Showing posts with label 'Faith and business'. Show all posts
Showing posts with label 'Faith and business'. Show all posts

Saturday, January 15, 2011

आस्था का व्यापार Faith and business

@ YM ! संस्कृत में जो भी शब्द होता है, वह किसी धातु से बना होता है। ईश्वर शब्द की सिद्धि ‘ईश ऐश्वर्य‘ धातु से होता है। ‘य ईष्टे सर्वैश्वर्यवान् वर्त्तते स ईश्वरः‘ जिस का सत्य विचारशील ज्ञान और अनंत ऐश्वर्य है, वह ईश्वर है।
अब आप मेरी बात की क्र्रास चैकिंग जहां चाहे कर लीजिए। इंशा अल्लाह, मेरी बात नहीं कटेगी।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/hungers-cry.html?showComment=1295105126502#c481785182827129129
.....................................................................
@ भाई मदन कुमार तिवारी जी ! आपकी टिप्पणी मैं भला क्यों मिटाऊंगा ?
अलबत्ता आपकी ग़लफ़हमी को मैं ज़रूर मिटाऊंगा। आपने इंसानियत के दुश्मनों का लिखा हुआ लिट्रेचर पढ़ लिया है इसीलिए आप ग़लतफ़हमी के शिकार हो गए हैं। किसी भी चीज़ को जानने के लिए अगर आप उससे नफ़रत करने वालों से जानकारी लेंगे तो आपको कभी सही जानकारी नहीं मिल सकती। हज़रत मुहम्मद साहब स. के बारे में भी अगर आप वास्तव में जानना चाहते हैं तो आपको ऐसे लोगों से जानकारी हासिल करनी चाहिए जो ज्ञानी और निष्पक्ष हों, फिर चाहे वे मुसलमान न भी हों तब भी वे आपको सही बात बताएंगे।
इस संबंध में प्रोफ़ेसर रामाकृष्णा राव जी की किताब  इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( सल्‍ल. )
आपकी भ्रांतियों के निवारण के लिए काफ़ी है। आपने पैग़म्बर साहब द्वारा 6 वर्ष की लड़की से विवाह किए जाने की बात कही है। यह भी एक बेअस्ल बात है। इस तरह की और भी बहुत सी ग़लतफ़हमियां बहुत से भाईयों के दिमाग़ों में हैं। आम तौर से जो ग़लतफ़हमियां पाई जाती हैं। उन ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ बहुत पहले कर दिया है। अब आपको भी ग़लतफ़हमियों के अंधकार से बाहर आ जाना चाहिए।
आप मेरे सामने भगवान को बुरा नहीं कह सकते क्योंकि भगवान संस्कृत में उसी एक मालिक का नाम है और सिर्फ़ अमीरों का या सिर्फ़ ग़रीबों का नहीं है बल्कि सबका है, हर चीज़ का है और एक है। उसके नाम पर जो हिंदू, मुसलमान या ईसाई पाखंड रचा कर लोगों पर ज़ुल्म करते हैं या उनका माल लूटते हैं तो यह जुर्म इंसान का है न कि भगवान का। जैसे कि मेरे ब्लाग पर आकर आप बदतमीज़ी कर रहे हैं तो यह आपका पाप है न कि आपके मां-बाप का। याद कीजिए कि उन्होंने तो आपको आदर और शिष्टाचार करने की ही तालीम दी होगी।
Some useful links for you


.....................................................................................................
 लोग ग़ज़नवी को बुरा-भला कहते हैं लेकिन...
@ भाई मान जी ! आप पुष्कर के मंदिर और अजमेर की दरगाह के रखवालों के दुर्व्यवहार की शिकायत कर रहे हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि वे आपका शोषण कब करते हैं ?
