प्रस्तुतकर्ता प्रवीण शाह
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वस्तु है तो वास्तु भी है.
मकान में हवा और रौशनी का प्रवाह सही हो. पानी की सप्लाई ठीक हो. मालो-ज़र घर के अंतिम कोने में हो और उस कोने की दीवारें मोटी हों . घर की औरतें हर दम उसके पास रहें चाहे वे मोटी हों या पतली हों. किचन बेडरूम से दूर हो और बच्चे बेडरूम से दूर हों . टॉयलेट बाथरूम और पानी बच्चों के पास हो. बच्चे गेट के पास रहें ताकि वे आने जाने वालों पर नज़र रख सकें. इस तरह तिजोरी से गेट तक सब कुछ सुरक्षित रहता है.
यह एक वैज्ञानिक विधि है लेकिन जब इसे ग्रहों से जोड़ दिया गया तो इसका विज्ञान छिप गया और अज्ञान छा गया. ग्रहों से डरने वाले अब अपने मकान के कोनों से भी डरने लगे और पीले बल्ब जलाने लगे.
अगर इनकी अक्ल रौशन हो जाए तो वे जान लेंगे कि वास्तु के अनुसार सही बने हए महलों में रहने वाले राजाओं को भी उनके कुलगुरु मुस्लिम हमलावरों से बचा नहीं पाए जबकि हमलावरों के मकान में दस तरह के वास्तु दोष हुआ करते थे. कुलगुरु खुद न बच पाए. सोमनाथ मंदिर का वास्तु ठीक ही रहा होगा लेकिन फिर भी उसमें रहने वाले गज़नवी की तलवार की भेंट चढ़ गए.
क्यों ?
क्योंकि खुद अपने विचार का वास्तु ठीक न था.
विचार और कर्म ठीक हों तो वास्तु जैसा भी हो, नफ़ा ही देता है.
चाइनीज़ वास्तु ज्यादा वौज्ञानिक है. उसका ज्ञान भारतीय वास्तु में शामिल कर लिया है और उसका नाम भी न लिया.
अजब इत्तेफ़ाक़ यह है कि जैसे जैसे लोगों में वास्तु का ज्ञान बढ़ रहा है वैसे वैसे महंगाई भी बदती जा रही है.
प्राचीन ज्ञान चाहे चीन का हो या भारत का, उसे अंधविश्वास से अलग कर लिया जाए तो उसका वैज्ञानिक रूप सामने आ जाता है. तब हम उससे लाभ उठा सकते हैं.