Thursday, January 12, 2012

धार्मिक सद्भाव भी बढ़ाती है सुबह की सैर Morning walk in Deoband

सुबह की सैर का कोई विकल्प नहीं है।
हम इस टिप्पणी के शीर्षक में दी गई एक लाइन लिखकर ही जाने वाले थे कि हमें मौलाना वहीदुदीन ख़ान साहब याद आ गए। उनकी उम्र तक़रीबन 100 साल है और वे आज भी फ़िट हैं। पूरी दुनिया में आ जा रहे हैं। सेंटर फ़ॉर पीस एंड स्प्रिच्युएलिटि चला रहे हैं। ख़ुद भी सकारात्मक हैं और दूसरों को भी सकारात्मक बना रहे हैं। सुबह की सैर उनकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा है। उनके चेहरे की आभा देखते ही बनती है।
 www.cpsglobal.org पर आप उनसे आमने सामने रू ब रू भी हो सकते हैं।
इसके बाद हमें याद आ गया देवबंद और देवबंद के याद आते ही हमें यह भी याद आ गया कि सुबह की सैर धार्मिक सद्भाव भी बढ़ाती है।
देवबंद में इस समय 4 हज़ार से ज़्यादा तालिब इल्म इस्लामी मदरसों में शिक्षा पा रहे हैं और उन्हें शिक्षा देने वाले उस्तादों की तादाद भी 300 से ज़्यादा होगी। सहायक स्टाफ़ की गिनती इससे अलग है। छोटे छोटे मदरसों को भी जोड़ा जाए तो गिनती मुश्किल हो जाती है।
शहर के बाहर जंगल में त्रिपुर बाला सुंदरी देवी का मंदिर है और उससे मिला हुआ संस्कृत महाविद्यालय है। वहीं एक बहुत बड़ा कुंड भी है जिसे देवीकुंड भी कहते हैं और उसमें बड़ी बड़ी मछलियां भी बहुत हैं। कुंड के पास एक फूलों से भरा हुआ बग़ीचा भी है।
शहर के एक किनारे पर लालक़िला और ताजमहल की याद दिलाने वाले मदरसों की इमारतें हैं तो दूसरी तरफ़ मंदिर और गुरूकुल और शहर भर में मंदिर मस्जिद पास पास तो हैं ही और कहीं कहीं तो बहुत ही पास पास हैं। मिले हुए भी हैं। मदरसों के उस्ताद अपने शिष्यों के साथ घूमते हुए देखे जाएं तो एक अच्छा अनुभव होता है। उस्ताद तो देवीकुंड की तरफ़ नहीं जाते लेकिन मदरसों के छात्र रोज़ाना ही उधर जाते हैं। कितने भी कम जाएं फिर भी तादाद बहुत हो जाती है। हिंदू आचार्य और आम शहरी हिंदू भाई भी घूमने के लिए और अपने मेहमानों को दिखाने के लिए दारूल उलूम की तरफ़ चले आते हैं।
इस तरह एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति से परस्पर मिलन होता है और सारी आशंकाएं स्वतः ही निर्मूल हो जाती हैं। देवबंद एक धार्मिक नगरी मानी जाती है। हिंदू और मुस्लिम, दोनों के ही मंदिर, मस्जिद और दरगाहें यहां हैं। इसके बावजूद यहां धार्मिक सदभाव बना हुआ है।
आज आपका लेख पढ़कर ध्यान आया कि इसके पीछे सुबह की सैर का भी बड़ा योगदान है।
सुबह की सैर से ज्ञान भी मिलता है और दिल की दुनिया में प्रेम के अंकुर भी फूटते हैं। सुबह की सैर मन को निर्मल भी करती है।
‘उपचार की सहज वृत्ति‘ एक अंग्रेज़ी किताब का अनुवाद है। इसमें बहुत पहले हमने एक मनोचिकित्सक के बारे में पढ़ा था कि उसके पास अवसाद का एक मनोरोगी आया। उसके लिए कोई भी दवा कारगर नहीं हो पा रही थी। तब उसे एक विशेष मनोचिकित्सक के पास भेजा गया। उसने उसे कहा कि आप सुबह उस वक्त उठ जाएं जबकि अंधेरा हो और आप पौ फटने के क़ुदरती सीन को देखा करें। उसने ऐसा ही किया और कुछ दिनों बाद उसका अवसाद बिना किसी दवा के ही ठीक हो गया।
इंसान अगर अपनी बायो क्लॉक (जैव घड़ी) का पालन करे जैसे कि दूसरे पशु-परिंदे करते हैं तो वह बहुत सी बीमारियों से बचा रहेगा। जो लोग बीमार हो चुके हैं। उनके लिए बहुत ज़रूरी है कि वे अपनी दवा गोली के साथ अपना सोना जागना ठीक कर लें और नियमित रूप से सैर किया करें।
वाक़ई सुबह की सैर का कोई विकल्प नहीं है।
एक अच्छा लेख पढ़वाने के लिए आपका शुक्रिया !

A Visit to Darul Uloom Deoband - Masjid e Qadeem,Masjid e ...

www.youtube.com/watch?v=vpimOU_sMjY19 Mar 2011 - 19 min - Uploaded by bismillahnews
A Visit to Darul Uloom Deoband - Masjid e Qadeem,Masjid e Rasheed,Qasmi Qabristan ...