वे आपका शोषण तब करते हैं जबकि आप वहां जाते हैं। आप वहां जाना बंद कर दीजिए। आपका शोषण भी बंद हो जाएगा। दुनिया का निज़ाम कोई देवी-देवता या पीर-फ़क़ीर स्वयं अपने बल पर नहीं देख रहा है और न ही वे किसी की मुराद पूरी करने की शक्ति ही रखते हैं। आप उनके पूरे जीवन को देख लीजिए। उनका पूरा जीवन आपको कष्टों में घिरा हुआ नज़र आएगा। अगर वे कुछ कर सकते तो सबसे पहले वे अपने जीवन के कष्टों को ज़रूर दूर करते। अगर उन्होंने कुछ पाया भी है या किसी राक्षस का अंत भी किया है तो मात्र अपने आदेश से ही उसे नहीं मार डाला बल्कि इसके लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा, लड़ना पड़ा है। जो ज़रूरत पड़ने पर भी नहीं लड़े और देवी-देवताओं पर भरोसा किये बैठे रहे उन्हें मरना पड़ा।
महमूद ग़ज़नवी ने जब सोमनाथ पर हमला किया तो हज़ारों लोगों को क़त्ल कर दिया। लोग ग़ज़नवी को बुरा-भला कहते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि उसने जिन्हें मारा वे सोचे क्या बैठे थे ?
वे सब यही सोच रहे थे कि हमारा देवता इस म्लेच्छ को नष्ट कर देगा। यह बेचारा काल के गाल में आ गया है। इसी सोच का परिणाम था कि महमूद ग़ज़नवी से कोई लड़ने को तैयार ही नहीं हुआ। वे मरने वाले आपसे ज़्यादा अपने इष्ट के प्रति निष्ठावान थे तो भी उनकी निष्ठा के कारण उनकी कोई रक्षा नहीं हो पाई। इतिहास की ग़लतियों से आपको सबक़ लेना चाहिए और उन्हें दोहराकर नुक्सान उठाने से बचना चाहिए। मंदिरों के पंडे बैठे बिठाए खाने के लिए लोगों में अंधविश्वास फैलाते हैं और जब मुसीबत पड़ती है तो अंधविश्वास में फंसा हुआ वह बेचारा मारा जाता है। अक्सर दरगाहों के मुजाविर भी आस्था का व्यापार कर रहे हैं। ये डाकुओं से बदतर हैं। इन्होंने उस नेक बुजुर्ग के सादा जीवन से कोई शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनके नाम पर अपने महल तामीर कर लिए हैं। जहां ऊंचनीच और दुव्र्यवहार हो, आप समझ लीजिए कि आपको यहां ज्ञान नहीं बल्कि अपमान ही मिलेगा।
मैंने अपने लेख में मज़ार की विशेषता नहीं बताई है बल्कि मस्जिद की विशेषता बताई है कि वहां समाज का हरेक सदस्य आता है और सब मिलकर बराबर खड़े होते हैं , उसकी वाणी सुनते हैं और उसे शीश नवाते हैं। इस पूजा में किसी भी तरह का अन्न-फल या धन ख़र्च नहीं होता।
आप वहां जाईये जहां बराबरी है, सम्मान है लेकिन विडंबना यह है कि आप वहां जाने के लिए तैयार नहीं हैं और मज़ारों पर टूटे पड़े हैं। अपने शोषण के लिए आधी ज़िम्मेदारी खुद आपकी भी है।
2. आपसे मैंने कहा था कि ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ वाले भाई से पूछकर मुझे बताईये कि स्वामी विवेकानंद ने हिंदुओं को करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा से क्यों रोका ?
और रोका भी है या वैसे ही उनकी तरफ़ से झूठी अफ़वाह फैलाई जा रही है ?
आपने क्या पता किया है ?
अब ज़रा मुझे बता दीजिए, कई दिन हो चुके हैं।
यह कोई तरीक़ा नहीं है कि अनवर जमाल की बात की काट करो और हिंदुओं को उसी बात पर कुछ भी न कहो। यह तरीक़ा न्याय और निष्पक्षता का नहीं है। आदमी मत देखिए। ग़लती देखिए, जिसकी पाओ उसे ही रोक दो। मैं तो ऐसे ही करता हूं। मुझे गुटबाज़ी से क्या मतलब ?
