Saturday, September 1, 2012

ब्लॉगिंग का ब्लैक डे क्यों है सम्मान समारोह ? Award Fixing

आदरणीय महेन्द्र श्रीवास्तव जी ! एक नेक राह दिखाती हुई पोस्ट का स्वागत है. रवीन्द्र प्रभात जी से या उनके सहयोगियों और सरपरस्तों से हमें कोई निजी बैर नहीं है. हम उन सबका सम्मान करते हैं लेकिन अच्छा काम सही तरीक़े से किया जाना चाहिए. यह बात उनके लिए भी सही है, आपके लिए भी और हमारे लिए भी.

आपकी पोस्ट और सभी टिप्पणियाँ पढ़ीं.
आपने यह बिलकुल सही कहा है -
"हम जो सही समझते हैं अगर वो भी हम ना कह पाएं तो मैं समझता हूं कि मुझे नहीं आप सबको ब्लागिंग करने का अधिकार नहीं है। हमारे अंदर इतनी हिम्मत होनी ही चाहिए कि हम चोर को चोर और ईमानदार को ईमानदार डंके की चोट पर कह सकें..."

हमारा नज़रिया भी यही है. यह पोस्ट लिख कर जो काम आपने किया है, आप से पहले यही काम हम करते थे. सच कहने का साहस रखने वाला एक और आया, यह ख़ुशी की बात है.
सच कहने वाले का कोई गुट या निजी हित नहीं होता लेकिन फिर भी उसका अपमान करके, उसका मज़ाक़ उड़ा कर उसका हौसला पस्त करने की कोशिशें की जाती हैं. हमारे साथ यही हुआ है और अब आपके साथ होते देख रहे हैं. हम अपनी राह से आज तक न डिगे और मालिक से दुआ है कि आप भी हमेशा सच पर क़ायम रहें. सब कुछ सामने है. इसीलये हम इस सम्मान समारोह पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. इस बार हम कुछ भी नहीं कह रहे हैं कि किसका सम्मान या अपमान क्यों ग़लत हुआ ?
ज़्यादातर लोग अभी तक ब्लॉगिंग को समझ नहीं पाए हैं. वे बार बार इसकी तुलना अख़बार या प्रकाशित साहित्य से करते हैं और फिर 'उम्दा या घटिया' तय करने लगते हैं. हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्यधारा  यही है.
मुख्यधारा में कुछ बातें और भी है जो एक सच्चे ब्लॉगर की चिंता का विषय हैं.
जानिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा
आपकी यह पोस्ट अपने कमेन्ट के साथ यहाँ भी सहेज दी गयी है.
--------------------------------------------------------
आदरणीय महेन्द्र श्रीवास्तव जी की पोस्ट का एक अंश, जिस पर यह कमेन्ट दिया गया -

सम्मान समारोह : ब्लागिंग का ब्लैक डे !

जी हैं आप मेरी बात से भले सहमत ना हों, लेकिन मेरे लिए 27 अगस्त " ब्लागिंग के ब्लैक डे " से कम नहीं है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं कि इसके पर्याप्त कारण हैं। इस दिन ब्लागिंग में ईमानदारी की हत्या हुई, इस दिन ब्लागिंग में बडों के सम्मान की हत्या हुई, इस दिन हमारी सांस्कृतिक विरासत "अतिथि देवो भव" की हत्या हुई। सच कहूं तो कल को अगर इस दिन को कुछ लोग याद रखेंगे तो सिर्फ इसलिए कि इस दिन ब्लागिंग में लंपटई की बुनियाद रखी गई, जिसे अब सहेज कर रखने की जिम्मेदारी कुछ लोगों के कंधे पर है। हालाकि ये कंधे बहुत मजबूत हैं, इसलिए  वो  सबकुछ संभाल लेंगे, वैसे भी ये सब ऐसे ही धंधे में सने हुए हैं।
...पहले तो इसमें दशक के ब्लागर का ही सम्मान होना था, लेकिन जब उसके तौर तरीके  पर सवाल उठने लगे, आयोजकों की भी किरकिरी होने लगी। तो लोगों को लगा कि कहीं ऐसे में ब्लागरों ने इस आयोजन से कन्नी काट ली तो क्या होगा ? आनन फानन में एक साजिश के तहत 40 और सम्मान जोड़ दिए गए। बस फिर क्या था, पूरी हो गई "अलीबाबा 40 चोर" की टीम। ब्लागर की आवाज को बंद करने का इससे नायाब तरीका हो ही नहीं सकता। इन्होंने पहले तो 40 लोगों को सम्मानित करने का ऐलान कर दिया। फिर हर वर्ग में तीन तीन ब्लागर का नाम शामिल कर दिया गया। अब 120 लोग सम्मान की कतार में आ गए। इतनी बड़ी संख्या में जब सम्मानियों की कतार लग गई तो सब के मुंह बंद हो गए।
...बहरहाल मैं अपने विचार आप पर थोप नहीं सकता,  आपको जैसा लगा वो आपने व्यक्त किया। खैर.. एक शेर याद आ रहा है कि ..

जी चाहता है तोड़ दूं शीशा फ़ रेब का,
अफ़सोस मगर अभी तो ख़ामोश रहना है।

मित्रों मैं इस बात को नहीं समझ पाता हूं कि हम सही को सही कहने की हिम्मत रखते हैं, लेकिन गलत को गलत कहने में हमारी हिम्मत कहां चली जाती है ? पिछले दिनों मैने जब इस समारोह के बारे में लिखा तो बहुत सारे लोगों ने मुझे फोन कर शुक्रिया कहा और ये भी कहा कि आपने सच कहने की हिम्मत की। एक ब्लागर की बात तो मैं आज भी नहीं भूल पाया हू, जिन्होंने मुझे बताया कि उन्हें "वटवृक्ष" का सह संपादक बनाने के लिए पैसे लिए गए। जब हिंदी की सेवा करने का दावा करने वालों का चेहरा ऐसा हो तो आसानी से समझा जा सकता है कि इन सबकी आड़ में असल में क्या खेल चल रहा है। फिर मुझे तो इसलिए भी हंसी आई कि इस अंतर्राष्ट्रीय समारोह में इन्हें मुख्य अतिथि कोयला मंत्री ही मिले, जिस मंत्रालय की कारगुजारी की वजह से देश की संसद कई दिनों से ठप है। खैर अच्छा हुआ वो नहीं आए। चलिए आयोजन के जरिए यहां भी खेल करने के लिए एक और जुगाड़ की बुनियाद रख दी गई है,  स्व. राम मनोहर लोहिया के नाम पर अब ब्लागरों का कल्याण किया जाएगा। हाहाहहाहा..

माई आन्हर, बाऊ आन्हर,
हम्मैं छोड़ सब भाई आन्हर,
केके केके दिया देखाई
बिजुरी अस भौजाई आन्हर।

(स्व. कैलाश गौतम)
Link-
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/09/blog-post.html