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अच्छा-बुरा और सही-ग़लत कौन जानता है ?
यह भी इसी पोस्ट में बताया गया है।
सही-ग़लत की परिभाषा क्या है ?
कौन सा काम सही है ? और कौन सा काम ग़लत है ?
कौन लोग सही बात को जानने वाले और उसके अनुसार व्यवहार करने वाले हुए हैं ?
जब सारे हिंदू भाई इन सवालों के जवाब मिलकर भी न बता पाएं। तब आपको बताएगा आपका यह भाई अनवर जमाल जो कि ग़ालिब के बुत के पास खड़ा हुआ नज़र आ रहा है। जन्नत की हक़ीक़त ग़ालिब भी जानते थे और अनवर जमाल भी जानता है। जो जन्नत की हक़ीक़त जानता है वह हरेक विचार और कर्म की परिणति भी जानता है क्योंकि उसके पास वह ‘ज्ञान‘ है जिसके लिए ‘ज्ञान‘ शब्द की उत्पत्ति हुई।
अपने दिल की तंगी और तास्सुब निकालकर जब आप एक मुसलमान को अपने ऊपर श्रेष्ठता देने के लिए तैयार हो जाएंगे तो आपको किसी के बताए बिना ख़ुद ब ख़ुद ‘ज्ञान का द्वार‘ नज़र आ जाएगा। आपके श्रेष्ठता देने से मुसलमान श्रेष्ठ नहीं हो जाएगा लेकिन आप के अंदर विनय का गुण ज़रूर पैदा हो जाएगा और जब तक वह गुण आपमें पैदा नहीं होगा तो आप अपना ‘वेद‘ भी न समझ पाएंगे और ‘वेद‘ शब्द का अर्थ भी ‘ज्ञान‘ ही होता है और याद रखिएगा कि दर्शन आप छः नहीं छः हज़ार बना लीजिए। ये सारे मिलकर भी एक वेद के बराबर न हो पाएंगे। वेद ही ज्ञान है। दर्शन ज्ञान नहीं है बल्कि ज्ञान तक पहुंचने का एक माध्यम है। वेद सत्य है और दर्शन कल्पना है। सत्य आधार है और कल्पना मजबूरी। सत्य से मुक्ति है और कल्पना से बंधन। कल्पना सत्य भी हो सकती है और मिथ्या भी लेकिन सत्य कभी मिथ्या नहीं हो सकता। ईश्वर सत्य है और उस तक केवल सत्य के माध्यम से ही पहुंचना संभव है।
सही-ग़लत का ज्ञान कभी षटचक्रों के जागरण और समाधि से नहीं मिला करता। इसे पाने की रीत कुछ और ही है। वह सरल है इसीलिए मनुष्य उसे मूल्यहीन समझता है और आत्मघात के रास्ते पर चलने वालों को श्रेष्ठ समझता है। दुनिया का दस्तूर उल्टा है । मालिक की कृपा हवा पानी और रौशनी के रूप में सब पर बरस रही है और उसके ज्ञान की भी लेकिन आदमी हवा पानी और रौशनी की तरह उसके ज्ञान से लाभ नहीं उठा रहा है मात्र अपने तास्सुब के कारण।
कोई किसी का क्या बिगाड़ रहा है ?
अपना ही बिगाड़ रहा है ।
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