ग़लत को ग़लत कह देता हूं चाहे मेरा क़रीबी हो या मेरा विरोधी। चाहे मुझसे छोटा हो या फिर बड़ा। सही का साथ देता हूं चाहे कहने वाला कोई भी हो। स्वामी विवेकानंद जी की बात सही है तो मैंने उनका समर्थन किया। स्वामी जी के कहने से कोई सही बात ग़लत थोड़े ही हो जाएगी। वे एक सन्यासी थे और पूरा जीवन वे मंदिर और तीर्थों का ही भ्रमण करते रहे। ऐसे में अगर वे कुछ कह रहे हैं तो उस पर ध्यान अवश्य दिया जाना चाहिए
-----------------------------------------------------------------------------------
पूस के माह में संभोग जायज़ या नाजायज़ ?
@ जनाब डा. श्याम गुप्ता जी ! कृप्या ‘चैरिटी‘ शब्द की स्पैलिंग चेक कर लीजिएगा आपको पता चल जाएगा कि इस कहावत को आपने कहां ग़लत लिखा है। आपको तो मात्र इशारे से ही समझ जाना चाहिए था लेकिन आप तो साफ़ बताने के बाद भी नहीं जान पाए। दूसरी बात यह है कि इस कहावत में ‘मस्ट‘ नहीं है बल्कि ‘चैरिटी बिगिन्स फ़्रॉम होम‘ है। मस्ट की तो फिर भी चल जाएगी लेकिन स्पेलिंग मिस्टेक तो आपको दुरूस्त करनी ही पड़ेगी।
2. हिंदुओं में जितनी परंपराएं प्रचलित हैं उनमें जितनी लिखी हुई हैं इससे ज़्यादा वे हैं जो अलिखित हैं। फिर अलग अलग जातियों के ही नहीं बल्कि अलग अलग गांवों तक के रिवाज अलग हैं। आप किसी यदुवंशी से पूछिए कि ‘पूस के मास में नवविवाहित यदुवंशियों को संभोग से क्यों रोका गया है ?‘
भगवान के साथ भेदभाव क्यों ?
3. आप अलिखित हिंदू रस्मों को तो क्या जानेंगे  ?
आपको यह भी पता नहीं है कि श्रीमद्भागवत महापुराण में महात्मा बुद्ध को विष्णु जी का अवतार बताया गया है। आप कह रहे हैं कि हम तो महात्मा बुद्ध को केवल एक विद्वान मानकर उन्हें आदर देते हैं ?
आपको श्री रामचंद्र जी का अवतार होना तो पता है लेकिन महात्मा बुद्ध का अवतार होना पता नहीं है। यह अज्ञान नहीं है तो और क्या है ?
4. यदि वास्तव में ही महात्मा बुद्ध विष्णु जी के अवतार थे तो आपके मंदिरों में श्रीरामचंद्र जी और उनके वानर तक के तो चित्र मिलते हैं लेकिन उन्हीं के एक और अवतार महात्मा बुद्ध के चित्र या मूर्ति आदि क्यों नहीं मिलते ?
5. क्या इससे यह पता नहीं चलता कि आप लोग केवल इंसानों में ही भेदभाव नहीं करते बल्कि अगर भगवान भी आप लोगों के बीच जन्म ले ले तो आप उसके साथ भी भेदभाव करते हैं। उसके एक रूप की पूजा करेंगे और दूसरे रूप का एक चित्र तक किसी मंदिर में नहीं रखेंगे ?
क्या ईश्वर भी कभी अनीश्वरवादी हो सकता है ?
6. क्या ईश्वर भी कभी अनीश्वरवादी हो सकता है ?
जब श्रीमद्भागवत महापुराण महात्मा बुद्ध को ईश्वर घोषित कर रहा है तो फिर क्या महात्मा बुद्ध यह भूल गए थे कि वे स्वयं ईश्वर हैं और उन्हें अनीश्वरवादी और यज्ञ का विरोधी नहीं होना चाहिए ?
7. महात्मा बुद्ध ने यज्ञ में अन्न-फल जलाने का विरोध क्यों किया ?
8. अगर उन्होंने विरोध कर भी दिया तो तत्कालीन वेदाचार्यों ने बौद्धों के विरोधस्वरूप यज्ञ को कलिवज्र्य क्यों घोषित कर दिया ?
