Friday, February 17, 2012

च्यवन ऋषि ने ताज़ा आंवले खाए और वे जवान हो गए

@ प्यारे भाई अमित जी ! ज़्यादातर लोग वही कथा जानते हैं जो कि सुकन्या द्वारा च्यवन ऋषि की भूलवश आंख फोड़ देने के विषय में मशहूर है कि इस घटना से कुपित होकर च्यवन ऋषि ने सुकन्या के राज्य के सभी नागरिकों का पेशाब पाख़ाना ही रोक दिया था और राजा से कहा कि वह अपनी बेटी का विवाह उससे कर दे। अपनी प्रजा की जान बचाने के लिए राजा ने अपनी सुकुमारी बेटी बूढ़े ऋषि को दे दी और उसके बाद एक दिन अश्विनी कुमार सुकन्या को नंगे नहाते हुए देखकर उस पर आसक्त हो जाते हैं और वे उसे अपनाने का प्रस्ताव देते हैं।
इसी कथा में आता है कि च्यवनप्राश का अवलेह 52 जड़ी बूटियों के योग से अश्विनी कुमारों ने बनाया था।
आप ऐसा मानना चाहें तो मान सकते हैं लेकिन हमें पता है कि ऋषि और देवताओं का चरित्र क्या होता है ?
अक्रोध और क्षमा ऋषि का मूल लक्षण होता है। वह भूल से किए गए कार्य को तो छोड़िए जानबूझ कर किए गए उत्पीड़न को भी क्षमा कर देता है। वह एक के कर्म का दंड दूसरे को नहीं देता और किसी की भूल का श्राप पूरे राज्य को कभी नहीं देता और न ही वह ब्लैकमेल करता है।
सत्पुरूष पराई स्त्री पर बुरी नज़र नहीं डालते और देवता उनसे भी ज़्यादा दिव्य चरित्र वाले होते हैं।
घटना को चमत्कारपूर्ण बनाने के मक़सद से ही ये सब तत्व बाद में डाल दिए गए हैं।

अस्ल बात कुछ और थी जिसे वह बता सकता है जो वैदिक परंपरा को भी जानता हो और औषधियों की प्रकृति और शक्ति को भी। हमें ऐसे ही एक विद्वान ब्राह्मण ने च्यवन ऋषि की वास्तविक कथा बताई थी जो कि इससे भिन्न है।
हम उसे ही मानते हैं।

बहरहाल आज बाज़ार में 25 से लेकर 80 घटकों तक के योग से निर्मित च्यवनप्राश बिक रहे हैं।
हरेक नुस्खे का मुख्य घटक आंवला ही है।
यह अकेला ही बुढ़ापे को भगाने की शक्ति रखता है बशर्ते कि इसे ताज़ा खाया जाए।

असली और नक़ली च्यवनप्राश की पहचान
आप ख़ुद चेक कर लीजिए।
एक बार आप एक महीना तक 52 घटकों वाला च्यवनप्राश खाएं और देखें कि आपके अंदर कितनी ताक़त का संचार हुआ ?
इसके बाद सुबह शाम, आप महीना भर ताज़ा आंवले खाएं।
अब आप ख़ुद देख लेंगे कि ताक़त किसने ज़्यादा दी ?

रिज़ल्ट आपको बताएगा कि च्यवन ऋषि ने क्या खाया था ?

ख़ैर अब बताएं कि ऋषभकंद क्या है जिसका इस्तेमाल वैदिक यज्ञ में किया जाता है ?
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यह कमेंट हमने निरामिष ब्लॉग की पोस्ट पर एक सवाल के जवाब में दिया है -

यज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।।


शुक्राणु बढ़ाने वाला अचूक नुस्ख़ा Shukranu

हमारे पास शुक्राणुओं की कमी की शिकायत लेकर एक युवक आया बल्कि नवयुवक आया।
हमने उसे बैद्यनाथ कंपनी का मूसली पाक में शक्रवल्लभ रस मिलाकर दिया। उसके शुक्राणु 15 दिन में ही 35 प्रतिशत से 65 प्रतिशत हो गए।
इसके अलावा यह योग तमाम तरह की मर्दाना कमज़ोरी को दूर करता है।
खाओ और वैलेंटाइन डे मनाओ अपनी पत्नी के साथ।
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हमने यह कमेंट कुमार राधा रमण जी की पोस्ट पर दिया है जो कि पुरूषों में संतानहीनता के विषय पर है।
देखिए उनकी पोस्ट:

