Sunday, January 22, 2012

ब्लॉगर भी कम कहां हैं ? Salman Rushdie

ब्लॉगर भी कम कहां हैं ?
1- यहां भी आए दिन नित नए इल्ज़ाम लगाने वाले और नित नए फ़ित्ने फैलाने वाले ब्लॉगर मौजूद हैं। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के बारे में शायद ऐसी असभ्य बातें तो जयपुर आने और न आने वाले किसी साहित्यकार ने भी न कही होंगी जैसी कि ब्लॉगर आए दिन यहां कहते रहते हैं.
ब्लॉगर मीट में गन्ना चूसने ये भी आते हैं और सम्मान पाते हैं और जिसे देस का ‘गन्ना‘ चूसे हुए अर्सा लंबा गुज़र गया. उसका भी यही मशग़ला रोज़ का है.
ख़ैर ग़लतफ़हमियां दूर करने वाले ब्लॉगर भी यहां है.
यह एक प्लस प्वाइंट है।
देखें -

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2012/01/love-jihad.html

2- सलमान रूश्दी के भारत आगमन की चिंता में वे लोग घुल रहे हैं जिन्होंने मक़बूल फ़िदा को वतन से जुदा कर दिया। वाक़ई यह दोहरेपन की बात हुई। यही लोग लव जेहाद का फ़र्ज़ी हौआ खड़ा करते हैं।

♥ ♥ एक अच्छी चर्चा के लिए आपका आभार !
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हमने यह कमेट इस पोस्ट पर दिया है -

साहित्यकार ऐसे होते हैं तो हम ब्लॉगर ही भले...खुशदीप


बॉलीवुड का एक बात के लिए मैं बहुत सम्मान करता हूं कि यहां एक दूसरे को कभी मज़हब के चश्मे से नहीं देखा जाता...सब एक दूसरे से घी-शक्कर की तरह ऐसे घुले-मिले हैं कि कोई एक दूसरे को अलग कर देखने की सोच भी नहीं सकता...बल्कि जब भी देश की एकता या सामाजिक सौहार्द के लिए कोई संदेश देने की ज़रूरत पड़ी तो बॉलीवुड पीछे नहीं हटा....लेकिन समाज को दिशा देने का दावा करने वाले साहित्यकारों का एक वर्ग किस तरह की मिसाल पेश करना चाहता है....जयपुर साहित्य सम्मेलन में विवादित लेखक सलमान रूश्दी के नाम पर जो कुछ हुआ वो किसी भी लिहाज़ से देश के माहौल के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता....
मुझे इस पूरे प्रकरण में आयोजको की मंशा समझ नहीं आई आखिर वो करना क्या चाहते थे...एक तरफ वो कानून के पालन की बात करते हैं, दूसरी तरफ रुश्दी जैसे विवादित लेखक को न्योता देकर पूरे आयोजन को ही हाशिये पर डाल देते हैं...रुश्दी के भारत आने या ना आने का सवाल ही सुर्ख़ियों में छाया रहता है...विवादित किताब के अंशों को पहले मंच से पढने का मौका दिया जाता है, फिर कानून की दुहाई दी जाती है...बहस इस पर हो सकती है कि किसी किताब पर प्रतिबन्ध लगाना सही है या नहीं...बहस इस पर हो सकती है कि किसी लेखक का विचारों कि आज़ादी के नाम पर कहाँ तक लिबर्टी लेना सही है...बहस इस बात पर हो सकती है कि कोई पेंटर देवी-देवताओं की नग्न पेंटिंग बना कर कला का कौन सा उद्देश्य पूरा करता है...लेकिन सब से पहले देश है....यहाँ के कानून को मानना हर नागरिक का फ़र्ज़ है...अगर कोई सोच-समझ कर कानून को तोड़ता है तो फिर उसे नतीजे भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए...

अगर साहित्यकारों का ऐसा चेहरा हैं तो फिर हम ब्लॉगर ही भले हैं जो सांपला जैसी जगह पर मिलते हैं तो बिना किसी भेदभाव सिर्फ प्यार और शांति का सन्देश फ़ैलाने के लिए...
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