अगर यज्ञ धर्म था तो उसे किसी अनीश्वरवादी विद्वान के कहने से बंद नहीं करना चाहिए था। जैसे कि हम अज्ञानियों के विरोध के बावजूद कुरबानी बंद नहीं करते।
हिंदू धर्म के सिद्धांतों को लगातार बदला जाता रहा है
9. आपने धर्म को खेल समझ रखा है कि जब चाहो और जितना चाहो उसे बदल दो।
10. जितना बदलने की इजाज़त होती है वह या तो अनुकूलन में आता है या फिर आपद्-धर्म होता है। उसमें धर्म के मूल सिद्धांतों को सुरक्षित रखा जाता है। ऐसा नहीं होता कि समय बदले तो धर्म के मूल सिद्धांत ही बदल कर रख दिए जाएं। जब सिद्धांत बदल दिए जाते हैं तो फिर धर्म भी बदल जाता है। इसे धर्म परिवर्तन कहा जाता है, न कि नवीनीकरण।
पद सोपान क्रम में जाति-व्यवस्था हिंदू धर्म का आधार है। चाहे वह जन्मना हो या फिर गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर। इन चारों जातियों के अधिकार बराबर नहीं हैं। यह वर्ण-व्यवस्था का स्पष्ट सिद्धांत है लेकिन आज भारत में हरेक वर्ण को, हरेक श्रेणी के कर्मचारी को बराबर अधिकार है। ब्राह्मण किसी पर भी श्रेष्ठता नहीं है।
ऐसे ही हिंदू जीवन पद्धति का आधार चार आश्रम हैं। आप 50 साल से ऊपर के हो चुके हैं लेकिन आज भी यहीं घूम रहे हैं मुसलमानों की तरह। आप जंगल जाने के लिए तैयार ही नहीं हैं एक वानप्रस्थी की तरह। जब आपको हिंदू जीवन पद्धति की महानता पर यक़ीन है तो आप इस्लाम पर अमल क्यों कर रहे हैं ?
अपने धर्म से पतित होना और क्या होता है ?
चारों आश्रमों का त्याग क्यों ?
11. आज हिंदू अपने बच्चों को गुरूकुलों में भेजने के बजाय कान्वेंट में भेज रहे हैं और बच्चे भी ‘ब्रह्मचर्य‘ का पालन नहीं कर रहे हैं। आप चारों आश्रमों में से किसी एक भी आश्रम का पालन नहीं करते तो फिर आप अपने धर्म के नास्तिक हुए कि नहीं ?
12. आप विवाह करते हैं लेकिन गृहस्थ के लिए हिंदू धर्म में जो विधान है कि अगर गर्भ ठहर जाए तो पति अपनी पत्नी से संभोग न करे । आप इसके भी पाबंद नहीं हैं। यहां भी आप इस्लाम पर ही अमल कर रहे हैं । अपने आश्रम के अनुसार आप आचरण क्यों नहीं करते ?
13. अगर वे अव्यवहारिक हैं तो आप मानते क्यों नहीं ?
हिंदू विवाह : संस्कार या समझौता ?
14. हिंदू धर्म में विवाह एक संस्कार है। पति के मरने के बाद भी औरत उसी की पत्नी रहती है। इस्लाम में पति की मौत के साथ ही रिश्ता टूट जाता है और तलाक़ से भी टूट जाता है तथा औरत दूसरा विवाह कर सकती है। आपने भी अपने संस्कार को मुसलमानों की तरह ‘समझौते‘ में ही बदल कर रख दिया है। जब हमने उसे आपकी तरह संस्कार नहीं माना तो आपने उसे हमारी तरह समझौता क्यों मान लिया ?
क्या इस्लाम हिंदू धर्म की नक़ल है ?
