Monday, April 16, 2012

लड़की के मायके वाले बेटी के घाव देखकर भी अनदेखा क्यों कर देते हैं ? Beti ka Dard

लड़की के मायके वाले बेटी के घाव देखकर भी अनदेखा कर देते हैं क्योंकि कुछ तो पुरानी परंपराएं आड़े आ जाती हैं कि अगर यहां से बात ख़राब हो गई तो फिर इसका दूसरा विवाह करना पड़ेगा जो कि हमारे ख़ानदान में आज तक नहीं हुआ और दूसरी तरफ़ हिंदुस्तानी क़ानून औरतों का पक्षधर होने के बावजूद औरत को कुछ ख़ास नहीं दिला पाता।
हमने अपनी बहन के दुख पर ध्यान दिया।
आज 4 चार से ज़्यादा अदालत में केस लड़ते हुए हो गए हैं लेकिन एक पैसा अदालत अब तक ख़र्चे का नहीं दिला सकी है।
तलाक़ का मुक़ददमा किया तो डाकिए ने सम्मन पर यह लिखकर वापस कर दिया कि घर पर ताला लगा है। परिवार के लोग कहीं बाहर गए हुए हैं। यह बात डाकिए ने लिफ़ाफ़े पर नहीं लिखी बल्कि उसे फाड़कर अंदर के सम्मन पर लिखी लेकिन अदालत ने इसे सम्मन की तामील नहीं माना और दोबारा फिर सम्मन जारी कर दिया।
यहां उम्र ऐसे ही बर्बाद करती है अदालती कार्रवाई।
अब हमने शरई अदालत में मुक़ददमा किया है। वहां क़ाज़ी दो बार डाक से सम्मन भेजेगा और तीसरी बार दस्ती यानि बाइ हैंड।
या तो शौहर आकर अपना पक्ष रखेगा या फिर नहीं आएगा। तब तीन माह के अंदर क़ाज़ी लड़की को ‘ख़ुला‘ दे देगा। लड़की दूसरी जगह निकाह करने के लिए आज़ाद होगी।
हिंदुओं में भी इस तरह की बिना ख़र्च की अदालतें हों तो लड़की के लिए जीने की राह आसान हो सकती है।
इस विषय को विस्तार से देखिए-
हिंदुस्तानी इंसाफ़ का काला चेहरा
अगर आप किसी मजलूम लड़की के बाप या उसके भाई हैं तो आपके लिए हिंदुस्तान में इंसाफ़ नहीं है, हां, इंसाफ़ का तमाशा ज़रूर है। हिंदुस्तानी अदालतें इंसाफ़ की गुहार लगाने वाले को इंसाफ़ की तरफ़ से इतना मायूस कर देती हैं कि आखि़रकार वह हौसला हार कर ज़ालिमों के सामने झुक जाता है।
यह मेरा निजी अनुभव है।
आप किसी भी अदालत में जाइये और अपनी बहन-बेटी के साथ इंसाफ़ की आस में भटक रहे लाखों लोगों में से किसी से भी पूछ लीजिए, मेरी बात की तस्दीक़ हो जाएगी।