पुरुष संतानहीनता

अनादिकाल से संतानहीनता से ग्रस्त हर पुरुष इस यक्ष प्रश्न का उत्तर चाहता रहा है कि वह संतानोत्पत्ति में सक्षम है या नहीं। पूर्ण पुरुष उसे ही माना जा रहा है, जो विवाह उपरांत संतानोत्पत्ति कर सके। संतान की उत्पत्ति के लिए शुक्राणु और अंडाणु का सफल निषेचन होना चाहिए। संतानहीनता की स्थिति में पति और पत्नी दोनों के मन में यह उथल-पुथल रहती है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं विकसित पुरुष भी संतानोत्पत्ति करने में सक्षम ही हो यह जरूरी नहीं है। यह भी जरूरी नहीं कि पूर्ण रूप से अविकसित पुरुष संतानोत्पत्ति न कर सके। पुरुष संतानहीनता के कई कारण होते हैं। इनमें से कई का निवारण किया जा सकता है।
मुख्य कारण
- वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या एवं गुणवत्ता में कमी एवं नपुंसकता।
-शुक्राणु की गतिशीलता में कमी।
-शुक्राणु का गतिशील न होना।
-शुक्राणु का मृत एवं विकृत होना।
-शुक्राणुओं का न होना।
-वीर्य में संक्रमण एवं एंटीबॉडीस्‌ का होना।
-वीर्य का न बनना एवं बाहर न जा पाना।
-सेक्स ज्ञान का अभाव एवं संतानोत्पत्ति के लिए प्रजनन समय ज्ञान का अभाव।
इनके अलावा कई और भी कारण हो सकते हैं।


क्या आप जानते हैं?
-पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या १०० से १५० लाख प्रति मिली लीटर होती है।
-जिन पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या २० लाख है, वे भी प्राकृतिक रूप से पिता बन सकते हैं।
-जिन पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या १ लाख से कम है, वे कृत्रिम गर्भाधान की आईव्हीएफ पद्धति अपना सकते हैं।
-जिन पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या २० लाख से कम है, वे भी प्राकृतिक रूप से पिता बन सकते हैं बशर्ते उनमें शुक्राणुओं की गुणवत्ता अच्छी हो अन्यथा ये पुरुष वर्ग कृत्रिम गर्भाधान की आईयूआई पद्धति अपना सकते हैं।


अनुपस्थित शुक्राणु
कई पुरुषों में शुक्राणु अनुपस्थित रहते हैं। उनके मन में ये सवाल उठते हैं कि -क्या मैं पिता बन सकता हूँ? -क्या मैं अपने शुक्राणुओं से ही अपनी संतान का पिता बन सकता हूँ? आज से तीन-चार दशक पहले इसका जवाब "नहीं" था। पर आज इन प्रश्नों का जवाब "हाँ" में है। पहले तकनीक की सफलता दर २० से ३० प्रतिशत थी, किंतु आजकल ७० प्रतिशत है। जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु नहीं है वे टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक-इक्सी, मिक्सी एवं पिक्सी अपनाकर स्वयं के शुक्राणुओं से ही पिता बन सकते हैं।


किसे होगा इससे फायदा
इसके लिए संतानहीन पुरुषों का जनेन्द्रिय परीक्षण, सोनोग्राफी, कलर डॉप्लर, रक्त में विशेष हारमोन्स का स्तर एवं अंडकोष की बॉयप्सी कर इसका कारण पता लगाना जरूरी होता है। इन सारी जाँचों के दुरुस्त पाए जाने पर ये इस तकनीक का फायदा उठा सकते हैं।


महत्वपूर्ण जाँचें
महत्वपूर्ण जाँचें, जो पुरुष संतानहीनता के सभी मरीजों के लिए बेहद जरूरी है-
-वीर्य की उच्च स्तरीय जाँच विशेषज्ञ द्वारा -संक्रमण होने पर कल्चर की जाँच -पुरुष हारमोन्स के स्तर की जाँच
-एंटीबॉडीज के स्तर की जाँच
- गुप्तांगों की सोनोग्राफी एवं कलर डॉप्लर की जाँच, जरूरत होने पर अंडकोष की बॉयप्सी।


उपचारः
शुक्राणु की संख्या, गुणवत्ता, गतिशीलता की कमी एवं संक्रमण, एंटीबॉडीस्‌ का विशेषज्ञों द्वारा नियमित उपचार काफी हद तक इन कमियों को दूर कर सकता है। दूसरी बात खान-पान, योग, संयमित एवं नशारहित जीवन एवं सेक्स का पूर्ण ज्ञान संतानोत्पत्ति के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है। तनावपूर्ण जीवन, शराब, सिगरेट, ड्रग्स, अत्यधिक मोबाइल, कम्प्यूटर, लेपटॉप का उपयोग, शुक्राणुओं की संख्या एवं गुणवत्ता संतानहीनता के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। इसके कारण पुरुष संतानहीनता में निरंतर वृद्धि हो रही है। सभी प्रयासों एवं कृत्रिम गर्भाधान की तकनीकों को अपनाकर अगर आप पिता बनने में सक्षम नहीं हैं और आप कृत्रिम गर्भाधान की आधुनिकतम तकनीक के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है। पुरुष संतानहीनता के क्षेत्र में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कई तरह के सफल समाधान प्रस्तुत करता है(डॉ. अजय जैन,सेहत,नई दुनिया,फरवरी प्रथमांक 2012)।
Source : http://upchar.blogspot.in/2012/02/blog-post_736.html

