पर हमारी टिप्पणी
नागरिक और प्रशासन, सभी को अपने अधिकारों के साथ अपने फ़र्ज़ का भी ध्यान रखना चाहिए।
हिंसा से समाज का तो भला नहीं होता लेकिन जो लोग सदियों से अवाम को ग़ुलाम बनाए हुए हैं। उन्हें इसका लाभ ज़रूर मिलता है। लोग हिंदू, मुस्लिम और जाति के आधार पर बंटते हैं तो कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय की लड़ाई कमज़ोर पड़ती है।
मुसलमान भी जब तक केवल अपने लिए लड़ते रहेंगे, कामयाब न होंगे।
हरेक शोषित के लिए उन्हें खड़ा होना पड़ेगा और इसके लिए भी हिंसा की ज़रूरत नहीं है बल्कि सबको आपस में एक दूसरे का सम्मान करने और आपस में सहयोग करने के जज़्बे को जगाने की ज़रूरत है।
कमज़ोर कमज़ोर आपस में जुड़कर खड़े होंगे तो ज़ालिम बिना लड़े ख़ुद ही कमज़ोर हो जाएगा।
पुलिस और पीएसी से या सेना से टकराना बेकार है।
इस लड़ाई का कोई अंत नहीं है।
दुनिया में ताक़त ही राज करती है।
कोशिश करनी चाहिए कि ताक़त न्याय करने वालों के हाथों में ही पहुंचे।
इसके लिए जागरूकता के लंबे आंदोलन की ज़रूरत है क्योंकि इस तरह के लोग न इस पार्टी में हैं और न उस पार्टी में।
समस्या को शॉर्ट कट तरीक़े से हल करने की कोशिश में कमज़ोर लोग दमन का शिकार होंगे और वे पहले से भी ज़्यादा बर्बाद होकर रह जाएंगे।
नागरिक और प्रशासन, सभी को अपने अधिकारों के साथ अपने फ़र्ज़ का भी ध्यान रखना चाहिए।
हिंसा से समाज का तो भला नहीं होता लेकिन जो लोग सदियों से अवाम को ग़ुलाम बनाए हुए हैं। उन्हें इसका लाभ ज़रूर मिलता है। लोग हिंदू, मुस्लिम और जाति के आधार पर बंटते हैं तो कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय की लड़ाई कमज़ोर पड़ती है।
मुसलमान भी जब तक केवल अपने लिए लड़ते रहेंगे, कामयाब न होंगे।
हरेक शोषित के लिए उन्हें खड़ा होना पड़ेगा और इसके लिए भी हिंसा की ज़रूरत नहीं है बल्कि सबको आपस में एक दूसरे का सम्मान करने और आपस में सहयोग करने के जज़्बे को जगाने की ज़रूरत है।
कमज़ोर कमज़ोर आपस में जुड़कर खड़े होंगे तो ज़ालिम बिना लड़े ख़ुद ही कमज़ोर हो जाएगा।
पुलिस और पीएसी से या सेना से टकराना बेकार है।
इस लड़ाई का कोई अंत नहीं है।
दुनिया में ताक़त ही राज करती है।
कोशिश करनी चाहिए कि ताक़त न्याय करने वालों के हाथों में ही पहुंचे।
इसके लिए जागरूकता के लंबे आंदोलन की ज़रूरत है क्योंकि इस तरह के लोग न इस पार्टी में हैं और न उस पार्टी में।
समस्या को शॉर्ट कट तरीक़े से हल करने की कोशिश में कमज़ोर लोग दमन का शिकार होंगे और वे पहले से भी ज़्यादा बर्बाद होकर रह जाएंगे।
खुशदीप जी को उनकी ग़लती बताई तो मानने के बजाय हमारी टिप्पणी ही मिटा डाली .
खुशदीप जी की गलती दिलबाग जी ने भी दोहरा डाली .
अथर्ववेद 11,8 बताता है कि मनु कौन हैं ?
इस सूक्त के रचनाकार ऋषि कोरूपथिः हैं -
यन्मन्युर्जायामावहत संकल्पस्य गृहादधिन।
क आसं जन्याः क वराः क उ ज्येष्ठवरोऽभवत्। 1 ।
यहां स्वयंभू मनु के विवाह को सृष्टि का सबसे पहला विवाह बताया गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है। ‘आद्या‘ का अर्थ ही पहली होता है और ‘आद्य‘ का अर्थ होता है पहला। ‘आद्य‘ धातु से ही ‘आदिम्‘ शब्द बना जो कि अरबी और हिब्रू भाषा में जाकर ‘आदम‘ हो गया।
स्वयंभू मनु का ही एक नाम आदम है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है। अब इसमें किसी को कोई शक न होना चाहिए कि मनु और जाया को ही आदम और हव्वा कहा जाता है और सारी मानव जाति के माता पिता यही हैं।
अपने मां बाप आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम पर मनघड़न्त चुटकुले बनाना और उनका काल्पनिक व नंगा फ़ोटो लगाना क्या उन सबकी इंसानियत पर ही सवालिया निशान नहीं लगा रहा है जो कि यह सब देख रहे हैं और फिर भी मुस्कुरा रहे हैं ?
See
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/manu-means-adam.html