February 22,2013 at 01:11 PM IST
मित्र, अगर लोग किसी बात को गुण दोष के आधार पर माना करते तो फिर वे अच्छे नेताओं को संसद में भेजते।
अगर आप भी गुण दोष के आधार पर आसन करते तो सूर्य नमस्कार न करके नमाज अदा करते।
सूर्य नमस्कार में सूर्य को नमस्कार है और नमाज में अजन्मे परमेश्वर को नमन है और योग का उददेश्य परमेश्वर से जुड़ना है न कि सूर्य से जुड़ना। सूर्य से लाभ उठाने के लिए धूप में खेलना पर्याप्त है। पातंजलि के योग दर्शन में एक सुखासन के अलावा दूसरा आसन तक नहीं है।
इसके बावजूद आप नमाज नहीं पढेंगे।
क्या यही है गुण दोष का विवेचन करना ?
मेरा उददेश्य आलोचना करना या इल्ज़ाम देना नहीं है। योग और स्वास्थ्य का उददेश्य से सूर्य नमस्कार से पूरा होता हो तो वह किया जाए और उससे वह उददेश्य पूरा न होता हो तो फिर सूर्य नमस्कार क्यों किया जाए ?
मैं प्राणायाम करता हूं।
मैंने योग में औपचारिक प्रशिक्षण के लिए साढ़े तीन वर्ष ख़र्च किये हैं और वैसे पिछले 30 लगाए हैं। शवासन आदि काफ़ी लाभदायक हैं लेकिन सूर्य नमस्कार मनुष्य को वस्तुओं के सामने झुकाता है। वस्तुओं को नमन करना इसलाम में नहीं है।
आप सूर्य नमस्कार की हिमायत कर रहे हैं लेकिन आप यह भी नहीं बता सकते कि यह हिन्दू धर्म के किस ग्रंथ में पाया जाता है और इसका प्रचलन हिन्दू समाज में कब हुआ ?
जानते हों तो बताने की कृपा करें।
अगर आप भी गुण दोष के आधार पर आसन करते तो सूर्य नमस्कार न करके नमाज अदा करते।
सूर्य नमस्कार में सूर्य को नमस्कार है और नमाज में अजन्मे परमेश्वर को नमन है और योग का उददेश्य परमेश्वर से जुड़ना है न कि सूर्य से जुड़ना। सूर्य से लाभ उठाने के लिए धूप में खेलना पर्याप्त है। पातंजलि के योग दर्शन में एक सुखासन के अलावा दूसरा आसन तक नहीं है।
इसके बावजूद आप नमाज नहीं पढेंगे।
क्या यही है गुण दोष का विवेचन करना ?
मेरा उददेश्य आलोचना करना या इल्ज़ाम देना नहीं है। योग और स्वास्थ्य का उददेश्य से सूर्य नमस्कार से पूरा होता हो तो वह किया जाए और उससे वह उददेश्य पूरा न होता हो तो फिर सूर्य नमस्कार क्यों किया जाए ?
मैं प्राणायाम करता हूं।
मैंने योग में औपचारिक प्रशिक्षण के लिए साढ़े तीन वर्ष ख़र्च किये हैं और वैसे पिछले 30 लगाए हैं। शवासन आदि काफ़ी लाभदायक हैं लेकिन सूर्य नमस्कार मनुष्य को वस्तुओं के सामने झुकाता है। वस्तुओं को नमन करना इसलाम में नहीं है।
आप सूर्य नमस्कार की हिमायत कर रहे हैं लेकिन आप यह भी नहीं बता सकते कि यह हिन्दू धर्म के किस ग्रंथ में पाया जाता है और इसका प्रचलन हिन्दू समाज में कब हुआ ?
जानते हों तो बताने की कृपा करें।
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February 22,2013 at 02:17 PM IST
मित्र मैं तो पहले ही कह चुका हूँ जिनका सूर्यनमस्कार में विश्वास नहीं हो वे इसे सिर्फ व्यायाम समझ कर कर लें फायदा ही होगा। जहाँ तक नमाज पढ़ने का सवाल है तो ऐसा करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि मैं भी मानता हूँ कि ईश्वर मूलतः निराकार और निर्गुण है। सूर्य नमस्कार किस पुस्तक में वर्णित है अभी मैं नहीं बता सकता क्योंकि अभी मैंने डेरा बदला है और किताबें अस्त-व्यस्त है।
सेक्स शिक्षा धर्मनिरपेक्ष तो सूर्यनमस्कार क्या ?