रोज़ी रोटी की तो क्या यहां हलवा पूरी की भी कोई समस्या नहीं है
नज्म सितारे को कहते हैं और नूजूमी उसे जो सितारों की चाल से वाक़िफ़ हो।
सितारों की चाल के असरात ज़मीन की आबो हवा पर तो पड़ते ही हैं। शायद इसी से लोगों ने समझा हो कि हमारी ज़िंदगी के हालात पर भी सितारों की चाल का असर पड़ता है।
कुछ हमने भी यार दोस्तों के हाथों की लकीरें देखी हैं और इसी दौरान मनोविज्ञान से भी परिचित हुए।
कोई आदमी सितारों और उनकी कुंडलियों को न भी जानता हो लेकिन वह इंसान के मनोविज्ञान को जानता हो तो वह इस देश में ऐश के साथ बसर कर सकता है।
सच बोलने वाले का यहां जीना दुश्वार है लेकिन मिथ्याभाषण करने वाला राजा की तरह सम्मान पाता है।
ख़ैर, अपने प्रयोग के दौरान हमने यह जाना है कि लोग मुसीबत में हैं और उन्हें उससे मुक्ति चाहिए। इसी तलाश में आदमी हर तरफ़ जाता है और इसी दुख से मुक्ति की तलाश में वह अपना हाथ दिखाने या अपनी कुंडली बंचवाने आएगा।
1.कुंवारी को उत्तम वर चाहिए,
2.कुंवारे को रोज़गार चाहिए, उसके लिए लड़कियां बहुत हैं।
3. शादीशुदा औरत को पुत्र चाहिए।
4. बुढ़िया को अपनी बहू अपने वश में चाहिए।
5. बीमार को शिफ़ा अर्थात आरोग्य चाहिए।
बहरहाल जिस उम्र में जो चाहिए, एक बार आप वह पहचान लीजिए। इसके बाद आप शक्ल देखकर और उसकी बात सुनकर ही भांप जाएंगे कि आपके पास आने वाले को क्या चाहिए ?
अब आप बात यों शुरू करें कि
आप दिल के बहुत अच्छे हैं। सदा दूसरों की मदद करते हैं। किसी का कभी बुरा नहीं चाहते लेकिन फिर भी लोग आपको ग़लत समझते हैं और आपको धोखा देते हैं। आप दूसरों की मदद करते हैं चाहे ख़ुद के लिए कुछ भी न बचे।
उस आदमी का विश्वास आपके प्रति अटूट हो जाएगा कि यह आदमी वास्तव में ही ज्ञानी है। यह जान गया है जैसा कि मैं वास्तव में हूं।
हक़ीक़त यह है कि हरेक आदमी अपने अंदर एक आदर्श व्यक्ति के गुण कल्पित किए हुए है। आपकी बात उसके मन के विचार की तस्दीक़ करती है और बस वह आपका मुरीद हो जाएगा। अब आप उसे कोई क्रिया या कोई जाप आदि बताते रहें जिससे समय बीतता रहे।
समय हर दर्द की दवा है।
जैसे बुख़ार अपनी मियाद पूरी करके ख़ुद ही उतर जाता है या फिर मरीज़ को ही साथ ले जाता है।
ऐसे ही समय के साथ या तो उसका कष्ट भी रूख़सत हो जाएगा या फिर वह ख़ुद ही रूख़सत हो जाएगा।
इस बीच जब कभी वह शिकायत करे कि साहब आपके बताए तरीक़े का पालन करके भी हमारा कष्ट दूर न हुआ तो उसे मन के संकल्प की दृढ़ता और विचारों की शुद्धि पर एक लेक्चर दे दीजिए।
यह एक ऐसा काम है जो पूरा कभी हो नहीं सकता। लिहाज़ा आपके तिलिस्म को आपका मुरीद कभी तोड़ ही नहीं सकता।
भारतीय पंडों का तिलिस्म इस्लाम और विज्ञान के बावजूद आज भी क़ायम है और वे मज़े से छप्पन भोग का आनंद ले रहे हैं।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जिनां हमारा
आखि़र अल्लामा इक़बाल ने यूं ही तो नहीं कहा है।
(अल्लामा से माफ़ी के साथ , क्योंकि उन्होंने इस मौक़े के लिए यह शेर नहीं कहा था।)
ये चंद पॉइंट हैं जिन्हें जागरूकता के लिए शेयर करना ज़रूरी समझा और इसलिए भी कि अगर कोई रोज़ी रोटी की समस्या से त्रस्त होकर आत्महत्या करने की सोच रहा हो तो प्लीज़ वह ऐसा न करे। रोज़ी रोटी की तो क्या यहां हलवा पूरी की भी कोई समस्या नहीं है। मरने से बेहतर है जीना।
निकम्मेपन से बेहतर है कर्म , अब चाहे वह मनोविज्ञान को समझकर सलाह देना ही क्यों न हो !
हां लोगों की जेब काटने और उनकी आबरू लूटने की नीयत नहीं होनी चाहिए।
आपके बुज़ुर्ग ऐसे नहीं थे यह जानकर अच्छा लगा।
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हमने यह कमेंट जनाब दिनेश राय द्विवेदी जी की पोस्ट पर दिया है जो कि फलित ज्योतिष के विषय पर है।
देखिए उनकी पोस्ट:
नूजूमियत
... मेरे बुजुर्गों में एक खास बात थी कि ज्योतिष उन की रोजी-रोटी या घर भरने का साधन नहीं था। दादाजी दोनों नवरात्र में अत्यन्त कड़े व्रत रखते थे। मैं ने उस का कारण पूछा तो बताया कि ज्योतिष का काम करते हैं तो बहुत मिथ्या भाषण करना पड़ता है, उस का प्रायश्चित करता हूँ। मैं ने बहुत ध्यान से उन के ज्योतिष कर्म को देखा तो पता लगा कि वे वास्तव में एक अच्छे काउंसलर का काम कर रहे थे। अपने आप पर से विश्वास खो देने वाले व्यक्तियों और नाना प्रकार की चिन्ताओं से ग्रस्त लोगों को वे ज्योतिष के माध्यम से विश्वास दिलाते थे कि बुरा समय गुजर जाएगा, अच्छा भी आएगा। बस प्रयास में कमी मत रखो। लेकिन आज देखता हूँ कि जो भी इस अविद्या का प्रयोग कर रहा है वह लोगों को उल्लू बनाने और पिटे पिटाए लोगों की जेब ढीली करने में कर रहा तो मन वितृष्णा से भर उठता है। अब वक्त आ गया है कि इस अविद्या के सारे छल-छद्म का पर्दा फाश हो जाना चाहिए।