लालच की मंडी के थोक और खुदरा व्यापारी
आजकल वोटर लोग इतने अक़्लमंद हैं कि चुनाव के दौरान हरेक पार्टी के प्रचार कार्यालय में जाते हैं। उन सब प्रत्याशियों से अपने आगे हाथ जुड़वाते हैं, अपनी मिन्नत करवाते हैं। चाय-मिठाई से लेकर उनकी शराब तक अपने हलक़ में उतार लेते हैं और फिर यह देखते हैं इनमें कौन सा बंदा अपने काम आ सकता है ? 1. जब हम दंगा, ख़ून-ख़राबा और लूटपाट करेंगे तो हमें जेल जाने से कौन बचाएगा ?
2. टूरिज़्म के नाम पर हमारी धर्म नगरियों के लिए , सामाजिक न्याय के नाम पर हमारी जाति के लिए सरकारी योजना बनवाकर कौन हमें अरबों खरबों राष्ट्रीय रूपया लूटने का अवसर दे सकता है ?
3. सरकारी ज़मीन पर हमारे अवैध निर्माण को ढहाये जाने से कौन बचा सकता है ?
4. नौकरी के लिए हमारे बच्चे की सिफ़ारिश कौन कर सकता है ?
इन मुद्दों में देश की रक्षा और विकास का मुद्दा सिरे से ही नहीं होता। ख़ूब ठोक बजाकर ज़्यादा वोटर जिस प्रतिनिधि को अपने नाजायज़ लालच पूरे करने वाला समझते हैं , उसे अपना नेता चुनते हैं और वे बार बार उसे या उस जैसों को ही चुनते हैं । ग़लत आदमी का चुनाव करना वोटर्स की बेवक़ूफ़ी नहीं है बल्कि उनकी एक सोची समझी पॉलिसी है ।
ये लोग हमेशा से ही ऐसा करते आए हैं कि जब देश के लिए कुरबानी देने का वक्त होता है तो काम लेते हैं सबसे और जब समुद्र मंथन के बाद अमृत निकलता है तो उसे ये केवल खुद हड़पना चाहते हैं। उसके लिए इन्हें मोहिनी जैसे एक नेता की ज़रूरत हमेशा से रही है। देश का विभाजन और युद्ध होने की नौबत चाहे सन् 1947 में आई हो या महाभारत काल में , उसकी वजह यही थी कि कुछ तो अपने लिए सारा अमृत चाहते थे और दूसरों को वे उसकी एक बूँद भी चखने नहीं देना चाहते थे।
गांधी जी वैष्णव जन तो थे लेकिन पता नहीं कैसे वैष्णव जन थे ?
वे मोहिनी की तरह छल के क़ायल नहीं थे। फलतः उन्हें क़त्ल कर दिया गया ।
जो मोहिनी नहीं बन सकता , उसके पीछे हमारा देश नहीं चल सकता । हमारे देश की यह स्पष्ट नीति है और यही इस देश का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मूल्य है प्राचीन काल से। हरेक मठ-मंदिर और आश्रम में इसी की शिक्षा दी जाती है । जो इस प्राचीन मूल्य को बदलना चाहते हैं , उन्हें राहु केतु की तरह न सिर्फ़ मार दिया जाता है बल्कि उन्हें मरने के बाद भी बदनाम किया जाता है ताकि फिर कोई राहु केतु की तरह उनके छल-कौशल का पर्दा चाक करने की हिम्मत न कर सके।
मोहिनी आज भी नाच रही है और लोग उसका नाच देख रहे हैं । औरतों के नाच देखना भी इस देश का एक बहुत बड़ा आध्यात्मिक मूल्य माना जाता है , भक्ति मानी जाती है और यह भक्ति हरेक मठ-मंदिर में की जाती है । नशे के बिना न तो नाचने में मज़ा आता है और न ही नाच देखने में । सो नशा करना भी एक आध्यात्मिक काम है ।
इस्लाम में दूसरों का हक़ मारना, छल-फ़रेब करना, औरतों का गैर मर्दों के सामने नाचना और नशा करना, इन सभी को जुर्म और पाप घोषित किया गया है।
क्या इस्लाम और सत्य के लिए इस देश के प्राचीन आध्यात्मिक मूल्यों को मिटा डाला जाए ?
इस्लाम से डरने की असल वजह यही है ।