कुमार राधा रमण जी के ब्लॉग पर  डॉ. आभा पंडित का लेख भी देखिए जिस पर हमने यह टिप्पणी दी है-

मॉर्निंग वाक का कोई विकल्प नहीं

आप चाहें तो सारा दिन कसरत करें, लेकिन सुबह की सैर का कोई विकल्प नहीं है। रात को सो चुकने के बाद आप तरोताजा रहते हैं। थकान नहीं रहती और मन से भी प्रफुल्लित रहते हैं। ऊषाकाल में पैदल चलने पर आपके फेफड़ों में ताजी और ऑक्सीजन से भरपूर हवा भरती है। दिन भर के लिए ऊर्जा भी इसी दौरान हासिल की जाती है। 
दो-तीन महीनों तक नियमित सुबह की सैर और जीवनशैली में परिवर्तन करने के बाद कराए गए परीक्षणों में वह नॉर्मल पाया गया। सुबह जल्दी उठने की हिदायत होने के कारण मरीज की रात की पार्टीज बंद हो गई। वह समय पर सोने लगा। भरपूर नींद से थकान दूर होकर सुबह शरीर तरोताजा रहने लगा। ४० मिनट तक तेज गति से पैदल चलने के कारण शरीर में रक्तसंचार तेज हो गया और खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घट गई। सुबह पैदल चलने के दौरान हुए आत्म-मंथन ने उसके सोचने की दिशा बदल दी। उसका तनाव घटने लगा और वह ज्यादा खुश रहने लगा। फेफड़ों में भरपूर ऑक्सीजन भरने के कारण रक्त शुद्धि हो गई और शरीर से विषैले पदार्थों का निष्कासन होने लगा। त्वचा अधिक चमकदार हो गई। आज चिकित्सक उनके पास आने वाले दस में से सात मरीजों को प्रातःकाल कम से कम ४० मिनट तक तेज चाल में चलने की सलाह देते हैं। पैदल चलने से श्वास गति, हृदय गति तथा रक्तचाप पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। जठराग्नि तेज होती है, पाचन प्रणाली अधिक सक्रिय हो जाती है। भूख भी बढ़ती है। 
मयंक (२८) एक आईटी कंपनी में एक्जीक्यूटिव है। वह लगभग १२ घंटे काम करने के बाद भी थकता नहीं है। अक्सर देर रात तक दोस्तों के साथ आउटिंग भी करता है। दूसरों को हमेशा एकदम फिट नजर आता है। कंपनी द्वारा कराए गए वार्षिक एक्जीक्युटिव चैकअप में मयंक के बारे में डॉक्टरों की राय एकदम विपरीत निकली। परीक्षण के नतीजों से जाहिर हुआ कि उसका रक्तचाप बढ़ा हुआ है और कोलेस्ट्रॉल भी खतरे के निशान से ऊपर है। डॉक्टरों ने उसे अनेक दवाइयाँ लिखने के साथ ढेर सारी हिदायतें भी दे डालीं, जिनमें खान-पान में अनेक परहेज के साथ-साथ सुबह की सैर भी शामिल थी। मयंक के साथ उसके सभी साथी आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे कि "एकदम फिट" दिखने वाला इंसान एकाएक दिल की बीमारी के जोखिम के इतने करीब कैसे पहुँच गया? 


कैसे चलें... 
मार्निंग वॉक का पूरा फायदा उठाने के लिए शरीर बिलकुल सीधा तथा तना हुआ होना चाहिए। टहलते समय मुँह बिलकुल बंद हो तथा साँस पूरी तरह नाक से ही लें। मार्निंग वॉक एक प्राकृतिक प्रशांतक है। इससे मस्तिष्क से उठने वाली विभिन्ना लहरें तनावरहित होकर शिथिल हो जाती हैं। इससे मन-मस्तिष्क को सुकून प्राप्त होता है। स्वभाव भी प्रसन्नाचित्त रहने लगता है। मार्निंग वॉक से मस्तिष्क में एन्डोर्फिन हार्मोन स्रावित होता है, जिससे हमारे स्वभाव में परिवर्तन आता है तथा सकारात्मक भावनाएं पैदा होती हैं। यदि पति-पत्नी साथ-साथ टहलते हैं,तो उनमें अंतरंगता बढ़ती है तथा उनमें "मैं" के स्थान पर "हम" के भाव पैदा होते हैं। साथ ही,उनमें परस्पर सहारा देने की भावना और परस्पर विश्वास के भावों में भी स्थायित्व आने लगता है। हम जैसे ही मॉर्निंग वाक के लिए बाहर निकलते हैं, घर के वातावरण,जिम्मेदारियों तथा तनाव को पैदा करने वाले कारकों से चाहे अस्थायी रूप से ही सही,परन्तु कुछ देर के लिए मुक्ति जरूर पा जाते हैं।


अवसाद पर विजय पाने का यह भी एक सरल तरीक़ा है। दूसरी ओर,यदि हम समूह में टहलते हैं तो आपस में हंसी मज़ाक होता है,जिससे हमारा मनोदैहिक स्वास्थ्य सुधरता है। अनुसंधानों से मालूम हुआ है कि हंसने से रक्तसंचार तेज़ होता है,जिससे दिमागी समस्याओं से पीड़ित रोगियों को लाभ होता है क्योंकि रक्तसंचार में वृद्धि होने से मस्तिष्क को अधिक ऑक्सीजन तथा ग्लूकोज प्राप्त होता है। सकारात्मक भावनाओं का संचार होता है। भावनाओं का हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से गहरा संबंध होता है। विशेषज्ञों की राय में,आशावादी व्यक्ति तनाव का अनुभव कम करते हैं। इससे रोग प्रतिरोधी क्षमता उत्तम बनी रहती है। ब्लड प्रेशर कोलेस्ट्रॉल,मोटापा आदि बढ़ा हुआ हो,तो चिकित्सक की सलाह लेने के बाद ही वॉक पर जाएं(डॉ. आभा पंडित,सेहत,नई दुनिया,जनवरी 2013 प्रथमांक)