Wednesday, February 15, 2012

प्राकृतिक जीवन पद्धति है नेचुरोपैथी Naturopathy in India



नेचुरोपैथी सीखने के लिए हमने औपचारिक रूप से भी डीएनवाईएस किया है। आजकल धनी लोग इस पैथी की तरफ़ रूख़ भी कर रहे हैं। रूपया काफ़ी है इसमें। फ़ाइव स्टारनुमा अस्पताल तक खुल चुके हैं नेचुरोपैथी के और इस तरह एक सादा चीज़ फिर व्यवसायिकता की भेंट चढ़ गई।
यह ऐसा है जैसे कि भारत में जिस संत ने भी एक ईश्वर की उपासना पर बल दिया, उसे ही जानबूझ कर उपासनीय बना दिया गया।
शिरडी के साईं बाबा इस की ताज़ा मिसाल हैं। उनसे पहले कबीर थे। यह उन लोगों ने किया जिन लोगों ने धर्म को व्यवसाय बना रखा है और एकेश्वरवाद से उनके धंधा चौपट होता है तो वे ऐसा करते हैं कि उनका धंधा चौपट करने वाले को भी वह देवता घोषित कर देते हैं।
जिन लोगों ने दवा को सेवा के बजाय बिज़नैस बना लिया है वे कभी नहीं चाह सकते कि उनका धंधा चौपट हो जाए और लोग जान लें कि वे मौसम, खान पान और व्यायाम करके निरोग रह भी सकते हैं और निरोग हो भी सकते हैं।
ईश्वर ने सेहतमंद रहने का वरदान दिया था लेकिन हमने क़ुदरत के नियमों की अवहेलना की और हम बीमारियों में जकड़ते गए। हमें तौबा की ज़रूरत है। ‘तौबा‘ का अर्थ है ‘पलटना‘ अर्थात हमें पलटकर वहीं आना है जहां हमारे पूर्वज थे जो कि क़ुदरत के नियमों का पालन करते थे। उनकी सेहत अच्छी थी और उनकी उम्र भी हमसे ज़्यादा थी। उनमें इंसानियत और शराफ़त हमसे ज़्यादा थी। हमारे पास बस साधन उनसे ज़्यादा हैं और इन साधनों को पाने के चक्कर में हमने अपनी सेहत भी खो दी है और अपनी ज़मीन की आबो हवा में भी ज़हर घोल दिया है। हमारे कर्म हमारे सामने आ रहे हैं।
अब तौबा और प्रायश्चित करके ही हम बच सकते हैं।
यह बात भी हमारे पूर्वज ही हमें सिखा गए हैं।
हमारे पूर्वज हमें योग भी सिखाकर गए थे लेकिन आज योग को भी व्यापार बना दिया गया है। जो व्यापार कर रहा है लोग उसे बाबा समझ रहे हैं।
हमारे पूर्वज हमें ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग‘ मुफ़्त में सिखाकर गए थे लेकिन अब यह कला सिखाने की बाक़ायदा फ़ीस वसूल की जाती है।
कोई भगवा पहनकर धंधा कर रहा है और सफ़ेद कपड़े पहनकर। इनकी आलीशान अट्टालिकाएं ही आपको बता देंगी कि ये ऋषि मुनियों के मार्ग पर हैं या उनसे हटकर चल रहे हैं ?
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हमने यह कमेंट कुमार राधा रमण जी की पोस्ट पर दिया है. देखिए:

नेचुरोपैथी में करिअर

नेचुरोपैथी उपचार का न केवल सरल और व्यवहारिक तरीका प्रदान करता है , बल्कि यह तरीका स्वास्थ्य की नींव पर ध्यान देने का किफायती ढांचा भी प्रदान करता है। स्वास्थ्य और खुशहाली वापस लाने के कुदरती तरीकों के कारण यह काफी पॉप्युलर हो रहा है।
नेचुरोपैथी शरीर को ठीक - ठाक रखने के विज्ञान की प्रणाली है , जो शरीर में मौजूद शक्ति को प्रकृति के पांच महान तत्वों की सहायता से फिर से स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए उत्तेजित करती है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो नेचुरोपथी स्वयं , समाज और पर्यावरण के साथ सामंजस्य करके जीने का सरल तरीका अपनाना है।
नेचुरोपैथी रोग प्रबंधन का न केवल सरल और व्यवहारिक तरीका प्रदान करता है , बल्कि एक मजबूत सैद्धांतिक आधार भी प्रदान करता है। यह तरीका स्वास्थ्य की नींव पर ध्यान देने का किफायती ढांचा भी प्रदान करता है। नेचुरोपथी पश्चिमी दुनिया के बाद दुनिया के अन्य हिस्सों में भी जीवन में खुशहाली वापस लाने के कुदरती तरीकों के कारण लोकप्रिय हो रहा है।
कुछ लोग इस पद्धति की शुरुआत करने वाले के रूप में फादर ऑफ मेडिसिन हिपोक्रेट्स को मानते हैं। कहा जाता है कि हिपोक्रेट्स ने नेचुरोपथी की वकालत करना तब शुरू कर दिया था , जब यह शब्द भी वजूद में नहीं था। आधुनिक नेचुरोपैथी की शुरुआत यूरोप के नेचर केयर आंदोलन से जुड़ी मानी जाती है। 1880 में स्कॉटलैंड में थॉमस एलिंसन ने हायजेनिक मेडिसिन की वकालत की थी। उनके तरीके में कुदरती खानपान और व्यायाम जैसी चीजें शामिल थीं और वह तंबाकू के इस्तेमाल और ज्यादा काम करने से मना करते थे।
नेचुरोपैथी शब्द ग्रीक और लैटिन भाषा से लिया गया है। नेचुरोपथी शब्द जॉन स्टील (1895) की देन है। इसे बाद में बेनडिक्ट लस्ट ( फादर ऑफ अमेरिकन नेचुरोपथी ) ने लोकप्रिय बनाया। आज इस शब्द और पद्धति की इतनी लोकप्रियता है कि कुछ लोग तो इसे समय की मांग तक कहने लगे हैं। लस्ट का नेचुरोपैथी के क्षेत्र में काफी योगदान रहा। उनका तरीका भी थॉमस एलिंसन की तरह ही था। उन्होंने इसे महज एक तरीके की जगह इसे बड़ा विषय करार दिया और नेचुरोपथी में हर्बल मेडिसिन और हाइड्रोथेरेपी जैसी चीजों को भी शामिल किया।


