ये हैं शहादत के सौदागर, मीडिया भी मौन !
लेखक: महेन्द्र श्रीवास्तव
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माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।
यहाँ ऐसा मशहूर है कि तोप की अर्ज़ी दो तब तमंचा मिलता है. जिन्होंने केवल अपना वाजिब हक़ माँगा उन्हें वह भी नहीं मिला. राजनेता दबाव में न हों तो इरोम के बरसों पुराने अनशन पर भी ध्यान नहीं देते.
गन्ना रस दे तो समझो दबाव पड़ रहा है.
सीबीआई पूरी गंभीरता से जांच करती है चाहे उसे अभियुक्त के अंतिम सांस तक करना पड़े.
सुश्री मायावती जी के शासनकाल में राजा भैया के निवास पर पुलिस अधिकारी श्री आर. एस. पांडेय जी ने छापा मारा था। उसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां दी गईं और फिर एक दिन उन्हें सड़क पर किसी वाहन से कुचल कर मार दिया गया। सन 2004 से उस केस की जांच सीबीआई कर रही है। जांच अभी चल ही रही है।
अब ज़िया उल हक़ के क़त्ल कि जांच और शामिल हो गयी.
दुनिया में न्याय होता, ख़ासकर भारत में न्याय हो जाया करता तो 'पाण्डेय' जी को तो मिल ही गया होता. जो हक़ 'पाण्डेय' को न मिला, वह ज़िया को मिल जाए. ऐसे सपने ज़रूर संजोने चाहियें. सपने भी मर गए तो इंसान फिर किस भरोसे जियेगा ?
राजनीति न्याय को खा चुकी है.
उनके सैकड़ों हज़ारों वर्ष बाद जब उसे लिखा जाता है तो कवि उसमें साहित्य सुलभ कल्पना और अलंकारों का समावेश कर देते हैं। बाद में हर तरह के मनुष्य होते हैं। कुछ के लिए सत्य के बजाय स्वार्थ प्रधान हो जाता है। ये साहित्य में क्षेपक करते हैं। कला, विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में नए प्रयोग होने से भी कुछ परिवर्तन होते चले जाते हैं।
जो ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में पहचानते हैं वे उनकी आलोचना नहीं करते। जो आलोचना करते हैं वे ईश्वर, धर्म और महापुरूषों को उनके मूल स्वरूप में नहीं पहचानते।