" तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया"
जबकि उन्होंने इतने लोग नहीं मारे जितने कि उन्होंने मारे जोकि तालिबान नहीं हैं बल्कि विश्व शांति का झंडा भी उनके ही हाथ में है. तालिबान को हथियार और ट्रेनिंग देने वाले भी यही हैं.
ऐसा क्यों हुआ .
ऐसा केवल इसलिए हुआ कि "मीडिया" भी उनके ही हाथ में है.
जैसे मिथ्या जगत का व्यापार सत्य ब्रह्म के अधीन है, ऐसे ही हरेक मिथ्या आज उसके अधीन है जिसके पास "शब्द" है. शब्द को भारतीय दर्शन में ब्रह्म भी कहा गया है .
आध्यात्मिक सत्य को भौतिक धरातल पर भी घटित होते हुए देखा जा सकता है.
मन में जमे दुराग्रह और प्रचार के तिलिस्म को तोडा जाए तभी जाना जा सकता है कि आज ज़ालिम कौन है ?
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हमने यह कमेन्ट अजित वडनेरकर जी की पोस्ट पर दिया है. देखिये-
शब्दों का सफर: तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया
सेमिटिक मूल का मतलब अरबी से बरास्ता फ़ारसी, भारतीय भाषाओं में दाखिल हुआ । सेमिटिक धातु त-ल-ब / ṭā lām bā यानी ( ب ل ط ) से जन्मा है । अल सईद एम बदावी की कुरानिक डिक्शनरी के मुताबिक इसमें तलाश, खोज, चाह, मांग, परीक्षा, अभ्यर्थना, विनय और प्रार्थना जैसे भाव हैं । इससे ही जन्मा है 'तलब' शब्द जो हिन्दी का खूब जाना पहचाना है । तलब यानी खोज या तलाश । तलब के मूल मे 'तलाबा' है जिसमें रेगिस्तान के साथ जुड़ी सनातन प्यास का अभिप्राय है । आदिम मानव का जीवन ही न खत्म होने वाली तलाश रहा है । दुनिया के सबसे विशाल मरुक्षेत्र में जहाँ निशानदेही की कोई गुंजाइश नहीं थी । चारों और सिर्फ़ रेत ही रेत और सिर पर तपता सूरज । ऐसे में सबसे पहले पानी की तलाश, आसरे की तलाश, भटके हुए पशुओं की तलाश...अंतहीन तलाशों का सिलसिला थी प्राचीन काल में बेदुइनों की ज़िंदगी । तलब शब्द का रिश्ता आज भी प्यास से जुड़ता है । ये अलग बात है कि अब पीने-पिलाने या नशे की चाह के संदर्भ में तलब शब्द का ज्यादा प्रयोग होता है ।
...तलब से ही 'तालिब' बनता है जिसका अर्थ है ढूंढनेवाला, खोजी, अन्वेषक, जिज्ञासु । तालिब-इल्म का अर्थ हुआ ज्ञान की चाह रखनेवाला अर्थात शिष्य, चेला, विद्यार्थी, छात्र आदि । इस तालिब का पश्तो में बहुवचन है तालिबान। तालिब यानी जिज्ञासु का बहुवचन पश्तो में आन प्रत्यय लगा कर बहुवचन तालिबान बना । उर्दू में अंग्रेजी के मेंबर में आन लगाकर बहुवचन मेंबरान बना लिया गया है । आज तालिबान दुनियाभर में दहशतगर्दी का पर्याय है ।तालिबान का मूल अर्थ है अध्यात्मविद्या सीखनेवाला । हम इस विवरण में नहीं जाएंगे कि किस तरह अफ़गानिस्तान की उथल-पुथल भरी सियासत में कट्टरपंथियों का एक अतिवादी विचारधारा वाला संगठन करीब ढाई दशक पहले उठ खड़ा हुआ । खास बात यह कि उथल-पुथल के दौर में नियम-कायदों की स्थापना के नाम पर मुल्ला उमर ने अपने शागिर्दों की जो फौज तालिबान के नाम से खड़ी की, उसने तालिब नाम की पवित्रता पर इतना गहरा दाग़ लगाया है कि तालिबान शब्द शैतान का पर्याय हो गया ।