क्या है नेचुरोपैथी
यह कुदरती तरीके से स्वस्थ जिंदगी जीने की कला है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि इस पद्धति के जरिये व्यक्ति का उपचार बिना दवाइयों के किया जाता है। इसमें स्वास्थ्य और रोग के अपने अलग सिद्धांत हैं और उपचार की अवधारणाएं भी अलग प्रकार की हैं। आधुनिक जमाने में भले इस पद्धति की यूरोप में शुरुआत हुई हो , लेकिन अपने वेदों और प्राचीन शास्त्रों में अनेकों स्थान पर इसका उल्लेख मिलता है। अपने देश में नेचुरोपैथी की एक तरह से फिर से शुरुआत जर्मनी के लुई कुहने की पुस्तक न्यू साइंस ऑफ हीलिंग के अनुवाद के बाद माना जाता है। डी वेंकट चेलापति ने 1894 में इस पुस्तक का अनुवाद तेलुगु में किया था। 20 वीं सदी में इस पुस्तक का अनुवाद हिंदी और उर्दू वगैरह में भी हुआ। इस पद्धति से गांधी जी भी प्रभावित थे। उन पर एडोल्फ जस्ट की पुस्तक रिटर्न टु नेचर का काफी प्रभाव था।


नेचुरोपथी का स्वरूप
मनुष्य की जीवन शैली और उसके स्वास्थ्य का अहम जुड़ाव है। चिकित्सा के इस तरीके में प्रकृति के साथ जीवनशैली का सामंजस्य स्थापित करना मुख्य रूप से सिखाया जाता है। इस पद्धति में खानपान की शैली और हावभाव के आधार पर इलाज किया जाता है। रोगी को जड़ी - बूटी आधारित दवाइयां दी जाती हैं। कहने का अर्थ यह है कि दवाइयों में किसी भी प्रकार के रसायन के इस्तेमाल से बचा जाता है। ज्यादातर दवाइयां भी नेचुरोपथी प्रैक्टिशनर खुद तैयार करते हैं।


कौन - कौन से कोर्स
इस समय देश में एक दर्जन से ज्यादा कॉलेजों में नेचुरोपैथी की पढ़ाई देश में स्नातक स्तर पर मुहैया कराई जा रही है। इसके तहत बीएनवाईएस ( बैचलर ऑफ नेचुरोपथी एंड योगा साइंस ) की डिग्री दी जाती है। कोर्स की अवधि साढ़े पांच साल की रखी गई है।


अवसर
संबंधित कोर्स करने के बाद स्टूडेंट्स के पास नौकरी या अपना प्रैक्टिस शुरू करने जैसे मौके होते हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में भी इस पद्धति को पॉप्युलर किया जा रहा है। खासकर सरकारी अस्पतालों में भारत सरकार का आयुष विभाग इसे लोकप्रिय बनाने में लगा है। ऐसे अस्पतालों में नेचुरोपैथी के अलग से डॉक्टर भी रखे जा रहे हैं। अगर आप निजी व्यवसाय करना चाहते हैं तो क्लीनिक भी खोल सकते हैं। अच्छे जानकारों के पास नेचुरोपैथी शिक्षण केन्द्रों में शिक्षक के रूप में भी काम करने के अवसर उपलब्ध हैं। आप चाहें तो दूसरे देशों में जाकर काम करने के अवसर भी पा सकते हैं।


क्वॉलिफिकेशन
अगर आप इस फील्ड में जाकर अपना करियर बनाना चाहते हैं तो आपके पास न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 12 वीं है। 12 वीं फिजिक्स , केमिस्ट्री और बायॉलजी विषयों के साथ होनी चाहिए(निर्भय कुमार,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,1.2.12)।
Source : http://upchar.blogspot.in/2012/02/blog-post_16.html

Tuesday, February 14, 2012

भविष्य बताने वाले और कष्ट दूर करने वाले ज्योतिषियों और बाबाओं की तिलिस्मी तकनीक Clever Brahmins