15. अगर इस्लाम आपके नज़रिये वाले हिंदू धर्म की नक़ल होता तो इसमें हिंदू धर्म के मौलिक सिद्धांत ज़रूर होते जैसे कि अवतारवाद, अंशवाद, बहुदेववाद, सती, नियोग, ऊंचनीच, छूतछात, जुआ, ब्याज, संगीत की अनुमति, देवदासी, मूर्तिपूजा, यज्ञ, सोलह संस्कार, चार आश्रम, आवागमन, गोपूजा, गाय का पेशाब पीना, हिंदुस्तान का कोई तीर्थ या सन्यास लेना आदि। इनमें से कोई भी चीज़ इस्लाम में सिरे से ही नहीं है। अलबत्ता आप खुद इन चीज़ों से अपना पीछा छुड़ाते जा रहे हैं और अपने धर्म को इस्लाम जैसा बनाते जा रहे हैं।
हिंदू धर्म के कुछ मतों के मानने वालों की शक्ल तक मुसलमानों से इतनी मिलती जुलती हो गई है कि अमेरिका में उन्हें मुसलमान समझकर मारने की घटना भी पेश आ चुकी है।
16. धर्म के सिद्धांतों को ही बदलकर रख दिया गया है और आप कह रहे हैं कि यही तो वैज्ञानिकता है। यह वैज्ञानिकता नहीं है बल्कि मूर्खता है और जनता को सदा मूर्ख बनाए रखने के लिए साज़िश का एक फंदा है। भारत में पहले बौद्ध धर्म का और जैन धर्म का सिक्का जम गया तो हिंदू धर्म को उनके सिद्धांतों के अनुसार ढाल दिया गया और जब मुसलमान आ गए तो उनकी तरह बन गए और अब यूरोपियन्स की तूती बोल रही है तो अपना रहन-सहन उनकी तरह कर डाला। धर्म से आपको कभी मतलब रहा ही नहीं। आप तो वक्त के हाकिम के रिवाज के मुताबिक अपनी मान्यताएं और परंपराएं बदलते चले आ रहे हैं। इसी उलट पलट में आपसे आपका धर्म खोया गया। आप भूल गए लेकिन मुझे याद है क्योंकि मेरे पास ‘वह‘ है जो आपके पास नहीं है।
17. कृप्या अपनी हालत पर ग़ौर करें और ऐसी हालत में भी अपनी महानता के झूठे दंभ को आप त्यागने के लिए तैयार नहीं हैं, सिवाय अफ़सोस के और क्या किया जा सकता है ?
धर्म एक प्रचारक अनेक
18. आप कहते हैं कि इस्लाम मात्र 1500-1600 साल पुराना है। मैं आपको बता चुका हूं कि इस्लाम सनातन है। एक ही सिद्धांत का प्रचार करने वाले लगभग एक लाख चैबीस संदेष्टा हुए हैं जो कि सब के सब हज़रत मुहम्मद साहब स. के आने से पहले ही हुए हैं। पैग़म्बर साहब स. की पैदाईश को भी 1500-1600 साल नहीं हुए हैं। इससे पता चलता है कि आपने इस्लाम के बारे में महज़ सुनी-सुनाई बातों के आधार पर एक कल्पना गढ़ ली है। आप इस्लाम को जानने के लिए उसके मूल स्रोत से ज्ञान लेने के प्रति गंभीर नहीं हैं।
19. इस्लाम के प्रति तो आप क्या गंभीरता दिखाएंगे जबकि आप जिस धर्म को धर्म मानते हैं उसी का पालन करते हुए जंगल जाने के लिए तैयार नहीं हैं। धोती, चोटी और जनेऊ ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं हैं।
20. आप हवन करने को पर्यावरण शुद्धि के ज़रूरी मानते हैं और दिन में 3 बार ऐसा किया जाना हिंदू शास्त्र आवश्यक मानते हैं। लेकिन आप जिस चीज़ को लाभकारी और धर्म मानते हैं उसे दिन में एक बार भी करने के लिए तैयार नहीं हैं।
21. आप इस्लाम की सत्यता पर विश्वास नहीं रखते लेकिन आपके कितने ही कर्म इस्लाम के अनुसार संपादित हो रहे हैं और जिस हिंदू जीवन पद्धति के कल्याणकारी होने का विश्वास आपके दिलो-दिमाग़ में रचा-बसा है, उसके अनुसार आप अमल करने के लिए तैयार नहीं हैं।
ऐसा विरोधाभास आपके जीवन में क्यों है ?
ज़रा इन बिंदुओं पर ग़ौर कीजिएगा। यह जीवन कोई तमाशा नहीं है और न ही धर्म कोई कपड़े हैं कि अपनी मर्ज़ी से जब चाहे इसका ड़िज़ायन चेंज कर लिया।
1- https://www.blogger.com/comment.g?blogID=554106341036687061&postID=5300384475338570599&isPopup=true 

2- http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/01/c.html