यज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।। पर एक संवाद भाई अनुराग शर्मा जी से
- Smart Indian - स्मार्ट इंडियनDec 5, 2011 09:11 PMप्रत्युत्तर देंहटाएंउत्तर
@ भाई अनुराग शर्मा जी ! आपकी ख्वाहिश का सम्मान करते हुए हमने नासदीय सूक्त पर हुए विमर्श को तलाश किया तो हमें यह मिला है, आप एक नज़र देख लेंगे तो हम आपके शुक्रगुज़ार होंगे।
वेद में सरवरे कायनात स. का ज़िक्र है Mohammad in Ved Upanishad & Quran Hadees
यह जानने के लिए आज हम वेद भाष्यकार पंडित दुर्गाशंकर सत्यार्थी जी का एक लेख यहां पेश कर रहे हैं।
आज तक लोगों ने यही जाना है कि ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो ज्ञानी होय‘ लेकिन अगर ‘ज्ञान‘ के दो आखर का बोध ढंग से हो जाए तो दिलों से प्रेम के शीतल झरने ख़ुद ब ख़ुद बहने लगते हैं। यह एक साइक्लिक प्रॉसेस है।
पंडित जी का लेख पढ़कर यही अहसास होता है।
मालिक उन्हें इसका अच्छा पुरस्कार दे, आमीन !
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‘इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न। यो अस्याध्यक्षः परमेव्योमन्तसो अंग वेद यदि वा न वेद।‘
वेद 1,10,129,7
यह विविध प्रकार की सृष्टि जहां से हुई, इसे वह धारण करता है अथवा नहीं धारण करता जो इसका अध्यक्ष है परमव्योम में, वह हे अंग ! जानता है अथवा नहीं जानता।
सामान्यतः वेद भाष्यकारों ने इस मंत्र में ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ से ईशान परब्रह्म परमेश्वर अर्थ ग्रहण किया है, किन्तु इस मंत्र में एक बात ऐसी है जिससे यहां ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ से ईशान अर्थ ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह बात यह है कि इस मंत्र में सृष्टि के अध्यक्ष के विषय में कहा गया है - ‘सो अंग ! वेद यदि वा न वेद‘ ‘वह, हे अंग ! जानता है अथवा नहीं जानता‘। ईशान के विषय में यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह कोई बात नहीं जानता। फलतः यह सर्वथा स्पष्ट है कि ईशान ने यहां सृष्टि के जिस अध्यक्ष की बात की है, वह सर्वज्ञ नहीं है। मेरे अध्ययन के अनुसार यही वेद में हुज़ूर स. का उल्लेख है। शब्द ‘नराशंस‘ का प्रयोग भी कई स्थानों पर उनके लिए हुआ है किन्तु सर्वत्र नहीं। इसी सृष्टि के अध्यक्ष का अनुवाद उर्दू में सरवरे कायनात स. किया जाता है।
फलतः श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार वेद का सर्वप्रथम प्रकाश जिस पर हुआ। वह यही सृष्टि का अध्यक्ष है। जिसे इस्लाम में हुज़ूर स. का सृष्टि-पूर्व स्वरूप माना जाता है।
मैं जिन प्रमाणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, आइये अब उसका सर्वेक्षण किया जाए।
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