रोज़ी रोटी की तो क्या यहां हलवा पूरी की भी कोई समस्या नहीं है
नज्म सितारे को कहते हैं और नूजूमी उसे जो सितारों की चाल से वाक़िफ़ हो।
सितारों की चाल के असरात ज़मीन की आबो हवा पर तो पड़ते ही हैं। शायद इसी से लोगों ने समझा हो कि हमारी ज़िंदगी के हालात पर भी सितारों की चाल का असर पड़ता है।
कुछ हमने भी यार दोस्तों के हाथों की लकीरें देखी हैं और इसी दौरान मनोविज्ञान से भी परिचित हुए।
कोई आदमी सितारों और उनकी कुंडलियों को न भी जानता हो लेकिन वह इंसान के मनोविज्ञान को जानता हो तो वह इस देश में ऐश के साथ बसर कर सकता है।
सच बोलने वाले का यहां जीना दुश्वार है लेकिन मिथ्याभाषण करने वाला राजा की तरह सम्मान पाता है।

ख़ैर, अपने प्रयोग के दौरान हमने यह जाना है कि लोग मुसीबत में हैं और उन्हें उससे मुक्ति चाहिए। इसी तलाश में आदमी हर तरफ़ जाता है और इसी दुख से मुक्ति की तलाश में वह अपना हाथ दिखाने या अपनी कुंडली बंचवाने आएगा।
1.कुंवारी को उत्तम वर चाहिए,
2.कुंवारे को रोज़गार चाहिए, उसके लिए लड़कियां बहुत हैं।
3. शादीशुदा औरत को पुत्र चाहिए।
4. बुढ़िया को अपनी बहू अपने वश में चाहिए।
5. बीमार को शिफ़ा अर्थात आरोग्य चाहिए।

बहरहाल जिस उम्र में जो चाहिए, एक बार आप वह पहचान लीजिए। इसके बाद आप शक्ल देखकर और उसकी बात सुनकर ही भांप जाएंगे कि आपके पास आने वाले को क्या चाहिए ?
अब आप बात यों शुरू करें कि
आप दिल के बहुत अच्छे हैं। सदा दूसरों की मदद करते हैं। किसी का कभी बुरा नहीं चाहते लेकिन फिर भी लोग आपको ग़लत समझते हैं और आपको धोखा देते हैं। आप दूसरों की मदद करते हैं चाहे ख़ुद के लिए कुछ भी न बचे।
उस आदमी का विश्वास आपके प्रति अटूट हो जाएगा कि यह आदमी वास्तव में ही ज्ञानी है। यह जान गया है जैसा कि मैं वास्तव में हूं।
हक़ीक़त यह है कि हरेक आदमी अपने अंदर एक आदर्श व्यक्ति के गुण कल्पित किए हुए है। आपकी बात उसके मन के विचार की तस्दीक़ करती है और बस वह आपका मुरीद हो जाएगा। अब आप उसे कोई क्रिया या कोई जाप आदि बताते रहें जिससे समय बीतता रहे।
समय हर दर्द की दवा है।
जैसे बुख़ार अपनी मियाद पूरी करके ख़ुद ही उतर जाता है या फिर मरीज़ को ही साथ ले जाता है।
ऐसे ही समय के साथ या तो उसका कष्ट भी रूख़सत हो जाएगा या फिर वह ख़ुद ही रूख़सत हो जाएगा।
इस बीच जब कभी वह शिकायत करे कि साहब आपके बताए तरीक़े का पालन करके भी हमारा कष्ट दूर न हुआ तो उसे मन के संकल्प की दृढ़ता और विचारों की शुद्धि पर एक लेक्चर दे दीजिए।
यह एक ऐसा काम है जो पूरा कभी हो नहीं सकता। लिहाज़ा आपके तिलिस्म को आपका मुरीद कभी तोड़ ही नहीं सकता।
भारतीय पंडों का तिलिस्म इस्लाम और विज्ञान के बावजूद आज भी क़ायम है और वे मज़े से छप्पन भोग का आनंद ले रहे हैं।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जिनां हमारा

आखि़र अल्लामा इक़बाल ने यूं ही तो नहीं कहा है।
(अल्लामा से माफ़ी के साथ , क्योंकि उन्होंने इस मौक़े के लिए यह शेर नहीं कहा था।)

ये चंद पॉइंट हैं जिन्हें जागरूकता के लिए शेयर करना ज़रूरी समझा और इसलिए भी कि अगर कोई रोज़ी रोटी की समस्या से त्रस्त होकर आत्महत्या करने की सोच रहा हो तो प्लीज़ वह ऐसा न करे। रोज़ी रोटी की तो क्या यहां हलवा पूरी की भी कोई समस्या नहीं है। मरने से बेहतर है जीना।
निकम्मेपन से बेहतर है कर्म , अब चाहे वह मनोविज्ञान को समझकर सलाह देना ही क्यों न हो !
हां लोगों की जेब काटने और उनकी आबरू लूटने की नीयत नहीं होनी चाहिए।
आपके बुज़ुर्ग ऐसे नहीं थे यह जानकर अच्छा लगा।
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हमने यह कमेंट जनाब दिनेश राय द्विवेदी जी की पोस्ट पर दिया है जो कि फलित ज्योतिष के विषय पर है।
देखिए उनकी पोस्ट:

नूजूमियत

... मेरे बुजुर्गों में एक खास बात थी कि ज्योतिष उन की रोजी-रोटी या घर भरने का साधन नहीं था। दादाजी दोनों नवरात्र में अत्यन्त कड़े व्रत रखते थे। मैं ने उस का कारण पूछा तो बताया कि ज्योतिष का काम करते हैं तो बहुत मिथ्या भाषण करना पड़ता है, उस का प्रायश्चित करता हूँ। मैं ने बहुत ध्यान से उन के ज्योतिष कर्म को देखा तो पता लगा कि वे वास्तव में एक अच्छे काउंसलर का काम कर रहे थे। अपने आप पर से विश्वास खो देने वाले व्यक्तियों और नाना प्रकार की चिन्ताओं से ग्रस्त लोगों को वे ज्योतिष के माध्यम से विश्वास दिलाते थे कि बुरा समय गुजर जाएगा, अच्छा भी आएगा। बस प्रयास में कमी मत रखो। लेकिन आज देखता हूँ कि जो भी इस अविद्या का प्रयोग कर रहा है वह लोगों को उल्लू बनाने और पिटे पिटाए लोगों की जेब ढीली करने में कर रहा तो मन वितृष्णा से भर उठता है। अब वक्त आ गया है कि इस अविद्या के सारे छल-छद्म का पर्दा फाश हो जाना चाहिए।
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Monday, February 13, 2012

पंचतत्वों के रथ पर सवार
निर्मल धवल आत्मा तेरी
लाया जग में पालनहार
वह पल क़ियामत होगा
पूरा होगा तेरा जो विचार

See :
http://vedquran.blogspot.in/2012/02/sun-spirit.html
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यह कमेंट हमने साधना वैद जी की संवेदना भरी कविता पर दिया है, देखिए :
...

कभी तो उसके श्याम

उसके आँगन में आयेंगे

और उसके मन की

चूनर पर रंग भरी

अपनी पिचकारी से

सतरंगी फूल बिखेरेंगे !


-साधना वैद

Thursday, February 2, 2012

यज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।। पर एक संवाद भाई अनुराग शर्मा जी से

यज्ञ हो तो हिंसा कैसे ।। वेद विशेष ।। पर एक संवाद भाई अनुराग शर्मा जी से

  1. @ डॉ. जमाल,


    आप वृषभ के अर्थ देखिये तो सही, ऋषभकन्द की बात भी अपने आप ही क्लीयर हो जायेगी। ऑक्स्फ़ोर्ड के संस्कृत प्राध्यापक सर मॉनियेर मॉनियेर-विलियम्स के ऋग्वैदिक शब्दकोष के अनुसार भी वृषभ का एक अर्थ बैल के सींग जैसी शक्ल की कन्द होता है। इसके अलावा वृषभ शब्द का अर्थ शक्ति और शक्तिमान है। आप तो पोषण के बारे में काफ़ी टिप्पणियाँ देते रहे हैं, आपको यह तो पता होगा कि शर्करा तुरंत शक्ति देती है। आप तो संस्कृत के विद्वान हैं, यह भी समझते होंगे कि वृषभ ऋषभ का ही एक रूप है, ठीक वैसे ही जैसे विशुद्ध, शुद्ध का। पहले जैन तीर्थंकर ऋषभदेव अयोध्या के प्रसिद्ध इक्ष्वाकु वंश में जन्मे थे और इक्ष्वाकु वंश को संसार में पहली बार ईख की खेती करने का श्रेय जाता है। वही गन्ने जिसके लिये सिकन्दर के साथ आये मेगस्थनीज़ ने आश्चर्य से लिखा था कि भारतीय लोग बिना मधुमक्खी के शहद बनाते हैं। ऋषभकन्द के बारे में इतनी जानकारी पाकर अब आपको अन्दाज़ लग जाना चाहिये कि बात किस चीज़ की हो रही है।

    वेद और यज्ञ में हिंसा के आपके अब तक के आक्षेप का अच्छी तरह निराकरण हुआ है। अब और नया उधार लेने से पहले, पहले का पूरा नहीं तो कुछ तो चुकता करते जाओ। बात शाकाहार की हुई हो या वेदमंत्रों की, आपने पोषण और विटामिन के बारे में जो बात की, गलत साबित हुई, मंत्रों की बात की गलत साबित हुई, शब्दार्थ की बात की, गलत साबित हुई। लेकिन आप अभी भी नये सवाल लाये जा रहे हैं। इत्मीनान रखिये, आपके ताज़ातरीन सवालों के सटीक जवाब देने में हमें कोई समस्या नहीं है। सच तो यह है कि वे जवाब हज़ारो साल पहले दिये जा चुके हैं, और वो भी उन्हीं किताबों में जिनमें आप अभी तक बस सवाल ढूंढ रहे हैं। फिर भी अगर आप अपनी नई शंकाओं का निराकरण भी हमीं से सुनना चाहते हैं तो आपकी वह इच्छा भी अवश्य पूरी होगी मगर समय आने पर। तब तक के लिये स्पूनफ़ीडिंग करने के बजाय मैं उसका होमवर्क आज आप को ही देता हूँ:

    होमवर्क: आपने जिस मंत्र को उद्धृत किया, उसके सूक्त में वर्णित संसार के उद्गम का विश्व का प्राचीनतम और सुन्दरतम विमर्श आगे वेदांत तक चला है, ज़रा ढूंढकर लाइये और पाठकों को बस इतना बता दीजिये कि यह विमर्श आगे कैसा चला और इसका निष्पादन किस उपनिषद में हुआ है?
    [वैसे तो आपका सवाल विषय से इतर ही था, इसलिये "निरामिष" प्रवक्ता की अनुमति से यहाँ रखें अन्यथा मुझे ईमेल पर भेज दें, धन्यवाद]
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
    उत्तर
    1. @ भाई अनुराग शर्मा जी ! आपकी ख्वाहिश का सम्मान करते हुए हमने नासदीय सूक्त पर हुए विमर्श को तलाश किया तो हमें यह मिला है, आप एक नज़र देख लेंगे तो हम आपके शुक्रगुज़ार होंगे।
      वेद में सरवरे कायनात स. का ज़िक्र है Mohammad in Ved Upanishad & Quran Hadees
      यह जानने के लिए आज हम वेद भाष्यकार पंडित दुर्गाशंकर सत्यार्थी जी का एक लेख यहां पेश कर रहे हैं।
      आज तक लोगों ने यही जाना है कि ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो ज्ञानी होय‘ लेकिन अगर ‘ज्ञान‘ के दो आखर का बोध ढंग से हो जाए तो दिलों से प्रेम के शीतल झरने ख़ुद ब ख़ुद बहने लगते हैं। यह एक साइक्लिक प्रॉसेस है।
      पंडित जी का लेख पढ़कर यही अहसास होता है।
      मालिक उन्हें इसका अच्छा पुरस्कार दे, आमीन !
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      ‘इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न। यो अस्याध्यक्षः परमेव्योमन्तसो अंग वेद यदि वा न वेद।‘
      वेद 1,10,129,7
      यह विविध प्रकार की सृष्टि जहां से हुई, इसे वह धारण करता है अथवा नहीं धारण करता जो इसका अध्यक्ष है परमव्योम में, वह हे अंग ! जानता है अथवा नहीं जानता।
      सामान्यतः वेद भाष्यकारों ने इस मंत्र में ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ से ईशान परब्रह्म परमेश्वर अर्थ ग्रहण किया है, किन्तु इस मंत्र में एक बात ऐसी है जिससे यहां ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ से ईशान अर्थ ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह बात यह है कि इस मंत्र में सृष्टि के अध्यक्ष के विषय में कहा गया है - ‘सो अंग ! वेद यदि वा न वेद‘ ‘वह, हे अंग ! जानता है अथवा नहीं जानता‘। ईशान के विषय में यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह कोई बात नहीं जानता। फलतः यह सर्वथा स्पष्ट है कि ईशान ने यहां सृष्टि के जिस अध्यक्ष की बात की है, वह सर्वज्ञ नहीं है। मेरे अध्ययन के अनुसार यही वेद में हुज़ूर स. का उल्लेख है। शब्द ‘नराशंस‘ का प्रयोग भी कई स्थानों पर उनके लिए हुआ है किन्तु सर्वत्र नहीं। इसी सृष्टि के अध्यक्ष का अनुवाद उर्दू में सरवरे कायनात स. किया जाता है।
      फलतः श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार वेद का सर्वप्रथम प्रकाश जिस पर हुआ। वह यही सृष्टि का अध्यक्ष है। जिसे इस्लाम में हुज़ूर स. का सृष्टि-पूर्व स्वरूप माना जाता है।
      मैं जिन प्रमाणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, आइये अब उसका सर्वेक्षण किया जाए।
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Wednesday, February 1, 2012

