दिया, उसे अपमानित ही कर डाला वे नेकनाम कैसे बने घूम रहे हैं ‘सम्मान बांटने का पाखंड‘ रचाते हुए ?
इस प्रकरण को लेख से निकालने का मतलब है अपने लेख के मुख्य संदेश को निकाल देना, फिर इसमें बचेगा ही क्या ?
इसी संदेश को रूचिकर बनाने के लिए अन्य मसाले भरे गए हैं। जिसे आप एक कंकर की तरह अप्रिय समझ रहे हैं, वास्तव में वही मुद्दे की बात है। हां, अगर वह झूठ हो तो मैं उसे निकाल दूंगा , झूठ से मेरा कोई संबंध नहीं है। अपने विरोधी के खि़लाफ़ भी मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
मेरा बहिष्कार करके मेरे विरोधियों ने और उनके सपोर्टर्स ने मेरा क्या बिगाड़ा ?
किसी से कोई रिश्ता बनने ही नहीं दिया कि किसी से कोई मोह होता, किसी के दिल दुखने की परवाह होती। जब किसी को हमारी परवाह नहीं है तो फिर भुगतो अपने कर्मों को। मत आओ हमारे ब्लॉग पर, मत दो हमें टिप्पणियां और फिर भुगतो फिर उसका अंजाम। ऐसा मैं सोचता हूं और जो मैं सोचता हूं वही अपने ब्लॉग पर लिखता हूं।
क्या ब्लॉग पर सच्चाई लिखना मना है ?
इसके बावजूद मेरे दिल में कुछ लोगों के प्यार भी है और सम्मान भी। प्रिय प्रवीण जी के साथ आप और डा. अमर कुमार जी ऐसे ही लोग हैं। डा. अमर कुमार जी के ज्ञान में वृद्धि की कोशिश करना सूरज को दिया दिखाना है और आपको मैं अपना मानता हूं।
आपकी सलाह प्रैक्टिकल दुनिया में जीने का बेहतरीन उपदेश है। मैं इस सलाह की क़द्र करता हूं। महानगरीय जीवन में यह उसूल लोगों की ज़िंदगी में आम है लेकिन मैं एक क़स्बाई सोच वाला आदमी हूं, मेरा माहौल भी आपसे थोड़ा अलग है। इसलिए हो सकता है कि आपकी सलाह पर अमल करने में मुझे कुछ समय लग जाए।
एक नेक सलाह के लिए मैं आपका दिल से आभारी हूं।
शुक्रिया !
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