एक मूल प्रश्न : पैमाना अगर बुद्धि हो तो किसकी बुद्धि हो ? Wisdome
पर हमारी टिप्पणी
एक मूल प्रश्न
गुटखा नुक्सान देता है लेकिन लोग फिर उसे खाते हैं क्योंकि लोग नहीं जानते कि ‘इमोशनल फ़ीडिंग‘ नाम की भी कोई चीज़ होती है। कोई गुटखा खाता है तो कोई पान खाता है। इनकी कृपा से ही पान वाले की रोज़ी रोटी चल रही है। ऐसे ही सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से एक दूसरे को लाभ पहुंचा रहे हैं। यही कृपा लाभ है।
लोग एक दूसरे से लड़कर उन्हें नष्ट करने पर तुले हुए नहीं हैं। यह भी उनकी एक दूसरे पर कृपा है। कृपा लाभ से ही समाज क़ायम है।
समाज की संरचना बड़ी जटिल है और मानवीय संबंधों की संरचना उससे भी ज़्यादा जटिल है। गुरू शिष्य का रिश्ता भी इसी दायरे में आता है। रिश्ते हमेशा से हैं और उनकी मर्यादा भी। मर्यादा से खेलने वाले भी हमेशा से हैं।
सही गुरू सही मार्गदर्शन देगा, सही ज्ञान देगा और जिसे ख़ुद सही ज्ञान न हो वह केवल धोखा देगा। निर्मल बाबा यही कर रहे हैं।
किसी के काम को धोखा कहने के लिए हमारे पास एक ऐसा पैमाना होना ज़रूरी है जो ज्ञान-अज्ञान और विश्वास-अंधविश्वास में फ़र्क़ करना सिखा सके।
इस पैमाने के अभाव में हरेक की बुद्धि अलग फ़ैसला लेगी। एक की बुद्धि एक बात को सही और जायज़ बताएगी तो दूसरे की बुद्धि उसी काम को ग़लत और नाजायज़ बताएगी।
पैमाना अगर बुद्धि हो तो किसकी बुद्धि हो ?
यह मूल प्रश्न हल हो जाए तो इस देश में फ़र्ज़ी बाबाओं की धोखाधड़ी का वुजूद ही ख़त्म हो जाएगा।
एक विचारणीय पोस्ट देने के लिए शुक्रिया !