शगुन गुप्ता की पोस्ट '
मौत से भी बुरे हैं रीति रिवाज़ !'
पर एक चर्चा
Dr. Anwer Jamal का कहना है:
February 24,2013 at 03:18 PM IST
अच्छी पोस्ट के लिये शुक्रिया.
अग्नि की खोज के बाद मनुष्य ने दाह संस्कार करना सीखा। अग्नि की खोज से पहले हिन्दू मुर्दे को दफ़न किया करते थे। बच्चे और सन्यासी को आज भी हिन्दुओं में दफ़न किया जाता था। इसलाम में भी मुर्दे को दफ़न ही किया जाता है और इस तरह का कोई संस्कार नहीं किया जाता।
स्मृति आत्मा में सुरक्षित रहती है। खोपड़ी में घी भर कर जलाने से मुर्दे की स्मृति नष्ट नहीं होती। इसलाम में औरत को बहुत सम्मान से पूरा ढक कर दफ़न किया जाता है। मरने के बाद भी मर्द उसके नग्न शरीर को हाथ नहीं लगाता। मुर्दे की जान पलंग पर ही निकलने देते हैं और उसके अंगों को भी नहीं तोड़ा जाता। एक मुसलमान को जीवन के अंतिम अवसर पर पूरा सम्मान मिलता है और मरने के बाद भी। दफ़न आर्थिक रूप से भी सस्ता पड़ता है। मुर्दे को जलाने में 10 हज़ार रूपये से ज़्यादा ख़र्च आ जाता है जो कि ग़रीब आदमी को क़र्ज़दार बना देता है।
वेदों में दफ़न करने का ज़िक्र भी मौजूद है और आत्मा के इस जगत में आवागमन का कोई वर्णन नहीं है। अग्नि की खोज ने हिन्दुओं के सारे संस्कारों को बदल कर रख दिया है। इससे धर्म का स्वरूप बदल गया है। इसलाम धर्म का मूल स्वरूप है। जिसे इज़्ज़त से मरने की तमन्ना हो, वह इसलामी तरीक़े से दफ़न होने की वसीयत करके जाए।
देखें यह लिंक -
http://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_funeral
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(Dr. Anwer Jamal को जवाब )-
Mangoman Hindustani का कहना है:
February 24,2013 at 10:56 PM IST
डॉक्टर जमाल, जिन्हे सिर्फ और सिर्फ एक भारतीय नागरिक का जीवन और एक भारतीय की ही म्ररत्यूं चाहिये उन्हे कोनसी वसीयत करनी चाहिये? वैसे मेरे विचार से तो ये बात ज्यादा मायने रखती है कि आपके जीवन का अंत चाहे कैसे भी हुआ हो परंतु आप देश के गद्दार की मौत तो नही मारे गये? ना कि आपका अंतिम संस्कार कैसे हुआ? कुछ हिन्दू लोग तो आपने शव को नदी में प्रवाहित भी करते है ताकि जलीय जीवों का भी कुछ भला हो. सर जी, कमियां हर धर्म और मजहब में है जरूरत उनमे सुधार करने की है ना की अपने को दूसरो से महान दिखाने की. क्या आप बता सकते है कि शहीद भगत सिंह के अंतिम संस्कार के तरीके से उनकी महानता पर कोई फर्क पड़ा?
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(Mangoman Hindustani को जवाब )-
Dr. Anwer Jamal का कहना है:
February 27,2013 at 01:19 PM IST
देश का ग़ददार देश को नुक्सान पहुंचाता है। अगर आप देश को नुक्सान पहुंचाकर मरना नहीं चाहते तो आप देख लीजिए कि वेदों में दफ़न करने और जलाने की दोनों विधियां मौजूद हैं। चिता जलाने में ख़र्च भी ज़्यादा है और इसमें पेड़ भी कटते हैं और ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ती है। जलने से मनुष्य मांस और चरबी व घी जलने की दुर्गंध भी दूर दूर तक फैलती है। राख को नदी में बहाने से यह भी डर है कि कहीं वह बहकर दुश्मन देश की सरहद में न पहुंच जाए और हमारे शरीर की राख पानी में मिलकर उस देश की फ़सल को पुष्ट करे और उस अन्न को खाकर विदेश के सैनिक और आतंकवादी ताक़त पाएं और हमारे देश पर हमला करके उसे नुक्सान पहुंचाएं।
इस नुक्सान से बचने का आसान तरीक़ा केवल दफ़न करना है। शरीर दफ़न होकर अपने ही देश की भूमि का अंग बनेगा। वह जीवों और पेड़ों की खाद्य सामग्री बनेगा। मरकर भी वह हमारे देश की इकोलॉजी को समृद्ध बनाएगा। ताज़ा हवा में सांस लेकर हमारे सैनिक और देशवासी ताक़तवर बनेंगे और दुश्मनों के दांत खटटे करेंगे।
अतः अगर आप एक वफ़ादार की भांति मरना चाहें तो आपका अंतिम संस्कार बहुत महत्व रखता है और दफ़न होना देश के प्रति आपकी वफ़ादारी को प्रमाणित करता है।
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(nirmal को जवाब )-
Dr. Anwer Jamal का कहना है:
February 27,2013 at 01:05 PM IST
अगर जीवों के खाने के कारण अंतिम संस्कार का तरीक़ा बेहतरीन कहला सकता है तो क़ब्र में भी लाश को जीव ही खाते हैं। मृतक का सम्मान भी बना रहता है।