भाई ! असल बात यह है कि नर नारी अपने पैदा करने वाले को भूल चुके हैं। उसे भूलने के बाद कौन किसका हक़ अदा करेगा और क्यों ?
हरेक अपने मन की चाही करेगा और कर ही रहे हैं।
ये सब अपनी बग़ावत की सज़ा भुगत रहे हैं।
इनकी अक्लमंदी इनके किसी काम नहीं आ रही है।
जो जितना पढ़ा लिखा है, आज वह उतना ही बड़ा हैवान है।
जैविक बम बनाने वाले वैज्ञानिक सब पढ़े लिखे हैं।
करो अपनी मनमानी और फिर भुगतो उसका परिणाम।
आपके पूरे लेख में ईश्वर अल्लाह का नाम नहीं आया।
उसका आदेश नहीं आया।
आप केवल सही बात बताएं।
यह न देखें कि लोग तो यह बात नहीं मानेंगे।
नहीं मानेंगे तो न मानें।
उनके मानने को देखकर उनके सामने फ़िलॉसफ़ी न परोसिए।
कल्याण दर्शन से नहीं धर्म से होता है।
धर्म का आम करो।
जन को सज्जन बनाने वाला केवल धर्म है।
हम धर्म को ही समस्या का हल मानते हैं।
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प्रस्तुतकर्ता DINESH PAREEK