Wednesday, January 11, 2012

कब वह समय था जब आपकी नज़र में यहां बराबरी और इंसाफ़ के गुणों से भरे पूरे लोग बसते थे ?

पल्लवी जी ! आपका लेख बहुत अच्छा है और हम सभी को यह ज़रूर सोाचना चाहिए कि हम अपने देश और अपने समाज के लिए क्या कर रहे हैं ?
हमारे अंदर इंसानियत कितनी है ?

लेकिन इसी के साथ आपने कहा है कि हमारे देश की संस्कृति के मूल आधार अब हमारे पास नहीं रहे।

आपको इन्हें स्पष्ट करना चाहिए था।
इस देश की संस्कृति के मूलाधार आपकी नज़र में क्या हैं ?
और वे इस देश में कब थे ?
कब वह समय था जब आपकी नज़र में यहां बराबरी और इंसाफ़ के गुणों से भरे पूरे लोग बसते थे ?
वह कौन सा समय था जब यहां औरत और कमज़ोर वर्ग आनंद मना रहे थे ?
उस समय की संस्कृति को चिन्हित करने के बाद ही उस काल की संस्कृति की पनर्स्थापना का प्रयास किया जा सकता है।
देखिये  पल्लवी  जी  का  लेख 
आज आज़ादी के इतने सालों बाद भी मुझे तो ऐसा लगता है कि आगे बढ़ने के बाजये और पिछड़ गए हैं हम, क्यूंकि हमारी संस्कृति के मूल आधार ही अब हमारे नहीं रहे। जिसमें झलकती थी हमारे देश कि संस्कृति और सभ्यता की खुशबू अब उसकी जगह ले ली है आपसी मतभेद और नकल ने फिर उसका क्षेत्र चाहे जो हो वो मायने नहीं रखता। जिस देश के नेता भ्रष्ट हों ,जिस देश कि आने वाली नस्लें खुद अपना ही देश छोड़ के जाने पर आमादा हों, जिस देश के लोगों में अपनी मात्र भाषा को लेकर द्वंद मचा रहता हो। क्या ऐसे देशवासियों को अधिकार है राष्ट्रीय त्योहार मनाने का आज़ादी के गीत गाने का ???? खुद को सच्चा हिन्दुस्तानी कहने का ...??? यदि मेरे इन सवालों का कोई जवाब आपके पास हो तो कृपया ज़रूर अवगत करायें ....