सत्य के अनुसरण से ही सतयुग आएगा Towards Satyug

भाई रतन सिंह शेख़ावत जी ! मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। दुख की बात यह है कि मुसलमानों की नफ़रत में इंसान इस हद तक गिर गया है कि वह ईश्वर की कृतियों की पैदाइश पर ही पाबंदी की बातें सोचने लगा है। ये वे लोग हैं जो कि अपने ख़र्चे पर अपने ही पेटों में ईश्वर की कृति को सिर्फ़ इसलिए क़त्ल कर देते हैं कि वह लड़की है। समस्या वास्तव में यही लालची सोच है। जिस दिन आदमी अपने लालच पर क़ाबू पा लेगा, उस दिन उसके दिल से बढ़ती आबादी का डर भी निकल जाएगा। उसके दिल से यह डर तब निकलेगा जब उसके दिल में ईमान आएगा कि मूलतः योजना बनाने और अपना हुक्म चलाने का अधिकार मनुष्य को नहीं है। जगत का सच्चा योजनाकार वास्तव में एक ईश्वर है। पैदा करने वाला वही है। जिसे वह पैदा कर रहा है, उसका अन्न पानी भी वही देगा। इस देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाए और पूंजीवादियों के हितों को पूरा करने से बचा जाए तो आज भी धरती इतना अन्न फल उपजाती है कि वह हम सबके लिए काफ़ी है।
इस ज़मीन से ज़रूरतें तो सबकी पूरी हो सकती हैं लेकिन हवस तो किसी एक की भी पूरी नहीं हो सकती।
हवस की दलदल से निकलने की आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
ईश्वर की योजना क्या है और उसका आदेश क्या है ?
इसका पता आज केवल क़ुरआन से ही चल सकता है जो कि ऐतिहासिक रूप से पूरी तरह सुरक्षित है। मुसलमानों से नफ़रत हवस के मारों को क़ुरआन से दूर ले जा रही है और फिर वे जान ही नहीं पाते कि उनकी पैदाइश से उस मालिक का उददेश्य क्या था ?
वे बस खा पीकर और जल कुढ़कर ही मर जाते हैं।
जलना ही उनकी तक़दीर है दुनिया में भी और दुनिया से जाने के बाद भी।
उनके लिए आग है यहां भी और वहां भी।
शांति केवल ईश्वर की शरण में है और उसके आदेश के अनुसरण में है। सत्य के अनुसरण से ही सतयुग आएगा।
इसी में मनुष्य की सफलता है।
आइए अपने जीवन को हम सफल बनाएं।
प्रेम करें और प्रेम पाएं।
जिससे हम प्रेम करते हैं, उसे बढ़ते देखना हम पसंद करते हैं।
रहने के लिए केवल धरती ही तो नहीं है, अब तो ईश्वर ने आकाश मार्ग भी हमारे लिए खोल दिया है, जहां अरबों खरबों ग्रह मौजूद हैं।
ऊंचा सोचिए और ऊंचा पहुंचिए।
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यह कमेन्ट निम्न पोस्ट पर दिया गया है :

आगे बढ़कर सत्य को मानें और दूसरों के लिए एक मिसाल बनें जैसे कि पं. श्री दुर्गाशंकर सत्यार्थी जी महाराज

ZEAL: बढती मुस्लिम आबादी एक विश्व-संकट (Muslim demographics (Europe, USA, Scandinavia) पर ग़ौरो फ़िक्र किया जाए तो कुछ बातें सामने आती हैं और जो बातें सामने आती हैं, उन्हें जानने के बाद दिल को बहुत सुकून मिलता है।
मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है या नहीं और बढ़ रही है तो कितनी बढ़ रही है ?
इस पर आज ध्यान देने की ज़रूरत है और उससे भी ज़्यादा ज़रूरत इस बात पर देने की है कि हिंदुस्तान के पंडित और शास्त्री पहले से ही बता रहे हैं कि अब जल्दी ही सतयुग आने वाला है।
वह सतयुग इसी रूप में आएगा कि सत्य को मानने वाले ही विश्व पर छा जाएंगे।
तब क्यों न आप पहले से ही आगे बढ़कर सत्य को मानें और दूसरों के लिए एक मिसाल बनें जैसे कि पं. श्री दुर्गाशंकर सत्यार्थी जी महाराज ने भी कहा है कि
वेद और क़ुरआन हक़ीक़त में एक ही धर्म के दो ग्रंथ हैं।
इसी बात को छिपाए रखने के लिए और हिंदू और मुसलमानों को आपस में लड़ाए रखने के लिए अंग्रेज़ बहादुर ने बहुत चालाकी से काम लिया और आज तक ले रहे हैं और कम समझ नादान लोग उनके सुर में सुर मिलाए जा रहे हैं। विदेशों में बैठे हुए कुछ लोग आज भी हिंदुओं के मन में मुसलमानों के लिए नफ़रत के बीज बोते रहते हैं और उसका फ़ायदा उनके आक़ाओं को ही मिलता है।
पंडित सत्यार्थी साहब का मज़्मून ऐसी हरेक साज़िश को नाकाम कर देता है, उसे पढ़िए और उसे शेयर भी कीजिए।

वेद में सरवरे कायनात स. का ज़िक्र है Mohammad in Ved Upanishad & Quran Hadees

वस्तुतः वेद और क़ुरआन, दोनों का एक साथ अस्तित्व नास्तिकों के लिए घोर परेशानी का कारण बना हुआ है और अंग्रेज़ इस संभावना से आतंकित थे कि यदि यह रहस्य हिंदुओं और मुसलमानों पर खुल गया कि वेद और क़ुरआन, दोनों की सैद्धांतिक शिक्षाएं सर्वथा एक समान हैं और दोनों एक ही धर्म के आदि और अंतिम ग्रंथ हैं, तो हिंदुओं और मुसलमानों में वह मतैक्य संस्थापित होगा कि उन्हें हिंदुस्तान से पलायताम की स्थिति में आने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं रहेगा। यही कारण है कि अंग्रेज़ों ने वेद के बहुदेवोपास्यवादी अनुवाद कराना अपना सर्वप्रथम कार्य निश्चित किया।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति!

Ratan Singh Shekhawat said...

अब जल्दी ही सतयुग आने वाला है।
वह सतयुग इसी रूप में आएगा कि सत्य को मानने वाले ही विश्व पर छा जाएंगे।
@ सतयुग तो पता नहीं आएगा या नहीं पर उसके आने से पहले यह (बढती आबादी) समस्या कलियुग के चरम का अहसास जरुर करवा देगी|