मात्र 3 घंटों मे ही उर्दू
ग़ज़ल एक बार पढ़ी और बार-बार सुनी।
अच्छी लिखी गई है और पढ़ी भी अच्छी गई है।
लेकिन अगर अर्चना जी अपने तलफ़्फ़ुज़ अर्थात उच्चारण को सुधार लें तो प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा।
मस्लन उन्होंने
‘साज़-संगीत को छेड़ देना ज़रा‘
यह पंक्ति बिल्कुल ठीक पढ़ी है
इसमें उन्होंने ‘ज़‘ की ध्वनि ही उच्चारित की है लेकिन दूसरी जगहों पर जहां भी उन्होंने ‘ज़रा‘ कहने की कोशिश की है उनके मुंह से ‘जरा‘ ही निकला है। उर्दू जानने वालों के लिए यह बेहद खटकता है।
ऐसे उन्होंने ‘खत‘ कहा है जबकि यह आवाज़ ‘ख़त‘ गले से निकलती है। गले से कहा जाता है ‘ख़‘।
‘हम तरन्नुम में भरकर ग़ज़ल गाएंगे‘
में भी उन्होंने ‘ज़‘ तो सही कह दिया लेकिन ‘ग़‘ के बजाय ‘ग‘ कह गईं। ‘ग़‘ की ध्वनि भी गले से ही निकलती है।
किसी उर्दू जानने वाले से एक सिटिंग ले लेंगी तो सदा के लिए ग़लत उच्चारण से मुक्ति मिल जाएगी।
कभी-कभी उर्दू न जानने वाले लोगों के लिए यह जानना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि किस अक्षर के नीचे बिंदी है और उसे कैसे उच्चारित किया जाए ?
अर्चना चाओजी जी और इससे पहले शिखा जी के पाठ को यह ज़रूरत महसूस हो रही है कि जो सीखना चाहते हैं, उन्हें उर्दू भी सिखा दी जाए।
मैं मात्र 3 घंटों मे ही उर्दू सिखा देता हूं। इसके लिए मैं 6 दिन तक आधा घंटा रोज़ाना लेता हूं और बस 6 दिनों में काम हो जाता है। इसके लिए मैंने एक स्पेशल कोर्स डिज़ायन किया है।
आमने सामने 6 दिनों में सिखा देता हूं तो नेट पर ज़्यादा से ज़्यादा 10-12 दिन लग जाएंगे।
इसके बाद उर्दू का विशाल साहित्य आपके सामने होगा।
तब आप हरेक हर्फ़ को वैसे ही जानेंगे जैसा कि वास्तव में वह है। हिन्दी जानने वाले तबक़े में उर्दू शायरी का बेहद शौक़ है बल्कि उनके दिल में उर्दू जानने का भी शौक़ है। उनके शौक़ का ख़याल हमें अहसास दिला रहा है कि कुछ करना चाहिए।
Please go to
http://mushayera.blogspot.com/2011/05/blog-post_03.html
ग़ज़ल एक बार पढ़ी और बार-बार सुनी।
अच्छी लिखी गई है और पढ़ी भी अच्छी गई है।
लेकिन अगर अर्चना जी अपने तलफ़्फ़ुज़ अर्थात उच्चारण को सुधार लें तो प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा।
मस्लन उन्होंने
‘साज़-संगीत को छेड़ देना ज़रा‘
यह पंक्ति बिल्कुल ठीक पढ़ी है
इसमें उन्होंने ‘ज़‘ की ध्वनि ही उच्चारित की है लेकिन दूसरी जगहों पर जहां भी उन्होंने ‘ज़रा‘ कहने की कोशिश की है उनके मुंह से ‘जरा‘ ही निकला है। उर्दू जानने वालों के लिए यह बेहद खटकता है।
ऐसे उन्होंने ‘खत‘ कहा है जबकि यह आवाज़ ‘ख़त‘ गले से निकलती है। गले से कहा जाता है ‘ख़‘।
‘हम तरन्नुम में भरकर ग़ज़ल गाएंगे‘
में भी उन्होंने ‘ज़‘ तो सही कह दिया लेकिन ‘ग़‘ के बजाय ‘ग‘ कह गईं। ‘ग़‘ की ध्वनि भी गले से ही निकलती है।
किसी उर्दू जानने वाले से एक सिटिंग ले लेंगी तो सदा के लिए ग़लत उच्चारण से मुक्ति मिल जाएगी।
कभी-कभी उर्दू न जानने वाले लोगों के लिए यह जानना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि किस अक्षर के नीचे बिंदी है और उसे कैसे उच्चारित किया जाए ?
अर्चना चाओजी जी और इससे पहले शिखा जी के पाठ को यह ज़रूरत महसूस हो रही है कि जो सीखना चाहते हैं, उन्हें उर्दू भी सिखा दी जाए।
मैं मात्र 3 घंटों मे ही उर्दू सिखा देता हूं। इसके लिए मैं 6 दिन तक आधा घंटा रोज़ाना लेता हूं और बस 6 दिनों में काम हो जाता है। इसके लिए मैंने एक स्पेशल कोर्स डिज़ायन किया है।
आमने सामने 6 दिनों में सिखा देता हूं तो नेट पर ज़्यादा से ज़्यादा 10-12 दिन लग जाएंगे।
इसके बाद उर्दू का विशाल साहित्य आपके सामने होगा।
तब आप हरेक हर्फ़ को वैसे ही जानेंगे जैसा कि वास्तव में वह है। हिन्दी जानने वाले तबक़े में उर्दू शायरी का बेहद शौक़ है बल्कि उनके दिल में उर्दू जानने का भी शौक़ है। उनके शौक़ का ख़याल हमें अहसास दिला रहा है कि कुछ करना चाहिए।
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